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नर्क - 20

'ये हथियार कुछ अलग है। परशु मेरी आँखों के सामने पड़ा है और खड़ग् मेरे हाथ में है। आयुष मेरी गिरफ्त में है, तो किसी अज्ञात हमलावर ने किसी अज्ञात हथियार से पीठ में वार किया है। कौन है वो अज्ञात??? फिर से निशा??? नहीं.... नहीं, निशा पर मुझे पूरा भरोसा है। पहले जो हुआ वो गलतफहमी थी, पर अब नहीं। तो फिर कौन?? हे पिताश्री, तो वो ये है!!! मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था।'

सोचते-सोचते आश्चर्य के साथ पियूष घूमा तो पीछे मधु थी। उसके हाथ में एक अलग हथियार था। जिसका लम्बा नुकीला फल एक लम्बे डंडे से जुड़ा था। उसके चेहरे पर एक क्रूर मुस्कुराहट थी। उसने एक झटके से पियूष की पीठ से अपना हथियार निकला। पियूष दर्द से दोहरा हो गया। उसके कदम लड़खड़ाने लगे। तब तक निशा भी होश में आने लगी थी। उसकी आँखों ने वो हृदयविदारक दृश्य देखा। सदमे से उसके मुँह से आवाज भी न निकली। इधर पियूष कुछ कदम लड़खड़ा कर पीछे हटा तो आयुष ने उसे गले लगा लिया। आयुष की आँखों में आँसू थे।

उसने पियूष से उसके कान में कहा -" शायद तुम उचित थे अनुज, शक्ति किसी विशेष हथियार में नहीं होती, परन्तु इस ब्राह्मांड में सर्वाधिक शक्तिशाली शस्त्र होता है घात, जिसकी कोई काट नहीं होती। काश, तुमने मेरी बात पर मनन किया होता तो आज यूँ कष्ट न सह रहे होते. अगर तुम भावुक न होकर शक्तियों का त्याग न करते तो ये हथियार तुम्हें कुछ विशेष कष्ट न पहुँचा रहे होते।"

ऐसा कहकर आयुष, पियूष के माथे को चूमता है और उसे मधु की तरफ इशारा करते हुए बताता है -" ये है नर्क का अनुगामी, माफ करना नर्क की अनुगामी, तमिस्रा। जिसे सबने नर समझा जबकि ये एक नारी थी। ये हम दोनों की ही संयुक्त कूटनीति थी, जो ये मधु के रूप में निशिका यानी निशा की सखी बनी हुई थी। इससे मित्रता के पश्चात् ही मैंने रक्षराज (राक्षसराज) से भेंट की थी। हालाँकि हमने उनको एक प्रलोभन भी दिया था परन्तु उनके मन में तुम्हारी साहचर्यता के कारण अच्छाई का कीट किलबिलाने लगा था।"

पियूष -" इतना बड़ा छल भ्राता, किसके लिए ??क्या लाभ हुआ ?? ये शैतान क्या आपके साथ सब कुछ साझा करेंगे?? नहीं.... ये आपके साथ भी छल ही करेंगे। इन्होने सर्वप्रथम आपको बहला कर पिताश्री व अन्य अपनों से परे कर दिया। आपसे इतने कुकर्म करवा दिए और बाद में ये आपको भी हानि पहुँचाएंगे।"

पियूष का दर्द और बढ़ गया, उसने नीचे देखा तो उसके पेट में एक लम्बा नेजे वाला चाकू घुसा हुआ था। उस चाकू को पकड़ने वाला हाथ आयुष का था। उसने फिर से पियूष को कस के गले लगा लिया और कहा -" मेरे भाई मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ। तुम्हें इस स्थिति में पहुँचा कर मुझे अत्यंत कष्ट हो रहा है। मेरा ह्रदय रक्ताश्रु प्रवाहित कर रहा है। यदि तुम मेरी वार्ता पर समुचित विचार करते तो हम सह कार्य करते और इस पूरे ब्रह्मांड पर शासन कर रहे होते। परन्तु तुमने मुझे बाध्य कर दिया कि मैं तुम्हें नुकसान पहुँचाऊं। अब मुक्त हो जाओ मेरे प्रिय अनुज। मैं हमेशा तुम्हें याद करता रहूँगा, प्रेम करता रहूँगा। जाओ अनुज, जाओ, तुम एक सच्चे योद्धा की तरह लडे़, अब एक योद्धा की तरह ब्रह्मलीन हो जाओ।"

