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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण

स्नेहिल नमस्कार

मित्रों

हरेक साँस में एक आस होती है ,ऐसी आस जो मनुष्य को जीवन में कुछ करने के लिए प्रेरित करती रहती है | जो कोशिश करतीहै कि मनुष्य अपने जीवन को अच्छी तरह ,संतुष्टि से जीए किन्तु हम कहीं न कहीं अपनी सोच से, अपनी प्रेरणा से भटक जाते हैं और स्वयं को ही पीड़ा पहुँचाने के माध्यम बन जाते हैं |

जब कोई बात बिना किसी विशेष कारण के ही हमारे दिमाग में गलत हिलोरें लेने लगती है तब हम वास्तविकता छोड़कर अपने आप ही न जाने क्या-क्या कयास लगाने लगते हैं जो अधिकतर हमें जकड़ने लगते हैं और हम अपने उस मार्ग से भटकने लगते हैं जो हमें सही दिशा की ओर लेकर चलता है | इसका सीधा सा और बहुत महत्वपूर्ण कारण यह है कि अपने पथ से भटककर दूसरी दिशा में चले जाते हैं |हमें अपने गिरेबान में झाँकने से और स्वयं को समझने से अधिक दूसरों की खिड़की में झाँकने में आनंद आने लगता है |

धर्म और उसकी बहन सत्या दोनों अपने माता-पिता के पास गाँव में रहते थे |पिता खेती करते। माँ उन्हें सहयोग देतीं | बच्चे भी अपने माता -पिता को सहयोग देते | दोनों ने दसवीं की परीक्षा बहुत अच्छे नंबरों में पास कर ली | उनके शिक्षक भी उनसे बहुत प्रसन्न थे क्योंकि बिलकुल अनपढ़ किसान के बच्चे बिना किसी की सहायता के कक्षा में सदा सबसे ऊपर रहते थे | सबकी इच्छा थी कि दोनों बच्चों को खूब पढ़ना चाहिए लेकिन गाँव में सुविधा नहीं थी | बच्चों के स्कूल के अध्यापक जानते थे कि बच्चे अपने माता -पिता की सहायता भी करते हैं और अपनी पढ़ाई भी बिना किसी की सहायता के करते हैं | अध्यापक उन बच्चों के घर गए और उनके माता-पिता को समझाया कि उन्हें पढ़ने के लिए पास के शहर में भेज दें | वे दोनों ही कुछ बनकर दिखा सकते हैं }इससे उनके भविष्य भी सुधर जाएंगे और अपने माता-पिता यानि परिवार के लिए कुछ कर सकेंगे और अपने माता -पिता का नाम भी रोशन करेंगे |

"साहब,हमारी इतनी औकात कहाँ है कि हम बच्चों को बाहर भेजके पढ़ा सकें ----" बच्चों के माता-पिता ने निराशा से कहा | अध्यापक महोदय की बात सुनकर बच्चों के माता-पिता के मन में एक आशा का झरोखा खुला तो सही लेकिन वे मजबूर थे इसलिए उनका मन उदास हो गया |

" सर! हम यहाँ से जाएंगे तो हमारे माँ-पिता भी अकेले रह जाएंगे |हम दोनों यहाँ होते हैं तो कम से कम उनकी कुछ मदद तो कर सकते हैं |

"नहीं ,वो तो हम दोनों मिलकर कुछ कर लेंगे पर वहाँ इन दोनों के रहने का खर्चा उठाना,फ़ीस का खर्चा उठाना ----"बच्चों का पिता सोच में पड़ गया |

"आप चिंता मत करो,मैं इनके बोर्ड के नंबरों को देखकर ही कह रहा हूँ कि इन्हें छात्रवृति मिल जाएगी |मैं इनके साथ जाकर इनके फॉर्म्स भरवा देता हूँ फिर ये दोनों परीक्षा दे देंगे और सरकार से इन्हें पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति यानि पैसे मिल जाएंगे |"

सामने से इतनी सहायता मिल रही थी इसलिए सब राज़ी हो गए और अध्यापक जी बच्चों को लेकर शहर गए |फ़ॉर्म भरवाए गए,परीक्षा दिलवाई गई और अध्यापक की सहायता से सब कुछ काम ठीक से हो गया | अब कॉलेज खुले और दोनों भाई-बहनों ने गाँव से शहर कॉलेज जाना शुरू किया |उनकी इच्छा रहती कि वे माता -पिता की सहायता भी कर सकें और अपनी पढ़ाई भी | कुछ दिनों तक तो किसी प्रकार यह हो सका लेकिन बाद में मुश्किल लगने लगा |

भाई को एक पुरानी साइकिल दिलवा दी गई थी और वह लगभग पाँच कि.मीटर बहन को कैरियर पर बैठाकर ले जाता और इतना ही लंबा सफ़र लौटते समय तय करता | कुछ दिनों में थकान ने उन दोनों को बुरी तरह पस्त कर दिया |पढ़ने का समय मिलता तो नींद के झटोके उन्हें परेशान करने लगते |

उनके अध्यापक को पता चला तो उन्होंने कहा कि बेहतर यही होगा कि दोनों भाई-बहन एक कमरे में शहर में ही रहें | छुट्टी वाले दिन अपने माता-पिता के पास आ जाएं | फिर खर्चे का प्रश्न था | अध्यापक बहुत ही अच्छे इंसान थे ,उन्होंने ही बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया था |

अध्यापक ने बच्चों को अपने एक दोस्त के फ़्लैट में एक कमरा दिलवा दिया जिसका किराया उन्होंने स्वयं देना शुरू किया |यह परिवार बहुत बुरी तरह अध्यापक जी के एहसानों के नीचे आ गया था | दोनों बच्चे होशियार और समझदार थे |जबसे वे कॉलेज में पढ़ने आने लगे थे ,उन्होंने किसी से दोस्ती तक नहीं की थी क्योंकि वे चाहते थे उनका समय बिलकुल भी न खराब हो |

दोनों भाई-बहनों ने अपने से छोटी कक्षा के बच्चों की ट्यूशन लेनी शुरू कर दी और अपनी पढ़ाई भी ठीक से ज़ारी रखी | वे शाम को बच्चों के घर पढ़ाने जाते थे और रात में लौटते थे |जैसी परिस्थिति होती खा-पी लेते लेकिन समाज को अच्छाई की जगह गंदगी पहले दिखाई देती है | बेचारे भाई-बहन इतनी मेहनत कर रहे थे और समाज इनके बारे में गलत बातें उड़ा रहा था |

दोनों रोज सुबह कॉलेज जाते शाम को लौट आते किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करते.| आकर अपना काम करते और शाम को कुछ खा-पीकर ट्यूशन्स लेने निकल जाते |अपनी पढ़ाई मन लगाकर करते.. दोनों पढ़ने में काफी तेज थे.. माता पिता को भी उन पर विश्वास था कि वे अकेले रहकर भी अच्छे से अपनी पढ़ाई जारी रखेंगे.. लेकिन अड़ोस पड़ोस के लोगों को उनका साथ कॉलेज जाना साथ आना संदेह के घेरे में लेता चला गया.|

एक दिन वे मकान मालिक के पास आए और कहने लगे कि आप कैसे लोगों को किराए पर मकान दे देते हैं.| .यह सभ्य लोगों की सोसाइटी है.| ऐसे में आप इस तरह के बच्चों को कैसे किराए पर मकान दे सकते हैं.? मकान मालिक सोसाइटी के लोगों की बातों से परेशान हो गया और उन्होंने बच्चों से घर खाली करने के लिए कह दिया | बच्चों ने उन्हें कहा कि उनके अध्यापक आपके तो मित्र हैं फिर -----लेकिन वे सोसाइटी के लोगों की बातों से परेशान हो चुके थे |

मकान-मालिक ने अपने अध्यापक मित्र को बुलाया और उनके आने पर कमरा खाली करवाने के लिए कहा |

कारण पूछने पर उन्होंने लोगों की सोच के बारे में बताया | उन्हें बहुत दुख हुआ उन्होंने सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था..कि ऐसा भी कुछ हो सकता था? आखिर दोनों सगे भाई-बहन थे जो अपने श्रम से उन्नति करना चाहते थे |

अध्यापक ने मकान मालिक से कहा कि वे एक बार उन सब सोसाइटी वालों से बात करना चाहते हैं | मकान मालिक ने सोसाइटी वालों को बुलाया | अध्यापक ने सबको सच्ची बात बताई और उन दोनों के परीक्षा-परिणाम उन लोगों के सामने रखते हुए कहा कि अब वे देखें कि उनके बच्चे कैसी पढ़ाई कर रहे हैं? इन पर ध्यान देने की जगह यदि वे अपने बच्चों पर ध्यान दें तो परिस्थिति बेहतर हो सकती है |किसी पर भी गलत इल्ज़ाम लगाने से पहले खुद के गिरेबान में झाँककर देखना जरूरी है |

अध्यापक कॉलेज जाकर पहले ही सबके बारे में पता कर चुके थे | उन्होंने कहा कि दोनों स्थितियों में अंतर देखें और फिर किस पर ऊँगली उठानी चाहिए ,उसका निर्णय लें |

अब सोसाइटी के लोगों की ज़बान पर ताला पड़ चुका था | उन्होंने अपने बच्चों के कहने में आकर उन बच्चों पर बेकार की बदनमामी कर दी थी और जब उनके बच्चों की पोल खुलकी तब उन्हें सबके सामने शर्मिंदा होना पड़ा |

अध्यापक की सहायता से बच्चे कई वर्षों तक उसी कमरे में वैसे ही रहते रहे | अपने माता-पिता के पास वे छुट्टी और समय देखकर चले जाते | सोसाइटी के लोगों के मुँहों पर ताले पड़ चुके थे और जब उनमें से भाई का आई.ए.एस में चयन हो गया था तब तक किसी को भी पता नहीं था | सोसाइटी के बच्चे भी बड़े हो चुके थे लेकिन कोई अपने पिता की दुकान पर जबरदस्ती बैठाया गया था ,कोई अभी भी आवारागर्दी कर रहा था |

धर्म ने गाँव में जाकर सबसे पहले अपने उन अध्यापक और माता-पिता की चरण वंदना की और उन्हें बताया कि वह अपनी ट्रेनिंग पूरी हो जाने पर अपने माता-पिता को अपने पास ले जाएगा ,कुछ दिनों की परेशानी ही और थी |

बहन सत्या पीएच..डी कर रही थी | वह अपनी पूरी पढ़ाई के दौरान उसी कमरे में रही | अब जो मकान मालिक व सोसाइटी के लोग उन्हें बुरा कह रहे थे ,उन्हें यह कहने में गर्व महसूस होने लगा कि उनकी निम्न मध्यमवर्गीय सोसाइटी में ऐसे दो बच्चे रहते थे जो केवल अपने श्रम से इतने ऊँचे मुकाम पर पहुँच सके |

मनुष्य के जीवन में आशा व उस प्र विश्वास बहुत बहुत बड़ा रोल अदा करते हैं बशर्ते ईमानदारी व गंभीरता से अपना काम किया जाए |

यह केवल कहानी नहीं है ,मुझे किसी ने इस सत्य घटना के बारे में बताया और मुझे लगा कि इसको साझा करना काम से कम युवा वर्ग के लिए बहुत प्रेरणास्रोत हो सकता है |

जीवन में न जाने कितने लोग कितने अवरोधों के बावज़ूद भी अपने मार्ग स्वयं बना सकते हैं | हाँ,उन्हें सबसे पहले आवश्यकता है गंभीरता से अपने कार्यों में संलग्न होने की और किसी से भी भयभीत न होने की |

 

स्वस्थ रहें,सकारात्मक रहें

स्नेह सहित

आपकी मित्र

डॉ। प्रणव भारती