Bhooto ka Dera - 1 in Hindi Horror Stories by Rahul Kumar books and stories PDF | भूतों का डेरा - 1

भूतों का डेरा - 1

आज तक अपने बहुत से किस्से कहानियां सुनी होंगी और आप जानते भी होंगे जिंदगी को हम जिस तरह से दिशा देते हैं वो उस तरह से ही ढल
जाति है हम जिस इंसान के बारे मे बात करने जा रहे है वो ना तो किसी तरह की शक्तियों का मालिक है और नहीं कोई सुपर स्टार है वो तो सिर्फ एक मामूली सा इंसान है जिसको अपना घर चलाने के लिए सिपाही की नौकरी करनी पड़ती है जिसके चलते वह कुछ सालो तक अपने घर नहीं जा पाता है उसके घर मे उसकी काफी बुढ़ी माँ होती है जिसको उसने बहुत सालो से देखा नहीं था इसी बीच उससे छोटी सी गलती होने पर उसको नौकर से निकाल देते है ये कह कर के "तुम्हारी नौकरी का समय पूरा हो गया है अब तुम आजाद हो जहां चाहो जा सकते हो।"

बेचारा सिपाही वहां से कुछ सोचता हुआ चलता जा रहा था ," मैने इतने साल तक देश की सेवा की और इसके लिए मुझे खाने के लिए कुछ अच्छा सा भी नहीं दिया गया बदले में मुझे क्या मिला ?

बस रास्ते के लिए सिर्फ तीन रोटी अब मै क्या करूं ? कहां जाऊं ? मेरे लिए सिर छिपाने को भी कोन सी जगह है?





खैर ,अब घर चलूं । देखूं मेरी माँ अभी जीवित है या उन्हें कुछ होतो नहीं गया मेने तो उन्हें बहुत सालो से देखा भी नहीं है वो किस हाल में होंगी
ये सब सोचते सोचते

सिपाही अपने घर की और रवाना हो गया । वह चलता जा रहा था थोड़ी दूर निकल जाने पर उसको भूक लगने पर दो रोटी उसने खा ली थी बस एक बच रही थी ,हालांकि अभी उसे बहुत दूर जाना था ।

रास्ते में उसे एक भिखारी मिला ।





बोला , अरे बेटा, इस कंगले बूढ़े को भी कुछ देते जाओ।"

सिपाही ने अपनी आखिरी रोटी निकालकर बूढ़े भिखारी को दे दी उसने सोचा मै तो ठहरा सिपाही जैसे तैसे समय काट लूंगा मगर यह बेचारा कंग्ला बुढ़ा क्या करेगा ? उसने अपने सिगार में तम्बाकू भरा एक दम लगाया ओर आगे चल दिया वह चलता जाता था और दम लगता जाता था। , चलता गया चलते चलते उसे सड़क के किनारे एक झील दिखाई दी उसमें कुछ जंगली बतखें किनारे के बिल्कुल नजदीक तेर रही थीं।

सिपाही ने दबे पांव उनके पास पहुंचा और मौका देखकर उसने तीन बतखें पकड़ ली। "चलो , खाने का तो कुछ इंतजाम हो गया ।"

उसने फिर अपनी राह पर निकल लिया थोड़ी ही दूर चलने के बाद वह एक शहर में पहुंच गया उसने एक ढाबा देखा और ढाबे वाले को "

ये तीनों बतखें देकर कहा । एक मेरे लिए पक्का दो दूसरी तुम्हारी मेहनत के बदले में है तीसरी के बदले में खाने के साथ मुझे थोड़ी सी शराब दे देना ।"

जब तक सिपाही ने अपना झोला बगेरा खोला और थोड़ा आराम किया तब तक खाना तैयार हो गया ।
उसने खूब धीरे धीरे मज़ा ले लेकर खाया ओर फिर ढाबे वाले से पूछा " गली के उस पार वह नया मकान किसका है?"

To be continue...

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