Robert Gill ki Paro - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

रॉबर्ट गिल की पारो - 12

भाग 12

सेना के दफ्तर से एल्फिन ने दो पत्र रॉबर्ट को भिजवाए, जो उसके नाम आए थे। उसमें एक पत्र टैरेन्स का था और एक पत्र फ्लावरड्यू की माँ का था। रॉबर्ट पाँच-छह दिनों से सेना के दफ्तर नहीं गया था।

टैरेन्स का पत्र उसने खोला और फ्लावरड्यू का पत्र उसके पास भिजवा दिया।

रॉबर्ट, फादर रॉडरिक नहीं रहे। वह बहुत परेशानी वाला दिन था। क्योंकि उस दिन बहुत बादल छाए थे और फुटों के हिसाब से बर्फ गिरी थी। फिर भी फादर के लिए बहुत भीड़ थी। लेकिन उनका बेटा यानी तुम तो उनसे हजारों मील दूर थे। वे अकेले थे रॉबर्ट। वैसे मृत्यु के समय सभी अकेले ही होते हैं। पढ़कर रॉबर्ट रो पड़ा। अभी आधा ही पत्र उसने पढ़ा था। आँखों के समक्ष उनका सफेद झुर्रियोंदार हाथ आ गया, जिस हाथ से वे उसका हाथ पकड़े थे। नहीं बता पाया फादर कि आपका रॉबर्ट अपराधी है। कन्फेशन भी नहीं कर पाया कि लीसा के साथ क्या हुआ था। अब यह अपराध ज़िंदगी भर मेरे हृदय में तीव्र नुकीले हथियार की तरह चुभता रहेगा।

कमरे से निकलकर खुशी में चहकती पत्र हाथ में लिए फ्लावरड्यू आई। लेकिन रॉबर्ट का चेहरा देखकर चुप हो गई। उसकी खुशी गायब हो चुकी थी।

‘‘क्या हुआ रॉबर्ट?’’ उसने पूछा।

‘‘फ्लावर! फादर इज नो मोर।’’ रॉबर्ट दुबारा रो पड़ा।

फ्लावरड्यू ने बैठे हुए रॉबर्ट का चेहरा अपने सीने में छुपा लिया। वह बुदबुदायी-‘‘ऐसा होना ही था रॉबर्ट। वहाँ से चलते समय तुम्हें महसूस हुआ था कि यह अंतिम विदाई है। तुम्हीं ने मुझे बताया था।’’

वह फ्लावरड्यू की ओर देखने लगा। आधा पढ़ा, आधा बगैर पढ़ा पत्र उसने मोड़कर ट्राउजर की जेब में रख लिया। और बजरी की सड़क पर लम्बे-लम्बे कदम बढ़ाता हुआ फाटक से दूर निकल गया।

फ्लावरड्यू अपने पत्र की बात रॉबर्ट को नहीं बता पाई कि माँ दोनों भाईयों के साथ शीघ्र ही इंडिया आने के लिए निकलेंगी।

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फ्लावरड्यू ने हिसाब लगाया। बच्चा हो चुकेगा तब माँ आ पाएंगी। उसने सोचा कि डिलीवरी के समय यदि माँ होतीं तो उसे भय नहीं होता।

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आधा पत्र उसने मिलिट्री केंटीन की मेज पर रखकर पढ़ा। आँखें भरी हुई थीं। पत्र के शब्द धुंधला रहे थे।

उसी समय एल्फिन अंदर आया। उसने देखा कि रॉबर्ट अकेला एक कोने की मेज पर बैठा है। वह सामने आकर बैठ गया। रॉबर्ट ने ध्यान नहीं दिया कि एल्फिन आया है।

उसने पत्र आगे पढ़ा-‘‘रॉबर्ट, दादी ने मेरा विवाह तय कर दिया है। वह निहायत ही घरेलू लड़की है। दादी कहती हैं उन्हें तुम्हारी माँ अगाथा जैसी बहू नहीं चाहिए। जो हर वक्त किताबों में डूबी रहे। खैर! मैं तुम्हारी माँ की बुराई नहीं कर रही, लेकिन अपने आप में डूबे रहना घर का विभाजन कर देता है। और तुम्हारे किम अंकल को भी कुछ खास पसंद नहीं आई। क्योंकि वह चुप हैं। चुप क्यों हैं रॉबर्ट... अगर उनकी अनिच्छा होगी तो मैं कदापि यह रिश्ता मंजूर नहीं करूंगा। देखो रॉबर्ट, दादी ने फिर माँ को ही दोष दिया। बेटा उनका? हां! उसकी कहां गलती थी। आखिर वह उनका बेटा है।

खैर! छोड़ो रॉबर्ट... अब कर ही लेता हूँ विवाह दादी ने कहा है-‘‘लम्बी छुट्टी लेकर आ जाओ। तुम आओगे क्या रॉबर्ट... फिर स्वयं ही उत्तर दिया। कैसे आओगे... फ्लावरड्यू गर्भवती है। हां, रॉबर्ट, मिसिस रिकरबाय ने खबर भिजवाई है। वे अपने दोनों बेटों के साथ इंडिया जाना चाहती हैं। कहा है - टिकिट और कूपे के प्रबंध के लिए उन्होंने लंदन खबर भिजवा दी है। बस तुम हम लोगों को जहाज में चढ़वा देना। मैं मि. रिकरबाय के साथ व्यापार के सिलसिले में अर्जेंटीना तक तो गई हूँ। लेकिन तब मि. रिकरबाय साथ थे। कार्गो जहाज में हमारे शेयर्स भी हैं। उस जहाज में भी थे। अत: हम खूब शानदार तरीके से जहाज में रहे।

अरे, मैं तुम्हें इतना क्यों बता रहा हूँ। हैल्प कर दूंगा।

दोस्त, शादी में तुम्हारी कमी अखरेगी ही नहीं बल्कि बहुत-बहुत अखरेगी।

- टैरेन्स

टैरेन्स हमेशा ऐसे ही पत्र लिखता है, मानो सामने बैठा बोल रहा हो। रॉबर्ट ने पत्र बंद करते हुए देखा सामने एल्फिन बैठा है।

‘‘मृत्यु और खुशी एक साथ।’’ वह बुदबुदाया।

एल्फिन ने कुछ नहीं पूछा। वह रॉबर्ट के चेहरे के उतार-चढ़ाव से समझ गया था कि रॉबर्ट स्वयं ही बताएगा।

