Dastak Dil Par - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

दस्तक दिल पर - भाग 13

"दस्तक दिल पर" किश्त-13

बहुत ही असमंजस की स्थिति बनी थी,उस दिन मुझे उससे पहली बार मिलने का मौका मिलने वाला था, पर अचानक ये मीटिंग कहाँ से आ गई.....मैं मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था, “हे भगवान, बस कैसे भी मेरा इस मीटिंग से पीछा छुड़वा दे।”

रिजिनल मैनेजर साहब को आने में देर हो रही थी, और मेरा दिल धड़क रहा था । डेढ़ बज गया था, न रिजिनल मैनेजर आये, ना मीटिंग अटैंड करने वालों का नाम डिसाइड हुआ । हम सब बार बार उनके P.A. से पूछ रहे थे , साहब कब आएंगे? और उसका एक ही जवाब था, साहब का फ़ोन बंद है ।

कुछ देर बाद P.A. ने आकर खुशखबरी सुनाई, साहब आज नहीं आ पाएंगे, वो किसी दूसरी मीटिंग में हैं। अरे वाह.....जैसे मेरी कोई लॉटरी लग गई थी, मैं खुशी से उछल पड़ा। सब मुझे देख कर चौंके और मैं झेंप गया। मैने उसे झट से मैसेज कर दिया "मैं फ्री हूँ।" उसने मैसेज किया "कितना लेट बताते हो, 1.50 हो चुके हैं, मैं आपको अभी जगह डिसाइड करके बताती हूँ।"

कुछ देर बाद उसने बताया, की सेंट्रल पार्क के पास एक कॉफी हाउस है, कॉफी न कन्वर्स वहाँ मिलिए। मैं जल्द से अपना बैग उठा कर निकल लिया, उस रोज़ मैंने ब्लू शर्ट और जीन्स पहनी थी, और रे बेन का छापे वाला डुप्लीकेट चश्मा लगा रखा था। कोई भी मुझे देखकर कह सकता था कि नकली चश्मा लगाया हुआ है। ख़ैर....चश्मा मुझे बहुत सूट करता है, ऐसा उसी ने बताया था।

मैंने ऑटो किया और चल पड़ा , वो भी निकल गई थी। वो जगह उसके घर से उतनी ही दूर थी, जितना मेरे ऑफ़िस से थी पर वो मुझसे पन्द्रह मिनट पहले ही पहुँच गई थी, मैं लेट था और वो मेरा इन्तज़ार कर रही थी। ऑटो वाले ने जैसे ही मुझे निश्चित स्थान पर ड्रॉप किया , मैं झट से उस बड़े से मॉल की ओर बढ़ गया,कैफ़े जिसकी तीसरी मंजिल पर था। मैं लिफ़्ट में सवार हो गया, चश्मा अभी भी मेरे चेहरे की शोभा बना हुआ था। वैसे तो लिफ़्ट में धूप का चश्मा लगाए रखना बेवकूफ़ी ही है, पर मुझे उससे मिलने के अलावा कुछ और ध्यान ही नहीं था।

लिफ़्ट जैसे ही तीसरी मंज़िल पर जाकर रुकी और मैं लिफ़्ट से बाहर निकला तो वहाँ पर बाईस से चौबीस साल के बीच की तीन लड़कियाँ लिफ़्ट का वेट कर रही थीं। मुझे बाहर निकलता देख और मेरा डुप्लीकेट चश्मा देख एक लड़की ने गाना गा दिया “हूण, हूण दबंग दबंग।” मुझे तुरन्त गाना सूझ गया “मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए....” पर मैंने जवाब नहीं दिया मुझे स्त्री जात का अपमान करना अच्छा नहीं लगता था। वो लड़कियाँ मेरा मज़ाक़ उड़ा कर, खिलखिलाते हुए लिफ़्ट में सवार हो गईं।

मैं अपनी ही धुन में कैफ़े की तरफ़ बढ़ गया, मेरी धड़कने शोर कर रही थीं। आज पहली बार मैं उससे मिलने वाला था, वो भी इन्तज़ार कर रही थी मेरा.... मैंने कॉल किया , "आप किस तरफ़ बैठी हो?" उसने बताया "आप जिस तरफ़ से एंटर करोगे उसके ठीक बाएँ, विंडो के पास.... मैंने गुलाबी सूट पहना है।" मैंने कहा "मैंने ब्लू शर्ट पहना हुआ है।"

मैं कैफ़े में प्रवेश कर गया, बाईं ओर देखा, विंडो के पास एक अप्सरा जैसी दिखने वाली खूबसूरत सी महिला बैठी हुई थी। उसे देखते ही मेरी हिम्मत जवाब दे गई। कैफ़े में प्रवेश करने से पहले मैंने चश्मा उतार लिया था। मैं उसकी ओर बढ़ गया, वो मुझे देख मुस्कुराई, मैं भी मुस्कुरा दिया। मैंने दोनों हाथ जोड़कर उसे 'नमस्ते' कहा उसने भी 'नमस्ते' का जवाब दिया।

