Kalvachi-Pretni Rahashy - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

कालवाची--प्रेतनी रहस्य--भाग(८)

कुशाग्रसेन के मुँख पर चिन्ता के भाव देखकर सेनापति व्योमकेश बोले....
महाराज!ऐसे चिन्तित होने से कुछ नहीं होने वाला,अब तो उस हत्यारे को बंदी बनाना अनिवार्य हो गया है,हम ऐसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते....
सेनापति व्योमकेश आप इतने उत्तेजित क्यों हो रहे हैं?क्या उस हत्यारे को बंदी बनाना इतना कठिन है,राजनर्तकी मत्स्यगन्धा ने पूछा....
राजनर्तकी मत्स्यगन्धा आप यहाँ कैसें?सेनापति व्योमकेश ने पूछा.....
जी!मैं तो कालिन्दी के विषय में महाराज से वार्ता करने आई थी,किन्तु यहाँ आकर देखती हूँ कि महाराज तो किसी और ही समस्या से घिरे हुए,मैने उन्हें एक और समस्या बता दी....मत्स्यगन्धा बोली...
ओह....महाराज के पास इससे बड़ी और कोई समस्या हो सकती है भला! किन्तु मुझे भी बताएं कि ऐसी और कौन सी समस्या आन पड़ी है महाराज पर,सेनापति व्योमकेश ने मत्स्यगन्धा से पूछा....
जी!सेनापति व्योमकेश बात कुछ ऐसी है कि दो दिन पहले महाराज मेरे शीशमहल में एक युवती को लाए थे ,जिसका नाम कालिन्दी है,समस्या ये है कि वो भोजन ही नहीं करती,ना जाने क्या कारण है उसके भोजन ना करने का,मत्स्यगन्धा बोली....
ओह....किन्तु महाराज!आपने मुझे इस विषय में कुछ नहीं बताया,सेनापति व्योमकेश ने महाराज कुशाग्रसेन से कहा...
जी!एक तो मुझे आपको बताने का अवसर नहीं मिला,इसके अतरिक्त मैं ये चाहता था कि ये बात गुप्त रहे तो ही अच्छा,महाराज कुशाग्रसेन बोले....
किन्तु जो बात चिन्ता का विषय बन जाएं तो उसे और किसी से तो नहीं किन्तु राज्य के सेनापति से तो कही ही जा सकती है,सेनापति व्योमकेश बोलें...
आप कदाचित ठीक कह रहे हैं सेनापति व्योमकेश,मुझसे बड़ी भूल हो गई,जो आपसे ना कह सका,महाराज कुशाग्रसेन बोले....
तो अब क्या सोचा है आपने इस कालिन्दी के विषय में?व्योमकेश ने महाराज कुशाग्रसेन से पूछा.....
मैनें से अभी तक कुछ सोचा ही नहीं,क्योंकि ये तो राजनर्तकी मत्स्यगन्धा ने अभी मुझे बताई है,कुशाग्रसेन बोलें....
तभी रानी कुमुदिनी बोलीं....
महाराज!मेरे मस्तिष्क में एक विचार आया है,यदि आपकी आज्ञा हो तो कहूँ....
जी!रानी!निःसंकोच आप अपने विचार हम सबके समक्ष प्रकट कर सकतीं हैं,कुशाग्रसेन बोलें....
महाराज!मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं वो हत्यारिन कालिन्दी तो नहीं,रानी कुमुदिनी बोली....
क्षमा करें महारानी!किन्तु वो हत्यारिन यदि कालिन्दी है तो वो राजमहल के समीप क्यों आना चाहेगी भला,उसे तो भय होना चाहिए राजमहल के समीप रहते,सेनापति व्योमकेश बोलें...
तभी मत्स्यगन्धा बोली....
सेनापति व्योमकेश!कहीं ऐसा तो नहीं वो हम सबके समक्ष हमारे रहस्यों को ज्ञात करने आई हो,कदाचित ये ज्ञात करने आई हो कि हम उसे बंदी बनाने हेतु कौन कौन से क्रियाकलाप कर रहे हैं....
कदाचित यही सत्य है,राजनर्तकी मत्स्यगन्धा! रानी कुमुदिनी बोली....
हाँ!यही हो सकता है महाराज!तभी तो कोई प्राणी बिना भोजन ग्रहण किए कैसें रह सकता है?हो ना हो वो कोई मायावी शक्ति है,सेनापति व्योमकेश बोलें....
किन्तु वो हत्यारिन है तो कौत्रेय कौन है?कौत्रेय का उसके साथ क्या सम्बन्ध हो सकता है?महाराज कुशाग्रसेन बोलें....
अब ये कौत्रेय कौन है?सेनापति व्योमकेश ने पूछा...
तब मत्स्यगन्धा बोली....
सेनापति व्योमकेश!वो कालिन्दी का साथी है,मुझसे तो कह रहा कि उसकी पत्नी बड़ी ही निर्दयी है,इसलिए उसने महाराज से कालिन्दी के समीप रहने की अनुमति माँगी और महाराज ने दे दी....
उसने मुझसे तो यही कहा था,कुशाग्रसेन बोलें....
किन्तु आपको कालिन्दी कहाँ मिली?सेनापति व्योमकेश ने पूछा...
जी!उससे तो मुझे कौत्रेय ने मिलवाया था,महाराज कुशाग्रसेन बोलें...
महाराज!अवश्य ही कोई गहरा षणयन्त्र रचा है दोनों ने मिलकर,मुझे तो उन दोनों पर ही संदेह हो रहा है,हमारे राज्य में होने वाली हत्याओं का कारण वें दोनों ही हो सकते हैं,सेनापति व्योमकेश बोले.....
अब तो मुझे भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा है,राजा कुशाग्रसेन बोलें...
किन्तु!महाराज!आपके पास ऐसा कोई ऐसा प्रमाण है,जिसे ये सिद्ध हो सकें कि वें दोनों ही षणयन्त्र रच रहे हैं,मत्स्यगन्धा ने पूछा...
ऐसा तो कोई प्रमाण नहीं है मेरे पास,महाराज कुशाग्रसेन बोलें...
किन्तु कोई तो योजना बनानी ही पड़ेगी ताकि ये प्रमाणित हो सके़ कि वें दोनों ही इस राज्य के शत्रु हैं,रानी कुमुदिनी बोलीं...
किन्तु ऐसी क्या योजना हो सकती है?मत्स्यगन्धा ने पूछा...
महाराज!यदि आपत्ति ना हो तो मैं एक योजना सुझाऊँ,सेनापति व्योमकेश बोलें...
वो क्या सेनापति जी?महाराज कुशाग्रसेन ने पूछा....
आप कालिन्दी से झूठे प्रेम का अभिनय करके उसके हृदय के भेद ज्ञात कर सकते हैं,सेनापति कुशाग्रसेन बोले....
ये मैं कैसें कर सकता हूँ,माना कि वो सुन्दर ,सुशील एवं सभ्य भी है,किन्तु प्रेम....ये मैं नहीं कर सकता,मेरा परिवार है,मैं अपनी रानी के अतरिक्त किसी और का विचार अपने मन में कैसे ला सकता हूँ,महाराज कुशाग्रसेन बोलें....
किन्तु!महाराज!मुझे इसके अतरिक्त और कोई मार्ग नहीं दिख रहा है,सेनापति व्योमकेश बोले....
परन्तु!महाराज आपको क्या आपत्ति है ?कुमुदिनी ने पूछा...
