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कामवाली बाई - भाग(१६)

गीता को अब अपने जीवन से रूचि नहीं रह गई थी,लगभग लगभग दुनिया के सभी इन्सान अक्सर इसी दौर से गुजरते हैं,जब उनके जीवन में नीरसता का भाव आ जाता है,वें खुद से खुद को खुश नहीं रखना चाहते और गीता के साथ भी यही हो रहा था,शायद गीता ने इतनी कम उम्र में इन्सानों का वो घिनौना रूप देख लिया था कि उसे अब किसी पर भी भरोसा ना रह गया था....
लेकिन ये जीवन ही भरोसे और उम्मीदों पर टिका है तो इसे हम नकार नहीं सकते,चाहे मन से स्वीकारें या गैर मन से लेकिन इसे स्वीकारना ही होता है क्योंकि लोगों पर से भरोसा खतम तो उम्मीदें खतम और अगर उम्मीदें खतम तो समझो जिन्दगी खतम,क्योंकि उम्मीदों के बिना जीना नामुमकिन है,इसलिए गीता की माँ कावेरी ने उसे समझाया कि जीवन से ऐसे नहीं हारते तू फिर से कोई काम काज ढ़ूढ़ लें,जिससे तेरा मन फालतू की बातों से हटा रहेगा और ये बात जब कावेरी ने मुरारी को बताई तो मुरारी ने गीता को एक ऐसी जगह लगवा दिया जहाँ हजारों की संख्या में औरतें सिलाई मशीन पर काम करतीं थीं,वो ऐसी फैक्ट्री थी जहाँ ब्राण्डेड कपड़ो की सिलाई होती थी,कई सारे बूटीक वाले वहाँ थोक के भाव अपना माल सिलने के लिए देते थे और अपना टैग लगवाते थे,
गीता भी वहाँ साफ सफाई का काम करने लगी,वहाँ उसकी यूनीफॉर्म थी,इसलिए रोज रोज कपड़ो को चुनने का झंझट भी नहीं रहता था,वह वहाँ सुबह नौ बजे जाती और पाँच बजे शाम को उसकी छुट्टी होती थी,उसकी माँ कावेरी उसके लिए टिफिन में खाना देती थी,दो चार दिन में ही वहाँ उसकी और भी महिला सफाईकर्मियों से दोस्ती हो गई,कुछ ही रोज़ में गीता का वहाँ मन लग गया,दिनभर वो काम करके थक जाती तो रात को नींद भी अच्छी आती थी इसलिए अब उसके चेहरे की रंगत भी लौटने लगी थी.....
एक दिन जब वो अपना काम कर रही थी तो वहाँ के साहब ने किसी पर चिल्लाना शुरू कर दिया,चिल्लाना सुनकर वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गई तो गीता भी सबके देखादेखी साहब के केविन के पास चली गई,साहब उस आदमी से कह रहे थे कि....
तुम्हारा यूँ रोज रोज शराब पीकर फैक्ट्री में आना बिल्कुल अच्छा नहीं है,अगर नौकरी नहीं करनी है तो साफ साफ बता दो,मैं किसी और को रख लूँगा,वो तो मैं तुम्हारी ईमानदारी देखकर चुप रह जाता हूँ वरना किसी को भी रख लूँ,
गलती हो गई साब!अब आगें से दारू पीकर कभी फैक्ट्री में नहीं आऊँगा,वो शख्स बोला।।
तुम्हें पता होना चाहिए कि यहाँ महिलाएं काम करतीं हैं,तुम ऐसे शराब पीकर उनके सामने झूमोगें तो किसी को भी अच्छा नहीं लगेगा,इसलिए उन्होंने मुझसे तुम्हारी शिकायत की,क्या करूँ मैं भी मजबूर हूँ ,मुझे भी तो फैक्ट्री चलानी है,तुम्हारी इस हरकत से अगर महिलाएं नौकरी छोड़कर जाने लगी तो मैं क्या करूँगा,साहब बोले...
