Prem Ratan Dhan Payo - 17 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 17






" हां भयी मुझे अच्छे से याद हैं । बस दस मिनट दो अभी रेडी होकर आती हूं । " ये बोल संध्या वाशरूम में चली गई ।

वही दूसरी तरफ राघव अपने रूम में रेडी हो रहा था । करूणा अंदर आते हुए बोली " ऑफिस के लिए निकल रहे हैं देवर जी । "

" हां भाभी मां बहुत सारा काम पैंडिंग हैं तो सोचा जल्दी चला जाऊ । "

" आपसे एक काम था हमें । " करूणा ने कहा तो राघव फ़ौरन बोला " हां तो कहिए न भाभी मां क्या करना हैं ? "

" मंदिर में हमे प्रसाद चढाना था । हम खुद चले जाते लेकिन कैलाश जी ने इंटरव्यू के लिए कुछ लड़कियों को बुलाया हैं तो हमे उन्हें देखना पडेगा । आप रास्ते में जाते वक्त मंदिर में प्रसाद चढा देंगे । "

" जी भाभी मां , आप जो भी सामान हैं गाडी में रखवा दीजिए । " राघव ने कहा । करूणा मुस्कुराते हुए वहां से चली गई ।

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सुबह का वक्त , राम मंदिर




राम जन्म भूमि अयोध्या इसकी छटा अजब ही निराली है । घर घर में राम कथा की गूंज उठती । मंदिर निर्माण का कार्य चालू था । कही नक्काशी हो रही थी तो कही पेंटिंग का काम हो रहा था । मंदिर में शरणार्थियों का ताता लगा रहता था । संध्या जानकी को लेकर राम मंदिर आई हुई थी । जानकी इस वक्त काफी खुश थी । उसे यहा आकर कैसा महसूस हो रहा था इसे शब्दों में कैसे बया करू समझ नही आ रहा था । संध्या का फ़ोन बजने लगा तो वो जानकी से बोली " जानकी यहां काफी शोर हैं तूं यही रूक मैं अभी आती हूं । देख यहा से कही जाना मत । " संध्या ये बोल वहां से चली गई । जानकी नजरें घुमाकर मंदिर को देखने लगी । उसकी नज़र नृत्य करती हुई कुछ लड़कियों पर पडी तो जानकी उस ओर चल थी । सबने दुपट्टे को कंधे के एक ओर से लेकर कमर के दूसरे छोड पर गांठ बांध रखी थी । पैरों में घुंघरू बंधे थे और संगीत की ताल पर सब नाच रही थी । नाचते नाचते एक लडकी के पैरों के घूघरू टूट गए । घुंघरू आस पास बिखर चुके थे । कुछ घुंघरू जानकी के पैरों के पास आकर रूके । जानकी ने उन्हें उठाया और जमीन से समेटने लगी । उस लडकी भी जानकी कोई देखने के बाद घुंघरू समेटने लगी । वो लडकी उन घुंघरूओं को समेटते हुए जानी के पास पहुंच चुकी थी । वो खुद में बड़बड़ाते हुए बोली " ये स्टेप बहुत टफ हैं । मुझे नही लगता है सीख पाऊगी । "

जानकी ने उस लडकी की बात सुन ली थी । जानकी ने अपने हाथों में समेटे मोतियों को उसके हाथों में देकर कहा " मन से कोशिश करो तो सब आसान होगा । " ये बोल जानकी उन नाचती हुई लड़कियों के बीच में चली आई । उसे देख वो लडकिया एक पल के लिए रूक गयी । जानकी अपने दुपट्टे को कंधे के एक ओर कर कमर के दूसरी साइड ले आई और गांठ बांधा । उसने हल्का सा फ्रराकसूट को ऊपर किया और पायलो का शोर किया । उसने वही स्टेप दोहराया जो उस लडकी को टफ लग रहा था । ...….

रघुकुल रीत सदा चली आई ,प्राण जाए पर वचन ना जाई ,

जय रघुवंशी अयोध्यापति ,राम चन्द्र की जय ,

सियावर राम चन्द्र की जय ,

दे रे ता ना दे रे नोम ,

ता दी या ना धीम . . . . .


( जानकी का स्टेप देखकर उन सभी लड़कियों ने एक साथ ताली बजाई । जानकी रूकी नही और मुस्कुराते हुए आगे नाचने लगी । )

रघुवर तेरी राह निहारें ,रघुवर तेरी राह निहारें ,

सातों जनम से सिया . . . . . .

घर मोर परदेसिया ,आओ पधारो पिया . . . . .

घर मोर परदेसिया ,आओ पधारो पिया . . . . .

ता दी या ना ता दे रे ना दुम ,

ता दी या ना ता दे रे ना धीम . . . . .

( बाहर राघव की गाडी आकर रूकी तो सबसे पहले उसके गार्डस बाहर आए । ड्राइवर ने आकर पीछे का दरवाजा खोला तो राघव बाहर आया । वो मंदिर के अंदर चला आया । पीछे उसके दो आदमी हाथों में थाल लिए आगे बढ रहे थे । दो आदमी राघव के आगे थे जो उसके लिए रास्ता बनाकर चल रहे थे । )

मैंने सुध-बुध चैन गवाके ,मैंने सुध-बुध चैन गवाके ,

राम रतन पा लिया ,

घर मोर परदेसिया ,आओ पधारो पिया . . . . .

