Prem Ratan Dhan Payo - 30 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 30







जानकी ने कसकर अपनी आंखें बंद कर ली । उसने गले के करीब अपनी ओढ़नी को कसकर मुट्ठियों में थाम रखा था । पीछे खडे वो तीनों लडके एक राक्षसी हंसी हंस रहे थे । जानकी की घबराहट भी बढ चली थी । अचानक ही उसने महसूस किया जैसे उन लोगों ने उसका दुपट्टा छोड दिया हो । एकाएक उनकी हंसी भी बंद हो गयी । जानकी ने अपनी आंखें खोली । पीछे पलटकर देखने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी फिर भी उसने कोशिश की । जानकी ने जब पलटकर देखा तो आंखें हैरानी से बडी हो गई । जिस आदमी ने उसका दुपट्टा पकड रखा था । उसके हाथ को इस वक्त राघव ने पकडा हुआ था । राघव ने सिर्फ एक हाथ से उसकी कलाइ को थामा हुआ था । उसने इस तरह से उसपर पकड बनाई जिससे उस आदमी की पकड जानकी के दुपट्टे पर पूरी तरह से ढीली पड़ गई । जानकी ने तुरंत अपना दुपट्टा खींच लिया । राघव की नजरें जानकी पर ही थी , जिसमे गुस्से की ज्वाला साफ नज़र आ रही थी । राघव थोडा सख्ती से बोला " जाओ यहां से ? "

शायद जानकी का ध्यान उसकी बातों पर नही था , इसलिए वो वहां से हिली भी नही । राघव थोडा और गुस्से से बोला " मैंने क्या कहा सुना नही तुमने , जाओ यहां से । " इस बार उसकी आवाज जानकी के रोम रोम को हिलाकर गुजरी जिससे वो अंदर तक कांप गई । वो तुरंत उल्टे पांव वहां से लौट गयी । राघव ने उस आदमी के हाथ को जैसे ही मरोडा वो दर्द से कराहने लगा ।

" ऐ ... ऐऐऐऐऐ .... क्या कर रहा है तूं ? उसका हाथ टूट जाएगा छोड उसे । " सामने खडे लडके ने कहा ।

" राघव तिरछी मुस्कुराहट लिए बोला " वही तो करना हैं । " ये बोल राघव ने उसके हाथ को मरोड दिया । अच्छी खासी हड्डियां डेमेज हो गयी होंगी , क्योंकि आवाज बहुत तेज से आई थी । सामने खडे दोनों लडके डर से कांप गए थे । इतनी हिम्मत नहीं थी की आगे बढ़कर राघव पर हमल कर सके ‌‌। दोनों अपने दोस्त को देख रहे थे जो जमीं न पर पडा छटपटा रहा था । दोनों ने जैसे ही भागने की कोशिश की वैसे ही राघव के गार्डस उन दोनों आदमियों का रास्ता घेरकर खडे हो गए । राघव अपने आदमियों से बोला " अच्छा सबक सिखाओ ताकी दोबारा किसी भी लडकी की तरफ आंख उठाकर भी न देख पाए । " राघव मे बोल वहां से चला गया और उसके आदमी उन तीनों लड़कों को खींचते हुए वहां से ले जाने लगी ‌ ।

उधर जानकी परी के पास चली आई । इस वक्त जानकी भी काफी घबराई हुई थी । डर इस बात का था की राघव कही उन तीनों को शूट न कर दे । जानकी चुपचाप अपनी चेयर पर आकर बैठ गयी । उसकी नजरें बार बार सामने की ओर जा रही थी जहां से लोग एंट्री लेते हैं ।‌ राज जानकी से बोली " ये क्या जानू आपने तो अभी तक सैंडविच का एक भी बाइट नही लिया । "

" नही हमे भूख नही हैं । " जानकी ने कहा । इसी बीच परी मुस्कुराते हुए बोली " चाचू आ गए । " उसके ये कहने पर जानकी की नज़र सामने की ओर गयी । राघव को आते देख उसने नजरें नीची कर ली । राघव अपनी सीट पर आकर बैठ गया ।

" क्या बात है आज तो संडे हैं फिर भी जरूरी काम । " अमित ने पूछा ।

" कल का कुछ काम पैंडिंग था ‌‌। मैंने ही कहा था आज मुझे कॉल कर लेना । " राघव ने कहा । वो दोनों अपनी बातों में व्यस्त थे । जानकी कनखियो से राघव को देखने की कोशिश कर रही थी । बात करते वक्त जब राघव उसकी ओर देखता तो वो तुरंत झेंप जाती । राघव ने चार से पांच बार इस बात को नोटिस किया । जानकी ने कभी सामने से उससे चार शब्द नही कहे । अब जो मन में सवाल था वो पूछे भी कैसे ?