जी!मैं आपकी बात समझ सकता हूँ,वो शख्स बोला।।
मेरी बात समझनी नहीं है अपने दिमाग़ में डालनी है कि शराब पीकर यहाँ दिखाई नहीं दोगें,साहब बोले।।
जी!साब! अबसे ऐसा नहीं होगा,वो शख्स बोला।।
अब तुम जा सकते हो,साहब बोलें।।
और वो शख्स जब साहब के केबिन से निकला तो सबकी निगाहें उसकी ओर ही थीं,अक्सर सब उससे नाराज रहते थे ख़ासकर महिलाएँ,क्योंकि उसका दारू पीना किसी को भी ना भाता था,,उसे देखकर एक महिला बोली....
ये दुनिया अब शरीफ़ लोगों के लिए बची ही नहीं है,
ओ दूसरी बोली....
यहाँ बस नशेड़ी गजेड़ियों का ही बोलबाला है,
तीसरी बोली....
ना जाने साहब ने इसे नौकरी से क्यों नहीं निकाला.....
तब वो शख्स गुस्से से बोला.....
तुम लोगों को दूसरों की जिन्दगी में झाँकने में बहुत मजा आता है ना,....
तो क्या करेँ,तुझ जैसे शराबी को यहाँ देखकर अपना मुँह बंद कर लें,उनमे से एक औरत बोली....
अगर मैनें अपना मुँह खोल दिया ना तो तुम सब कहीं की नहीं रहोगी,मुझे सब पता है कि तुम लोंग कहाँ कहाँ मुँह मारती फिरती हो,वो शख्स बोला.....
अब उसकी बात सुनकर औरतों ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी और वहाँ से चली गईं,सबके जाने पर गीता भी वहाँ से जाने लगी तो वो शख्स बोला....
ए...सुनो! लगता है तुम नई हो यहाँ....
गीता ने हाँ के जवाब में सिर हिलाया तो वो बोला....
मुझे तुम शरीफ़ नज़र आती हो,दूर रहा करो इन सबसे....
और इतना कहकर वो वहाँ से चला गया और गीता उसे जाते हुए देखती रही.....
गीता को वो इन्सान कुछ रहस्यमयी सा लगा,उसने फैक्ट्री में काम कर रहीं महिलाओं से उस के बारें में पूछा कि ये कौन है तो उनमें से एक बोली.....
राधेश्याम नाम है इसका,एक नम्बर का शराबी है हरामखोर! औरतों से तो सीधे मुँह बात ही नहीं करता,जब देखो तब शराब के नशे में धुत्त रहता है,फैक्ट्री में शराब पीता रहता है शराबी कहीं का....
ये सुनकर गीता थोड़ी हैरान तो हुई लेकिन उसने सोचा मुझे क्या लेना देना,होगा शराबी!मेरे क्या खुद के लफड़े कम है जो मैं औरों की चिन्ता करती फिरूँ,
और फिर गीता ऐसे ही फैक्ट्री में काम के लिए आती रही,लेकिन उस पर वहाँ के एक बाबू की नज़र थी,वो गीता पर ताक लगाएं बैठा रहता था और जब देखो तब अपने केबिन की सफाई करने के लिए गीता को बुला लेता ,गीता जब कमरा साफ करती तो वो उसे निहार निहार देखता रहता,गीता ने भी ये सब नोटिस किया लेकिन बोली कुछ नहीं,उसने सोचा बाबू केवल देखता ही तो है तो देखा करें,ऐसे तो हजारों मर्द देखते रहते हैं तो क्या मैं सबसे लड़ती फिरूँ....
ऐसे ही कई दिन बीते फिर जब देखो तब बाबू जीवनलाल अक्सर गीता को सफाई के लिए अपने केबिन में बुला लिया करता,अब गीता परेशान हो गई तो उसने ये कहकर मना कर दिया कि वो नहीं आ सकती उसे और जगहों की भी सफाई करनी है,इस बात से जीवनलाल चिढ़ गया और गीता से बदला लेने की ताक में रहने लगा..
फिर एक दिन जब गीता फैक्ट्री के गोदाम की सफाई कर रही थी तो जीवनलाल वहाँ चुपके से जा पहुँचा और गोदाम के दरवाजे भीतर से बंद कर लिए ,गीता बेफिक्री से अपना काम कर रही थी,उसे पता ही नही चला कि कब जीवनलाल वहाँ पहुँच गया,जीवनलाल ने पीछे से जाकर गीता को धर दबोचा,उसकी कमर में दोनों हाथों को डालकर बोला.....
