Agnija - 37 books and stories free download online pdf in Hindi

अग्निजा - 37

प्रकरण 37

...और फिर मैट्रिक का परिणाम सामने आ गया। खूब पढ़ाई, ट्यूशन, कोचिंग क्लास, जागरण के कारण जयश्री तो पास होने ही वाली थी। वह 56 प्रतिशत नंबर लेकर पास हो गई। रणछोड़ और शांति बहन को खूब खुशी हुई। केतकी भी परिणाम लेकर आई, लेकिनकोई कुछ नहीं बोला, किसी ने उससे पूछा भी नहीं। कौन-से झंडे गाड़ने वाली थी भला? सब तो यही मान कर चल रहे थे। इसी कारण किसी को भी उसके परिणाम के प्रति उत्सुकता नहं थी, न ही चिंता थी। आंखों में आंसू भरकर केतकी अपने मार्कशीट को देख रही थी। भावना ने धीरे से उसके हाथ से मार्कशीट खींच ली और चिल्लाई, “58 प्रतिशत...!” सबके चेहरे उतर गए। रणछोड़ दास ने नाराजगी व्यक्त की, “गुजराती मीडियम में तो इतने मिलने ही वाले थे...इंग्लिश में मिले होते तो मान लिया होता... लेकिन वह इसके बस की बात नहीं। इसका तारीफ करना छोड़ो...बदनसीब...मैं मिठाई लेकर आता हूं... आज तक अंग्रेजी माध्यम से मैट्रिर पास करने वाला अपने परिवार में कोई नहीं था, जयश्री ही पहली है। और, ए पगली...अपना ये सर्टिफिकेट बाजू में लपेट कर रख दे और झाड़ू पकड़ ले हाथ में। कोई घर में आएगा तो तेरा चेहरा देखते थोड़े बैठेगा?”

केतकी को सीने से लगाने की इच्छा हो रही थी यशोदा की। उसकी खूब तारीफ करने का मन हो रहा था। वह खूब शुभकामनाएं देना चाह रही थी। लेकिन उसने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखा। भावना लेकिन बहुत खुश थी। वह हंसकर केतकी के कान में बोली, “पढ़ाई के लिए खूब समय मिला होता तुमको तो आराम से 78 प्रतिशत नंबर मिल गए होते दीदी...” उसका यह वाक्य सुनकर केतकी को तपती धरती पर बारिश की बूंद गिरने जैसा आनंद हुआ।

रणछोड़ ने पूरी गली में मिठाई बांटी, “मेरी केतकी इंग्लिश मीडियम से मैट्रिक पास हुई है। लीजिए मुंह मीठा कीजिए।” घर आकर शांति बहन के मुंह में जबर्दस्ती दो पेड़े ठूंस दिए। “तुम्हारे आशीर्वाद से मेरी बेटी पास हुई है।” भावना को भी एक पेड़ा दिया। बचे हुए मिठाई का पैकेट उसने शांति बहन को रखने के लिए दे दिया। शांति बहन ने यशोदा को आवाज लगाई, “ये लो पैकेट, आलमारी में रख कर ताला लगाओ दो। अभी बहुत सारे लोग आने वाले हैं बधाई देने के लिए।” यशोदा ने मिठाई का पैकेट रख दिया और ताला लगाकर चाबी ऊपर रख दी। यह देखकर भावना बाहर नाली के पास दौड़ कर गई। वह केतकी की ओर देख कर बोली, “बहन तुम्हारा ओंठ क्यो सूजा हुआ है? कुछ काट लिया क्या?”

“नहीं तो, कुछ तो नहीं हुआ...”

“कैसे कुछ नहीं हुआ, मुंह खोलो तो जरा, देखने दो...आ करो...” केतकी ने जैसे ही मुंह खोला भावना ने अपना पेड़ा उसके मुंह में ठूंस दिया। केतकी कुछ बोलने जा ही रही थी कि उसने अपने दोनों हाथों से उसका मुंह दबा दिया और बोली, “कुछ मत बोलो, तुम्हें 58 प्रतिशत की कसम है।” केतकी पेड़ा खाने लगी। उसे पेड़े से अधिक अपनी बहन का प्रेम मीठा लग रहा था उस समय। उसने प्रेम से अपनी बहन की पप्पी ले ली। “याद रखना, तुम्हें दो पेड़े खिला कर इसका बदला न लिया तो केतकी मेरा नाम नहीं।” भावना को अचरज हुआ कि वह इस तरह का बदला भला कैसे ले पाएगी ?

लेकिन केतकी ने तो मन में ठान लिया था। दोपहर को जब रणछोड़ दास ऑफिस, शांति बहन मंदिर में और जयश्री अपनी सहेली के घर गई हुई थी, यशोदा थक-हार कर बिस्तर पर पड़ी हुई थी तब केतकी ने आलमारी की चाबी ली, मुंह पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा करते हुए उसने भावना को भी बुला लिया। उसको एक डिब्बे के ऊपर चढ़कर आलमारी का ताला खोलकर ऊपर रखा हुआ मिठाई का पैकेट निकालन के लिए कहा। उसमें से दो पेड़े निकालकर फटाफट सीधे भावना के मुंह में ठूंस दिए। और तीन पेड़े निकाले और फिर पैकेट जहां,जैसा रखा था, वापस रख दिया। चाबी वापस अपनी जगह पर रख दी। भागते हुए आकर भावना का हाथ पकडा और उसे नाली के पास खींच कर ले गई। एक कटोरी में तीन पेड़े रखे। चेहरे पर गंभीरता का भाव लाकर बोली, “लीजिए, मुंह मीठा कीजिए...हमारी केतकी 58 प्रतिशत नंबर लाकर मैट्रिक हुई है। हमारे घर में आज तक इतने नंबर किसी को भी नहीं मिले थे।” भावना ने हंसते हुए पेड़ा खा लिया। उसके बाद कटोरी में बचा हुआ पेड़ा केतकी को देते हुए बोली, “लो दीदी, खुशी का पेड़ा है...हमारी केतकी दीदी अच्छे नंबरों से पास हुई है और सिवाय भावना के, कोई उसका रिकॉर्ड तोड़ नहीं सकता।”