कुछ देर बाद सब लोगों ने घर वापसी का प्लान बनाया और वहां से उठकर बाहर चले आए । परी इस वक्त राज की गोद में थी । वो जान बूझकर उसकी गोद में गयी थी , ताकी उसके बाल खींचकर उसे परेशान कर सके । अमित सबसे आगे चल रहा था । राज के पीछे जानकी थी और उसके ठीक पीछे राघव चल रहा था । राज झल्लाते हुए बोला " परी अगर मेरे बालों का सत्यानाश किया तो मैं यही से तुम्हें नीचे फेंक दूगा । "

परी मासुमियत से बोली " फिर तो मैं आपसे पहले पहुंच जाऊगी । "

राज मन में बोला " कमाल की लडकी हैं ये नही कहा मुझे चोट लग जाऊगी । बस उल्टा जवाब दे रही हैं मैं आपसे पहले पहुंच जाऊगी । पता नही इसे जन्म देते वक्त भाभी मां ने क्या खाया था ? "

चलते वक्त ऊंची हील के कारण जानकी लडखडा गयी । वो तो गरिमत रही राघव उसके ठीक पीछे था , इसलिए उसने उसे संभाल लिया । जानकी उसकी शर्ट मुट्ठियों में भींचे उसकी बाहों में पीछे की ओर झुकी हुई थी और राघव उसे संभाले हल्का सा झुका था । सच कहु तो जादू था उन बडी बडी पलकों में । झुक जाए तो माना ज़माना सो गया हो और जब उठती थी तो जन्नत का दीदार करा देती थी । जानकी की पलके ज्यों उठी नजरें राघव के नजरों से जा मिली । दोनों ही दुनियां जहां भूलकर बस एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे । अमित लिफ्ट के पास खडा था । राज भी उसके पास आकर रूक गया । " बडे भैया आप यहां क्यों खडे हैं अंदर चलिए ? "

अमित अपने हाथों को फोल्ड करते हुए बोला " मुफ्त में फिल्म देखने को मिल रही हैं , फिर ये सीन कैसे मिस कर सकता हूं । " अमित की बातों का मतलब राज को समझ नही आया लेकिन उसने जब अमित की नजरों का पीछा करते हुए मुड़कर देखा , तो उसकी आंखे भी खुली की खुली रह गयी ।

दोनों ही इस वक्त एक दूसरे की नजरों में खोए हुए थे । कुछ देर बाद जानकी ने पलके झपका ली , तो राघव का ध्यान उसपर से हट गया । वो उसे सीधा खडा करते हुए बोला ' जब ये सब संभाला नही जाता तो पहनती क्यों हो ? " ये बोल राघव आगे बढ गया । जानकी भी चुपचाप उसके पीछे चल दी ।

राज और अमित मुस्कुरा रहे थे और उन्हें देख परी भी । राघव उन दोनों के पास पहुंचकर बोला ' तुम सब किस बात पर इतना हंस रहे हो ? "

" बस यूं ही दिल किया तो हंस दिए । " ये बोल अमित लिफ्ट के अंदर चला गया । बाकी सब भी उसके पीछे गए । वो पॉचो मॉल से बाहर आ चुके थे । घूमते घूमते पता ही नही चला शाम कब हो गयी ‌‌। बाहर निकलते वक्त जानकी की नज़र तीन लड़कों पर पडी पहचानने में उसे वक्त लग गया । वो तीनों मॉल के बाहर घुटनों के बल बैठे हुए थे । शरीर पर कयी जगह पट्टियां बंधी हुई थी । एक के हाथों में तो प्लास्टर भी चढा था । वो तीनों बाहर निकलने वाले लोगों को सलाम कर रहे थे । जानकी को पहचानने में थोडा वक्त जरूर लगा लेकिन उसने पहचान लिया ये तीनों वही थे जो कुछ देर पहले उसे छेड रहे थे ।

" इनकी इस तरीके से धुलाई किसने की । " अमित ने उन्हें देखकर कहा । उनके साथ राघव को देखकर वो तीनों सकपका गये थे ।

राज हल्की मुस्कुराहट के साथ बोला " जरूर किसी लडकी को छेडा होगा और उसके बायफ्रेंड ने आकर इनकी धुलाई कर दी होगी ।‌"

जानकी राघव को देख रही थी । अब पूछना क्या था दिल तो यही कह रहा था इस राक्षस ने ही इन लोगों की ये हालत की हैं । राघव कुछ कुछ नही बल्कि जानकी के मन की पूरी बात जान चुका था । " घर चले हमे देर हो रही हैं । " राघव ये बोल अपनी गाडी की तरफ बढ गया । सब गाडी में बैठ हवेली के के लिए निकल गए ।

____________

रात का वक्त , ठाकुर भवन




नारायण जी और गिरिराज हॉल में सोफे पर बैठे हुए थे । गायत्री नौकरों से कहकर डायनिंग टेबल पर खाना लगवा रही थी ।