आज तू नहीं बचेगी,बड़ा भाव खा रही थी ना!एक कामवाली होकर बड़ा गुमान है तुझको खुद पर....
छोड़ मुझे कमीने....छोड़....गीता चीखी।।
जितना चिल्लाना है चिल्ला ले,अब यहाँ तेरी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है,यहाँ कोई भी नहीं आएगा,जीवनलाल बोला।।
छोड़....मुझे...छोड़ और इतना कहकर गीता ने जीवनलाल के हाथ पर जोर से दाँत गड़ा दिए ,जीवनलाल की दर्द के मारे हाथ की पकड़ ढ़ीली पड़ गई तो गीता उसके हाथों से छूटकर भागने लगी,लेकिन जीवनलाल ने भागकर उसे पकड़ना चाहा तो उसके हाथ में गीता का दुपट्टा आ गया....
गीता ने खुद को अपने हाथों से ढ़क लिया और जीवनलाल के सामने गिड़गिड़ाई....
भगवान के लिए मुझे जाने दो,मैनें तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?
तूने मेरी बात ना मानकर गलती कर दी ,अब तुझे उसकी सजा तो मिलकर रहेगी और इतना कहकर जीवनलाल ने गीता को अपनी बाँहों में दबोच लिया,गीता चीखती रही ....चिल्लाती रही....मदद की गुहार लगाती रही ,तभी अचानक गोदाम की खिड़की का शीशा टूटा और कोई भीतर आया.....
उसने गीता को जीवनलाल की बाँहों से अलग किया और फिर जीवनलाल पर टूट पड़ा,उसे इतना पीटा कि जब तक जीवनलाल ने ये ना कह दिया कि मुझसे गलती हो गई तब तक ना छोड़ा....
तब वो शख्स बोला....
माँफी मुझसे नहीं ,इस लड़की से माँग ,जिसकी आबरू तू लेने चला था....
जीवनलाल ने गीता से माँफी माँगी तब वो शख्स बोला....
ऐसे नहीं !लड़की के पैर छूकर माँफी माँग।
और फिर जीवनलाल ने गीता के पैर छूकर माँफी माँगी,
तब वो शख्स बोला....
आज के बाद कहीं भी किसी भी लड़की या औरत पर गलत नज़र गड़ाई तो तेरी आँखें निकाल लूँगा,मैं अभी तेरी शिकायत साहब से करके तुझे जेल भिजवाता हूँ और फिर उस शख्स ने फर्श पर गिरा हुआ दुपट्टा गीता के काँधों पर डाला और बोला....
चलो!साहब के पास और इसकी शिकायत करके आते हैं और फिर वो शख्स जीवनलाल की काँलर पकड़कर गीता के साथ साहब के केबिन पहुँचा,उस शख्स को देखकर साहब बोलें.....
अरे!राधेश्याम!ये सब क्या है?तुमने जीवनलाल की काँलर क्यों पकड़ रखी है और ये लड़की यहाँ क्या कर रही है....
तब राधेश्याम बोला....
साहब!ये कमीना जीवनलाल इस लड़की के संग दुष्कर्म करने की कोशिश कर रहा था,वो तो मैं वहाँ से निकला तो लड़की की चीखें सुनकर मुझे कुछ शक़ हुआ और मैं गोदाम की खिड़की तोड़कर भीतर चला गया और इस जीवनलाल को रंगें हाथों पकड़ लिया.....
ओह...तो ये बात है,साहब बोलें।।
जी!आप इसे पुलिस के हवाले कर दें,राधेश्याम बोला।।
राधेश्याम!एक बात कहूँ,साहब बोलें।।
इसे इस बार माँफ कर दो,फैक्ट्री में पुलिस आएगी तो जमाने भर में मुफ्त में फैक्ट्री की बदनामी हो जाएगी और फिर जीवनलाल के चरित्र पर भी हमेशा हमेशा के लिए कलंक लग जाएगा,हो सकता है कि माँफ करने पर वो सुधर जाए....
