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उजाले की ओर –संस्मरण

सभी स्नेही मित्रो को

नमस्कार

जीवन की गति न्यारी मितरा,

गुप-चुप करते बीते जीवन,

मन होता है भारी मितरा।

निकलना पड़ता है उस भारीपन से मित्रों क्योंकि हमें जीवन जीना है, घिसटना नहीं है।

जीवन को परीक्षाओं के बिना जीने के लिए नहीं बनाया गया है और किसी भी प्रकार के दर्द से बचने के लिए अपनी जिम्मेदारियों को त्यागना, चाहे वह मानसिक हों या शारीरिक, जीने का अच्छा तरीका नहीं है। हर बार जब हम किसी समस्या का सामना करते हैं, उसके सामने युद्ध करना ज़रूरी है। हम बचपन से सुनते आते हैं कि जीवन युद्धक्षेत्र है, जब हमने इस धरा पर जन्म लिया है हमें जीवन के युद्ध में उतरना ही होगा और कमर कसकर स्वयं को तैयार करना ही होगा।

आसानी से हार मान लेना हमारे प्रोफे़शनल और आध्यात्मिक विकास को रोक देता है । जब बच्चा चलना शुरू करता है, तब वह कई बार गिरता है। दर्द होने पर रोता भी है। अगर हम उसका ध्यान किसी मजे़दार चीज़ पर अथवा उसकी पसंद की चीज़ पर लगा देते हैं, तो वह कुछ ही देर में अपना ध्यान उस दर्द से हटा लेता है और सब भूलकर हँसते हुए खड़ा हो जाता है।

भले ही हम यह जानते हैं कि दुबारा चलने के प्रयास में बच्चे को दर्द होगा, चोट पहुँचेगी, फिर भी हम उसे चलने से नहीं रोकते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि वह जल्दी ही उस स्थिति से गुज़र जाएगा। और उसका विश्वास दृढ़ हो जाएगा। शनैः-शनैः वह स्वयं भागना सीख जाएगा और हम उसको देखकर प्रसन्न होंगे।

हम असफ़लता व उसके बार-बार गिरने के डर की क्यों चिंता करें? यदि हम बच्चे को आत्म विश्वास व दृढ़ता का मूल्य नहीं बताएंगे, हो सकता है वह बड़ा होकर असफलता के डर से अपनी योजनाओं पर ही काम न कर पाए और शुरू करने के बावज़ूद भी उनको या शुरु ही न कर पाए या उन्हें बीच में ही छोड़ दे।

दरसल, बच्चे अधिकतर बातें अपने पारिवारिक वातावरण से सीखते हैं, हम सबने सीखी हैं।

बच्चों के लिए घर के बुज़ुर्गों का बड़ा महत्व रहता है। इसीलिए उन परिवारों के बच्चे अधिक समझदार व विवेकशील होते हैं जिन परिवारों में बच्चे अपने दादा-दादी, नाना-नानी के करीब रहते हैं।

कथा - कहानी, खेलकूद के साथ ही बच्चे जीवन जीने की शैली में भी पारंगत हो जाते हैं। भविष्य में किसी भी काम में उनकी कमज़ोर पड़ने की संभावना कम रहती है।

चलिए, अपने बच्चों के सुदृढ़ भविष्य के बारे में सोचकर ऐसे कदम उठाएं कि वे अपने जीवन में सफ़लता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचकर ही रुकें।

आमीन!

 

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती