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कामवाली बाई - भाग(१७)

जब राधेश्याम ने गीता को अपने आपको घूरते हुए देखा तो बोला....
ऐसे क्या घूर रही हो?
कुछ नहीं,ऐसे ही,गीता बोली...
क्या ऐसे ही?बताओ भी डर क्यों रही हो?राधेश्याम ने पूछा।।
वो आप हँसे इसलिए आपको गौर से देख रही थी,गीता बोली।।
हँस लेता हूँ मैं भी कभी कभी,नहीं तो जिऊँगा कैसें?राधेश्याम बोला।।
ऐसी क्या वज़ह है जो आप जीना नहीं चाहते?गीता ने पूछा।।
तुमसे मैनें जरा सी बात क्या कर ली तुम तो मेरे सिर पर सवार होने लगी और इतना कहकर राधेश्याम वहाँ से जाने लगा तो गीता ने उसे रोकते हुए कहा...
मैं आपके लिए भी घर से खाना लाई थी,खाकर जाइए।।
गीता की बात सुनकर राधेश्याम मुड़ा और बोला....
अगर तुम कल की बात का एहसान चुकाने आई हो तो फिर तुम्हारी सोच बिलकुल गलत है,तुम क्या मैं किसी भी लड़की के साथ वो सब होते हुए नहीं देख सकता था,राधेश्याम बोला।।
एहसान नहीं चुका रही हूँ,माँ के हाथों का बना खाना था सोचा आपको भी खिला दूँ,गीता बोली।।
ये सुनकर राधेश्याम का गरम दिमाग़ कुछ ठण्डा हुआ और बोला....
खाना तुम्हारी माँ ने बनाया है?
हाँ!मेरी माँ बहुत अच्छा खाना बनाती है,गीता बोली।।
माँ से खाना बनवाती हो तो तुम क्या करती हो ....कामचोरी....,राधेश्याम बोला।।
ये सुनकर गीता खींझ पड़ी और बोली....
खाना है तो खा लीजिए,नहीं तो कामचोर लड़की तो ये खाना खाएगी ही,
तुम तो नाराज़ होतीं हो,राधेश्याम बोला।।
नहीं...ऐसी बात नहीं है,गीता बोली।।
तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि तुम गुस्से में हो,राधेश्याम बोला।।
नहीं हूँ नाराज़ कह दिया ना! अब तो गीता जोर से खींझ पड़ी.....
ओहो....चलो तो अब खाना खा ही लेता हूँ ...नहीं तो अभी तुम्हारे गुस्से का ज्वालामुखी फट पड़ेगा,राधेश्याम बोला।।
नहीं...अब मुझे खाना नहीं खाना,मेरी भूख मर गई और इतना कहकर गीता जाने लगी,तो राधेश्याम ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा....
गुस्सा क्यों होती हो?चलो खाना खाते हैं...
ना!अब मुझे खाना खाना ही नहीं है,गीता बोली।।
लेकिन मैं खाना चाहता हूँ, मुझे बहुत जोर की भूख लगी है,राधेश्याम बोला।।
तो ये रहा टिफिन! आप जाकर खा लीजिए,गीता बोली।।
मैं अकेले नहीं खाऊँगा,तुम भी साथ में खाओ,राधेश्याम बोला।।
नहीं!आपकी रूखी बातों से ही मेरा पेट भर गया,गीता बोली।।
मैं और रूखी बातें,ऐसा तो हो ही नहीं सकता,चौबीसों घण्टे शराब पीकर गला तर रखता हूँ,मुँह से रूखे बोल कैसें निकलेगें भला!मेरे गले से हमेशा गीले बोल निकलते है,राधेश्याम बोला।।
और फिर राधेश्याम की बातें सुनकर गीता को हँसी आ गई,गीता के चेहरे की हँसी देखकर राधेश्याम बोला....
चलो ना!अब गुस्सा थूक भी दो,चलकर खाना खाते हैं।।
और फिर राधेश्याम की बात मानकर गीता उसके साथ खाना खाने बैठ गई,गीता ने अपना टिफिन खोला तो उसमें जीरा आलू,पराँठे और आम का अचार था,खाना देखते ही राधेश्याम बोला....
जीरा आलू....ये तो मुझे बहुत पसंद है,बचपन में मेरी माँ भी बनाया करती थी....
