Prem Ratan Dhan Payo - 32 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 32







परी भी तालिया बजाने लगी थी । संध्या राज से बोली " जल्दी आगे आईए राज अब आपकी बारी । " राज ने पट्टी बंधवाई और गेम शूरू हो गया । परी की शरारतें भी कुछ कम नही थी । कभी वो राज को पीछे से मारकर भागती , तो कभी उसके टांगों के बीच से निकलकर भाग जाती । जानकी का दुपट्टा पौधे में अटक गया जिसे निकालने के चक्कर में वो पकडी गयी । सच तो ये था की राज ने चींटिंग की थी । राज ने जानकी के आंखों पर पट्टी बांधी और उसे घुमाते हुए बोला " सॉरी मैं कोई मदद नहीं करूंगा । अब तो अपनी होशियारी से ही आपको पकडना पडेगा । जानकी मुस्कुरा दी ।

हर कोई आवाजें देकर उसे परेशान कर रहा था । करूणा भी उन्हें देख मुस्कुरा रही थी । जानकी ने परी को पकड लिया था , लेकिन वो चालाकी से भाग निकली । इसी बीच जानकी ने किसी को पकड लिया और खुशी से बोली " मैंने पकड लिया ..... पकड लिया मैंने आपको राज.... ये बोलते हुए उसने जैसे ही आंखों से पट्टी रिमूव की उसकी आंखें हैरानी से बडी हो गयी । इस वक्त वो जिसे पकड़े खडी थी वो और कोई नही राघव था । अमित काव्या के पास जाकर बैठ गया । परी तो मूंह पर हाथ रख बस हंसे जा रही थी । उसकी हंसी सुनकर राघव और जानकी का ध्यान टूटा " सॉरी वो मैं ..... जानकी ने सफाई देनी बस शुरू ही की थी , लेकिन राघव उसे इग्नोर कर ऐसे निकवा जैसे उसे कोई फर्क ही न पडा हो । परी भागकर राघव के पास चली आई । " चाचू आप भी खेलो न हमारे साथ । "

" हमे ये गेम नही आता । " राघव उसे अपनी गोद में उठाते हुए बोला ।

" कोई बात नही हम आपको सिखा देंगे । ..... जानू आप चाचू के आंखों पर पट्टी बाधिए । " परी ने जानकी की ओर देखकर कहा ।

वो चुप खडी रही । राघव ने परी को गोद से नीचे उतारा और जानकी के पास चला आया । " बांधों पट्टी "

जानकी ने सुना तो पलके उठाकर उसकी ओर देखा । उसने राघव के पीछे जाकर उसकी आंखों पर पट्टी बांधा । " ज्यादा टाइट तो नही है । " जानकी ने धीमी सी आवाज में कहा ।

" नही " राघव ने बस इतना जवाब दिया । परी राघव का हाथ पकड बीच में ले आई । " चाचू अब मैं आपको गोल गोल घुमाऊगी फिर आप हम सबको पकड़ोगे । आप जिसको पकड़ोगे वो आऊट हो जाएगा और फिर उसकी टर्न आ जाएगी । " परी ये बोल राघव को अपने साथ घुमा रही थी । दो चक्कर लगाने के बाद वो भाग गयी ।

सबकी हवा टाइट थी अब उसके साथ खेले तो खेले कौन ? परी सबकी ओर देखकर बोली " आप सब भाग क्यों नही रहे फिर तो चाचू आप सबको पकड लेंगे । " परी के ये कहते ही राज बोला " नही .... नही .... मैं भाग रहा हूं ‌। "

जानकी का खेलने का मन नही था , इसलिए वो जाने के लिए पलट गयी । राघव राज की तरफ बढ रहा था । राज तुरंत साइड हट गया , लेकिन उसके ठीक पीछे जानकी थी जो अभी पलटी ही थी । राघव ने पीछे से उसे पीछे से पकड लिया ‌‌। इस तरह अचानक किसी के पकडने से जानकी चिल्लाने लगी । उसकी चिललाने की आवाज सुनकर सबने उसकी ओर देखा । राघव ने तुरंत उसे छोड दिया और आंखों से पट्टी हटाई ।

" क्या हुआ जानकी सब ठीक है न । " करूणा ने पूछा । ' क्या हुआ तुम इतनी तेज चिल्लाई क्यों ? " अमित ने पूछा । जानकी डरी हुई नजरों से राघव की ओर देखने लगी । राघव उसके इस तरह चिल्लाने पर थोडा क्रोधित हो चुका था । वो बिना कुछ बोले वहां से चला गया । सब लोग इस तरह उसके अचानक जाने पर उसे हैरानी से देखने लगे । संध्या , राज और परी को ही पता था वहां क्या हुआ था । अमित और करूणा बातों में लगे हुए थे इसलिए उन्हें कुछ पता नही था । जानकी इस कदर डर चुकी थी , की उससे कुछ कहा ही नही जा रहा था ।

