ek thi rabbo in Hindi Motivational Stories by Wajid Husain books and stories PDF | एक थी रब्बो

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एक थी रब्बो

वाजिद हुसैन की कहानी- मार्मिक

अट्ठारह बरस की रब्बो का यौवन निखर रहा था।रोज़ाना उसके अफग़ानी माता-पिता, चाचा-ताऊ उसका ब्याह कर देने के बारे में सोचते और कई बार इकट्ठे बैठकर इस बारे में राय-मशवरा भी कर चुके थे। लेकिन रब्बो को चाचा-ताऊ के लड़कों में से कोई भी पसंद नहीं था। उसके ताऊ का बड़ा लड़का रहमत मटरगश्ती करता था। चाहे वह सुंदर और लंबा– तगड़ा जवान था, रब्बो उसे कायर समझती थी। नई बस्ती के गद्दियों के लड़कों ने उसे एक- दो बार मारा-पीटा भी था।... गद्दियों के लड़के कहते थे, 'इसके पास शरीर तो है, लेकिन दिल नहीं।' और रब्बो दिल की ग्राहक थी। शारीरिक दृष्टि से उसके पास कोई कमी न थी पांच फुट छह इंच लंबी थी वह, और मक्खन पर पला उसका शरीर मक्खन-सा ही सफेद और उससे भी अधिक कोमल था। और फिर रब्बो पर इन अफग़ान पठानों की छाप पड़ी हुई थी‌। वे बीघो ज़मीन के मालिक थे‌। वे सदियों पहले यहा बसाए गए थे। ... स्वतंत्रता सेनानियों और अंग्रेज़ों की छावनी के बीच बेरियर बनने के लिए, अंग्रेज़ उन्हें प्रलोभन देते थे। कुछ को पुलिस में नौकरी और भी न जाने क्या-क्या फैसिलिटी दी थी।
गद्दी यहां पीढ़ियों से रहते थे। वे दूध का व्यापार करते थे। कुछ लोगों का मानना है, इनके वंशज गूजर‌ थे। उनके ख़ानदान के लोग बलवान तो थे, पर पठानों को सदियों से शासकीय समर्थन था। इस कारण से अफग़ानी पठानों ने उनकी ज़मीनों पर कब्जा कर लिया था। गद्दियों ने अपनी रिहाइश के लिए नई बस्ती बना ली थी।
इन गद्दियों की लड़कियों में कोई भी रब्बो जितनी सुंदर न थी। उनकी लड़कियां ख़ुद रब्बो के रूप-रंग की प्रशंसा करती रहती थी। उस जैसी लम्बी- पतली लड़की उस गांव में कोई न थी।
रब्बो को पठानों और गद्दियों के बीच झगड़े-फसाद, खून-खराबा पसंद नहीं था। वह अंग्रेज़ों की इस चाल को समझती थी। वह पठानो से कहती थी, 'अंग्रेज़ हमारे देश में शासन करने के लिए हमरे बीच फूट डालते हैं। इस हक़ीक़त को झुठलाया नहीं जा सकता -सदियों पहले हमारे पूर्वजों ने उनकी ज़मीनों पर कब्ज़ा किया है इसलिए भाईचारे के लिए हमें पहल करनी होगी।' कभी-कभी वह सोचती थी, 'वह ब्याहकर गद्दियों में चली जाए तो पठान और गद्दी रिश्तेदार हो जाएंगे और हमेशा के लिए दुश्मनी पर विराम लग जाएगा।'
रब्बो के घर नई बस्ती से एक अतिथि आया करता था। वह पच्चीस वर्ष का सुडौल मज़बूत क़द-काठी का युवक था। उसका पूरा नाम सिराजुद्दीन था। सब कहते थे कि वह अपने गांव में पांच बीघे ज़मीन का मालिक है, किंतु रब्बो को विश्वास नहीं होता था। यदि सिराजुद्दीन को अंग्रेज़ों को ज़मीन देना होती तो रब्बो के पिता चाचा ताऊ में क्या दोष था, शायद सिराजुद्दीन को मेहमान समझकर ही ऐसा लोग कहते थे। ... ख़ैर यदि वह सिराजुद्दीन ज़मीन वाला था भी, तो इससे क्या। रब्बो के पिता भाईयो ने तो कभी भी उसे रब्बो के योग्य वर नहीं समझा था। सिराजुद्दीन रब्बो की ओर हमेशा कनखियों से देखा करता था। रब्बो जब भी उसके सामने होती, उसे ऐसा लगता जैसे उसे वह आंखों-आंखों में ही देख रहा हो, भाप रहा हो। और इसीलिए रब्बो उससे झिझकती थी, उसे अच्छा नहीं समझती