एल्फिन ने कॉफी बुलवा ली। पाईप में तंबाखू भरी और दोनों पीने लगे।

‘‘फादर नहीं रहे एल्फिन।’’ रॉबर्ट की आँखें पुन: भर आईं, जो पहले से ही लाल थीं। एल्फिन ने रॉबर्ट का हाथ दबाया। यह सांत्वना का स्पर्श था। दोनों चुप बैठे पाईप का धुआं उड़ाते रहे। कुछ देर बाद रॉबर्ट बोला- ‘‘टैरेन्स की शादी तय हो गई है।’’

‘‘लेकिन नहीं जा पाऊंगा क्योंकि फ्लावरड्यू की डिलीवरी कभी भी हो सकती है।’’ एल्फिन ने वाक्य पूरा किया। रॉबर्ट की एक आँख से फिर एक लम्बा आँसू गिरा, जिसे रॉबर्ट ने पोछा नहीं। उस बह जाने दिया।

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देखा तो फ्लावरड्यू उसके इंतज़ार में सोने के कमरे में टहल रही है। उसने फ्लावरड्यू का हाथ पकड़ा और उसे पलंग पर तकिए के सहारे बैठा दिया। रॉबर्ट ने कमरे का पर्दा खींच दिया।

‘‘ओह! नो रॉबर्ट! अब यह सब डेंजरस है।’’ लेकिन रॉबर्ट ने कुछ नहीं सुना। वह गम और खुशी को एक साथ अपने भीतर उतार लेना चाहता था।

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रात को सोते समय उसने बताया कि ‘‘टैरेन्स का विवाह होने वाला है। वह लंबी छुट्टी पर जाएगा।’’

‘‘और तुम रॉबर्ट क्या विवाह पर नहीं जाओगे?’’ प्लावर ड्यू ने पूछा।

उसने ड्यू के पेट पर हाथ रखा। ‘‘इसके कारण मैं ड्यू को अकेला कैसे छोड़ सकता हूँ।’’

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मेहमूद दौड़ता हुआ रॉबर्ट के आॅफिस में पहुँचा और बगैर इजाज़त लिए उसके केबिन में घुस गया। ‘‘सर... मैडम... घर चलिए। उन्हें दर्द शुरू हो गए हैं।’’

रॉबर्ट उठकर खड़ा हो गया। उसने एल्फिन को खबर भिजवाई और बंगलो की तरफ अपने तेज़ कदम बढ़ा दिए।

जयशंकर ने फिटन भेजकर तब तक दाई रत्नम्मा को बुलवा लिया। रॉबर्ट के भीतर पहुँचते ही फ्लावर ने रॉबर्ट का हाथ पकड़ लिया।

‘‘मैं मर जाऊंगी रॉबर्ट, यह सब सहन से बाहर है।’’ फ्लावर ने रोते हुए कहा।

रॉबर्ट किंकर्त्तव्यमूढ़ सा खड़ा था। ड्यू उसके समक्ष बिलख रही थी। तभी दाई रत्नम्मा ने और एल्फिन की पत्नी साईमा ने एक साथ प्रवेश किया। रॉबर्ट बाहर चला आया, जहाँ एल्फिन खड़ा था। घंटों हो गए थे ड्यू को दर्द से चीखते हुए. दाई ने कोई काढ़ा बनाकर पिलाया। दर्द और बढ़े।

बाहर घने बादल छाए हुए थे और बारिश भी हो रही थी। वैसे मद्रास में सितंबर से दिसंबर तक बारिश होती है। लेकिन इस बार जुलाई में बहुत बारिश हो रही थी। तेज़ बारिश के आवाज़ के साथ ड्यू की दर्दनाक चीखें सुनाई दीं। तभी रॉबर्ट कमरे की ओर दौड़ा लेकिन एल्फिन ने उसका हाथ पकड़ लिया। थोड़ी ही देर में बच्चे की रोने की आवाज़ सुनाई दी। कुछ ही समय बाद साईमा हाथ में लंबी चेन वाली घड़ी लिए खड़ी थी। रात 11.20 पर 25 जुलाई 1842 को रॉबर्ट के यहाँ एक तंदुरुस्त लड़की ने जन्म लिया।

अब रॉबर्ट भीतर जा सकता था। दाई के हाथों में कपड़े में लिपटी बच्ची थी। उसने एक नज़र बच्ची पर डाली और ड्यू की ओर गया और उसे दोनों हाथों में भरकर लिपटा लिया।

दूसरे दिन से ही दाई रत्नम्मा ने एक अनुभवी मुस्लिम स्त्री को बच्ची को सम्हालने रॉबर्ट के घर भिजवा दिया।

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खबर मिली थी कि मिसिज रिकरबाय दोनों बेटों के साथ इंडिया आने के लिए निकल चुकी हैं। फ्लावरड्यू ने कहा था कि माँ ही बच्ची का नाम रखेंगी। रॉबर्ट की भी इच्छा थी उनके आने के बाद एक फंक्शन रखेंगे। इस समारोह में मद्रास के सभी अंग्रेज आॅफिसर जो उसके परिचित थे आएंगे और इंडियन आॅफिसर और अमीर ओहदेदार व्यक्ति आएंगे। जिन्हें वह अपने घर बुला सकता है। तीन महीने बाद जून के अंत में सभी अंग्रेज आॅफिसर ऊटकमंड से लौट आए हैं। मद्रास की गर्मी की वजह से ऊटकमंड को गर्मी की राजधानी बना दिया जाता था। अंग्रेज आॅफिसर्स को तो कुछ खास सामान वहाँ नहीं ले जाना पड़ता था लेकिन इंडियन अधिकारी व कर्मचारी सामान के साथ ऊटकमंड जाते थे। उनका चूल्हा-चौका भी साथ जाता था। उनकी औरतें हर वर्ष की इस व्यवस्था से तंग आ जाती थीं। कभी-कभी एक ही मकान में दो परिवार रहते थे। बच्चों की चीख-चिल्लाहट मची रहती थी। 30 जून को एल्फिन और रॉबर्ट भी मद्रास से लौटे थे।

रॉबर्ट इस बार फ्लावरड्यू की सेहत को लेकर चिंतित था अत: वह ऊटकमंड सिर्फ 15 दिन के लिए गया था। लेकिन एल्फिन को तो पूरे तीन महीने वहाँ रहना ही था। बीच-बीच में रॉबर्ट ऊटकमंड जाता रहता था।