अब पियूष की आँखें मुंद रही थी, उसके पैर उसका साथ छोड़ रहे थे। वो गिरने लगा तो आयुष ने उसे सहारा देकर धीरे-धीरे लिटाया। फिर उसे मौत की तरफ जाता छोड़ कर आयुष निशा की तरफ खूंखार भाव लिए पलटा। पियूष मौत से डर नहीं रहा था पर उसे इस चीज का गम था कि वो इस दुनिया को सुरक्षित न कर पाया। अब आयुष निशा को मजबूर करेगा कि वो 'विद्युदभि' उसे वापस उठा कर दे ताकि वो इस ब्रह्मांड पर अत्याचार द्वारा अपना शासन जमा सके।

पियूष ने अपने पिता से प्रार्थना की कि उसे कुछ समय की छूट मिले ताकि वो इन हत्यारों को रोक सके, परन्तु आज शायद उसके पिता को भी उसकी बात सुनाई न दे रही थी। आसमान की तरफ देखते हुए उसके प्राण निकल गए। प्राणों के साथ ही निकले उसकी आँखों से दो आँसू.......

आयुष और मधु वहशीयत और खुशी के भाव लिए निशा तक गए। मधु ने उसे उठाया। आयुष ने उसे कहा -"निशा एक बार फिर तुम्हें तकलीफ दे रहा हूँ, 'विद्युदभि' मुझे उठाकर दो."

निशा उसकी तरफ घृणा से घूर रही थी। उसने तुरंत ढ़ेर सारा थूक आयुष में चेहरे पर उगल दिया। आयुष को गुस्सा आ गया उसमे कस कर एक झापड़ निशा को जड़ दिया। मधु के पकड़े होने के बाद भी निशा गिर पड़ी। मधु ने उसे वापस उठाया और कहा -" निशा समझदार बनो और 'विद्युदभि' हमें दे दो, वर्ना तुम्हारा बहुत नुकसान हो जायेगा।"

निशा ने मधु को एक झापड़ जड़ दिया परंतु मधु ने तुरंत ही उसे वापस झापड़ लगा दिया, निशा फिर से गिर पड़ी। मधु ने उसे फिर उठाया और कहा -" देखो निशा 'विद्युदभि' दे दो, मैं तुम्हारी सहेली हूँ। तुम हमारा साथ दो तुम्हें सब कुछ मिलेगा। यहाँ सभी अजन्मे है सिवाय तुम्हारे। अब तुम रक्षकुमारी नहीं हो बल्कि एक साधारण इंसान मात्र हो। एक इंसान की तरह ही तुम्हारे अंदर भी कमजोरियाँ है, इच्छाएँ है। तुम्हारी सारी कमजोरियाँ दूर कर दी जाएगी सारी इच्छाएँ पूरी हो जाएगी जिद्द न करो। मेरे मालिक(शैतान) सबसे शक्तिशाली है वो सब कुछ कर सकते हैं।

निशा ने आँसू भरी नजरों से पियूष के शव की तरफ देखती है। पियूष के शव के चेहरे पर उसे गहन शांति दिखाई देती है। उसे देख कर उसके चेहरे पर भी शांति छा जाती है। उसे ऐसे लगता है जैसे उसका सारा दुःख दर्द गायब हो गया है। निशा उन दोनों की तरफ देखकर व्यंग्य से हंसती है। ये हंसी देख कर उनको निशा का जवाब समझ आ जाता है। आयुष ने आँखें बंद की और तुरंत ही उसके बड़े-बड़े पंख निकल आये उसने बिना कोई वक्त गवाएँ एक उड़ान भरी और वहाँ पर 5 मिनट तक शांति छा गयी। करीब 5 मिनट बाद आयुष ने धरती पर वापस कदम रखे और उस इम्पेक्ट की वजह से वहाँ धूल ही धूल हो गयी। जब निशा की आँखें देखने लायक हुई तब उसने देखा कि आयुष के एक हाथ में राहुल की गर्दन थी और वो छटपटा रहा था।

मधु ने निशा से फिर कहा -" देखो निशा, अब तुम अति कर रही हो। हमें 'विद्युदभि' दे दो वर्ना हम तुम्हारे एक-एक इंकार के बदले में राहुल को बहुत नुकसान पहुँचाएंगें।"