थी। रब्बो समझ रही थी कि वह आदमी उसी के लिए उनके पास आता है। ... कहीं नई बस्ती आते- जाते वह रब्बो के भाई रहमत को मिल गया था और रहमत उसे घर ले आया था। रब्बो को याद था, उस दिन जब वे दोनों आए थे, रब्बो दरवाज़े में खड़ी थी, संभवत: उसी घड़ी सिराजुद्दीन के चोट लगी थी‌। किंतु रब्बो को उसका हर छठे, सातवें दिन ठाट से आटपकना भला नहीं लगता था। और फिर वह रब्बो के पिता से कह ही क्यों नहीं देता। कि रब्बो का विवाह उसके साथ कर दें। वह जब भी रब्बो को घर से भागने के लिए कहता, वह सोचती थी कि मेरे पिता ने उसे शायद जवाब ही दे दिया है‌। रब्बो सोचती थी अगर वह मुझे अच्छा लगता हो, तो मैं ख़ुद न उसके साथ भाग जाऊं?
उन दिनों गांवो में भी स्वतंत्रता आंदोलन की लपट पहुंच चुकी थी। रब्बो के गांव में पंडित ज्वाला प्रसाद और शफीक उल्ला आंदोलन से जुड़ चुके थे। वह छुपते- छिपाते लोगों को आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित करते थे। एक दिन वह रब्बो के घर उसके भाई रहमत के पास आए। उससे आंदोलन में भाग लेने के लिए कहा। रहमत के अंदर अपने बाप-दादा की तरह, अंग्रेज़ो की गुलामी के जीवाणुओ का साम्राज्य था। अत: उसने उन्हें कोई तवज्जो न दी पर रब्बो ने उनकी पार्टी की सदस्यता ले ली। वह स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने लगी थी। उसकी रुचि समाजसेवा में भी थी। गांव की स्त्रीयों के बीच जाकर उनकी समस्याओं का निवारण करती थी।
रब्बो जहां भी जाती थी, उसे सुनने को मिलता, 'फलां की बेटी या बहू भाग गई थी, कुछ दिन बाद उसकी लाश नदी में मिली थी। रब्बो को‌ संदेह हुआ तो उसने गुप्त रूप से जानकारी जुटाई। वह जान चुकी थी, हर भागी हुई या मृतक के तार कहीं-न-कहीं सिराजुद्दीन से जुड़े थे। रब्बो को लगा, 'शायद इसी नियत से सिराजुद्दीन मुझे अपनी ओर आकर्षित करता था और भागने के लिए उकसाता था। यदि मैं उसके झांसे में आ जाती तो मेरा भी यही हश्र हुआ होता।'
रब्बो के कहने पर पंडित ज्वाला प्रसाद और शफीक अहमद ने पुलिस को सूचित किया। पुलिस ने सिराजुद्दीन को रंगे हाथ पकड़ने की योजना बनाई। प्लान के अनुसार, रब्बो ने सिराजुद्दीन से नज़दीकी बढ़ाई और घर से भागने का प्लान बनाया। एक रात वह सुनिश्चित स्थान पर पहुुंच गई जहां सिराजुद्दीन उसका इंतज़ार कर रहा था। उसके साथ एक अंग्रेज़ भी था। पुलिस देखकर अंग्रेज़ ने सिराजुद्दीन की गोली मार दी। दरोगा ने अंग्रेज़ से कहा, 'सर प्लीज़ रन।'
रब्बो हथियारों के बीच ही पली बढ़ी थी। अपनी सुरक्षा के लिए वह पिस्टल साथ लाई थी। उसने भागते हुए अंग्रेज़ पर फायर कर दिया। फायर की आवाज़ सुनकर गांव वाले वहां पहुंच गए थे। उन्होंने उस गोरे को तड़पते देखा, जिसने उनकी लड़कियों की बलात्कार के बाद हत्या की थी। वह कलक्टर पीटरसन था।
कलक्टर की हत्या के जुर्म में रब्बो को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसे फांसी की सज़ा हुई थी। वीराने में बने एक मज़ार को लोग रब्बो का मज़ार बताते हैं और आस्था के साथ उस पर फूल चढ़ाते हैं। यह कहानी हर मां अपनी बेटी को सुनाती‌‌ है, ताकि प्यार का झांसा देकर कोई उसकी अस्मिता से खिलवाड़ न कर सके।
348 ए, बाइक एंक्लेव, फेस 2, पीलीभीत बाईपास, बरेली (उ प्र) 243006 मो: 9027982074 ई मेल wajidhusain963@gmail.com