Dastak Dil Par - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

दस्तक दिल पर - भाग 14 - अंतिम भाग

"दस्तक दिल पर" किश्त-14

हम दोनों वहाँ पर ख़ुद को जन्नत के बीच बैठे हुए महसूस कर रहे थे। उसने ‘कागज और कैनवस’ मेरी ओर बढ़ा दी और कहा "एक कविता आप पढ़िए।" मैंने कविता पढ़ी पर मैं कविता वगैरह से ज़्यादा जुड़ा नहीं होने के कारण सही से पढ़ नहीं पाया....कविता के भाव उजागर नहीं कर पाया।

तब उसने कविता का भावार्थ बताया, उसने बताया कि जब प्रेम होता है तो कुछ और नहीं होता, सब कुछ यूँ नीचे ही रह जाता है जैसे पानी वाष्प बनकर उड़ जाता है, और बादलों का रूप ले लेता है। प्रेम बिल्कुल वैसे ही है, वो सारे बन्धन तोड़ कर ऊपर उठ जाता है। जहाँ परमात्मा उसके नज़दीक होता है और दुनियादारी उससे दूर। उसकी व्याख्या सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा, उसने बताया प्रेम का मतलब खुद का अस्तित्व खो देना होता है और वैसा ही हो जाना होता है, जैसा हमारा प्रेमी है। जैसे कहते हैं राधा कृष्णमयी हो गई बस प्रेम वैसा ही है, पानी अपना अस्तित्व खोकर बादल बन जाते है, और बादल अस्तित्व खोकर पानी।

वाह कितना प्यारा और सहज तरीका था उसका प्रेम को समझाने का। मैं उसे निरन्तर छुपी छुपी नज़र से देख लेता था, और ऐसे करते हुए वो देख लेती तो मुझे शर्म आ जाती थी। वेटर कॉफी सर्व कर गया था, इसी दौरान मैंने तय कर लिया था कि साथी को कहकर कुछ पैसे ले लूंगा ताकि बैलेंस बना रहे। हम दोनों ने कॉफी पीना शुरू किया इस बार उसने चीनी खुद मिला दी थी। कॉफी पीने के बाद उसने वेटर से बिल ले आने का कहा।

वेटर बिल और मेरा मोबाइल लेकर आया। उसने बिल टेबल पर रख दिया, मैंने पॉकेट की ओर हाथ बढ़ाया, तो उसने टोक दिया। "नहीं यहाँ मैंने आपको इनवाइट किया है, तो बिल मैं पे करूंगी, अगला बिल आप पे करना।" उसने बिना बिल पर निगाह दौड़ाए 1000 का नोट उसकी बिल वाली प्लेट में दबा दिया। वेटर वो ट्रे उठा ले गया और कुछ चेंज वापस लाया, जिसे उसने देखा भी नहीं, और मैं सोच रहा था कि बिल मुझे ही देना चाहिए पर जानता था वो ऐसा करने नहीं देगी।

हम वहाँ से निकलकर दूसरे फ्लोर पर आ गए थे, उस फ्लोर पर एक शॉपिंग सेंटर था। वहाँ से उसने कुछ कपड़े खरीदे, उसकी खरीददारी देखकर मैं भौंचक्का था, बाप रे इतने महंगे ब्रांडेड कपड़े पहनते हैं ये लोग!!

ख़ैर हम वहाँ से निकलकर नीचे आ गए और हमने एक ऑटो किया, उस ऑटो ने हमें राधा कृष्ण जी के मंदिर में छोड़ दिया। ऑटो के पैसे उसने ये कहकर दे दिए कि आप कुछ कोल्ड ड्रिंक्स ले आओ मैं इसको पे करती हूं।

हम दोनों ने पहले मंदिर में जाकर राधा कृष्ण की जोड़ी को नमन किया । वहाँ प्रसाद चढ़ाना नहीं होता तो दोनों ने दानपात्र में कुछ रुपये डाल दिये, उसके बाद हम उसके एक गेट की सीढ़ियों पर जाकर बैठ गए। बहुत सुंदर वातावरण था वहाँ, बहुत शांति और सुकून, मंदिर ऊँचाई पर था तो बहुत ठंडी हवा आ रही थी, और वहां पर खुशबूदार गेंदे के फूल की खुशबुएँ हमें महका रही थीं ।