इस बार साईमा नहीं गई थी। फ्लावरड्यू और साईमा प्रतिदिन एक दूसरे से मिलती थीं। साईमा ने बताया था ऊटकमंड सुंदर प्राकृतिक जगह है। वहाँ ठंडी-ठंडी हवाएं चलती हैं। इसलिए ब्रिटिशर ने उसे अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था।

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‘‘कौन जाएगा बॉम्बे पोर्ट। माँ और भाईयों को लेने।’’ फ्लावरड्यू ने रॉबर्ट से पूछा।

‘‘बॉम्बे पोर्ट पर मैंने बात कर ली है। मेरे कलीग उन्हें मद्रास के जहाज में बैठा देंगे। एक ही रात की तो बात है। उन्हें सेना के गेस्ट हाऊस में रुकना होगा। जहाज बॉम्बे रूकेगा। वहाँ कार्गो से सामान उतारा जाएगा। फिर मद्रास की यात्रा सुबह शुरू होगी।’’

रॉबर्ट ने आगे बताया कि ‘‘मौसम खराब होने के कारण दस दिन जहाज को कहीं और डाईवर्ट होकर आना पड़ा। समुद्री हवाएं, तेज़ बारिश ने जहाज को धीमा चलने पर मजबूर कर किया। नहीं तो वे लोग एक सप्ताह पहले ही आ गए होते।’’

सुनकर फ्लावरड्यू आश्वस्त हो गई। नन्हीं मिस गिल चार महीने की हो चुकी थी। बच्ची रोती बहुत थी। बच्ची के देखरेख करने वाली मुस्लिम स्त्री नज़मा बेग सारी रात जागकर बच्ची को सम्हालती थी। जब सुबह बच्ची सो जाती तो वह अपने घर कुछ समय के लिए जाती थी।

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मद्रास पोर्ट पर रॉबर्ट के साथ फ्लावरड्यू अपनी बेटी के साथ माँ और भाईयों को लेने आई थी। वे लोग जहाज के लंगर डलने का इंतज़ार कर रहे थे। बच्ची बेहताशा रो रही थी। फ्लावरड्यू को उसके घर न छोड़ आने का अफसोस हो रहा था।

दूर से दोनों भाईयों ने फ्लावरड्यू को खड़े देखा तो उन्होंने दौड़ लगा दी। पीछे सफेद सुनहली पोशाक में बड़ा-सा हैट लगाए, सफेद मोती के आभूषणों से सजी मिसिस रिकरबाय आ रही थीं। दोनों भाई अपनी बहन से लिपट गए। रॉबर्ट माँ की ओर बढ़ा, फ्लावरड्यू भी दौड़ी। उसने रॉबर्ट के हाथों में बच्ची को देकर माँ से लिपट गई। फ्लावरड्यू रोने लगी थी। दोनों देर तक लिपटी रहीं।

फिटन पर बैठकर फ्लावर को उन्होंने जहाज की ढेरों बातें बताईं। रॉबर्र्ट दूसरी फिटन पर अकेला ही बैठ गया।

मैं ने कहा अगर जहाज डाइवर्ट नहीं होता तो संभवत: वे लोग समुद्री तेज़ हवाएं, भारी बारिश में... फ्लावर वह समय ऐसा था कि मुझे लगा... छोटे बेटे बॉब ने वाक्य पूरा किया...‘‘जहाज डूब ही जाएगा।’’

जिस संभ्रात परिवार से वे आई थीं। उन्होंने अपनी बेटी का यह बंगलो देखा और खामोश हो गईं। लेकिन फिर भी उन्हें बंगलो और उसकी सजावट देखकर अच्छा लगा। यदि रॉबर्ट इंग्लैंड में ही रहता तो वे दुनियाभर की खुशियां उसे दे सकती थीं। फ्लावरड्यू बहुत खुश थी।

उनके दोनों बैटमेन जयकिशन और मेहमूद बहुत साफ कपड़ों में लंबा पाजामा, कुर्ता पहने थे। वैसे अंग्रेज परिवारों के नौकर हमेशा साफ-सुथरे और चुस्त-दुरुस्त ही रहते पाए गए हैं। लेकिन उन्हें देखकर मि. रिकरबाय ने नाक-भौं सिकोड़ी थी। वैसे वे दोनों ही जानते थे कि सिर्फ रॉबर्ट उन्हें पसंद करता है। फ्लावरड्यू तेज़ आवाज़ में अंग्रेजी में उन्हें डांटती-फटकारती रहती हैं। वे इधर-उधर भागने लगते हैं। ‘‘क्या करें? कुछ समझ में नहीं आता।’’ कहते हुए मेहमूद चौके में घुस जाता था। जयशंकर काफी कुछ समझ ही जाता था। अत: वह फ्लावर ड्यू, उनकी माँ और भाईयों का काम कर देता था।

मेहमूद मिसिस रिकरबाय को विभिन्न प्रकार के व्यंजन, मिठाई, नमकीन, दही आदि देता था। भारतीय भोजन में उन्हें तले हुए व्यंजन और दही ही पसंद आता था। बाकी चीज़ें वे बगैर चखे ही सरका देती थीं।

वे कहतीं- थीं- ‘‘आई हेट दिस कंट्री, दिस फैलो। व्हाय शुड वी रीच्ड दिस कंट्री। डर्टी ब्लैक मैन, डर्टी हाऊस, वेरी हॉट एटमासफियर एण्ड वेदर।’’

क्या क्या पूजते हैं ये लोग। पहाड़, पेड़, सांप, लाल रंग के पुते फ्लाइंग करते गॉड, जीभ निकालकर ब्लैक लेडी। ओह हॉरिबल।

दोनों बच्चों ने फिटन रूकवा ली थी। सड़क किनारे एक व्यक्ति बैठा गोरैया चिड़िया को बार-बार लकड़ी की खिलौना सीढ़ी पर चढ़ता-उतराता था। और भी करतब चिड़ियां दिखा रही थीं। दोनों बच्चे ताली बजाने लगे। उन्हें बहुत मजा आया। उसने देखा कि अंग्रेजों की घोड़ा गाड़ी यहाँ रुकी है तो वह और भी उत्साह में चिड़ियों के करतब दिखाने लगा। मिसिस रिकरबाय ने एक सिक्का ज़ोरों से उसके बिछे चादर पर उछाल दिया। जहाँ पहले से दो-चार सिक्के पड़े थे। उन्होंने ‘बैगर्स’ कहा और फिटन आगे बढ़वा ली। वे लोग समुद्र बीच जा रहे थे। प्रतिदिन वे लोग घूमने निकलते थे। बच्चों ने बंदर-बंदरियों का नाच भी देखा था। जो कपड़े पहनकर नाच रहे थे। जो बंदरों को नचाता था उसके पास एक अदभुत बाजा रहता था। ‘‘डुर-डुब्ब डब्ब डुर्र...’’ कुछ ऐसी आवाज़ें। बच्चे भी ताली बजाकर नाचने लगते। बंदर-बंदरियां उन्हें झुककर सलाम करते। उन्होंने सांप का नाचना, तोतों का नाचना भी देखा था। सांप का बीन की धुन पर नाचना अद्भुत लगता था। वे लोग रोज़ नारियल पानी पीते। फ्रांसेस्को और बॉब को यहाँ की मिठाई भी बहुत पसंद आती। खासकर नारियल की बर्फी, जो मेहमूद बनाता था।

बड़ा बेटा फ्रांसेस्को बोला-‘‘मॉम, मैं यहाँ ही रहूँगा। बड़ा होकर सेना में जाऊँगा।’’ रॉबर्ट हंस देता। छुट्टी के दिन वे समुद्र किनारे नहीं जाते। बाहर गुदगुदी हरी गीली घास पर कुर्सियां डालकर वे बैठ जाते। वहीं मेहमूद चाय-नाश्ता बनाकर दे जाता। बहुत ही हल्की ठंड की कुनकुनी धूप में वे बैठे रहते। बारह महीनों में सिर्फ नवंबर-दिसंबर ही होता जब हल्की ठंडक शुरू होती। और जनवरी में खतम भी हो जाती। मई, जून बहुत गर्मी होती। और बाकी के महीने भी इन दो महीनों से कम तापमान होता। यहाँ लौटता मानसून ही बरसता था। मद्रास के लिए यही कहा जा सकता था कि हमेशा गर्म और उमस भरा मौसम रहता है। वर्ष का सबसे ठंडा महीना जनवरी का होता है। यहाँ जब देश से मानसून लौटता है तब उत्तरी-पूर्व हवाएं चलती हैं और बारिश होती है। कभी-कभी बंगाल की खाड़ी में तूफान आने से यहाँ भी तूफान जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। और यही तूफान दूर देश से आने वाले जहाजों को कहीं का कहीं ले जाते हैं।

मिसिस रिकरबाय चिंतित थीं फ्रांसेस्को ने ऐसा कैसे सोचा कि वह यहाँ रहेगा, सेना में जाएगा। ऐसा क्या अच्छा लगा उसे यहाँ... जो वहाँ नहीं है। उन्होंने अपनी बेटी फ्लावर से बात भी की तो वह हंसने लगी...‘‘क्या मॉम, फ्रांसेस्को बच्चा है, उसे खेल की चीज़ें पसंद आ रही हैं। वह शुरू से ही एनिमल लवर रहा है। उसे यहाँ के करतब दिखाते एनिमल और बर्डस पसंद आ रहे हैं। आप चिन्ता नहीं करो मॉम। वह डैड का बिजनेस ही सम्हालेगा।’’

लेकिन कहीं कोई फांस थी जो मिसिस रिकरबाय के हृदय में चुभ गई थी।

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मिसिस रिकरबाय ने जयशंकर को बुलाकर सख्त हिदायत दी कि सुबह सवेरे जो अपने सर पर बांस की टोकरी रखे बंगलो के पीछे से बीन बजाते हुए निकलता है, उससे उनकी नींद खुल जाती है। वह न निकले और एक स्त्री जो दही-दही चिल्लाती है, नारियल वाला घंटी बजाता है, यह सब न निकलें, न ही यहाँ शोर करें और मुझे दुबारा न कहना पड़े। जयकिशन उनकी फटकारनुमा आवाज़ सुनकर सहम जाता। हालांकि वह सुबह नहीं होती थी। लेकिन मैम सो रही हैं तो सुबह ही है। उसे स्वयं दही, फल, तरकारी भाजी खरीदने पड़ते थे। अत: उसने इन लोगों को रोककर सब समझा दिया था। वह उन लोगों से इतना धीमा बोलता कि मानो मिसिस रिकरबाय वहीं खड़ी हैं।

कभी वे जल्दी उठ जातीं और फैन्टम पर बैठकर दूर निकल जाती। अधिकतर उन्हें बीच पर ही घोड़ा दौड़ाने में मजा आता था। और फिर देर होने पर उन्हें रॉबर्ट लेने जाता कि कहीं वह रास्ता न भटक गई हों। फ्लावरड्यू कभी घोड़े पर अकेली बैठ नहीं पाती। लेकिन उसकी माँ युवावस्था से ही घोड़ा चलाती रही हैं। वे स्वयं भी जमींदार घराने की थीं तो उनके जीवन में सिर्फ यहीं बातें रहीं जो अमीर घर की स्त्रियों में होती हैं।

मिसिस रिकरबाय और दोनों बेटे, फ्रांंसेस्को और बॉब अब इंग्लैण्ड लौटेंगे। माँ की जिद है कि फ्लावरड्यू भी साथ चले। रॉबर्ट ने बताया कि उसका स्थानांतरण बर्मा होने वाला है। इसलिए उस दौरान वह फ्लावरड्यू को इंग्लैण्ड भेजेगा। अभी वह बच्ची के साथ रहना चाहता है।

फ्लावर फिर नाराज हो गई थी जैसा कि स्पष्ट था वह इंडिया में रहना ही नहीं चाहती थी। और यह अच्छा मौका था कि इतनी लंबी समुद्री यात्रा में माँ का साथ होगा तो बच्ची सम्हल जाएगी। उसे भी ऊब नहीं होगी। लेकिन रॉबर्ट नहीं माना।

‘‘तो फिर पार्टी कर डालते हैं। बेटी का नाम भी तो रखना है। जो उनके आने तक रोका गया था।’’ मिसिस रिकरबाय ने कहा।

‘‘बिलकुल।’’ रॉबर्ट खुश हो गया।

एल्फिन और रॉबर्ट ने लम्बी लिस्ट बना ली मेहमानों को बुलाने की।

मेहमूद और जयकिशन को बनाए जाने वाले व्यंजनों की लिस्ट थमा दी गई।

इसमें इंडियन अधिकारी, इंडियन अमीर परिवार और अंग्रेज उच्च अधिकारी तो हैं ही ये सभी आएंगे। रॉबर्ट की पार्टी मद्रास में इसलिए भी चर्चित रहती थी क्योंकि उसके यहाँ बना वेज, नॉनवेज बहुत अधिक स्वादिष्ट बनता था। यह सब मेहमूद के हाथों का कमाल था... और इंडियन मिठाई... बस पूछो ही नहीं, इतनी स्वादिष्ट। रॉबर्ट कलकत्ता में रसगुल्ले और संदेश खा चुका था। और कमाल है मेहमूद वैसे ही रसगुल्ले बना लेता था।

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तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मिसिस रिकरबाय ने अपने हाथों में फ्लावरड्यू की बेटी को उठाया हुआ था। फिर उसका माथा चूमकर नाम रखा- ‘‘फ्रांसेस एलिजा मिनचिन गिल’’ सभी को नाम बहुत पसंद आया। शराब के गिलास टकराए और ‘‘चियर्स’’ की ऊंची आवाज़ गूंजी। उस दिन 40 मुर्गे काटे गए थे। और 50 सेर दूध का रसगुल्ला और संदेश बना था।

मिसिस रिकरबाय ने बड़ा सफेद रसगुल्ला उठाकर फ्लावर के मुँह में रखा-‘‘बधाई फ्लावर, एक खूबसूरत बेटी की माँ बनने के लिए।’’

एल्फिन ने बताया कि ‘‘आदेश आया है अभी फिलहाल तुम्हें बेंगलोर जाना है। वहाँ कोई ज़रूरी काम है। बर्मा फिलहाल कैंसिल समझो।’’

रॉबर्ट खुश हो गया। बेंगलोर दूर नहीं है। अब फ्लावरड्यू भी उसके साथ जा सकेंगी।

अपने दोनों बेटों के साथ मिसिस रिकरबाय इंग्लैण्ड के लिए रवाना हो चुकी थीं। रॉबर्ट, फ्लावरड्यू और एलिजा के साथ बेंगलोर रवाना हुआ। मेहमूद और जयकिशन फेन्टम, चेंडोबा और दोनों कुत्तों के साथ पहले ही चल चुके थे। यहाँ उसने बंगलो खाली नहीं किया। वापिस यहीं आना था। उसने अपना प्रिय काला घोड़ा राजा, जिसे वह किंग कहता था, उसने अपने लिये रोक लिया था।

बेंगलोर सुंदर शहर था। जब गर्मी होती तो बादल छा जाते और बरस जाते। ठंडक हो जाती। आपातकालीन बैठकों में रॉबर्ट व्यस्त हो गया था। तभी उसे पता चला फ्लावरड्यू गर्भवती है। वह बहुत खुश हो गया।

वैसी ही देखभाल हुई जैसी एलिजा मिनचिन के समय हुई थी।

रॉबर्ट ने दाई रत्नम्मा को बुलाना ही ठीक समझा। उसकी उचित देखभाल में बेटी का जन्म हुआ था। अत: दूसरे बच्चे के समय वह ही आए ऐसा रॉबर्ट ने सोचा। उसने यह काम जयकिशन पर सौंपा। यदि नज़मा बेग भी आ जाए तो वह बेटी को सम्हाल लेगी। वैसे यहाँ एक तमिल लड़की को रख लिया गया था। वह नर्स के जैसे कपड़े पहनती थी और अंग्रेजी भी बोलती थी।

वह फ्लावरड्यू का नौवां महीना था। रत्नम्मा आ चुकी थी। वह गर्व से फूली नहीं समा रही थी कि अंग्रेज अफसर ने उसे याद किया। उस पर विश्वास किया। नज़मा बेग की दोनों बहुएं गर्भवती थीं। अत: उसने आने में असमर्थता जताई।

फिर वह दिन सामने था जब फ्लावरड्यू प्रसव पीड़ा से चिल्ला रही थी। रॉबर्ट बेंगलोर से आगे किसी सैन्य कार्रवाई के लिए भेजा गया था। इस समय फ्लावरड्यू को रॉबर्ट की ज़रूरत थी। जयकिशन और मेहमूद को भी नहीं मालूम था कि रॉबर्ट किधर है। यह एक गोपनीय बैठक थी।

दर्द से फ्लावरड्यू रो भी रही थी और चिल्ला रही थी। लेकिन दोनों बैटमेन नहीं जानते थे कि रॉबर्ट कहां है। वे सेना के आॅफिस में कहकर तो आए थे। दाई रत्नम्मा घबरा नहीं रही थी। उसे सब ठीक दिख रहा था। वे लोग नर्स से पूछ रहे थे। नर्स सब ठीक है का हाथ हिला रही थी। एक दो घंटे और लगेंगे। पर डिलीवरी होने में चार घंटे और लग गए। रॉबर्ट को खबर नहीं मिल पाई थी लेकिन वह कल तक आ जाएगा, ऐसा तय था।

फ्लावर ने सुबह 4 बजे 10 सितम्बर 1843 को बेटे को जन्म दिया।

फ्लावरड्यू थक चुकी थी और सो रही थी। तभी रॉबर्ट का घोड़ा आकर रुका। जयकिशन ने घोड़े की लगाम थाम ली। बोला-‘‘सर, खुशखबर है, बेटे ने जन्म लिया है।’’

‘‘क्या?’’ रॉबर्ट आश्चर्यमिश्रित खुशी से चिल्लाया और लगभग दौड़ता हुआ फ्लावर के कमरे में पहुँचा।

‘‘फ्लावर।’’ पास ही बैठी रत्नम्मा नींद में थी। जो आवाज़ सुनते ही हड़बड़ाकर खड़ी हो गई। और रॉबर्ट को देखते ही कमरे से बाहर चली गई। नर्स जो स्टूल पर बैठी थी वह भी बाहर चली गई।

रॉबर्ट ने फ्लावरड्यू के माथे पर प्यार से हाथ रखा। फ्लावर कुनमुनाई और बगैर आँखे खोले ही नाराजी से रॉबर्ट का हाथ माथे पर से हटा दिया।

रॉबर्ट ने दुबारा उसके चेहरे को सहलाया तो उसने आँखें खोलीं और वापिस आँखें बंद करते हुए कहा-‘‘रॉबर्ट, सोने दो मुझे। घंटों पीड़ा सही है।’’

रॉबर्ट समझ गया कि उसकी अनुपस्थिति से फ्लावर नाराज है। वह बेटे की ओर बढ़ा। बेहद सुंदर बच्चा सफेद चादर, जिसमें कई रंग के फूल स्वयं फ्लावर ने धागों से बनाए थे। लिपटा सो रहा था। उसने बच्चे को गोद में उठा लिया। नन्हें हाथों की सफेद उंगलियां और गुलाबी नाखून हैं। उसने बच्चे के हाथ उठाकर चूम लिए. वैसे ही उसके पैर और गुलाबी तलवे थे। उसने वह भी चूमे और बच्चे को वापिस लेटा दिया।

उसने फ्लावरड्यू के नज़दीक खड़े होकर कहा- ‘‘कांग्रेट्स फ्लावर... बेटा सुंदर है। और मैं शर्मिन्दा हूँ कि ऐसे वक्त पर तुम्हारे पास नहीं था। बहुत ही ज़रूरी सीक्रेट मीटिंग थी। मेरा जाना ज़रूरी था। दुबारा माफी माँगता हूँ।’’ रॉबर्ट जानता था फ्लावर सुन रही थी। वह बाहर आ गया। रात भर का जागा था तो थोड़ा-सा नाश्ता खाकर सो गया।

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नर्स बहुत अच्छे से बेटे को सम्हाल रही थी। बेटी डेढ़ साल की हो चुकी थी। वह बाहर कम्पाउंड में खेलती थी। जयशंकर मेले से उसके लिए लकड़ी का एक घोड़ा खरीदकर लाया था। जिस पर बैठकर वह आगे-पीछे लुढ़कती रहती थी। घोड़े पर ही बैठकर वह खाना खाती थी। नर्स उसे एक-एक कौर करके खाना खिलाती थी। फ्लावरड्यू की नाराजगी दूर नहीं हो रही थी। रॉबर्ट की आँखों में क्षमायाचना रहती। लेकिन फ्लावरड्यू उसे इग्नोर करती।

रॉबर्ट फिर दौरे पर था। लौटकर आया तो देखा उसी समय एल्फिन साईमा और अपने दोनों बच्चों के साथ गेट से अंदर आ रहा था। एल्फिन रॉबर्ट को देखकर वहीं रुक गया। साईमा दोनों बच्चों के साथ अंदर चली गई। बाहर कम्पाउंड में रखी कुर्सियों पर वे दोनों बैठ गए।

‘‘यार, रॉबर्ट तुम्हारे पैरों में तो पहिए लगे हैं। अब तुम्हें कुछ समय के लिए बर्मा भेजा जा रहा है। याद है, तब बर्मा पोस्टिंग रुकी थी तुम्हारी। बेंगलोर भेजा गया था तुम्हें।’’ (इस समय वे लोग वापिस मद्रास में ही थे) एल्फिन ने कहा।

‘‘ओह! बर्मा... फिर एक लम्बी यात्रा।’’ रॉबर्ट बुदबुदाया। ‘‘एल्फिन मैं हमेशा यात्रा में ही रहता हूँ। अभी भी यात्रा ही कर रहा हूँ।’’

‘‘मालूम है’’ रॉबर्ट ने कहा। ‘‘फ्लावरड्यू सुनेगी तो फिर नाराजी। अभी ही कितने महीने हो गए। डिलीवरी के समय उपस्थित न रहने की नाराजी के।’’

‘‘फ्लावर ने सुन लिया है कि तुम बर्मा जाओगे।’’ वे सभी बाहर आ चुके थे। आते हुए साईमा ने कहा।

तीनों बच्चे एक ही घोड़े पर बैठने के लिए लड़ने लगे। फ्रांसिस एलिजा किसी को अपना घोड़ा देना नहीं चाहती लेकिन एल्फिन का बड़ा बेटा घोड़े पर बैठ चुका था।

‘‘सर! स्ट्राबेरी का मिल्क शेक बना दूं।’’ मेहमूद ने पूछा।

‘‘हां! हम सभी पिएंगे।’’ रॉबर्ट ने कहा।

अंदर से सिलबट्टे पर स्ट्राबेरी पीसने की आवाज़ आने लगी। मेहमूद दूध में शक्कर डालकर मथानी से उसे मिला रहा था। बाहर आवाज़ें आ रही थीं। उसने गिलासों में मिल्क शेक भरा और बाहर लेकर आ गया।

बच्चे गिलास देखकर घोड़ा भूल गए। आज मेहमूद और जयकिशन ने मिलकर बेसन के नमकीन सेव बनाए थे। रॉबर्ट यह सब पसंद करता था तो वे लोग बगैर पूछे भी नाश्ते बनाकर रख लेते थे।

‘‘एक पार्टी कर लो अब। बेटे का नाम भी रख लेना और यहाँ से जा रहे हो उसका जश्न भी हो जाएगा।’’ एल्फिन ने कहा।

‘‘हां! यही ठीक रहेगा।’’ रॉबर्ट ने कहा।

‘‘रॉबर्ट! मुझे लगता है इस बार तुम्हें बर्मा में युद्ध पर जाना होगा।’’ एल्फिन ने कहा।

फ्लावरड्यू समूची कांप गई।

‘‘युद्ध? रॉबर्ट... नो... नो... मैं नहीं जाने दूंगी।’’

रॉबर्ट ने एल्फिन की तरफ देखा। शायद इसी समय समझाना ठीक होगा- ‘‘फ्लावर, हम लोग सेना में हैं। ऐसी परिस्थितियां सामने आएंगी तो मना नहीं कर सकते।’’

‘‘मुझे मालूम था ऐसा कुछ मेरे साथ होगा।’’ फ्लावर रोने को हो आई। पास बैठी साईमा ने फ्लावरड्यू का हाथ स्नेह से पकड़ लिया।

‘‘ऐसा कुछ नहीं सोचो फ्लावर, हम ब्रिटिशर हैं। कहीं भी हारते नहीं हैं। और ज़रूरी नहीं है कि युद्ध के समय मारे ही जाएं। और! युद्ध होगा, यह भी तो अभी पता नहीं।

’’’

नामकरण पार्टी, बर्मा जाने की (स्थानांतरण) पार्टी, अर्थात सबसे बिछुड़ने की पार्टी, फ्लावरड्यू बहुत उदास थी।

लेकिन रॉबर्ट के घर की यह शानदार पार्टी हमेशा याद रहेगी। इंडियन कर्नल सरदार मोहिन्दर सिंह बोल रहे थे। जो शिमला प्रवास के दौरान दिल्ली में रॉबर्ट से मिल चुके थे। वे स्थानांतरण पर दिल्ली से मद्रास आए हैं।

रॉबर्ट ने बेटे को गोद में उठाया और बहुत ही खुशी से फ्लावरड्यू की ओर देखते हुए नामकरण किया-‘विलियम जॉन गिल।’’

सभी ने तालियां बजाईं। यह नाम फ्लावरड्यू ने ही रखा था, जिसका समर्थन रॉबर्ट ने किया था।

एल्फिन साईमा अपने बच्चों के साथ विदा ले रहे थे। साईमा की आँखों में आँसू थे। दोनों बेहतरीन मित्र बन चुकी थीं। अब बिछुड़ने का दु:ख था। वहाँ फ्लावरड्यू अकेली, यहाँ साईमा।

‘‘कल से बर्मा जाने की तैयारी शुरू करनी होगी एल्फिन। इसी हफ्ते निकलना है।’’ रॉबर्ट ने कहा।

’’’

मौलमीन जहाँ रॉबर्ट को जाकर ज्वाइन करना है यह लोअर बर्मा के तेनसेरीम डिवीजन में एमहर्स्ट जिले का मुख्यालय था। यह 1826 से ब्रिटिश बर्मा की राजधानी है। जब बर्मा का युद्ध हुआ था तो यह युद्ध के बाद ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया था। यह एक सैन्य छावनी है।

ज़रूरी सामान लकड़ी के खोखो और लोहे के संदूकों में भर लिया गया था। बहुत प्यार से संजोया, सजाया घर उसे छोड़ते समय फ्लावर रो पड़ी। यह कैसी ज़िंदगी है... उसने यह जाना ही नहीं था कभी। जिप्सी जैसी ज़िंदगी कभी इधर, कभी उधर। उसने एक लंबा पत्र अपनी माँ को लिखा कि वह वापिस इंग्लैंड आना चाहती है। लेकिन माँ यह भी सच है कि ऐसी ज़िंदगी को नापसंद करते हुए भी वह रॉबर्ट से बहुत प्रेम करती है। क्या करे कुछ समझ में नहीं आता।

जब तक यह पत्र पहुँचा वे लोग मौलमीन पहुँच चुके थे। जहाज में दोनों कुत्ते साथ थे। स्टैलियन (र३ं’’्रङ्मल्ल) जहाज के कार्गो में जिसमें जानवर रखे जाते हैं, सामान और दोनों बैटमेन के साथ आ रहे थे।

फ्लावरड्यू को वैसे तो यह स्थान पसंद आया। क्योंकि उसे मद्रास के मौसम से यहाँ का मौसम अच्छा लगा। सड़कें भी चौड़ी और साफ-सुथरी थीं। इमारतें लंदन जैसी नहीं, लेकिन समकक्ष थीं। जो बंगलो इन्हें रहने को दिया गया था वह छावनी में ही था और यहाँ ब्रिटिश सेना थी। चारों ओर ब्रिटिशर को देखकर फ्लावरड्यू खुश हो गई। इंडिया से अलग कल्चर, अलग रहन-सहन था। मेहमूद और जयकिशन साथ ही थे। तो घर वैसा ही जमा दिया गया जैसा रॉबर्ट और फ्लावरड्यू को पसंद था।

पीली धूल और आंधी से भरा दिन था। जब रॉबर्ट जल्दी ही लौट आया था। फ्लावरड्यू ने बताया कि वह गर्भवती है। विलियम एक साल का हो चुका था। रॉबर्ट ने विलियम को लेकर गोद में ऊंचा उछाला और फिर फ्लावर से लिपट गया। ‘सचमुच’ उसने खुशी से चहकते हुए कहा। दोनों ने इस तीसरे बच्चे के लिए जश्न मनाया और रॉबर्ट ने शराब पी जो सेना के दफ्तर में इंग्लैण्ड से आई थी। फ्लावरड्यू ने माइल्ड शराब का पैग भरकर ‘चियर्स’ किया। दोनों शराब की खुमारी में छेड़छाड़ करते हुए सो गए।

जयकिशन ने एक बर्मी स्त्री दोनों बच्चों की देखरेख के लिए रॉबर्ट के आदेशानुसार ढूंढ़ कर ला दी थी। फ्लावरड्यू पुन: माँ बनने से खुश तो थी ही। इस बार वह स्वयं अपनी देखभाल कर रही थी। यहाँ उसे थाईलैंड की थाई दाई शिंपीज मिल गई थी। जो बहुत अनुभवी थी। वह अंग्रेजी बोलती थी। जिससे फ्लावरड्यू खुश थी कि वह उसकी बात समझती है।

रॉबर्ट लगातार व्यस्त था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी क्या चाहती थी। यह इन ब्रिटिशर के समक्ष स्पष्ट था। अभी तो ‘आराकान’ और ‘टैनसेरिम’ पर ही वे कब्जा कर पाए थे। लेकिन अब बर्मा का दक्षिणी भाग भी उन्हें अपने अधीन करना था। यहाँ युद्ध की सरगर्मियां तो थीं। लेकिन कोई घोषित युद्ध नहीं था। बर्मा अब ब्रिटिश कंपनी के नियंत्रण में तो था ही।

मद्रास ब्रिटिश रेजीमेंट के अनेक सैनिक अधिकारी यहाँ आ चुके थे। 1826 के बर्मा युद्ध में जिन अंग्रेज आर्मी ने हिस्सा लिया था वे यहीं बस गए थे। गिरमिटिया मजदूर ब्रिटिश शासन की गुलामी के लिए यहाँ लाए जाते थे।

रॉबर्ट ने यहाँ आकर पाया कि यहाँ साल (टीक) के वृक्ष बहुतायत से हैं। यह लकड़ी के फर्नीचर बनाने के काम आते हैं। टीक से मिलते-जुलते भी वृक्ष हैं, जिनकी लकड़ियां बहुत मजबूत हैं। लेकिन टीक से सस्ती हैं। उसने टीक के फर्नीचर ही अपने लिए बनवाए। ब्रिटिश कंपनी का आकर्षण बर्मा की ओर इसलिए भी था कि यहाँ की खदानों से टिन, चाँदी, सीसा आदि निकाला जाता था। इससे ब्रिटिश कंपनी का व्यापार बढ़ रहा था। कहीं-कहीं तेल और टंगस्टन भी प्रचुर मात्रा में निकाले जाते थे। जहाँ छावनी थी और जहाँ रॉबर्ट रह रहा था वहाँ सालवीन नदी है। जो बहुत चौड़ी और समुद्र की तरह गरजती रहती है। कितनी ही बार रॉबर्ट फ्लावरड्यू के साथ इस नदी के किनारे आया है। मद्रास और कलकत्ता की भांति उसने यहाँ के भी चित्र बनाए। बर्मा में इंडिया की तरह अनेक जाति समूह हैं। लेकिन यहाँ अंधविश्वास नहीं है। बुद्ध को मानने वाले लोग हैं।

फ्लावरड्यू उन सांप, सपेरों, ओझा, बाबाओं की कहानियां सुनते तंग आ गई थी। इसलिए भी उसे यह जगह पसंद आ गई। ‘‘लेकिन इंग्लैंड जैसी कंट्री पूरी दुनिया में दूसरी कोई नहीं’’ यह वह मानती है।

रॉबर्ट जहाँ जाता था वहाँ की पूरी जानकारी इकट्ठी कर लेता था। एल्फिन इस बात की रॉबर्ट की प्रशंसा करता था। और सबसे कहता भी था। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में बर्मन लोग चीन-तिब्बत सीमा से विस्थापित होकर यहाँ इरावती नदी की घाटी में बस गए थे। यहाँ एक विशाल पीपल का वृक्ष है। जिसके लिए कहा जाता है कि इसे इंडिया से लाकर यहाँ लगवाया गया था। इसके नीचे बर्मी लोग बुद्ध की आराधना ध्यान आदि करते हैं।

कुछ ही दिनों में छावनी की हलचल कम होते ही रॉबर्ट ने बागान शहर जाने का सोचा। यह एक प्राचीन ऐतिहासिक शहर है। यहाँ तीन-चार हजार के लगभग बौद्ध मंदिर, पगोडा और मठ हैं। यहाँ के निवासी बागान को पुंगन भी कहते हैं। फ्लावरड्यू तो अधिक यात्रा करना नहीं चाहती वरना वह उसे कलकत्ता भी ले जाता। पता नहीं वह बागान जाएगी भी या नहीं। कलकत्ता को तो ब्रिटिशर ने अपने ढंग से ही बसा लिया है। मौलमीन का पूरा तटवर्तीय क्षेत्र बंगाल की खाड़ी और फिर इंडिया से जुड़ा है। कलकत्ता में इतने यूरिशियन लोग हैं कि फ्लावर को अच्छा ही लगेगा, उसने सोचा।

विलियम के पैदा होने के समय रॉबर्ट अपनी अनुपस्थिति की नाराजी को फ्लावरड्यू के मन से निकाल देना चाहता था। अत: इस तीसरे बच्चे के दौरान वह फ्लावर का बहुत ध्यान रख रहा था। उसे वीरान सड़कों पर सुबह-सुबह घुमाने ले जाता। जब वह फिटन पर बैठती तो समतल जगहों पर ही फिटन को चलाने का आदेश देता। यहाँ बर्मा में बड़े-बड़े चके वाली फिटन मिली थी, जिसमें एक ही घोड़ा होता।

छावनी के रहने वाले कुछ लोगों ने बताया कि सेंट मेथ्यू चर्च बहुत ही सुंदर है। इसे इंग्लैण्ड के सेंट मेथ्यू चर्च की तर्ज पर बनाया गया है। करीब ग्यारह-बारह वर्ष हो चुके हैं इसे बने। अत: वह अवश्य देखने जाए। वह दोनों बच्चों और फ्लावर के साथ वहाँ गया। और लगभग पाँच-छह घंटे वहाँ बिताए। फ्लावर खुश थी। हो सकता है उसके मन से पुरानी नाराजगी दूर हो रही हो।

रॉबर्ट के दोनों बच्चे संभालने वाली बर्मी लड़की सूज़ी और थाई-दाई शिंपीज़ू ने मिलकर आने वाले बच्चे के लिए छोटी-छोटी शीट्स और खुले डोरी वाले नैपीज (जांघिए) बनाने शुरू किए।

दोनों ही औरतें आँखों ही आँखों में बात कर लेती थीं कि आखिर यह अंग्रेजों का मामला है।

रॉबर्ट सोचता है कि उसने अभी तक कभी कोई स्कैच फ्लावर का नहीं बनाया। हां, कैमरे से कुछ तस्वीरें अवश्य ली हैं परन्तु बगैर धुली पड़ी हैं। और धुल भी गईं तो वह स्पष्ट नहीं दिखेंगी। वह जानता है। वह नदी किनारे बैठा रहता। कभी-कभी दूर तक तैरने चला जाता। नदी किनारे की मटमैली रंग की रेत पर पैरों को आगे फैलाए पीछे हाथ टेके बैठा रहता। वह सचमुच सबसे अलग ही था। चाहेंं वह मद्रास हो कलकत्ता या बर्मा।

फ्लावरड्यू अधिकतर सोती रहती। चाहेंं दुपहर हों या रात। वह जगाता भी नहीं, सोचता क्या पता उसको इतनी नींद की ज़रूरत हो।

शिंपीज़ू और सूज़ी आपस में कानाफूसी करतीं। शिंपीज़ू का अनुभव था कि इतना नहीं सोना चाहिए। बच्चे की पैदाइश के समय तकलीफ होती है।

विलियम और फ्रांसिस एलीसा मिनचिन शिंपीज़ू और सूज़ी के साथ काफी हिलमिल गए थे। फ्लावरड्यू वैसे भी गर्भ के बोझ से उनका ध्यान नहीं रख पाती है।

एल्फिन के पत्र आते थे। उसने ही बताया था कि यहाँ ऐसी चर्चा गर्म है कि बर्मा के बाकी बचे क्षेत्रों के लिए शीघ्र दुबारा युद्ध होगा। मुझे चिंता है कि फ्लावरड्यू की क्योंकि वह गर्भवती है। और उस समय तुम युद्ध पर न गए हो। वरना फ्लावरड्यू की फिर नाराजी शुरू हो जाएगी।

और यह भी कि तुम्हारा मद्रास का यह बंगला खाली पड़ा है। जब तुम लौटोगे तो इसी में आ जाना।

‘‘लौटोगे?’’ रॉबर्ट ने नदी के पानी में कंकर उछाला। ‘‘डुब्ब’’ पानी शांत था। कंकर भीतर जा चुका था। क्या सचमुच मेरा लौटना होगा। या फ्लावरड्यू बच्चों के साथ अकेली ही लौटेगी।

कभी-कभी रॉबर्ट की सोच नकारात्मक हो उठती है। कितना समझता है एल्फिन उसे कि फ्लावरड्यू फिर नाराज हो जाएगी और उसकी फितरत है कि वह महीनों-महीनों मानेगी ही नहीं। लेकिन सामने ऐसे रहेगी मानो कुछ हुआ ही नहीं है।