निशा राहुल की शक्ल देखती है राहुल बहुत रो रहा था। परन्तु निशा ने अपना जबड़ा भींच लिया था। उसने अपनी मुठियाँ बंद कर ली। उसका सर अपने आप ही इंकार में हिलने लगा। ये देख आयुष को बहुत गुस्सा आया उसने तुरंत राहुल को जमीन पर पटक दिया और अपने दो उँगलियों के नाखून राहुल की जांघ में घुसा दिए। राहुल की चीखों से वातावरण गूँज उठा। परन्तु नीले हत्यारे के खौफ के कारण कोई भी उनको बचाने न आने वाला था। निशा की आँखों में दर्द आ गया परन्तु फिर भी उसने इंकार में सर हिलाया। आयुष ने राहुल की जांघ से हाथ वापस खींचा और उसके साथ खींची उसकी जांघ की चमड़ी। राहुल पीड़ा से दोहरा हो रहा था, परन्तु आयुष और मधु को कोई दया न आयी।

निशा से ये सब न देखा गया, तो उसने अपना चेहरा हाथों से ढ़क लिया और फफक कर रोने लगी, परन्तु उसका सर अभी भी इंकार में हिल रहा था। आयुष को ये देख इतना गुस्सा आया कि उसने राहुल को उठा-उठा कर फेंकना शुरू कर दिया। राहुल के हाथ-पैरों में बुरी तरह चोटें लग गयी थी। शायद उसकी कई हड्डियाँ भी टूट गयी थी। वो छोटा बच्चा भी हिम्मत के साथ बर्दाश्त कर रहा था, जब उसने अपनी बहन को इंकार करते देखा।

इधर आयुष अपनी दरिंदगी दिखाए जा रहा था और इधर पियूष के शव, जिस पर किसी का भी ध्यान न था, उसकी बंद आँखों से फिर दो आंसुओं की बूँदें निकली। परन्तु वो बूँदें रक्तवर्णी (लाल) थी। वो बूँदें धीरे-धीरे लुढ़कते हुए कनपटियों से होते हुए जमीन पर जा गिरी और तुरंत ही सूख गयी। कुछ भी विशेष न हुआ था........या शायद हुआ था.....!!!!

'विद्युदभि' बुरी तरह से खड़खड़ाने लगा। वो बहुत तेजी से जमीन पर पड़ा काँप रहा था। आयुष, मधु और यहाँ तक कि निशा का भी ध्यान उस आवाज पर गया तो उन्होंने देखा कि 'विद्युदभि' काँपता हुआ एक और सरकने लगा। आयुष ने देखा कि जिधर वो सरक रहा था उधर पियूष की लाश पड़ी थी। आयुष ने अपना खड़ग उठाकर उसे 'विद्युदभि' के आगे गाड़कर उसे रोकने की कोशिश की,परन्तु अचानक वहाँ धूल का एक बवंडर छा गया। किसी को कुछ न दिखाई दे रहा था।

कुछ पलों बाद जब बवंडर शांत हुआ तब सबने देखा कि 'विद्युदभि' एक हाथ में थमा है और वो हाथ पियूष का है। पियूष के कपडे बदल कर योद्धा जैसे हो गए थे और उसकी आँखें बंद थी। उसके बड़े बडे़ श्वेत पंख खुले हुए थे। उसकी भी लम्बाई आयुष की तरह 8 फुट की हो गयी थी।उसके चेहरे का तेज सूर्य जैसा लग रहा था।

आयुष और मधु ठगे से खड़े थे। उनको अपनी आँखों पर यकीन न हो रहा था। पियूष ने शांति से कहा -" मधु, या मैं कहूँ तमिस्रा, तुम्हारा मालिक किसी को सब कुछ दे सकता है पर वापस जीवन नहीं दे सकता, जो मेरे पिता ने मुझे दिया है। अब तुम्हारा अंत होना ही सबके लिए सही है।"

मधु जो आश्चर्यचकित खड़ी थी वो क्रोध के भाव लिए पियूष की तरफ अपना हथियार लिए झपटी। उसी पल उसका रूप बदल गया वो किसी भयानक शैतान जैसी बन गयी थी जिसके चमगादड़ जैसे पंख थे और उसमें से भयानक काली ऊर्जा निकल रही थी। पियूष ने बड़ी चपलता से परशु घुमाया। किसी को कुछ समझ न आया कि क्या हुआ। कुछ पलों के लिए सब शांत हो गया था। कुछ पलों बाद मधु की गर्दन उसके धड़ से अलग होकर गिरी और उसका मृत शरीर दूसरी तरफ गिरा।