घर मोर परदेसिया ,आओ पधारो पिया . . . . .

धीम ता धीम तानाना ,

धा नि सा मा , सा गा मा धा , नि धा मा गा पा ,

गा मा पा सा सा , गा मा पा नि नि ,

रे मा पा धा मा पा नि नि धा पा मा पा गा . . . .

( जानकी को नाचते देख बाकी की लड़कियां भी एक एक कर उससे ताल मिलाने लगी । जानकी बीच में तो बाकी लड़कियां उसे घेरे नाच रही थी । राघव को संगीत की धुन सुनाई दी तो उसने नजरे घुमाकर चलते हुए दूसरी ओर देखा । उसे कुछ लड़कियां नाचती हुई नज़र आई । जानकी उनके बीच पूरी तरह से छुपी हुई थी । गोल गोल घूमते हुए उसके खुले केश भी उसके चेहरे के आगे आकर उसे ढकने का प्रयास कर रहे थे । )

जबसे नैना ये जाके ,इक धनुर्धर से लागे ,

तबसे बिरहा मोहे सताए रे . . . . .

दुविधा मेरी सब जग जाने ,

दुविधा मेरी सब जग जाने ,जाने ना निरमोहिया . . . . .

घर मोर परदेसिया ,आओ पधारो पिया . . . . .

घर मोर परदेसिया ,आओ पधारो पिया . . . . .


( राघव बिना रुके मंदिर के अंदर चला आया । उसने अपने आदमियों को इशारा किया तो वो थाल लेकर आगे बढ गए । फल, फूल, दक्षिणा इत्यादि के साथ कुछ श्रृंगार का सामान था । पंडित जी ने राम सिया की मूर्ति के आगे उन्हें रखवा दिया । पंडित जी ने राघव का तिलक किया । उसने मूर्ति के आगे अपने हाथ जोड लिए । इसी बीच राघव का फोन वाइवरेट हुआ । उसने फ़ोन निकालकर देखा तो दीपक का कॉल था । राघव ने फ़ोन रिसीव कर लिया । फ़ोन के दूसरी तरफ से दीपक ने कुछ ऐसा कहा जिससे राघव की भौंहें तन गयी । वो फोन पर बात करते हुए मंदिर के प्रांगन से निकलने लगा । उसके पीछे उसके आदमी भी चल रहे थे । )

हाँ गयी पनघट पर भरण ,भरण पनियां दीवानी ,

गयी पनघट पर भरण ,भरण पनियां . . . . .

गयी पनघट पर भरण ,भरण पनियां दीवानी . . . . .

गयी पनघट पर भरण ,भरण पनियां . . . . .

हो नैनो के , नैनो के तेरे बाण से ,

मूर्छित हुई रे हिरनिया ,

झूम झ ना ना ना ना . . . . .

झना ना ना ना ना . . . . .

बनी रे बनी मैं तेरी जोगनिया ,


( नाचते वक्त जानकी की नजरें राघव पर पडी , लेकिन राघव का चेहरा उसे नज़र नही आया क्योंकि उसने अपने एक हाथ से फ़ोन कान पर लगा रखा था । वो इतनी तेजी से आगे बढ गया की सिर्फ उसक साइड पोस ही जानकी को नज़र आया । देखते ही देखते वो उसकी आंखों से ओझल हो गया । )

घर मोर परदेसिया ,

आओ पधारो पिया . . . . .

घर मोर परदेसिया ,

आओ पधारो पिया . . . . .

नृत्य करने के बाद जानकी ठहर गयी । उन सभी लड़कियों ने एक साथ ताली बजायी और उसकी तारीफ करने लगे ।

" दीदी लगता है आपको नृत्य का बहुत ज्ञान हैं कहा से सीखा आपने ? " एक लडकी ने पूछा तो जानकी मुस्कुरा दी तभी दूसरी ने कहा " हां दीदी बताइए न कहां से सीखा ? "

" बचपन में सीखा था अब तो बच्चों को सिखाती हूं । " जानकी ने जवाब दिया ।

संध्या पीछे से आते हुए बोली " मैंने तुझे कहां कहा नही ढूंढा और तूं यहां डांस कर रही हैं । चल तुझे मंदिर नही देखना । "

" हां क्यों नही देखना उसी के लिए तो आए हैं । " जानकी ने कहा । दोनों मंदिर घुमने के लिए साथ चल दी ।

वही दूसरी तरफ राघव की गाडी रूकी । गाडी रूकते ही भीड दो भागों में बटकर साइड हो गयी । राघव गाडी से बाहर आया । सामने कुछ दूरी पर उसके गार्डस एक आदमी को पकडे खडे थे । उस आदमी को देखकर साफ पता चल रहा था की उसे बहुत मारा गया हैं । उसका नाम प्रणय था और ये वही इंजीनियर था जो राघव की कंपनी में काम करता था ।