मैं उसके सामने वाली सीट पर जाकर बैठ गया, उसने पूछा आने में तकलीफ़ तो नहीं हुई? मैंने ना में गर्दन हिला दी। उसने कहा पानी पीजिए, शायद वो समझ गई मैं नर्वस हो चला हूँ, मैं जिन्दगी मैं कभी भी इतने महंगे कैफ़े में और वो भी किसी महिला के साथ कभी नहीं गया था। मैंने पानी पिया और अपने माथे पर चुहचुहा आये पसीने को पोंछा। हालांकि पूरा मॉल ही एयरकंडीशन्ड था पर मुझे पसीना आ ही गया था।

उसने पूछा, "और....ऑफ़िस में सब ठीक है?"

मैंने हौले से "हाँ" कह दिया, वास्तविक बात तो ये थी कि मैं उसके व्यक्तित्व के सामने बिल्कुल ही साधारण लग रहा था, और इसलिए खुद को बहुत असहज महसूस कर रहा था। वो मेरे लिए एक बोतल में ज्यूस लेकर आई थी, उसने कहा "क्या लेंगे?"

"मुझे यहाँ का कुछ नहीं पता, जो आप कहें, ऑर्डर कर दीजिए।" मैंने कहा।

उसने कहा "पहले कॉफ़ी आर्डर करेंगे, उसके साथ स्नैक्स जो आप कहें, फिर मैं आपके लिए ये ज्यूस लेकर आई हूं वो पियेंगे।" मैंने कहा "आप जो मन मंगवा लें....उसने कहा नहीं, आपकी मर्ज़ी का खाएँगे आज।"

उसने मेरी ओर मेन्यू बढ़ा दिया। मैं सबसे कम कीमत वाली चीज़ें देख रहा था, और मन ही मन ख़र्चे का आकलन कर रहा था। पेमेंट मुझे ही करना था तो जेब देखनी भी ज़रूरी थी।

मैंने देखा उस मेन्यू के हिसाब से मेरी जेब बहुत ढीली होने वाली थी, शायद किराया ही कम पड़ जाए वापस जाने का। जाने उसे कैसे क्या आइडिया हुआ उसने मेन्यू मुझसे लेते हुए कहा, "मैं ऑर्डर करती हूँ।" उसने सैंडविच ऑर्डर किये, उसने बताया "यहां के सैंडविच बहुत अच्छे होते हैं, और ये कैफ़े जैसा नाम है वैसा ही है । यहाँ बैठकर हम काफ़ी देर तक बात कर सकते हैं...हाँ, हर घण्टे पर हमारे ऑर्डर के बिल के साथ तीन सौ रुपये जुड़ जाते हैं।"

सुनकर मेरा कलेजा सूख गया, ख़ैर अब जो होगा , देखा जाएगा। मैं उसके पैर देख रहा था , उसने गुलाबी नेल पॉलिश लगाई थी, सफ़ेद रंग के बहुत कीमती सैंडल पहने थे, और उसकी पायजेब बहुत सुंदर थी। उसकी सलवार का रंग सफ़ेद था, उससे ऊपर मैं नहीं देख पा रहा था, वो मेरी असहजता महसूस कर रही थी।

उसने अपने हैंड बैग से एक किताब निकाली “कागज और कैनवस” उसने पूछा आप अमृता प्रीतम को जानते हैं?

मैंने कहा "जी, मैंने उनके बारे में सामान्य ज्ञान की किताब में पढा था, वो... पिंजर नामक उपन्यास लिखा था उन्होंने । उस पर फ़िल्म भी बनी।"

उसने कहा "हाँ , ये कागज और कैनवस किताब अमृता प्रीतम की है , जब तक ऑर्डर सर्व हो हम इसमें से कुछ कविताएं पढ़ते हैं।" उसने एक कविता पढ़ी, इतने में कॉफ़ी सर्व हो गई। मैं अब कुछ खुल गया था, उसने कॉफ़ी पीते हुए अमृता प्रीतम, साहिर और इमरोज़ के बारे में बताया। मुझे पहले ये सब पता नहीं था। मैं उसकी बातों में खो गया,अब मैं नज़र उठाकर उसके चेहरे को देख पा रहा था। कई बार नज़र उठाता फिर झुका लेता।

उसने कॉफ़ी पीने के बाद बताया," देखिये हम बातों बातों में फीकी कॉफ़ी पी गए", मुझे एहसास हुआ कि 'हाँ... कॉफ़ी फीकी थी।' तो उसने कहा "आपने बताया क्यों नहीं?" मैं बोला "आपकी बातों में इतनी मिठास थी, कि मुझे पता ही नहीं चला।" ये सुनकर उसने मुझे नज़र भर कर देखा और फिर मुस्कुरा कर खिड़की से बाहर देखने लगी।

कैफे में बहुत प्यारा आशिकी -2 का गाना चल रहा था, “तू ही ये मुझको बता दे , चाहूं मैं या ना....” यहाँ वहाँ बहुत से जोड़े बैठे थे, सभी जोड़े युवा थे। हम दोनों सबसे अलग दिख रहे थे, एक तो उम्रदराज़.... और वो भी बहुत ही हाई प्रोफाइल.... और दूसरा मैं....साधारण लोअर मिडिल क्लास। उसे तो बिल्कुल असहज नहीं लग रहा था पर मैं बड़ा अटपटा महसूस कर रहा था। कुछ आते जाते जोड़े हमें देख भी लेते थे। पर सबको अपनी पड़ी थी हमसे किसी को कुछ लेना देना नहीं था।

सैंडविच सर्व हो चुके थे, और हमने उन्हें खाना शुरू कर दिया था, बीच बीच में मैं उसे देख लेता था वो मुझे, सैंडविच ख़त्म करने के बाद हम दोनों फिर से एक दूजे से मुख़ातिब थे। मेरा पुराना मोबाइल जिसकी बैटरी बहुत जल्द सूख जाती थी, अपने सूखने के संकेत दे रही रही थी। मैंने उसे कहा "यहाँ मोबाइल चार्ज लगाया जा सकता है कहीं?"

उसने पूछा "चार्जर है आपके पास?"

मैंने कहा "हाँ" और बैग से चार्जर निकाला। उसने वेटर को बुलाया और मोबाइल चार्ज लगाने को कहा। वेटर बड़े आदर के साथ चार्जर और मोबाइल ले गया।

उसने कहा "आप कुछ बोलेंगे कि मैं ही बोलती रहूं?"

मैंने उसे बताया, किस तरह लिफ़्ट से निकलते ही लड़कियों ने मुझसे व्यवहार किया और ये भी बताया कि मुझे भी वो मुन्नी बदनाम हुई गाना ज़हन में आया पर मैंने उन्हें कहा नहीं।

उसने कहा "अच्छा किया" और हँसने लगी “अच्छा.... तो हमारे शहर की लड़कियों ने आपको छेड़ दिया।” हम दोंनो ही हँस पड़े।

उसने अपनी बोतल, जिसमे ज्यूस लाई थी वो खोली और दो गिलास में ज्यूस डाल दिया, उसने कहा आपके लिए ख़ास बना कर लाई हूँ, पीजिए । मैंने ज्यूस सिप किया उसने भी किया, बहुत ही अच्छा ज्यूस था, मैंने कहा "वाह कितना बढ़िया है।" , उसने कहा "सच...?"

मैंने कहा "सच….!!" वो मुस्कुरा दी।

उसकी बेटी का फ़ोन आ गया था, उसे कुछ मंगवाना था। उसने बेटी से बात की और मैं ख़ामोशी से उसे देखता रहा । वो बहुत सुंदर लग रही थी अब मैंने उसके होंठों और दाँतों पर नज़र डाली, उसने गुलाबी लिपस्टिक लगाई थी। वो बहुत सुंदर लग रही थी.... उसके दाँत मोतियों से चमक रहे थे। मैंने उसे फ़ोन काटने के बाद बताया "आपके दाँत बहुत सुंदर हैं।"

वो मुस्कुराने लगी फिर पूछा “आपको हमारी कोई चीज़ खराब भी लगती है....."

मैंने कहा “नहीं , कोई चीज़ ख़राब हो तो बताऊँ....”

“आप भी ना....कुछ भी।”

“सच में, सच आप में कोई कमी नहीं, आप परियों की शहजादी हो।”

ये सुन हम दोनों हंस दिये, उसने कहा आपकी “आँखें और बाल बहुत सुंदर हैं। आपकी आँखें बोलती सी लगती हैं।”

हमारी टेबल का बजर बज उठा था, उसने कहा लीजिये एक घण्टा हो गया हमें यहाँ बैठे हुए। मैंने मन ही मन सोचा बिल में तीन सौ और जुड़ गए। उसने कहा चलिए एक एक कॉफी और पीते हैं फिर हम, राधा कृष्ण मंदिर चलेंगे।

उसने वेटर को बुलाकर कॉफ़ी का ऑर्डर दिया और मुझसे बोली “ इस बार फीकी कॉफी नहीं पीनी हैं।” हम दोनों मुस्कुरा दिए।

संजय नायक 'शिल्प'
क्रमशः