Kalvachi-Pretni Rahashy - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(५)

कौत्रेय अतिथिगृह में बैठा राजा की प्रतीक्षा करने लगा,कुछ समय पश्चात कुशाग्रसेन अतिथिगृह पहुँचे और कौत्रेय से पूछा.....
जी!आपका शुभ नाम जान सकता हूँ...
जी!मेरा नाम कौत्रेय है,कौत्रेय बोला...
आप को उस हत्यारे के विषय में क्या क्या ज्ञात है?कुशाग्रसेन ने पूछा.....
जी!मुझे तो केवल इतना ज्ञात है कि उस हत्यारे को एक युवती ने देखा था और मुझे उसने ही बताया कि उसने हत्यारे को देखा है,कौत्रेय बोला....
युवती ने देखा....किस युवती ने देखा.....कहाँ रहती है वो....?कुशाग्रसेन ने पूछा...
वो वन में मिली थी मुझे तभी उसने मुझसे ये बात कही थी,किन्तु वो कहाँ रहती है ये तो मुझे भी नहीं ज्ञात,कौत्रेय बोला....
यदि तुम्हें नहीं ज्ञात की कि वो युवती कहाँ रहती है तो उस हत्यारे विषय में मुझे कुछ कैसें ज्ञात होगा? कुशाग्रसेन बोले...
मैं उस युवती से मिल चुका हूँ,मुझे उसका निवासस्थान तो ज्ञात नहीं है किन्तु वो वन में लकड़ियाँ लेने आती है,तभी उसने मुझे उस हत्यारे के विषय में बताया था,कौत्रेय बोला.....
तो तुम उस युवती से मुझे मिलवा सकते हो,कुशाग्रसेन ने पूछा....
जी!यदि आपको उचित लगे तो कल मैं उस युवती को राजमहल में ले आऊँ,कौत्रेय बोला....
ना!ऐसा मत करना,उसे राजमहल में लाने की भूल मत करना,मैं नहीं चाहता कि इस विषय में किसी को भी कुछ भी ज्ञात हो,कुशाग्रसेन बोले...
किन्तु !क्यों महाराज?कौत्रेय ने पूछा....
वो इसलिए कि कहीं हत्यारे तक ये बात पहुँच गई तो वो सतर्क हो जाएगा एवं उसके विषय में हम सब कभी नहीं जान पाऐगें,कुशाग्रसेन बोलें....
तो अब क्या विचार है आपका?अब क्या सोचा है आपने?कौत्रेय बोला....
मैं उस युवती से एकान्त में मिलकर वार्तालाप करना चाहता हूँ,क्या ऐसा हो सकता?तुम ये कार्य कर सकते हो?कुशाग्रसेन ने पूछा...
जी!महाराज!जैसी आपकी आज्ञा,आप जैसा चाहते हैं मैं वैसा करने का प्रयास करूँगा,मैं उस युवती से वार्तालाप करके आपको सूचित करता हूँ कि आप उस युवती से कब मिल सकते हैं,कौत्रेय बोला....
यही उचित रहेगा,तुम शीघ्र ही उस युवती से मिलकर,मेरा उससे मिलने का समय निश्चित करो,कुशाग्रसेन बोलें...
जी महाराज!मैं आपके आदेश का पालन करूँगा,कौत्रेय बोला...
तो तुम इस समय यहाँ से प्रस्थान करो और इतना ध्यान रखना कि इस विषय में किसी को भी कुछ भी ज्ञात ना हो,पहरेदारों को तुमने बता दिया,किन्तु यहाँ से जाते समय तुम उनसे कहना कि ऐसी कोई बात नहीं है,तुमने उनसे झूठ बोला क्योंकि तुम्हें राजा से भेट करनी थी,कुशाग्रसेन ने कहा...
जी!मैं ऐसा ही करूँगा,आप निश्चिन्त रहें,कौत्रेय बोला...