परी बीच में बोली " चाचू ने जानू को गोद में उठाया तो वो डर गयी । " राज ने तुरंत परी का मूंह बंद करते हुए अपने करीब खींच लिया । " तुझे आइसक्रीम नही खानी चल मैं तुझे खिलाता हूं । " ये बोल वो उसे अपने साथ ले गया । जानकी भी वहां नही रूकी और तुरंत वहां से भाग गई ।

करूणा औय अमित ने एक दूसरे की ओर देखा तो दोनों को हंसी आ गयी । संध्या सर खुजलाते हुए मन में बोली " सिर्फ पकडा था और जानू ने इतना तेज चिल्लाकर सबको डरा दिया । '

इधर जानकी भागते हुए कॉरिडोर से गुजर रही थी । अचानक कमरे से एक हाथ निकलकर बाहर आया और उसे अपने साथ अंदर खींच लिया । जानकी घबराई हुई सी चिल्लाने को हुई , तो उस शख्स ने अपनी हथेली उसके मूंह पर रख उसे चिललाने से रोक दिया ।

" शशशशशश ..... ज़रा सी भी आवाज मूंह से निकाली तो अच्छा नही होगा । " ये आवाज राघव की थी । कमरे में उजाला था और जानकी अच्छे से उसका चेहरा देख पा रही थी । राघव उसकी आंखों में देखते हुए बोला " हथेली हटा रहा हूं लेकिन चिल्लाओगी नही । " राघव ने अपनी हथेली हटा ली । जानकी डरी हुई दीवार से लगकर खडी थी ।

राघव के दोनों हाथ उसकी बांह के इर्द गिर्द दीवार पर टिके थे । वो थोडा सख्त लहजे में बोला " इस तरह चिललाई क्यों थी वहां ? "

" आ .... आपने मुझे डरा दिया था । " जानकी ने हकलाते हुए कहा ।

" मैं .... में कोई भूत हूं क्या ? " राघव ने उसी लहजे में जवाब दिया जिससे जानकी चिढ गयी । इस बार जानकी ने थोडा गुस्से से कहा " जैसे आपने मुझे पकडा था उससे डरना लाजमी था । "

" मुझे कोई शोख नही हैं तुम्हे पकडने का ।‌ मैं बस खेल रहा था । कैसे पकडना हैं मुझे नही बताया गया था । "

" तो पूछ लेते । "

"'अब पूछना क्या ? जान भी लिया और देख भी लिया । अपने डर को थोड़ा कंट्रोल में रखो । " इतना बोल राघव ने अपने कदम पीछे ले लिए ।

राघव अपने दोनों हाथ बांधते हुए बोला " अब मेरे कमरे से जाने का कष्ट करोगी । " जानकी ने नजरें घुमाकर देखा तो पाया ये राघव का कमरा था । यहां कयी सारी उसकी तस्वीरें लगी थी । जानकी तुरंत बाहर निकल गई । राघव ने कमरे का दरवाजा लगाया । वो जैसे ही पलटा उसकी नज़र टेबल पर फ्लावर वाश के पास रखी पायल पर पडी । राघव उस पायल को अपने हाथों में उठाते हुए बोला " ये तो जानकी ...... ओह शिट मैं तो सुरेश से कहना ही भूल गया की वो उसे लौटा दे । " राघव ने तुरंत दरवाजा खोला और बाहर निकलकर देखा , तो उसे जानकी कही नज़र नहीं आयी । राघव ने एक नज़र अपने हाथ में रखे पायल की ओर देखा । उसने उसे वापस से टेबल पर रख दिया । " सुरेश बाद में दे देगा । " राघव ने ये बात खुद से कही और कमरे का दरवाजा लगा लिया ।

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रात का वक्त , ठाकुर भवन




आज तो यहां काफी शोर गुल था । हवेली से सिर्फ और सिर्फ नारायण जी के चिल्लाने की आवाजें आ रही थी । दिशा गायत्री के साथ सीढ़ियों के समिप खडी थी । कुंदन भी एक साइड में खडा था । नारायण जी बस गिरिराज पर बरस रहे थे ।

" समझ नही आ रहा हमको ई सब करने की का ज़रूरत थी । तुमको मालूम नही था की ई एक सरकारी प्रजोक्ट है । बिना कुछ सोचे समझे निकल पड़े उनको खरीदने । ई सब करने से पहिले जांच परख तो लेते ऊं आदमी का कोनो खराब रिकार्ड हैं की नही । तुम्हरे जाल में तुमको ही फंसाकर चला गया । सबके सामने तुम्हारी वजह से हमको बेइज्जत होना पडा । शुक्र मनाओ की की ऊं लोग तुमको जेल में नही डाले , नही तो आज जेल की रोटी तोड रहे होते । गलती हमरी हैं तुम जैसे औलादें के पैदा होने से अच्छा हमको कोई औलाद ही नही होती । " नारायण जी ये कहकर अपने कमरे की ओर बढ गये ।