तो क्या अब आपकी माँ अब आपके साथ नहीं है,गीता ने पूछा।।
गीता की बात सुनकर राधेश्याम कुछ उदास हो गया,तब गीता को लगा कि उसने सही समय पर गलत सवाल पूछ लिया,लेकिन फिर वो बात बदलते हुए बोली....
खाकर देखिए ये जीरा आलू!कसम से कहती हूँ कि आपको मज़ा आ जाएगा और ये आम का अचार तो मेरी माँ ने लाजवाब बनाया है,गीता बोली।।
मुझे पता है कि माँ के खाने में जादू होता है और सबसे ज्यादा सुकून मन को तो मिलता है माँ के हाथों का खाना खाकर,राधेश्याम बोला।।
तो फिर खाइए ना!किस बात का इन्तजार कर रहे हैं,गीता बोली।।
और राधेश्याम ने उस दिन बड़े सालों बाद घर का खाना खाया,जिसे खाकर उसे अपनी माँ की याद आ गई और वो गीता बोला....
शुक्रिया! और अपनी माँ को मेरी तरफ से चरण स्पर्श कहना।।
गीता को भी राधेश्याम की ये बात अच्छी लगी और वो बोली....
आप हमेशा ऐसे ही रहा कीजिए....
गीता!खुशियाँ अब मेरे लिए एक सपने से ज्यादा कुछ नहीं है,मुझे अब तो याद भी नहीं है कि मैं आखिरी बार कब खुश हुआ था?राधेश्याम बोला।।
क्यों ऐसा क्या हुआ आपकी जिन्दगी में जो आपने खुश रहना छोड़ दिया,गीता ने पूछा।।
आज ही सब पूछ लोगी,कल के लिए भी कुछ छोड़ दो,राधेश्याम बोला।।
जी!इसका मतलब है कि आप कल भी मुझसे बात करेगें,गीता बोली।।
और क्या! बात भी करूँगा और साथ में खाना भी खाऊँगा,राधेश्याम बोला।।
और फिर ऐसे ही राधे और गीता की दोस्ती का सिलसिला शुरू हो गया,गीता रोज़ राधे के लिए खाना लाती और दोनों साथ में बैठकर खाते,दोनों की दोस्ती देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ,वहाँ की एक महिला ने गीता से कहा भी कि....
तुम्हें प्रेमलीला करने के लिए ये शराबी ही मिला था।।
तब गीता बोली....
हमारे बीच ऐसा कोई रिश्ता नहीं है,हम दोनों केवल दोस्त है,
तब वो महिला बोली...
चल चल झूठी!एक आदमी और औरत कभी दोस्त नहीं हो सकते।।
ये सुनकर फिर गीता कुछ ना बोली,क्योंकि अब वो पहले की तरह सबसे भिड़ती नहीं थी,उसके स्वाभाव में अब थोड़ी गम्भीरता आ गई थी लेकिन उस औरत की बात से उसे दुख जरूर हुआ था,लेकिन ये समाज है ही ऐसा,अब कितना भी बचकर चलो लेकिन उनकी गंदगी मानसिकता के छींटे आप पर पड़ ही जाते हैं,यही हाल गीता का भी हो रहा था....
लंचटाइम हुआ तो उदास मन से गीता अपना लंचबॉक्स लेकर राधे के पास पहुँची,उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर राधे ने पूछा....
क्या बात है?चेहरा उतरा हुआ क्यों है ,सब ठीक है ना!
जी!बस !सिर दर्द दे रहा है,गीता ने बहाना किया।।
अच्छा!कोई बात नहीं शायद भूख से दर्द हो रहा हो,खाना खा लोगी तो ठीक हो जाएगा,राधे बोला।।
और फिर दोनों जैसे ही खाना खाने बैठे तो कुछ महिलाएं वहीं खड़ी होकर हँसी ठिठोली करने लगीं,उनमे से एक बोली...
देखो तो लोगों को लिहाज़ ही नहीं रह गया है खुलेआम इश़्कबाजी चल रही है।।
दूसरी बोली.....
अरे हाँ!पहले तो हमें लगा था कि सती सावित्री लेकिन इसने तो अपने और रंग दिखा दिए...
तीसरी बोली.....
ना जाने क्या देखा इसने इस शराबी में....
चौथी बोली....
सही कहती हो बहन! लेकिन आजकल इश्क़ के लिए मन नहीं कुछ लोंग केवल तन देखते हैं.....
