Kshama Karna Vrunda - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

क्षमा करना वृंदा - 15

भाग -15

भविष्य की चिंता में भीतर ही भीतर डूबती-उतराती मैं टीवी पर एक हॉलीवुड मूवी देख रही थी। वह भी फ़्यूचर को लेकर एक क्लासिक फ़िल्म थी। परमाणु युद्ध से तबाह हुई दुनिया के, फिर से उठ खड़े होने की कोशिश की कहानी थी।

रात के बारह बज रहे थे, लियो सो रहा था कि अचानक ही दौरा पड़ गया। जो पहले के सभी दौरों से न सिर्फ़ बहुत तेज़ था, बल्कि ज़्यादा समय तक भी रहा।

मैं उस पर किसी तरह से नियंत्रण नहीं कर पाई। विवश आँसू बहाती रही, उसे पकड़े रही कि वह बेड से नीचे न गिर जाए। बहुत ही मुश्किल से उसको सँभाल सकी। दौरा ख़त्म होने के बाद लियो बिल्कुल पस्त हो गया था।

मैंने उसे एक गिलास पानी में काफ़ी सारा एनरजाल पाउडर घोलकर पिलाया। उसके बाद वह सोने लगा। अपने लिए एक कप ब्लैक कॉफ़ी बनाई। टीवी देखती हुई धीरे-धीरे पी रही थी। मुझे अब भी इस बात का बिलकुल अनुमान नहीं था कि यह रात मेरे लिए कैसी होने जा रही है।

एक घंटा भी नहीं हुआ था कि लियो पर फिर से दौरा पड़ गया। इस बार मैंने घबराने की बजाय उसकी स्थिति का बहुत ही बारीक़ी से निरीक्षण किया। मुझे जिस चीज़ का बार-बार संदेह होता था, वह बात कंफ़र्म हो गई। कि लियो का शरीर जब यौनिक क्रिया की अनुभूति के लिए अपने चरम तनाव में आता है, दौरा ठीक उसी समय पड़ता है।

मेरे दिमाग़ में डॉक्टर की यह बात बार-बार गूँजने लगी कि दवाइयाँ इस पर तब-तक असर नहीं करेंगी, जब-तक कि फ़हमीना इसके दिमाग़ से बाहर नहीं निकलेगी। मैंने मन ही मन कहा सॉरी डॉक्टर, आप पूरी तरह ग़लत हैं।

आपका ऑब्जर्वेशन, फाइंडिंग्स पूरी तरह ग़लत हैं। लियो के दिमाग़ में तो फ़हमीना है ही नहीं। इसलिए उसे निकालने का प्रश्न ही नहीं उठता। इसकी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन तो इसे वह एक्सपीरियंस देने से होगा, जो इसे फ़हमीना ने दिया।

वह सेक्सुअल प्ले ही इसके दिमाग़ में जब घूमता है, शरीर में तनाव उत्पन्न होता है, और उस समय जब वह प्ले इसे नहीं मिल पाता, तब इसका दिमाग़ ज़बरदस्त टेंशन महसूस करता है। इससे इसके दिमाग़ में अत्यधिक प्रेशर के कारण कुछ ख़ास एनर्जी करंट जेनरेट हो जाती होगी।

करंट जब-तक रहती है, तब-तक वह इसके शरीर को डिस्टर्ब किए रहती है। मैं कहती हूँ कि इसका एक-मात्र ट्रीटमेंट यही है कि यह जिस सेक्सुअल प्ले को फ़ील करना चाहता है, वह इसे फ़ील कराया जाए। फिर धीरे-धीरे इसे उस स्थिति से बाहर निकाला जाए।

अभी तो यह दोहरे दबाव में रहता है। पहला यह कि इसे वो एक्सपीरियंस नहीं मिल पा रहा है, इसकी दूसरी विवशता यह है कि अपनी इस स्थिति को किसी से शेयर भी नहीं कर पा रहा है। इस भयानक अंतर्द्वंद्व में यह अंदर ही अंदर घुट रहा है।

इन सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि मेरे अलावा इसका है कौन? मेरे अलावा दूसरा कोई समझेगा भी कहाँ? यह टेंशन इसका सबसे बड़ा टेंशन है। इतना बड़ा, इतना गंभीर, जटिल कि बड़े से बड़ा सामान्य मज़बूत व्यक्ति भी झेल नहीं पाएगा।

इससे भी ज़्यादा जटिल है इसकी मनःस्थिति का सटीक अनुमान लगाना। लेकिन लियो मेरा है। मुझे तो हर बात का सटीक अनुमान लगाने के साथ-साथ उसका समाधान भी देना ही होगा। यह मेरी ज़िम्मेदारी है, मेरा कर्तव्य है।

मुझे तो यह कहने का भी क्या, सोचने का भी अधिकार नहीं है, कि मैं क्या कर सकती हूँ। मुझे करना ही होगा। सब-कुछ करना ही होगा। हर तरह से कोशिश करके, कोई ना कोई रास्ता निकालना ही होगा।

मेरी प्यारी वृंदा कितना सही कहती है कि ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसका कोई समाधान ना हो। जब समाधान है, तो निकाल कर ही रहूँगी। लियो मैं तुम्हारे लिए वह सब करूँगी, जिससे तुम्हें आराम मिल सके, तुम ख़ुश रहो।

मैं उसके माथे पर हाथ फेरती हुई पूरी आवाज़ में ऐसे बोली, जैसे कि वह सुन सकता है। मैं बोलती ही गई कि तुम कहीं से ग़लत नहीं हो प्यारे लियो, तुम मासूम हो। तुमने वही किया जो एक मासूम कर सकता है।