कुंदन अपने कान में उंगली करते हुए बोला " बाप रे एक और नया ड्रामा । अब तो रोज का एंटरटेनिंग प्रोगाम बन चुका हैं । " कुंदन खुद में बड़बड़ाते हुए वहां से बाहर निकल गया ।

गिरिराज गायत्री के पास आया । दिशा ने इस वक्त गायत्री का हाथ कसकर पकड़ रखा था । वही गायत्री ने अपने दूसरे हाथ से अपना घूंघट संभाल रखा था । गिरिराज गायत्री को घूरते हुए बोला " फौरन कमरे मे आओ । " ये बोल गिरिराज सीढिया चढ अपने कमरे की ओर बढ गया । गायत्री समझ गयी थी अब उसका गुस्सा गायत्री पर बरसेगा जिससे वो एक पल के लिए कांप गई । कही न कही दिशा ने भी इस बात को भांप लिया था । वो गायत्री से बोली " मत जाइए भाभी । "

गायत्री ने कुछ नही कहा और दिशा से अपना हाथ छुड़ाकर अपने कमरे की ओर बढ गयी । दिशा रोते हुए अपने कमरे में भाग गयी । गायत्री जैसे ही अपने कमरे में आई तभी एक जोरदार तमाचा उसके गालों पर पडा । गायत्री का चेहरा दूसरी ओर झुक गया । गिरिराज पीछे से उसकी गर्दन पकडते हुए बोला " फाइल तो तुम बनाई थी न फिर भी गलती कर बैठी । "

" गलती हमसे नही आपसे हुई हैं । हमने सिर्फ काम किया था और आपने धोखेबाजी करने की कोशिश की । " गायत्री का जवाब सुन गिरिराज उसे खीचते हुए कमरे के अंदर ले आया और फर्श पर धकेल दिया । उसने दरवाज़ा बंद किया और गायत्री की बांह पकड जबरदस्ती खडा किया । " बहुत ज़ुबान चलने लगी हैं तुम्हरी , लगता हैं पिछली बार की मार भूल गयी । "

गायत्री रोते हुए अपने हाथ जोड़कर बोली " जब हमारी गलती नही तो फिर सजा किस बात की । "

" क्योंकि हमारा मन कर रहा हैं ? " गिरिराज ये बोलते हुए उसकी ओर कदम बढा रहा था । उसने दिवार पर पडा चाबुक उठाया और गायत्री पर बरसाना शुरू किया । खुद का गुस्सा औरों पर निकालना आसान होता हैं साहब । जब उन्हीं ज़ख्म से आप गुजरते हो तब कही जाकर दर्द का एहसास होता हैं । " पहले तो चाबुक से उसके चमड़ी उधेरी । उससे भी जी नही भरा तो वहशीपने पर उतर गया । आखिर पती था हक जमाना कैसे छोड सकता था । इंसानियत तो वैसे भी बेच खाई थी ।

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रात का वक्त , रघुवंशी मेंशन




अमित को कुछ जरूरी काम था इसलिए वो वहां से चला गया । राज सबके साथ ही रूका था । खाना खाने के बाद सब लोग बाहर लोन में बैठे बाते कर रहे थे । परी जानकी की गोद में सिर रखकर सोफे पर लेटी हुई थी । जानकी बस उसके सिर पर हाथ फेरते हुए सबसे बात कर रही थी । सब लोग वहां मौजूद थे बस राघव को छोड़कर और शायद इसलिए शांती भी थी । वरना सीरीयस माहौल होता । करूणा घडी में समय देखते ही बोली " रात बहुत हो गई हैं जानू और परी भी सो चुकी हैं । जाओ इसे कमरे में सुला दो और तुम सब भी जाकर सो जाओ । "

" लेकिन भाभी मां हमे नींद नहीं आ रही । " राज ने पीछे से टोका तो संध्या बोली " फिर तो राज जी हमारे पास आपके लिए एक काम हैं । आप न यही बैठकर पहरेदारी कर सकतें हैं । " ये बोल संध्या मुस्कुराते हुए वहां से भाग गयी । जानकी परी को लेकर ऊपर आई तो देखा राघव कारिडोर मे खडा किसी से फोन पर बात कर रहा था ।

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नारायण जी के हाथों से प्रजोक्ट हाथ से जा चुका है । क्या गिरिराज पर भरोसा करना सही था । गिरिराज ने अपना गुस्सा गायत्री पर उतारा ‌‌। ये बात कहां तक उचित है ? इंसान को समझाना फिर भी आसान होता है , इंसान रूपी जानवर को समझाना आसान नहीं होता ।

क्या इतना आसान होगा इनके जीवन का सफर ? कैसी रहने वाली हैं इनकी कैमिस्ट्री आगे ‌‌। यूं तो मुमकिन नहीं है सफर जानने के लिए आगे पढ़ते रहिए मेरी नोवल

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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