इतना कहकर कौत्रेय राजमहल से बाहर चला गया एवं जाते समय पहरेदारों से उसने वही कहा जो राजा ने उनसे कहने को था,कौत्रेय वन में पहुँचा और कालवाची से बोला....
तो कालवाची देवी!अब आप अपने रूप और लावण्य को सँवार लीजिए,क्योंकि आपसे महाराज मिलना चाहते हैं,यदि आप उनके मन को भा गईं तो आपका स्वप्न पूर्ण होने में अधिक समय नहीं लगेगा,
कौत्रेय!ये तुम क्या कह रहे हों?कालवाची बोली...
हाँ!सच कह रहा हूँ,कालवाची!कौत्रेय बोला....
किन्तु!मैं राजा के समक्ष कैसें जाऊँगी,मेरे भीतर इतना साहस ही नहीं है,कालवाची बोली...
इतना साहस तो करना ही होगा तुम्हें,कौत्रेय बोला....
ठीक है प्रयास करूँगी,किन्तु महाराज मुझसे कब मिलना चाहते हैं?कालवाची ने पूछा...
जब तुम्हारी इच्छा हो,कहो तो कल ही मिलने का संदेशा उनको दे आऊँ,कौत्रेय बोला...
मैं तनिक सोचकर बताती हूँ,कालवाची बोली...
और दोनों आपस में वार्तालाप करने लगे,इसी प्रकार सायंकाल हो चली,उधर राजमहल में कुशाग्रसेन चिन्तित से अपने कक्ष में टहल रह थे तभी उनकी रानी कुमुदिनी ने उनसे पूछा...
क्या हुआ महाराज?आप इतने चिन्तित क्यों प्रतीत हो रहे हैं....
क्या बताऊँ?इस समस्या का कोई समाधान नहीं मिल है,आए दिन वैतालिक राज्य में हत्याएँ हो रहीं हैं और मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ,कैसें पकड़ू उस हत्यारे को कुछ समझ नहीं आ रहा है,कुशाग्रसेन बोलें....
महाराज!आप कह रहे थ कि कल रात्रि आपको किसी का शव वन में मिला था,तो आप पुनः उसी स्थान पर उस हत्यारे को खोजने क्यों नहीं जाते?रानी कुमुदिनी बोली...
कल रात्रि भर मैं वन में रहा किन्तु वहाँ कोई भी गतिविधि होती दिखाई नहीं दी,कुशाग्रसेन बोलें...
तो उस स्थान पर पुनः जाने में कोई बुराई तो नहीं,आप जाकर देखिए ना!कदाचित कुछ चिन्ह् मिल जाएं,रानी कुमुदिनी बोली...
आप कहतीं हैं तो मैं पुनः प्रयास करके देखता हूँ,कदाचित आज रात्रि कुछ हाथ में आता दिख जाए,कुशाग्रसेन बोलें...
मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है,आपको सफलता अवश्य मिलेगी,रानी कुमुदिनी बोली....
यदि ऐसा हो जाएं तो मेरे राज्य में पुनः खुशहाली लौट आएगी,कुशाग्रसेन बोलें....
ऐसा ही होगा महाराज!इस राज्य में पुनः खुशहाली लौटेगी,जिस राज्य का राजा अपने राज्यवासियों की इतनी चिन्ता करता तो वहाँ कभी कष्टों का बसेरा हो ही नहीं सकता,रानी कुमुदिनी बोली...
दोनों के मध्य यूँ ही वार्तालाप चलता रहा,रात्रि हुई तो राजा कुशाग्रसेन वन की ओर चल पड़े,उस रात्रि भी वें उसी झरने के समीप उसी वृक्ष के तले विश्राम करने हेतु ठहरें,उस रात्रि कालवाची अपने भोजन हेतु
उस वृक्ष से नीचे ना उतरी थी क्योंकि अभी उसे दो तीन दिन तक भोजन की आवश्यकता नहीं थी,कौत्रेय भी वहीं पर था और दोनों मोरनी और कठफोड़वें के रूप में ही थे,कालवाची कुशाग्रसेन को पुनः निहारने लगी तो उसकी व्याकुलता देखकर कौत्रेय कालवाची से बोला...