लियो मैं तुम्हें बताऊँगी कि मैं सब जानती हूँ। तुम्हें शर्मिंदा होने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि मुझे इस बात की ख़ुशी है कि तुम अपनी पत्नी को बहुत ख़ुश रख सकोगे। तुम थोड़ा और बड़े हो जाओ, तो मैं तुम्हारे लिए ख़ूबसूरत सी जीवन-साथी तलाश करके ले आऊँगी। ऐसी जीवन साथी, जो तुम्हें हर तरह से ख़ुश रखेगी।

जल्दी-जल्दी तुम कई बच्चों के पिता बन जाना। वह सारे बच्चे बड़े होकर तुम्हारी आँखें, ज़ुबान, कान-नाक बनकर, हर तरह का सहारा बन जाएँगे। मेरे लियो, मेरी ज़िन्दगी का वह सबसे बड़ा, सबसे ज़्यादा ख़ुशी, संतुष्टि वाला क्षण होगा।

फिर तुम सब मिल कर बुढ़ापे में मेरा सहारा बनना। अकेलेपन की पीड़ा से मुझे दूर रखना। हालाँकि मैं ऐसी कोई अपेक्षा, कोई इच्छा प्रकट नहीं करूँगी। ऐसा कुछ होगा तो अच्छा है, नहीं होगा तो भी अच्छा है।

मैं लियो सी गंभीर अंतर्द्वंद्व से गुज़रती, कभी उसके सिर को सहलाती, कभी उसका माथा चूम लेती, कभी बेड से उतर कर उसके आस-पास चलती रहती। टीवी भी चल रहा था, लेकिन उस तरफ़ मेरा ध्यान ही नहीं था।

क़रीब साढ़े तीन बजे के आसपास मुझे नींद आने लगी, तो एक नज़र लियो पर डाली और लेट गई। मेरी आँख लगी ही थी कि लियो . . .

मैं झटके से उठ कर बैठ गई। लियो पर तीसरी बार दौरा पड़ा था। पहले ही की तरह काफ़ी तेज़ था। पूरा शरीर तनाव से अकड़ा जा रहा था। उसे सँभालते-सँभालते मैं रोने लगी। ‘लियो, मेरे प्यारे लियो, ऐसा मत करो।

‘मैं तुझे कहाँ ले चलूँ, किस हॉस्पिटल में ले चलूँ, कौन से डॉक्टर के पास ले चलूँ? कोविड-१९ ने सारे हॉस्पिटल, डॉक्टर्स केवल अपने शिकार लोगों के लिए रिज़र्व करवा दिए हैं। तुम्हारे लिए सारी दुनिया, हॉस्पिटल, डॉक्टर, नर्स सब-कुछ यही घर है। मैं हूँ। कहीं और कुछ नहीं है। मुझे और परेशान मत करो लियो . . . ’

लियो की हालत मुझे बहुत ज़्यादा गंभीर संकेत देती से लगी। मुझे स्पष्ट लग रहा था कि इसकी स्थिति बहुत गंभीर हो चुकी है। इतने तनाव से यह ब्रेन हेमरेज, पैरालिसिस का भी शिकार हो सकता है। इसकी जान भी जा सकती है।

यह सोच कर मैं घबरा उठी, मैं सिसकती हुई बुदबुदाई, ‘नहीं लियो नहीं . . . तुम्हारे बिना मैं भी ज़िंदा नहीं रह पाऊँगी। मैं बड़ी देर तक सिसकती रही। मुझे लगा कि जैसे मेरे दिमाग़ में भीषण बवंडर चल रहा है।

सारी दुनिया उस बवंडर में समाती जा रही है। मैं भयानक गति से गोल-गोल घूम रहे उस बवंडर से दूर खड़ी, उसमें समाते लोगों को देख रही हूँ। उसके भयानक शोर में मुझे लोगों की चीखें नहीं सुनाई दे रही थीं।

अचानक मेरे हाथ से लियो भी छूट कर उस शंकुनुमा बवंडर में ग़ुम हो गया। जिसका नुकीला ऊपरी हिस्सा ऊपर बादलों को छू रहा था। मैं उसे पकड़ने के लिए चीखती हुई आगे बढ़ी ही थी कि बवंडर ने पलक झपकते ही मुझे भी खींच लिया।

अचानक ही मैंने मन में कुछ तय कर लिया। मेरे आँसू एकदम सूख गए। चेहरा कठोर भावों से भर गया। मैं लियो को फिर से आधा गिलास एनरजॉल पिला चुकी थी। वह सामान्य हो चुका था। मैंने कुछ देर तक लियो के चेहरे को ध्यान से देखने के बाद अपना गाउन निकाल कर फेंक दिया। लियो का भी।

उसे अपनी बाँहों में समेट लिया। बहुत देर तक अपने साथ लिए रही। उसे उस अनुभूति की पूरी डोज़ दी, जिसके अभाव में उसकी जीवन-रेखा धुँधली होती चली जा रही थी। फिर उससे अलग होकर बग़ल में ही किनारे लेट गई।

लियो अपनी टिमटिमाती आँखें खोले चित लेटा हुआ था। उसके चेहरे पर आश्चर्य था। कुछ मिनट में जब मैं स्वयं को समेट सकी तो, जल्दी से उठकर उसके चेहरे को समझने की कोशिश करने लगी।

इसके साथ ही अब मेरे दिमाग़ में यह संघर्ष भी शुरू हो गया कि आख़िर मैं किस अदृश्य ताक़त से प्रेरित होकर यह हाहाकारी क़दम उठा बैठी। लियो पर इसका कैसा प्रभाव पड़ रहा होगा। कहीं इसको उस ख़ास अनुभूति की डोज़ देते-देते मैं स्वयं तो नहीं ले बैठी।