Kalvachi-Pretni Rahashy - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(४)

कुशाग्रसेन ने सोचा क्यों ना वो उसी झरने के समीप वाले वृक्ष के तले रात्रि बिताएं जिस स्थान पर वो रात्रि बिताई थी,यही सोचकर वो उस झरने के समीप बढ़ चला,अग्निशलाका(मशाल) का प्रकाश उन्हें मार्ग दिखाता चला जा रहा था और वें उस ओर बढ़े चले जा रहे थे.....
कुछ समय पश्चात वें झरने के समीप पहुँचे एवं उन्हें वो वृक्ष भी दिखा,उन्हें उस वृक्ष तले आता देखकर मोरनी बनी कालवाची के मुँख पर प्रसन्नता के भाव प्रकट हुए एवं उसने कौत्रेय को निंद्रा से जगाया,कौत्रेय भी अभी कठफोड़वे के रूप में था,जागते ही कौत्रेय ने कालवाची से पूछा....
मुझे क्यों जगाया?मैं कितना अच्छा स्वप्न देख रहा था....
अरे!वृक्ष तले देखो कौन आया है?कालवाची बोली...
आने दो जो भी आया है,मुझे नहीं देखना,मुझे सोने दो,कौत्रेय बोला....
अरे!देखो तो वही नवयुवक आया है,कालवाची बोली....
तब आँखें मलते हुए कौत्रेय बोला....
कौन नवयुवक?वही जिससे तुम प्रेम करती हो..
हाँ!वही!देखो वो रहा वृक्ष तले,कालवाची बोली....
तब कौत्रेय ने अग्निशलाका के प्रकाश में कुशाग्रसेन का रूप देखा और उसे देखकर कालवाची से बोला....
अत्यन्त सुन्दर है ये नवयुवक तो,तभी तो तुम इस पर अपना हृदय हार बैठी....
है ना सुन्दर!अब तुम्हें विश्वास हुआ,कालवाची बोली...
हाँ!विश्वास हो गया मेरी माँ!अब कृपा करके विश्राम करो और मुझे भी विश्राम करने दो,कौत्रेय बोला....
मेरी निंद्रा तो इस नवयुवक ने हर ली है,अब मुझे रात्रि भर निंद्रा नहीं आने वाली,कालवाची बोली....
ओहो...मैं तो चला सोने,तुम सोओ चाहे ना सोओ और इतना कहकर कौत्रेय पुनः सो गया...
इधर वृक्ष पर कालवाची एवं कौत्रेय के मध्य चल रहे वार्तालाप को कुशाग्रसेन ने सुना तो उसने सोचा मुझे क्या लेना देना, पंक्षी आपस में वार्तालाप कर रहे होगें,इनका वार्तालाप तो मेरी समझ से परे है,इसके पश्चात कुशाग्रसेन ने वृक्ष के तले अग्निशलाका की सहायता से लकड़ियों में अग्नि प्रज्वलित की और वहीं विश्राम करने लगें,वें रात्रि भर नहीं सोएं,उन्होंने सोचा ऐसा ना हो कि मैं सो जाऊँ और वो हत्यारा पुनः किसी और की हत्या कर दे ,इसलिए जब भी उन्हें निंद्रा घेरने लगती तो वें झरने पर जाकर अपना मुँख धो लेते,इसी प्रकार जागकर उन्होंने सम्पूर्ण रात्रि ब्यतीत कर दी,कालवाची भी सम्पूर्ण रात्रि सो ना सकी,केवल कुशाग्रसेन को ही निहारती रही,जब सूरज ने धरती पर अपना प्रकाश बिसरित किया,तभी उन्होंने राजमहल की ओर प्रस्थान करने का सोचा,उन्हें जाता हुआ देखकर कालवाची ने शीघ्रता से कौत्रेय को जगाया और उससे बोलीं....
जाओ उस नवयुवक का पीछा करो,ज्ञात करो कि वो कहाँ रहता है?
कालवाची के आदेश पर कौत्रेय बिना बिलम्ब किए कुशाग्रसेन के पीछे पीछे उड़ चला,वो तो एक पक्षी था,भला कुशाग्रसेन कैसें ज्ञात कर पाते कि वो कौन है?इसलिए उन्होंने उस पर तनिक भी ध्यान ना दिया,कुछ समय पश्चात कुशाग्रसेन ने राजमहल में प्रवेश किया ,वे राजमहल के भीतर पहुँचे तो कौत्रेय भी उनके पीछे पीछे उड़ चला एवं राजमहल के सबसे ऊँचें कंगूरे पर बैठकर कुशाग्रसेन की गतिविधियों पर दृष्टि रखने लगा,कुछ समय में उसे ज्ञात हुआ कि ये नवयुवक कोई साधारण व्यक्ति नहीं है,ये तो वैतालिक राज्य का राजा है जो उस हत्यारे को खोजने वन में गया था जो हत्यारा आए दिन वैतालिक राज्य में हत्याएँ कर रहा है,अब कौत्रेय सोच में पड़ गया कि वो ये सब कालवाची से कैसे कहेगा?एवं यही सब सोचकर वो राजमहल से वन की ओर चल पड़ा....