राघव को देख प्रणय गिड़गिड़ाते हुए बोला " सर प्लीज ..... प्लीज मुझे छोड दीजिए । मैंने कुछ नहीं किया सर प्लीज मुझे छोड दीजिए । अपने आदमियों से कहिए न की वो मुझे छोड दे । "

राघव उसकी ओर कदम बढ़ाया हुआ उसके पास चला आया । राघव अपनी आंखों पर से चश्मा हटाते हुए बोला " तो तुमने कुछ नही कहा ? "

" नही सर मैंने कुछ नही किया । " प्रणय के ये कहते ही राघव ने उसके चेहरे पर एक जोरदार मुक्का जड दिया ।

" कुछ नही किया तुमने तो फिर भागे क्यों ? दो दिन से हमसे क्यों छुप रहे हो ? " राघव उसका कॉलर पकड उसे झकझोरते हुए बोला " तुमने पांच जिंदगियां ली हैं और उन पांच जिंदगियों पर कितनी जिम्मेदारियां थी जानते हो । तुमने पांच परिवार बर्बाद कर दिया । किसके कहने पर किया हैं तुमने ये सब । "

" सर मैं सच बोल रहा हूं । मैंने कुछ नही किया । " प्रणय फिर से अपनी पुरानी बात दोहराते हुए बोला ‌।

" अगर तुमने कुछ नहीं किया तो पुलिस कोई तुम्हारे घर से दस करोड रूपए केसे मिले । तुम्हारी पत्नी को उसकी कोई जानकारी नहीं कम से कम तुम्हें तो होगी ही । " राघव के ये कहने पर प्रणय खामोश रहा ।

" सर इसे इतना मार चुके हैं फिर भी सच उगलने का नाम नही ले रहा ‌‌। " दीपक ने कहा ।

राघव प्रणय का कॉलर पकड़ उसे जमीन पर धकेलते हुए बोला " ये कुछ नही कहेगा तो क्या हमे पता नही चलेग । तुम्हारी चुप्पी उसकी जान नही बच सकती । जिसने भी तुम्हें इन सबके लिए पैसे दिए हैं उसे तो मैं कैसे भी करके ढूंढ निकालूगा । "

प्रणय अपने हाथ जोडते हुए बोला " सर अगर मैंने मूंह खोला तो वो लोग मुझू मार डालेंगे । "

" जिंदा तो तुम अब भी नही बचोगे । " ये बोलते हुए राघव ने उसपर अपनी गन तान दी । प्रणय की सांसें उसके गले में ही अटक गई । राघव ने गन नीचे की और उसके पैरों पर चला दी । प्रणय दर्द से चीखा आहहहह ......

राघव ने उसके दूसरे पैर पर भी गोली चला दी । आस पास खडे लोग ये तमाशा देखते रहे । जिनसे देखा न गया उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली । राघव नीचे झुका और अपनी गन एक हाथ से घुमाते हुए बोला " तूने जिन बच्चों को अनाथ किया हैं ये उसकी सजा हैं । तू मरेगा जरूर लेकिन तडप तड़पकर । एक गलती होती तो उसकी सजा बस इतनी देकर मैं छोड देता , लेकिन तूने पांच जिंदगियां ली हैं इसलिए अब तूं भी तडपेगा । तब तक तडपता रहेगा जब तक तुझे मौत नही आ जाती । "

प्रणय भयभीत नजरों से बस उसे देख रहा था । राघव ने चारो ओर नजरें घुमाई और बोला " कोई इसे हाथ नही लगाएगा । अगर किसी ने उसे हॉस्पिटल ले जाने की कोशिश की तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पडेगा । " इतना कहकर राघव अपनी गाडी की ओर बढ गया । वही प्रणय दर्द से छटपटा रहा था । राघव और उसके आदमी वहां से निकल चुके थे ।

इधर दूसरी तरफ, संध्या जानकी को मंदिर घुमाने के साथ साथ उसे राघव के परिवार के बारे में बता रही थी । संध्या चलते हुए बोली " राघव भैया थोडे सख्त हैं ... थोड़े नही बहुत सख्त हैं । हो सके तो उनके काम के बीच कभी मत आना क्योंकि उन्हें गुस्सा बहुत आता हैं । करूणा भाभी बहुत ही नेकदिल हैं । हमारी परी छोटी हैं पर शैतान बहुत हैं । राघव भैया के अलावा और किसी के हाथों से खाना पसंद नही करती । ज्यादा बडा परिवार नही हैं । बाकी तुम देखेगी न तो धीरे धीरे सब समझ जाओगी । " जानकी का ध्यान संध्या की बातों पर बिल्कुल नही था । वो तो दाना चुग रहे पक्षियों को देख रही थी ।

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लगता हैं मन ही मन मेरे लिए गालियां निकल रही होंगी मैंने आज भी उनका सामना नही करवाया । ज्यादा नही थोडा बा इंतजार और बस हो जाएगी उनकी मुलाकात । एक बहुत जरूरी काम हैं वो हो जाए तो इनकी मुलाकात भी करवा देंगे । ।

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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