नारायण जी ने गिरिराज से कहा " कल टेंडर का रिजल्ट आने वाला हैं । बाहर कही मत जाना काहे की तुमको हमरे साथ कलेक्टर ऑफिस चलना हैं । "

" बाबुजी कलेक्टर ऑफिस काहे ? " गिरिराज के इस सवाल पर नारायण जी बोले " भसिया गए हो यां भांग का नशा करके आओ हो । सरकारी टेंडर हैं और कलेक्टर ऑफिस में निकलने वाला है । ऊहा नही जाएंगे तो क्या पाताल में जाएंगे ‌‌। "

गिरिराज नजरें चुराते हुए मन में बोला " बाप रे ई सरकारी टेंडर था । हम तो फाइल खोलकर देखे भी नही । जो गायत्री बना दी ऊं लेकर बाबुजी को दे दिये । हमको ईहा से उठ जाना चाहिए । वरना बाबुजी का दूसरा सवाल उठा तो पक्का फंस जाएंगे । "

गिरिराज बात बदलते हुए बोला " बहुत वक्त हो गया हैं बाबुजी चलिए न चलकर भोजन कर लेते हैं । " नारायण जी ने उसकी बातों पर हामी भरी और डायनिंग टेबल पर चले आए ।

कुंदन भी उनके आने के बाद वहां पहुंच गया । गायत्री सबको खाना परोसने लगी । दिशा को ना पाकर गिरिराज ने कहा " दिशा कही दिखाई नहीं दे रही । "

" वो थक गयी थी इसलिए सोने चली गई । " गायत्री ने जवाब दिया ।

" आज तो संडे था , कालेज की भी छुट्टी थी लेकिन पूरा दिन तो घरपर हमको दिखाई नहीं दी । " कुंदन ने कहा तो नारायण जी उसकी ओर देखने लगे । " का मतलब हैं तुम्हरा ? "

" मतलब का हैं हम तो बस इतना पूछ रहे हैं पूरा दिन घरपर नही थी तो कहां थी । " कुंदन ने कहा ।

गायत्री ने थोडा डरते हुए कहा " वो अपनी सहेली के साथ उसके घर गयी थी । एग्जेमस नजदीक आ रहे हैं तो बस दोनों सहेलियां साथ में पढना चाहती थी । '

" बाहर जाकर पढ़ने की जरूरत नहीं है । उसको बोल देना जो भी सहेली को घर बुलाकर पढे । आज माफ़ कर रहे हैं आगे से नही करेंगे । " नारायण जी ये बोल वापस से खाना खाने लगे ।

__________

रात का वक्त , रघुवंशी मेंशन




परी की शॉपिंग में खिलौने के अलावा ज्यादा कुछ नही था । वो घर आने के बाद सबको अपना सामान दिखा रही थी । करूणा जानकी की ओर देखकर बोली " इसने अकेले शॉपिंग की और आपने अपने लिए कुछ नही लिया जानू ।‌‌ "

इससे पहले जानकी कुछ कहती राज बोला " कुछ नही लिया भाभी मां । मैंने तो सुना था शॉपिंग करना लड़कियों का फेवरेट काम होता हैं , लेकिन इन्हें देखकर ये बात गलत लग रही हैं । "

" नही भाभी मां ऐसी कोई बात नहीं है । परी ने भी हमारे लिए ड्रेस पसंद की । " जानकी ने कहा । राघव और अमित उन सबके बीच नही थे । वो दोनों ऑफिस का प्रोजेक्ट डिसकश करने के लिए स्टडी रूम में चले गए थे ।

इधर राज और परी आपस में झगड़ते हुए खेल रहे थे । करूणा को कुछ काम याद आ गया तो वो वहां से चली गई । जानकी भी कपड़े चेंज करने के लिए अपने रूम में चली गई । जानकी जब चेंज कर वाशरूम से बाहर निकली तो उसकी नज़र संध्या पर पडी , जो बेड पर बैठी उसका ड्रेस देख रही थी । जानकी को देख उसने मुस्कुराते हुए कहा " जानू ये कितना प्यार हैं ,। सचमुच इसे परी ने सिलेक्ट किया हैं । छोटी सी हैं लेकिन पसंद लाजवाब है । "

जानकी उसके पास चली आई । उसने ड्रेस की गले वाले हिस्से पर लगे स्टीकर को दिखाते हुए कहा " हमने इसकी कीमत अदा नही की । इनकार भी किया हमने लेकिन उन्होंने जबरदस्ती हमे ये ड्रेस खरीदकर दी । "

*********

अब जबरदस्ती कहे या कुछ और राघव तो ऐसा ही हैं ।‌ये तो बस शुरुआत है । अभी तो बहुत सी चीजें सामने आना बाकी हैं । अब देखना ये हैं की जानकी इन सबसे कैसे निपटेगी ? राज को अपने किए की बालकनी सही पनिशमेंट मिली वो भी परी के हाथों

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


**********