वो वृक्ष पर लौटा और साहस करके उसने कुशाग्रसेन के विषय में सभी कुछ कह दिया,अब कालवाची अत्यधिक चिन्तित हो उठी,उसे अब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वो कुशाग्रसेन के विषय में कुछ ना ही जानती तो अच्छा रहता,कौत्रेय ने जब कालवाची का मलिन मुँख देखा तो वो उससे बोला....
कालवाची !तुम इतनी उदास मत हो,मैं राजा से तुम्हारा मिलन करवा कर रहूँगा....
किन्तु ये सम्भव नहीं है,कालवाची चिल्लाई....
इस संसार में कुछ भी असम्भव नहीं है कालवाची!कौत्रेय बोला....
ये कैसीं बातें कर रहे हो कौत्रेय!वो मुझ हत्यारिन को खोज रहे हैं और वें मुझसे प्रेम करेगें,मुझे स्वीकार करेगें,ऐसा कैसें हो सकता है?कालवाची बोली....
तुम्हें अपने इस मित्र पर तनिक भी विश्वास नहीं,कौत्रेय बोला.....
किन्तु विश्वास करने हेतु कोई आधार तो होना चाहिए,इस निराधार वार्तालाप का कोई हल नहीं है,कोई समाधान नहीं!,कालवाची बोली...
यदि मैं इस निराधार को आधार दे पाऊँ तो!कौत्रेय बोला....
मूर्खों जैसी बातें मत करो,कालवाची बोली....
मैं अपनी मित्र के लिए कुछ भी कर सकता हूँ,इसके लिए मुझे चाहे कुछ भी करना पड़े,कौत्रेय बोला....
ऐसा क्या करोगे तुम?कालवाची ने पूछा...
बस तुम मुझ पर विश्वास रखो,कौत्रेय बोला....
विश्वास....कैसें करूँ तुम पर विश्वास?,कालवाची बोली....
जिस प्रकार एक माँ अपने पुत्र पर विश्वास करती है,कौत्रेय बोला....
मैं तुम्हारी भावनाओं में बहने वाली नहीं,कालवाची बोली....
बस!एक बार मेरी बात मान लो,मैं सब ठीक कर दूँगा,कौत्रेय बोला....
क्या करना होगा मुझे?कालवाची ने पूछा....
तुम मुझे पुनः मनुष्य रूप में परिवर्तित कर दो,कौत्रेय बोला....
इसके उपरान्त तुम क्या करोगे?कालवाची ने पूछा....
तुम बस देखती जाओ,मैं कैसी योजना बनाता हूँ,कौत्रेय बोला.....
अपनी योजना मुझे भी तो बताओ,कालवाची बोली....
पहले तुम मुझे मनुष्य रूप में परिवर्तित करो,कौत्रेय बोला...
और इसके पश्चात कालवाची ने कौत्रेय को मानव रूप में परिवर्तित कर दिया,तब कौत्रेय ने अपनी योजना के विषय में कालवाची से कहा और अपनी योजना बताकर कौत्रेय मानव रूप में पुनः राजमहल की ओर बढ़ चला...
कुछ समय पश्चात वो राजमहल पहुँचा और रजमहल के मुख्य द्वार की सुरक्षा में लगे पहरेदारों से बोला....
मुझे महाराज से भेट करनी है...
किन्तु!क्यों!अपना कारण बताओ,एक पहरेदार ने पूछा....
राज्य में जो हत्याएँ हो रहीं हैं उस विषय में महाराज को कुछ बताना है,कौत्रेय बोला....
लेकिन तुम कौन हो?और तुम्हारा उन हत्याओं से क्या सम्बन्ध है?दूसरे पहरेदार ने पूछा...
मेरा उन हत्याओं से कोई सम्बन्ध नहीं है,बस मुझे उस हत्यारे के विषय में कुछ ज्ञात हुआ है और वही जानकारी में महाराज से कहने आया हूँ,कौत्रेय बोला...
तुम्हारे पास इसका कोई प्रमाण है क्या है?पहले पहरेदार ने पूछा...
वो तो मैं महाराज को ही बताऊँगा,मुझे तुम लोगों पर भरोसा नहीं है,कौत्रेय बोला...
तब दूसरा पहरेदार कौत्रेय से बोला...
तुम यही द्वार पर ठहरो ,मैं अभी महाराज को तुम्हारा संदेश देकर आता हूँ...
और इतना कहकर वो पहरेदार राजमहल के भीतर गया एवं महाराज के कक्ष के समीप जाकर बोला.....
महाराज की जय हो!कोई व्यक्ति राजमहल के मुख्य द्वार पर आया है एवं कहता है कि वो उस हत्यारे के विषय में कुछ कहना चाहता है.....
ये सुनकर कुशाग्रसेन एकाएक चौंककर बोलें....
हत्यारे के विषय में कुछ बताना चाहता है तो उसे शीघ्रता से राजमहल के भीतर लाओ,मैं अभी इसी समय उससे भेट करना चाहता हूँ,उसे अतिथिगृह में बैठाओ,मैं शीघ्र ही वहाँ पहुँचता हूँ.....
और कुशाग्रसेन के आदेश पर पहरेदारों ने कौत्रेय को अतिथिगृह में पहुँचा दिया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....


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