रानी कुमुदिनी!समझने का प्रयास कीजिए,वो अत्यन्त ही सुन्दर है,ऐसा रूप देखकर तो कोई भी अपने वश में ना रहे,पहले मैं समझता था कि वो कोई साधारण स्त्री है किन्तु अब ऐसा प्रतीत होता है कि वो कोई मायाविनी है और मायाविनियाँ ही इतनी सुन्दर होतीं हैं,उसने मुझे अपने वश में कर लिया तो,महाराज कुशाग्रसेन बोलें....
महाराज!यहाँ आप अपने विषय में सोच रहे हैं,तनिक राज्य पर आए संकट के विषय में भी तो सोचिए,कितने ही निर्दोष प्राणियों की हत्या हो चुकी है,आप यदि ऐसा नहीं कर सकते तो मुझे अनुमति दीजिए कि मैं उससे प्रेम का अभिनय करूँ,सेनापति कुशाग्रसेन बोले....
अनुमति है,सेनापति व्योमकेश!महाराज कुशाग्रसेन बोलें....
ये उचित नहीं है महाराज!महारानी कुमुदिनी बोली...
किन्तु !क्यों रानी?कुशाग्रसेन ने पूछा...
आप इस राज्य के रक्षक हैं,यह कार्य आपको ही करना चाहिए,कुमुदिनी बोली...
मैं किसी पराई स्त्री के समीप जाऊँ ये आपको उचित लगेगा,कुशाग्रसेन ने कुमुदिनी से पूछा...
मुझे आप पर पूर्ण विश्वास,आप कभी भी कुछ भी ऐसा नहीं करेगें जो मेरे हृदय को आघात पहुँचाए,कुमुदिनी बोली...
धन्यवाद रानी!मुझ पर विश्वास करने हेतु,अब मैं ही इस कार्य को पूर्ण करूँगा,कुशाग्रसेन बोलें....
जी!मुझे आपसे ऐसी ही आशा थी,कुमुदिनी बोलीं....
परन्तु!अब योजना क्या होगी?मत्स्यगन्धा ने पूछा....
तब सेनापति व्योमकेश बोले.....
आप पहले शीशमहल जाइएं एवं कालिन्दी से वार्तालाप कीजिए,कुछ ना कुछ तो मिलेगा ही,जिसके मन में चोर होता है ना तो वो कभी दृष्टि से दृष्टि मिलाकर बात नहीं करता,यदि वों ऐसा करें तो समझ जाइएगा कि वो स्त्री नहीं मायाविनी है,
ओह....कदाचित वार्तालाप करते समय यदि उसने कुछ ऐसा किया जिससे मैं स्वयं के वश में ना रहूँ तो,कुशाग्रसेन ने पूछा....
आप चिन्ता मत कीजिए,मैं आज ही अपने तातश्री के मित्र कालभुजंग जी को संदेश भिजवाता हूँ,वें तन्त्रविद्या में सिद्धहस्त हैं,वें जैसे ही शीशमहल के समीप जाऐगें तो उन्हें ज्ञात हो जाएगा कि वहाँ कोई मायावी शक्ति है या नहीं,यदि वो मायावी शक्ति कालिन्दी हुई तो वें उसे वश में करने का कोई ना कोई उपाय अवश्य बताऐगे़, सेनापति व्योमकेश बोले....
किन्तु वें रहते कहाँ हैं?कुशाग्रसेन ने पूछा...
वें नीलाम्बर पहाड़ की कन्दरा में रहते हैं,वहीं पर तप-साधना करते हैं,संकट में पड़े हुए व्यक्तियों की सहायता करने हेतु वें सदैव तत्पर रहते हैं,सेनापति व्योमकेश बोलें....
जी!सेनापति व्योमकेश! ये अच्छा है कि आपको उनके विषय में ज्ञात है,उनकी सहायता से हमें इस कार्य को पूर्ण करने में सरलता होगी,किन्तु अब हम सभी को योजना पर विचार विमर्श कर लेना चाहिए,कुशाग्रसेन बोलें....
और फिर सभी मिलकर योजना पर विचार विमर्श करने लगे....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....