अब ये सब सुनकर राधे का गुस्सा उन पर फट पड़ा और वो बोला....
तुम लोगों को शर्म नहीं आती एक शरीफ़ लड़की पर बेतुके इल्जाम लगाती हो...
हम क्यों शर्म करें,थोड़ी शर्म तू भी कर लिया कर,उनमें से एक बोली....
मैं तो हूँ ही बड़ा बेशर्म ,बोल क्या करेगी?राधे बोला।।
उनमे से दूसरी बोली....
ये ताव किसे दिखाता है?तेरे जैसे बहुत पड़े हैं,
मुझे पता है कि तू कैसी है तभी तो पराएं मर्दों के साथ गुलछर्रे उड़ाती है,राधे बोला...
उनमें से एक गीता से बोली.....
ये तू चुपचाप क्यों खड़ी है?रोकती क्यों नहीं है अपने यार को....
ये सुनकर गीता ने राधे से कहा....
आप शांत हो जाइए ना!क्यों बहस कर रहे हैं?
गीता ने कहा तो राधे शांत होकर वहाँ से चला गया और फैक्ट्री के पीछे वाले बगीचें के एक पेड़ के नीचें जा बैठा,गीता भी टिफिन लेकर उसके पीछे पीछे पहुँची और उसके पास जाकर बोली.....
आपको उन सबके मुँह नहीं लगना चाहिए था...
लेकिन वो मेरे और तुम्हारे बारें में कैसीं कैसीं बातें कर रहीं थीं ,तो क्या मैं मुँह बंद करके बैठ जाता,राधे बोला।।
वें लोंग ऐसे हैं तो क्या आप भी उनके जैसे बन जाऐगें?गीता बोली।।
तुम्हारे घरवालों ने तुम्हारा नाम बहुत सोच समझकर रखा है,राधे मुस्कुराते हुए बोला।।
क्यों? मैं कुछ समझी नहीं,गीता बोली।।
तभी तो चौबीसों घण्टे उपदेश ही देती रहती हों,राधे बोला।।
ये सुनकर गीता हँस पड़ी और साथ में राधे भी मुस्करा पड़ा फिर गीता बोली...
चलिए अब गुस्सा थूक दीजिए खाना खाते हैं...
और फिर दोनों ने पेड़ के नीचे बैठकर खाना खाया ,फिर गीता बोली...
बुरा ना माने तो एक बात पूछूँ...
अब तुम्हारी बात का क्या बुरा मानना,जो कुछ पूछना है पूछ सकती हो,राधे बोला।।
आप जैसे बाहर से दिखते हैं वैसे भीतर से नहीं है,कोई तो ऐसा ग़म है जो आपको भीतर से खोखला कर रहा है,सुना है दोस्तों को अपना दर्द बताने से दर्द बँट जाता है,यदि आप अपनी तकलीफ़ मुझे बताना चाहें तो बता सकते हैं शायद आपका दर्द थोड़ा कम हो जाएं,गीता बोली।।
दिल के दर्द की कोई दवा नहीं होती गीता!वो तो केवल उसका मासूक ही दूर सकता है,राधे बोला।।
तो आप अपना दर्द अपनी मासूक के साथ क्यों नहीं बाँट लेते,गीता बोली।।
वो इस दुनिया में होती तो जरूर बाँट लेता,उसके ग़म में ही तो मैनें शराब पीना शुरू कर दिया,राधे बोला।।
क्या मैं जान सकती हूँ कि उसके मरने की वज़ह की थी?गीता बोली।।
तुम आज ही सारी तहकीकात कर लेना,राधे बोला...
कोई बात नहीं!अगर आपको अपने बारें कुछ भी बताना पसंद नहीं तो मैं जिद़ नहीं करूँगी,गीता बोली।।
अब तुमसे नहीं कहूँगा अपना दर्द तो किससे कहूँगा,सुनना चाहती हो तो सुनो और फिर इतना कहकर राधे अपने अतीत में पहुँच गया...और वो बोला....
ये कहानी तब शुरू हुई जब मैं चौदह साल का था और मैं गाँव रहता था ,आठवीं में पढ़ रहा था,मेरे पिता मेरे बचपन में मुझे छोड़कर जा चुके थे जैसे तैसे मेरी माँ दूसरों के खेतों में काम करके घर का गुजारा करती थी....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....