Pehchan - 18 books and stories free download online pdf in Hindi

पेहचान - 18 - सबर का फल मिठा होता है....

पता नहीं क्या था ,आखिर ये कोनसा एहसास था की अभिमन्यु पीहू की तरफ खिचा चला जा रहा था, अब तो उसके ,रोज का काम हो चुका था की वो पीहू को सोते हुए देखता फिर सुबह एक के बाद एक काम करते हुए देखता, वो तो मानो जैसे बाकी सब भूल चुका था......
इधर ऑफिस मे राघव पागल हो चुका था, इतने सारे काम थे,उपर से अभिमन्यु गायब था ,भला वो इतने सारे काम अकेले कैसे संभाले!

आज christmas का दिन था अभिमन्यु सोचा आज वो पीहू को एक छोटी सा तोहफा देकर उससे sorry कहेगा,उसके बाद उसे घर आने को बोलेगा, वो gift खरीद कर उस bridge के पास जाने के लिए निकला जहाँ पीहू रहती थी....... वो bridge से थोड़ा ही दूर था की अचानाक् उसपे attack होने लगा, उसके गाड़ी पे एक के बाद एक bullet चलने लगी, एक bullet आकर गाड़ी के पहिये मे लगी जिसके चलते गाड़ी pumpture होगयी......

अभिमन्यु अपनी जान बचाने के लिए गाड़ी से निकल कर भागने लगा, पर उसकी फूटी किस्मत गोली उसके पैरों मे और एक हात मे लगी, वो धम से गिर गया, फिर भी जान बचाने के चक्कर मे जमीन पे रेंगते रेंगते आगे जाने की कोसिस करने लगा । तभी एक और गोली चलने की आवाज हुई अभिमन्यु को लगा सायद इस बार वो गया उसने अपनी आँखे बंद करदी,

तभी गोलियों की बरसात होने लगी,मानो कान के पर्दे अभी फट जायेंगे........... कुछ पलों के बाद चारो तरफ सन्नाटा छा गया,

अभिमन्यु ने अपनी आँखे खोली और एक चैन की सांस ली की वो अभी भी जिंदा है.
उसको तभी ये एहसास हुआ की, इतने सारी गोलियां चली पर एक भी गोली उसको कैसे नहीं लगा? वो पीछे मुडा तो देखा की सब घायल होकर गिरे थे और उसके आगे कोई खडा था जिसके हात मे बंदूक थी........... अभिमन्यु एक रुकती हुई आवाज मे बोला कौन हो तुम ?इससे पहले की वो कुछ और कह पाता उसकी आँखे बंद होगयी.......
कुछ घंटो बाद अभिमन्यु को होश आया ,उसने अपनी आँखे खोली ,उसे अपने बदन पर दर्द महसूस हुआ जैसे ही वो अपने चोट देखने लगा वो हैरान था उसके चोट पे दवाई लग चुकी थी , चारो तरफ नजर घुमाया पर कोई भी न था , उसके मन मे फिरसे एक सवाल आया आखिर वो कौन था जिसने उसे बचाया और उसका इलाज क्यों किया?

घर देखने मे पुराना था, इतने सामान भी नहीं थे जीतने होने चाहिए थे पर साफ सफाई अच्छे से हुई थी चारो तरफ सांति छाई हुई थी, तभी किसीके कदमो की आवाज़ सुनाई दी..... अभिमन्यु दरवाजे की तरफ देखने लगा, किसीकी परछाई धीरे धीरे दिखने लगी और finally एक सख्स उसके सामने थी वो कोई और नहीं पीहू ही थी ,
अभिमन्यु थोड़ा shock मे चला गया, क्या सचमे पीहू ही उसे बचाई है और उसको इतने अच्छे से गोली चलाना कैसे आता है? और उसने उसे क्यों बचाया ? बहुत से सवाल उसके सिर मे घुमने लगे पर उसने अपने आपको संभालते हुए मन ही मन बोला ,stop your self अभिमन्यु !इस बार कोई गलती नहीं कोई झगडा नहीं , go on the pharse "सबर का फल मिठा होता है " पहले उसको अच्छे से जान फिर कुछ बोलना last time की तरह गलती नहीं करनी है ...... तभी पीहू कुछ दवाई खोल कर उसके हात मे पकडा दी ,और पानी का ग्लास उसके हाथों मे थमा दी, इससे पहले की अभिमन्यु उसे कुछ कहता वो वहाँ से चली गयी . .. . .. ....

अभिमन्यु बोला ये मुझसे कुछ बोली क्यों नहीं?फिर वो बेड से उठकर पीहू के पीछे जाने लगा, चोट की वजह से दर्द तो हो रहा था पर इस वक़्त उसे पीहू से बात करना ज्यादा जरूरी लगा.....