5.20 हो चले थे, उस दिन मौसम बहुत खुशनुमा था, हम वहाँ अपने रिश्तों के बारे में बात करने लगे। मैं कह रहा था कि ज़िन्दगी में जो रिश्ते हैं उन्हें निभाना हमारी मजबूरी है....तो उसने बताया उसे मजबूरी नहीं अपनी ड्यूटी कहिये। चाहे कुछ भी हो, आपकी पत्नी आपके बच्चों की माँ है, और मेरे पति मेरी बेटी के। चाहे हम आपस में पति पत्नी के रूप में एक दूजे के बिना रहने का सोच सकते हैं, पर बच्चों को दोनों चाहिए। बच्चों को माँ भी प्यारी होती है, और पापा भी, तो हमें बच्चों के लिए भी रिश्ते बनाये रखने पड़ते हैं।

उसकी बातें बहुत ही सही और सटीक थीं। मैं मन्त्रमुग्ध हो उसकी बातें सुन रहा था। उसने बताया कि वो अक्सर वहाँ आकर बैठ जाया करती है....जब भी अकेलापन महसूस करती है। तब यहाँ आकर बहुत सुकून मिलता है उसे।

हम यूँ ही बहुत सी बातें कर रहे थे इस दौरान मेरा भी फ़ोन आया और फिर उसका भी। उसने कहा कुछ देर है छह बजने में, चलिए सूरज की फ़ोटो क्लिक करते हैं। सूरज दूर से मंदिर की गुमटी पर यूँ लग रहा था, जैसे गुमटी पर किसी ने लाल मोती रख दिया हो। मैंने उसे कहा "मुझे आपका हाथ पकड़ना है।", वो मुस्कुरा दी बोली “चलिए देर हो जाएगी, चलते हैं।”

हम दोनों उठ खड़े हुए और हमने एक ऑटो ले लिया। उसने ऑटो वाले को इस तरह हायर किया कि वो उसे उसके घर के आस पास छोड़ कर वापसी में मुझे मेरे होटल के पास छोड़ दे। उस दौरान मैंने वहाँ से दो फ्रूटी और ले लीं । हम ऑटो में चल पड़े, हम दोनों ने फ्रूटी पीना शुरू किया, मैंने जल्दी से फ्रूटी पी ली और उसे पागलों की तरह निहारे जा रहा था.....अचानक उसे जाने क्या सूझा, उसने पूछा फ्रूटी पियेंगे? मैंने हाँ कह दिया, उसने अपनी जूठी हुई फ्रूटी मेरी और बढ़ा दी।

मैं उसकी जूठी फ्रूटी को पीने लगा, मैंने थोड़ा सा पीकर उसे वापस लौटा दिया, और उसने बाकी फ्रूटी पी ली। उसने वो फ्रूटी मुझे इसलिए थमा दी थी कि मैं उसे लगातार देखे जा रहा था, उसे मेरी नज़रें हटाने का और कोई तरीका नहीं सूझा और उसने फ्रूटी मेरी और बढ़ा दी, ये उसने बाद में बताया था।

मैंने उसे फिर कहा मुझे आपका हाथ पकड़ना है। उसने अपना हाथ मेरी और बढ़ा दिया , उसका हाथ चुन्नी में लिपटा था, मैंने चुन्नी के आवरण में उसका हाथ पकड़ लिया, वो परे झाँकने लगी थी। उसके हाथ बहुत मुलायम थे जैसे मैंने हजारों गुलाब की पंखुड़ियों को अपने हाथ मे भर लिया हो। उस वक़्त शायद वो सफ़र जीवन भर का भी होता तो मैं चलता रहता.... पर हर सफर ख़त्म होने के लिए होता है। जैसे ही हम उसके घर के इलाके में प्रविष्ट हुए उसने अपना हाथ छुड़ा लिया।

मैं भी सही होकर बैठ गया कुछ आगे जाकर उसने ऑटो रुकवाया और मुझसे कहा आप किराया पे कर देना। ये कहकर वो आगे बढ़ गई ऑटो वापस मुड़ गया। उसने मुझे पे करने को जानकर कहा ताकि मुझे उसके सामने अपने बौनेपन का एहसास न हो, कितनी समझदार है वो। सोचते सोचते जाने मुझे ट्रेन में कब नींद आ गई।

सुबह पाँच बजे के आस पास मैं जाग गया। मैंने उसे कॉल किया वो उनींदी थी।

"उसने पूछा पहुँच गए?"

मैंने कहा "नहीं, तीन स्टेशन बाद मेरा स्टॉप आएगा।"

उसने कहा "चाय पी लो।"

मैंने कहा "अगले स्टेशन पर।"

उसने कहा "तब तक ब्रश कर लो।"

मैंने कहा "बिना ब्रश किये चाय नहीं पी सकते....क्या जरूरी है ब्रश करना सफर में भी?"

