Prem Ratan Dhan Payo - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 19







सुबह का वक्त , रघुवंशी मेंशन




राघव ऑफिस के लिए निकल चुका था । परी अंदर हॉल में अकेली खेल रही थी । करूणा नीचे चली आई । कैलाश जी अंदर आते हुए बोले " बहुरानी आज भी कुछ लडकिया आई हैं आप एक ..... कैलाश जी कह ही रहे थे की तभी करूणा बीच मे टोकते हुए बोली " आप बस उन्हें लाते रहिए । काम का तो कोई नही निकला । अभी तक हमे एक केअर टेकर नही मिल पाई । "

" भाभी समझिए उसकी टेंशन भी अब खत्म होने वाली हैं । " करूणा के कानों में जब संध्या की आवाज पडी तो उसने पीछे मुडकर देखा । परी बॉल से खेल रही थी । बॉल लुढ़ककर दरवाज़े से बाहर चली गई । उसे पकडने के लिए परी भी बाहर चली गई ।

" संध्या तुम कब आई ? ' करूणा ने मुस्कुराते हुए पूछा ।

संध्या अंदर आते हुए बोली " मैं तो परसों शाम को ही आ गयी थी भाभी । मेरी दोस्त भी मेरे साथ आई हैं । कल उसी को मंदिर दिखाने ले गयी थी । वक्त ही नही मिला आपसे मिलने का । "

" लो कर लो बात तुम कौन सा सात समुंदर दूर थी जो मिलने का वक्त ही नही मिला । " करूणा ने झूठी नाराजगी जताते हुए कहा ।

" भाभी मेरे साथ मेरी दोस्त आई है जानकी । याद होगा आपको मैंने उसके बारे में आपको पहले भी बताया था । आप एक बार उससे बात कर लीजिए । अगर आपको ठीक लगे तो परी की देखभाल के लिए उसे रख लीजिएगा । " संध्या ने कहा तो करूणा दरवाजे की ओर देखकर बोली " कहा है वो हमारे सामने तो लाती । इतनी तारीफें सुनी हैं तुम्हारे मूंह से उसकी , हमारा भी मन कर रहा हैं अभी उससे मिले । "

" वो इच्छा आज ही पूरी हो जाएगी भाभी । मैं अभी उसे बुलाकर लाती हूं । " संध्या ये बोल बाहर चली गयी ।

इधर परी बॉल से खेलते हुए बाहर चली आई थी । उसका ध्यान सिर्फ और सिर्फ बॉल पर था , जिसके चलते वो सीढ़ियां भी देखकर नही उतर रही थी । इससे पहले वो गिरती किसी ने आकर उसे संभाल लिया । वो और कोई नहीं जानकी थी । परी को गिरते देख आस पास खडे गार्डस भी भागकर चले आए । परी इस वक्त जानकी के गोद में थी । जानकी उसे देखते हुए बोली " आप ठीक तो हो । आपको कही लगी तो नही । "

" परी ने कुछ नही कहा । वो तो बस मुस्कुराते हुए जानकी को देख रही थी । उसने अपने छोटे से हाथों को आगे बढ़ाया और जानकी के गालों को टच करके बोली " यूं आर सो ब्यूटीफुल । " जानकी को उसकी बातों पर हंसी आ गई । परी आगे बोली " आपकी स्माइल भी बहुत अच्छी है । " जानकी उसकी नाक टच करते हुए बोली "' आप भी बहुत प्यारी हो ? "

" क्या आप मेरे साथ खेलोगी ? " परी ने पूछा ।

जानकी उसे अपनी गोद से उतारते हुए बोली " क्या खेलना है ? "

' मैं जो बोलूंगी आप वो करना । मैं बॉल पास करूगी और आपको कैच करना हैं । अगर आपने कैच नही किया तो आप आउट हो जाओगे । " ये बोलते हुए परी ने अपनी बॉल उठा ली । अब वो उसके सामने आकर बोली " पहले आपकी टर्न हैं । आप मुझे पास करो मैं कैच करूगी । "'

ये बोल परी ने उसके हाथों में बॉल थमाई और कुछ दूरी पर जाकर खडी हो गयी । जानकी ने धीरे से उसकी ओर बॉल फेंका । दोनों हंसते मुस्कुराते हुए गेम खेल रही थी । संध्या दूर खडी उन दोनों को देख रही थी । काफी वक्त तक जब वो अंदर नही आई , तो करूणा ने केलाश जी से कहा " किसी को बुलाने में इतना वक्त लगता है क्या ? कहा रह गयी संध्या ? "

" जरा ठहरिए बहुरानी हम देखकर आते हैं । " कैलाश जी ने कहा तों करूणा टोकते हुए बोली " नही हम भी चलते हैं । " दोनों बाहर चले आए । उन्हें थोडी ही दूरी पर संध्या खडी दिखाई दी । करूणा उसे देखते हुए बोली " संध्या तुम यहां क्यों खडी हो और तुम्हारी दोस्त कहा हैं ? "

संध्या ने करूणा को सामने की ओर देखने का इशारा किया । करूणा और कैलाश जी ने सामने की ओर देखा । परी को जानकी के साथ खेलते देखकर दोनों आश्चर्य चकित थे । परी इतनी आसानी से किसी के पास भी नही जाती थी और यहां वो हंसते हुए जानकी के साथ खेल रही थी । करूणा धीरे से बोली " क्या यही तुम्हारी दोस्त हैं ? "

" हां भाभी यही हैं जानकी । " संध्या जानकी को आवाज लगाते हुए बोली " जानू .....