ये आपकी भूल है साहब!ऐसे लोंग कभी नहीं सुधरते,राधेश्याम बोला।।
बस एक बार मेरी खातिर इसे माँफ कर दो,साहब बोले...
आप कहते हैं तो ठीक है,आपकी फैक्ट्री आप मालिक है जैसा आप करना चाहें सो करें और इतना कहकर राधेश्याम चला गया और एक बार फिर गीता उसके स्वाभाव को देखकर आश्चर्यचकित रह गई,गीता उस समय खुद को असहज महसूस कर रही थी तो उसने साहब से कहा कि वो घर जाना चाहती है,क्या वो जा सकती है,तब साहब ने उसके कहने पर उसे घर जाने की इजाज़त दे दी और अपनी कार से उसके घर तक छुड़वा दिया,गीता घर पहुँची तो कावेरी को हैरानी हुई कि वो इतनी जल्दी घर कैसें आ गई? तब गीता बोली.....
तबियत अच्छी नहीं लग रही थी इसलिए आधे दिन की छुट्टी लेकर घर आ गई....
गीता ने अपनी माँ को घर जल्दी वापस आने की असली वजह नहीं बताई,वो नहीं चाहती थी कि उसकी माँ बेवज़ह परेशान हो लेकिन घर आकर वो केवल राधेश्याम के बारें में ही सोच रही थी,उसे राधेश्याम का स्वाभाव समझ ही नहीं आ रहा कि वो कैसा शख्स है,नरम दिल है,बहादुर है,बेरहम है,गुण्डा है या फिर शराबी है,वो तो उसका शुक्रिया भी अदा नहीं कर पाई और वो चला गया,उसके बारें में यही सब सोचते सोचते गीता सो गई....
दूसरे दिन उसने अपनी माँ से कहा कि आज वो खाना थोड़ा ज्यादा पैक करें,
माँ ने ,पूछा कि क्यों?
तो वो बोली....
एक सहेली को तुम्हारे हाथ का खाना खिलाना है...
खाना लेकर गीता फैक्ट्री पहुँची,वो काम तो कर रही थी लेकिन उसका मन नहीं लग रहा था उसकी निगाहें लगातार राधेश्याम को ढूढ़ रहीं थीं,क्योंकि उसे उससे शुक्रिया कहना था और फिर लंच टाइम हुआ,गीता अपना टिफिन लेकर इधर उधर देखने लगी लेकिन उसे राधेश्याम नहीं दिखा,वो थोड़ी मायूस सी हो गई लेकिन फिर उसे कुछ देर बाद राधेश्याम दिखा,तो वो राधेश्याम के पास जाकर बोली....
सुनिए....
जी!कहिए,राधेश्याम बोला।।
वो कल के लिए धन्यवाद,आपने मुझे उस कमीने के चंगुल से छुड़ाया....
जहाँ गीता ने इतना कहा तो राधेश्याम जोर जोर से हँसने लगा....
उसकी हँसी सुनकर गीता बोली...
आप हँसे क्यों?
वो इसलिए कि एक शराबी का कोई शुक्रिया अदा कर रहा है,वरना यहाँ सब गालियाँ ही सुनाकर जाते हैं....
जी !आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?गीता बोली.....
सब ऐसा ही कहते हैं,राधेश्याम बोला।
लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता,गीता बोली।।
चलिए किसी की नजरों ने तो मुझ में इन्सान देखा,राधेश्याम बोला।।
सब कहते हैं कि आप शराब बहुत पीते है और इसके अलावा तो मुझे आपमें कोई कमी नज़र नहीं आती,गीता बोली.....
तब राधेश्याम बोला.....

लोंग कहते हैं कि मैं शराबी हूँ ,
तुमने भी शायद यही सोच लिया....

नहीं मेरा वो मतलब नहीं था,गीता बोली।।
वैसे नाम क्या है तुम्हारा? राधेश्याम ने पूछा।।
जी!गीता नाम है मेरा,गीता बोली।।
इसलिए तुम उपदेश अच्छा देती हो और इतना कहकर राधेश्याम हँस पड़ा और गीता उसे बड़ी आँखें करते हुए देखती रही....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....