चलो पहले इस वृक्ष से उतरकर दूर चलते हैं...
परन्तु क्यों?मैं कहीं नहीं जाने वाली,मैं तो इसी वृक्ष से राजा को देखूँगी,कालवाची बोली....
मैं तुम्हारी इसी समस्या का समाधान तो करने वाला हूँ,कौत्रेय बोला...
भला!मेरी ये समस्या तुम कैसें हल करोगें?तुम कोई दृष्टिबंधक(जादूगर)तो नहीं,कालवाची बोली...
पहले तुम मेरे साथ उड़ चलो ,इसके उपरान्त मैं अपनी योजना तुम्हें समझाता हूँ,कौत्रेय बोला...
और कौत्रेय के कहने पर कालवाची उसके साथ उड़ चली,कुछ दूर जाने पर कौत्रेय बोला...
बस,इतनी दूर ठीक है,अब तुम मुझे एक मनुष्य में परिवर्तित करो और स्वयं को सुन्दर युवती में...
किन्तु क्यों?कालवाची ने पूछा..
पहले तुम परिवर्तित तो करो,कौत्रेय बोला...
और कालवाची ने दोनों का रूप परिवर्तित कर दिया,अब कौत्रेय बोला...
एक अग्निशलाका प्रज्वलित करो और मेरे संग उस स्थान पर चलो जहाँ महाराज विश्राम कर रहे हैं...
मैं वहाँ नहीं जाऊँगी,कालवाची बोली...
परन्तु क्यों?मैं तुम्हें उनसे मिलवाना चाहता हूँ और तुम हो कि तत्पर नहीं हो,कौत्रेय बोला...
तुमने तो इस कार्य हेतू मुझसे समय माँगा था,किन्तु तुम तो ये कार्य इतनी शीघ्र करने जा रहे हो,कालवाची बोली...
मुझे कोई शीघ्रता नहीं है,शीघ्रता तो तुम्हें हैं,तुम ही व्याकुल हुई जा रही हो तभी तो मैनें ऐसा निर्णय लिया,कौत्रेय बोला...
वहाँ जाना आवश्यक है क्या?कालवाची ने पूछा...
मुझसे क्या पूछती हो?अपने हृदय से पूछो,कौत्रेय बोला.....
और कौत्रेय की बात मानकर कालवाची कुशाग्रसेन के समीप उनसे मिलने पहुँची,वहाँ पहुँचकर कौत्रेय ने कुशाग्रसेन के समक्ष अभिनय करते हुए कहा....
महाराज....महाराज....आप यहाँ है,अच्छा हुआ जो मैं आपको खोजते हुए यहाँ आ पहुँचा...
किन्तु तुम्हें किसने सूचित किया कि मैं यहाँ हूँ और ये तुम्हारे संग कौन है,ये अपना मुँख उस ओर करके क्यों खड़ी है,कुशाग्रसेन ने पूछा....
मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि आप मुझे यहाँ मिलेगे,क्योंकि कल रात्रि यहाँ मृत शरीर मिला था और ये वही युवती है जिसने उस हत्यारे को देखा था,ये मुझे मार्ग में मिल गई तो सोचा आपसे इसका वार्तालाप करवा ही देता हूँ,आपसे भयभीत है इसलिए उस ओर अपना मुँख करके खड़ी है,मैं अभी इससे कहता हूँ कि इस ओर मुँह करके खड़ी हो तभी कौत्रेय ने कालवाची से कहा...
ए...युवती!अपना मुँख इधर करो,महाराज तुमसे कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहते हैं...
और इतना सुनते ही कालवाची ने अपना मुँख राजा कि ओर किया तो राजा उसके रूप को देखकर आश्चर्यचकित हो उठे एवं नयनपट(पलक) बिना झपकाएं उसे देखते ही रह गए.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....