संध्या की आवाज सुन जानकी की नजरें उसपर गयी । जानकी ने हाथों के इशारे से उसे अपने पास आने के लिए कहा । जानकी उसके पास चली आई । संध्या करूणा से मिलवाते हुए बोली " जानकी यही हैं करूणा भाभी , मैंने तुम्हें बताया था न इनके बारे में । "

जानकी ने हाथ जोड़कर उन्हें नमस्ते कहा । संध्या आगे बोली " और इनसे मिले ये हैं कैलाश जी राघव भैया के अकाउंटेंट । " जानकी ने उन्हें भी नमस्ते कहा ।

संध्या परी की ओर इशारा कर बोली " वो जो नटखट शैतान देख रही हो । उसका नाम हैं पूर्विका सिंह रघुवंशी यानी हमारी परी । "

करूणा जानकी के पास आई और उसके चेहरों को अपने एक हाथ से छूकर बोली " बहुत तारीफ सुनी हैं हमने आपकी । संध्या के मूंह से जब भी आपका जिक्र छिडता था , हमारा मन करता था उसी वक्त हम आपसे मिले । आप सचमुच बहुत सुंदर हैं । "

" भाभी आपको जानू से जो पूछना हैं पूछ लीजिए । " संध्या कह ही रही थी कि तभी परी भागती हुई जानकी के पास आई और उसके पैरों से लिपटकर बोली " जानू मेरे साथ खेलो न । " सबकि नजरें परी पर गयी ‌‌। एक ही मुलाकात में इतना अपनापन । सबके लिए में आश्चर्यचकित करने वाला दृश्य था ।

संध्या अपने दोनों हाथ कमर पर रखकर बोली " आपको दीदी कहना हैं तों दीदी कहिए ये मेरी जानू हैं । "

परी जानकी को और ज्यादा कसकर पकड़ते हुए बोली " नही आप दीदी बोलो ये मेरी जानू हैं । " उसके ये कहते ही सबको हंसी आ गई ।

कैलाश जी करूणा से बोले " आप कहे तो बहुरानी उन लड़कियों को भेज दे । "

" भेजना ही पडेगा कैलाश जी , परी ने तो जानू को चुन लिया अपने लिए । अब तो कुछ कहना की जरूरत ही नही हैं । " करूणा ने कहा । सब लोग जाने के लिए आगे बढे तो जानकी टोकते हुए बोली " भाभी मां जरा हमारी बात ..... जानकी की आवाज धीमी होती चली गई । करूणा उसकी ओर पलटी तो जानकी पलके झुका कर बोली " सॉरी अगर आपको बुरा लगा हो तो । "

करूणा मुस्कुराते हुए बोली " नही जानू हमे आपके मूंह से भाभी मां सुनकर अच्छा लगा । अगर आपको बुरा न लगे तो हम आपको जानू कह सकते हैं । "

करूणा के ये कहते ही जानकी ने अपना चेहरा उठाया और मुस्कुराते हुए बोली " हां क्यों नहीं ? लेकिन भाभी मां हम ये कहना चाहते थे की आपने तो हमसे कुछ पूछा ही नही । न ही हमारे बारे में कोई सवाल किया । बिना हमे जाने आपने अपनी बच्ची की जिम्मेदारी हमे दे दी । "

" जानू आपको चुनने की वजह आपके पास खडी है । जो लडकी अपने चाचू के सिवा और किसी की बात नही मानती वो आज आपको ऐसे पकड़कर खडी है जैसे बरसों से आपको जानती हो । हमे संध्या आपके बारे में पहले ही सब कुछ बता चुकी हैं । अगर कुछ बाकी रह गया हैं तो आप हमे बता दीजिएगा । अब तो आप भी यही है और हम भी । बाहर धूप में और कितनी देर खडी रहेंगी .... अंदर आईए । " ये बोल करूणा पलट गयी । जानकी ने परी को गोद में उठाया और आगे बढ गयी । सब लोग अंदर चले आए । कैलाश जी वहां से जा चुके थे । करूणा जानकी की ओर देखकर बोली " हमे नही लगता की आपको ये बताने की जरूरत है की आपको क्या करना होगा ? बस यूं समझिए इसके जागने से लेकर सोने तक इसके साथ रहकर इसे संभालना हैं । आप यही इसी हवेली में रहेंगी । परी के बगल वाला कमरा कुछ ही घंटो में आपके लिए रेडी करवा दिया जाएगा । ..... संध्या सुरेश से कहो उस कमरे की सफाई जल्द से जल्द करवा दे । "