पियूष ने अब आयुष को कहा -" तुम्हे जानकारी है अग्रज कि हाथ में 'विद्युदभि' होते हुए भी तुम्हें मेरी हत्या के लिए छल का आवलम्बन क्यों लेना पड़ा??? क्यूँकि तुम इस पवित्र शस्त्र के अधिकारी कभी थे ही नहीं।"

ये सुनते ही क्रोध में भड़का आयुष अपनी खड़ग् लिए पियूष पर झपटा। दोनों में घमासान होने लगा परन्तु इस बार पियूष आसानी से उस पर घाव लगाए जा रहा था। कुछ ही देर में आयुष की खड़ग् उसके हाथ से छूटी और वो घुटने पर आ गया। उसकी आँखों में आँसू आ गये थे। उसने पियूष को कहा -" अनुज, मुझसे बड़ी भूल हुई, माफ कर दो। मुझे पिताजी के पास ले चलो मैं उनसे एक बार मिलना चाहता हूँ फिर मैं प्रायश्चित करूँगा। "

पियूष की आँखों में आँसू आ गए। उसने रुंधे गले से कहा -" भाई....."और आयुष की गर्दन काट दी।

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आयुष के मरने के बाद पियूष राहुल के पास गया जो अपनी अंतिम साँसे गिन रहा था। आयुष ने उसकी कई हड्डियाँ तोड़ डाली थी निशा उसके सर को गोद में लिए जार-जार रोये जा रही थी। पियूष वहाँ गया और उसने राहुल के शरीर से परशु सटाया और राहुल का शरीर वापस स्वस्थ होने लगा। वो बहुत जल्दी ठीक होकर निशा के गले लग गया। असल में हीलिंग पावर उन फूलों में नहीं बल्कि परशु में थी और ये बात पियूष के अलावा किसी को पता ना थी। निशा पियूष के गले लग गयी।

निशा -" मुझे माफ़ कर दो आयु, मैंने तुम पर हरदम अविश्वास किया। यहाँ तक कि तुम्हें मारने की कोशिश भी की थी। मैंने परशु भी आयुध को दे दिया था। मैंने हर समय तुम्हारा विरोध ही की। तुम सही थे, मैंने ही तुम्हें प्यार में धोखा दिया था। मेरे ही प्यार में कमी थी, मुझे माफ कर दो आयु। मैंने तुम्हें अपने पिता का हत्यारा समझ कर जाने क्या-क्या तकलीफें दे दी।"

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जब आयुध अपनी सेना लेकर रक्षराज के पास गया, तो रक्षराज ने उसे सहयोग के लिए इंकार कर दिया। आयु ने सोचा शायद रक्षराज बदल गए हैं, तो उसे उनकी सहायता करनी चाहिए। जब वो वहाँ गया तो पता चला कि रक्षराज दोनों भाइयों की लड़ाई में अपना फायदा उठा कर 'विद्युदभि' हासिल करना चाहता था। इसके लिए उसने अपनी पुत्री को भी मोहरा बनाया। क्यूँकि वो मन की सरल थी तो वो परशु को हाथ लगा सकती थी। आयु ने छद्मयुद्ध (घात लगा कर) द्वारा पहले रात्रि में रक्षराज के सीने में अपना परशु उतारा फिर उसने पूरे राज्य में रात्रि में ही सबका संहार कर दिया और एक भी जिंदगी श्वास लेती न छोड़ी।

पियूष अतीत से बाहर आया। हो सकता है उसके हाथों बहुत निर्दोष भी मारे गए हों परन्तु उनमें से एक-एक का निरीक्षण नामुमकिन था। उनमें से कौन सही था या कौन रक्षराज से मिला हुआ था कुछ भी नहीं कहा जा सकता था।' पियूष ने एक चैन की सांस ली। 'शायद कई बार आपको नायक बनने के लिए खलनायक भी बनना पड़ता है। पिताश्री ने सही कहा था कई बार हमें कठोर फैसले भी लेने पड़ते हैं। अब उसे निशा को घर(स्वर्ग) लेकर जाना है उससे पहले उसे राहुल की भी व्यवस्था करनी होगी। विचारों से बाहर आकर उसने निशा को बाहों के घेरे में लिया और उसे अपने पंखों से ढ़क लिया। अब वो बहुत अन्तराल के बाद एक लम्बी उड़ान के लिए तैयार था।

समाप्त.....