केतकी ने पेड़ा का लिया और उसके चेहरे पर खुशी फैल गई। कटोरी में अभी एक पेड़ा बाकी था। दोनों ने एकदूसरे की ओर देखा। दोनों यशोदा जहां सो रही थी, वहां गईं। भावना ने यशोदा को जगाया। केतकी ने रुंआसा चेहरा बना कर कहा, “दाढ़ में बहुत दर्द हो रहा है...” यशोद चिंता के मारे एकदम उठ बैठी। केतकी बोली, “हां दाढ़ सूज गई है...मैंने देखा..मां, तुम मुंह खोलो ...मैं दिखाती हूं कहां सूजन है....” यशोदा ने जैसे ही मुंह खोला, भावना ने पेड़ा उसके मुंह में भर दिया, “यह मिठाई हमारी केतकी अच्छे नंबरों से पास हुई है, उसकी है...” खुश होकर पेड़ा चबाते हुए यशोदान के मन में कुछ विचार आया और उसने चाबी की ओर देखा, वह जहां की तहां रखी थी। लेकिन दोनों बहनें दूर खड़ी होकर हंस रही थीं।

शाम को शांति बहन और रणछोड़ दास आए। रणछोड़ दास जयश्री के लिए नए कपड़े और बॉल पेन लेकर आए थे। “अब कॉलेज में जाएगी, तो सब कुछ नया और अच्छा चाहिए न?” यशोदा को डर लगने लगा कि अब मिठाई को लेकर महाभारत होगा...। उसने मन ही मन मार खाने की तैयार कर ली। मन ही मन प्रार्थना कर रही थी, तभी जयश्री अपनी तीन सहेलियों को लेकर आई। शांति बहन ने जयश्री से कहा, “गप्पें बाद में मारना, पहले सहेलियों को मिठाई खिलाओ। यशोदा, ऐ यशोदा चाबी दो तो जरा...” यशोदा मन ही मन भगवान को याद कर रही थी। उसके हाथ से शांति बहन से पहले जयश्री ने ही चाबी ले ली। आलमारी में रखा मिठाई का पैकेट लेकर अपने सहेलियों के पास जाकर बैठ गई। उसकी तरफ देखते-देखते ही शांति बहन ने रणछोड़ दास से पूछा, “इसे अब आगे क्या पढ़ाना है? किसी से पूछा क्यों नहीं?”

“मां, मुझे इस बारे में कुछ नहीं समझ में आता...उसी से पूछना पड़ेगा...” इसी बीच सहेलियों के चले जाने के बाद जयश्री मिठाई का खाली पैकेट दिखाते हुए बोली, “मिठाई खत्म...समझ में आया...” शांति बहन हंसते हुए बोलीं, “सभी भूखी आई थीं क्या...पूरा पैकेट खत्म कर दिया...”

“पिताजी, दादी को बताइए न...पेड़े थे ही कितने...बेचारियों को भूखी कह रही है...”

“चलो जाने दो...और ले आएंगे मिठाई...मुझे यह बताओ कि तुमको आगे क्या करना है?”

“मेरी सहेलियां डी.एड करेंगी, मैं भी करूं क्या?”

“ये तुम्हारा डेड यानी क्या?”

“दादी, डेड नहीं, डीएड...शिक्षक ट्रेनिंग कोर्स...इसको करने के बाद किसी स्कूल में टीचर की नौकरी मिल जाएगी मुझको... ”

“लड़कियों के लिए शिक्षिका की नौकरी सबसे अच्छी होती है...तुम भी वही करो...फार्म भर डालना...जरूरत पड़ेगी तो भिखाभाई की मदद ले लेंगे...”

“लेकिन पिताजी, उसके लिए दो साल होस्टल में रहना पड़ेगा...समझ में आया न...”

“नियम होगा, तो रहना ही पड़ेगा...क्यों मां...?”

“हां बेटा, पढ़ाई-लिखाई कोई साधारण बात है क्या? उस पर से अंग्रेजी मीडियम से...”

जयश्री ने कौतूहलवश पूछा, “और वो...58 परसेंट वाली आगे क्या करेगी?”

रणछोड़ दास ने फैसला दे दिया, “बस, बहुत हुई उसकी पढ़ाई...मैं कितने दिन और खर्च करूंगा? वो मैं ही था इसलिए इतना कर दिया...किसी ने नहीं किया होता...”

रणछोडदासने निर्णय दिला, ‘बस झालं तिचं शिक्षण.. मी किती दिवस तिचा खर्च करू?.. मी म्हणून एवढं तरी केलं... नाहीतर कोणी केलं नसतं.

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह