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दूसरा मायका  

संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी लता बहुत ही संस्कारी थी।   सबकी चहेती थी वह, भगवान ने भी रंग रूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, छह बहन, पाँच भाई इतना बड़ा परिवार था उसका। परिवार में इतनी बेटियाँ होने के कारण शीघ्र ही उनका विवाह कर दिया जाता था। लता भी अब शादी की उम्र में आ चुकी थी, हालांकि अभी वह केवल 19 वर्ष की ही थी किंतु विवाह के लिए अब उसका नंबर आ गया था।  

अच्छा-सा लड़का व अच्छा परिवार देखकर उसका विवाह कर दिया गया और वह अपने ससुराल आ गई। ससुराल में इतना बड़ा परिवार तो नहीं था, फिर भी सास-ससुर, देवर, ननद सभी लोग थे। उस परिवार की बेटी सपना भी परिवार में सभी की लाड़ली थी। अपनी भाभी के आने के साथ उसे ऐसा लगने लगा मानो उसे एक बड़ी बहन मिल गई हो। वह बहुत ही प्यार से अपनी भाभी के साथ रहती थी। लता भी उसके साथ उतने ही प्यार से पेश आती थी।  

सपना अपने पापा का बहुत ही ज़्यादा ख़्याल रखती थी। अपने पापा का हर काम करना उसे बेहद पसंद था। जब वह नहाने जाते तो उनके कपड़े, उनसे पहले ही बाथरूम में रख दिए जाते। जब वह नहा कर बाहर निकलते तो सपना हैंगर में पेंट शर्ट इस्त्री करके तैयार रखती थी। पापा के ऑफिस से आते ही वह गरमा-गरम चाय की प्याली उनके हाथों में थमा देती। सपना रात का भोजन रोज़ अपने पापा के साथ एक ही थाली में करती थी।  

सपना भी अब तक विवाह योग्य हो चुकी थी और कुछ ही दिनों में उसका रिश्ता भी तय हो गया। अब  सपना डोली में बैठकर विदा हो जाएगी, यह सोचकर रामचंद्र की आँखों में ग़म के ऐसे बादल छा गए कि वह चाह कर भी उन्हें बरसने से रोक नहीं पाते थे।   उन्हें लगता था कि सपना के जाने के बाद घर कितना सूना हो जाएगा। उनका इतना ज़्यादा ख़्याल कौन रखेगा?   वह उसके बिना कैसे रह पाएंगे।   यही सब ख़्याल उनकी रातों की नींद उड़ा चुके थे।  

एक दिन सपना ने अपने पापा से कहा, "पापा मैं शादी नहीं करूँगी।"    

रामचंद्र चौंक गए, "क्या हुआ सपना? ऐसा क्यों बोल रही हो बेटा?"  

"पापा मैं आपके बिना रहने की कल्पना मात्र से ही सिहर जाती हूँ। मैं आपसे दूर नहीं जाऊँगी, फिर मेरे पापा का ख़्याल कौन रखेगा।"  

"सपना बेटा, हर बेटी को एक ना एक दिन विवाह के बँधन में बँध कर ससुराल तो जाना ही पड़ता है, इसका कोई दूसरा रास्ता नहीं है।"  

आख़िरकार सपना का विवाह संपन्न हो गया। विदाई के समय सपना जब भी अपने पापा की तरफ़ आँख उठाकर देखती, उनकी आँखें बिना बोले ही सब कुछ कह देतीं।   एक दूसरे के दिल की धड़कनों को पहचानने वाले पिता और बेटी एक दूसरे के मन में उठे हुए तूफ़ान को महसूस कर रहे थे। जाते वक़्त सपना अपने पापा से लिपटकर फूट-फूट कर रो रही थी। रामचंद्र भी अपने आँसुओं को रोक ना पाए। आख़िरकार सपना अपने पति के साथ ससुराल के लिए विदा हो गई।   घर शांत और सूना हो गया, पूरी रात बीत गई।  

दूसरे दिन सुबह रामचंद्र जब नहाने गए तो उनके कपड़े हर रोज़ की तरह ही उन्हें बाथरूम के अंदर मिले। वह हैरान थे, नहाकर जब वह बाहर निकले, तब पेंट-शर्ट का जोड़ा इस्त्री किया हुआ हैंगर पर लटका उनका इंतज़ार कर रहा था। जब शाम को वह वापस लौटे, तब उनकी बहू लता, सपना की तरह ही चाय का प्याला, पानी के गिलास के साथ लेकर आई।    

लता की तरफ़ देखकर रामचंद्र को उसमें अपनी बेटी सपना का अक्स दिखाई देने लगा। उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था, मानो उनके समक्ष सपना ही खड़ी है। रामचंद्र की आँखों में उस वक़्त ख़ुशी के आँसू छलक आए। उनकी पत्नी चंद्रा भी यह दृश्य देखकर फूली नहीं समा रही थी। अपनी बहू पर उसे भी नाज़ हो रहा था।  

उसने अपने पति से कहा, "एक बेटी गई लेकिन दूसरी हमारे पास हमेशा के लिए आ गई है।"  

रात में भोजन का समय हो गया, सभी लोग भोजन करने बैठ गए।  

तब लता को आवाज़ आई, "लता बेटा आ जाओ, हम दोनों एक साथ, एक ही थाली में खाना खाएंगे।"    

लता आश्चर्यचकित रह गई, वह आई और अपने पिता के पास बैठ गई। रामचंद्र ने अपनी थाली से रोटी का पहला कौर उठाकर अपने हाथों से प्यार के साथ उसे खिलाया और कहा, "लता बेटा आज से हम दोनों हर रोज़ साथ में खाना खाएंगे। मैं नहीं जानता था कि मेरी एक बेटी विदा हो गई लेकिन दूसरी बेटी तो मेरे पास है।"  

लता ने ख़ुश होकर कहा, "हाँ पापा, हम दोनों अब से रोज़ साथ में खाना खाएंगे।"  

इतना कहकर लता सोच रही थी, "कौन कहता है बेटी विदा होकर ससुराल जाती है। मुझे तो ऐसा लगता है, बेटी एक मायके से विदा होकर दूसरे मायके ही आती है, जहाँ बहन, भाई, माता-पिता और मिल जाते हैं।"  

कुछ दिनों के बाद सपना पग फेरे के लिए वापस आई। शाम का वक़्त था, वह अपनी ससुराल की बातें सब को बता रही थी। तभी उसके पापा आए और उनके आते ही सपना ने देखा उसी की तरह लता चाय का प्याला और पानी का गिलास लेकर आ गई और उसके पापा ने प्यार से लता के हाथ से चाय ले ली। सपना देख कर मन ही मन ख़ुश हो रही थी।  

रात के भोजन के समय वह अपने पापा के पास आकर बैठ गई। तभी उसके पापा ने आवाज़ लगाई, "लता बेटा आ जाओ।"  

आज रामचंद्र के एक तरफ़ लता और दूसरी तरफ़ सपना, दोनों ही उनके साथ खाना खा रहे थे। 

आज यह दृश्य देखकर सपना बेफिक्र थी कि उसके पापा का ख़्याल रखने के लिए उसकी भाभी है, जो पापा को कभी दुःखी नहीं होने देगी और उसकी कमी हमेशा पूरी करती रहेगी।  

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)  

स्वरचित और मौलिक