" जी भाभी , इतना बोल संध्या वहां से चली गयी ‌‌। जानकी उसे जाते हुए देख रही थी । जानकी खुद है मन में बोली " हमे तो लगा हम संध्या के साथ रहेंगे , लेकिन हमे उससे अलग इस हवेली में रहना पड़ेगा । "

" जानकी क्या सोच रही हैं आप ? "

" कुछ नही भाभी मां । "

" जानकी यहां सब कुछ आपके लिए नया हैं इसलिए हिचकिचाहट हो रही हैं हम समझ सकते हैं , लेकिन हमसे डरने की जरूरत नहीं है । " करूणा ने कहा ।

जानकी हल्की मुस्कुराहट के साथ बोली " एक बात कहे भाभी मां ? "

" हां कहो "

" संध्या आपकी बहुत तारीफ करती थी । हमे तो यकीन ही नही होता था कोई इतना अच्छा कैसा हो सकता है लेकिन आज जब आपको देखा तो मालूम पडा वो सच ही कहती थी । " जानकी की बातों पर करूणा मुस्कुराते हुए वहां से चली गई । परी जानकी के गालों को छूकर बोली " जानू हमे खेलना हैं । "

" ठीक हैं तो हम खेलते हैं । " जानकी ने उसी के लहज़े में उसे जवाब दिया ।

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रात का वक्त , ठाकुर भवन




नारायण जी अपने दोस्त के बेटे की शादी में गए हुए थे । दिशा और कुंदन अपने अपने कमरे में सोने के लिए जा चुके थे । सारा काम ख़त्म करने के बाद गायत्री अपने कमरे में पहुंची । गिरिराज अलमारी के पास खडा होकर अंदर से कुछ सामान निकाल रहा था । गायत्री बिना कुछ बोले अंदर चली आई । गिरिराज ने ठीक उसी वक्त कबर्ड का दरवाजा बंद किया । गायत्री को देखकर तुरंत अपने हाथ पीछे कर लिए । गायत्री उसके हाथों में सोने के कंगन देख चुकी थी । वो बिना उसकी ओर ध्यान दिया बेड की चादर ठीक करते हुए बोली " छुपाने की जरूरत नहीं है । वैसे भी मेरे जेवरो की गिनती दिन ब दिन कम होती जा रही हैं । एक और कम हो जाएगी तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा । "

गिरिराज ने अपने हाथ आगे कर लिए । वो अपने हाथों में रखे कंगन को देखने लगा । गायत्री बिना उसकी ओर देखे बोली " वो कंगन आपकी मां की निशानी है जो बाबुजी ने घर की बडी बहु होने के नाते मुझे दिया था । कम से कम इसे तो घर में रहने दीजिए । इसके अलावा नीचे वाले लॉकर में दूसरे कंगन रखे हैं । चाहे तो वो अपनी माशूका को दे सकते हैं । "

गिरिराज ने उन कंगनों को वही बिस्तर पर फेका और गुस्से से बोला " तुमको का लगता हैं । हम अपने घर की चीजे उठाकर बाहर बांटकर आते है । रखो अपने कंगन जरूरत नही हैं हमको इसकी और जो तुम हमको रोकने की कोशिश कर रही हो किस हक से । बीवी होने का कौन सा सुख दी हो । पांच साल में एक बच्चा तक नही दे पाई । बाबुजी को खुश करने का एक मौका था ऊं भी हाथ से चला गया । हमको का मालूम था तुम जैसी बांझ हमारी किस्मत में चली आएगी । ' इतना कहकर गिरिराज कमरे से बाहर चला गया । गायत्री के काम करते हुए हाथ एक पल के लिए रूक गए । वो वही बिस्तर पर बैठ गयी । कोई कितना भी मजबूत क्यों न हो लेकिन एक औरत को ये बांझ शब्द तोड़कर रख देता है । कोई भी इंसान अपने हाथों से अपनी किस्मत नही लिखता । जब किस्मत लिखना वाला वो विधाता हैं तो दोष इंसान दूसरो के सिर पर क्यों मढ देता है ।

स्त्री बांझ है , स्त्री कुल्टा है ...

स्त्री कुलक्षणी है , स्त्री ही भक्षिणी है .....

क्या सुना है कभी समाज में बांझ मर्द ,

चाहे मर्द ही नपुंसक क्यों न हो..

कुल्टा ,खुदगर्ज ,आरोपित स्त्री ही होती है !

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जानकी को करूणा ने काम पर रख लिया लेकिन क्या हौ पाएगा राघव और जानकी का आमना सामना ? " कैसी होगी इनकी मुलाकात ? क्या होगा जब जानकी राघव का असली रूप देखेगी ? जानेंगे अगले अध्याय में

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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