तो वो बोली "हाँ, ब्रश करना होता है।"

मैं कई बार सफर में ब्रश नहीं करता था। उस दिन के बाद मैंने तय कर लिया, हमेशा ब्रश करने के बाद ही कुछ चाय वगैरह पीना है, फिर सफ़र हो या घर।

वो बोली "आप ब्रश वगैरह करो फिर मैं आपको मैसेज करती हूं।"

मैं नित्यक्रिया से निवृत होकर स्टेशन का इन्तज़ार कर रहा था।

उसका मैसेज आया “हमें अच्छा लगा, आज आपने कॉल करके उठाया... काश आप रोज़ हमें यूँ ही उठाते ! मैंने कभी सोचा भी नहीं था, एक व्यक्ति यूँ आएगा जीवन में। जीवन के इस अंतिम पड़ाव पर, जहाँ हमारे लिए प्रेम सोचना भी ठीक नहीं था,आप आओगे और प्रेम से सरोबार कर दोगे। हम आपको बहुत चाहते हैं और आपके बगैर जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। सच कहूँ तो भूल गये थे कि जीवन मे सजना सँवरना और प्रेम करना भी होता है। आपने आकर ये सब लौटाया, एक बात पूछनी है आपसे…...।”

“पूछिये।”

“आपका प्रेम , हम पर कहीं आपका उपकार तो नहीं, कहीं आप हम पर तरस खाकर तो प्रेम नहीं कर रहे।”

“आप ये क्या कह रही हैं, उपकार तो आपका है परियों की शहजादी , जो मुझे प्यार दे रही हैं, मैं आपके लायक किसी भी तरह से नहीं हूँ, मैं आपसे सच्चा प्यार करता हूँ, और ऐसा कभी भी मत पूछना, लव यू।

“हेट यू।”

उस मुलाकात के बाद हमें मिले चार महीने बीत गए हैं और मेरा उससे मिलना नहीं हो रहा। मैं इन्तज़ार कर रहा हूँ किस्मत कब उससे मिलने का मौका दे।

समाप्त।
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दोस्तों कहानी “दस्तक दिल पर” बस इतनी ही है, दरअसल पिछले दिनों सड़क दुर्घटना में एक मोटर साइकिल सवार की मौत हो गई थी। मैं भी घटना स्थल पर मौजूद था। दूर झाड़ियों में एक डायरी छिटकी पड़ी थी। मैंने देखा उस पर भी थोड़ा खून लगा था। मैंने उसे उठाकर जैसे ही उसका नाम पता देखने के लिए खोला उस पर सुंदर अक्षरों में लिखा था, “दस्तक दिल पर”... मैंने चुपके से उसका पहला पन्ना थोड़ा सा पढ़ा, पढ़ते ही समझ गया ये उस मृतक की छुपी हुई प्रेम कहानी का बयान है। मैंने सोचा मरने के बाद यदि इसे इसके घरवालों को देंगे तो, मरे हुए आदमी से वो लोग नफ़रत करेंगे और हो सकता है उस औरत को भी खोजकर बदनाम कर दें। इसलिए चुपचाप डायरी अपने बैग में रख ली और वहाँ से चला आया।

दोस्तों डायरी पढ़ी तो मेरी आँखें भर आईं इतना अनोखा, इतना पवित्र प्रेम था दोनों का....ओह! लेकिन उसका अंत क्या हुआ, एक की मौत, और जब मैंने उस औरत का सोचा तो कलेजा ही बैठ गया। अरे! इसकी सभी जीवन बीमा की पॉलिसी तो उस औरत, जो इसकी प्रेमिका है, के अंडर में है सोच कर ही दिल कांप उठा । हे भगवान! क्या गुजरेगी उसके दिल पर जब उसके हाथों में इसकी मौत के बीमा क्लेम पहुंचेंगे? वो कैसे अपने आप को संभाल पाएगी? कैसे इसके क्लेम पर हस्ताक्षर करेगी? कैसे जिंदा रह पाएगी ?, हे ईश्वर अगर इन्हें यूँ ही अलग करना था तो एक क्यों किया था? मुझे उस औरत की पीड़ा महसूस कर ही रोना आ रहा है, और वो तो खुलकर रो भी नहीं पायेगी, ईश्वर के बहुत से निर्णयों पर मुझे बहुत गुस्सा है, शायद आप सभी को भी हो।

संजय नायक 'शिल्प'

कहानी का सफ़र कैसा रहा आप सबकी समीक्षा अपेक्षित है, ताकि ऐसे ही आगे कोई कहानी किश्तों में आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ ।
आपका अपना…..."शिल्प"