Prem Ratan Dhan Payo - 33 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 33







जानकी परी को लेकर ऊपर आई तो देखा राघव कारिडोर मे खडा किसी से फोन पर बात कर रहा था । राघव की नज़र उसपर पडी, तो जानकी ने पलकें झुका ली और परी को लेकर उसके कमरे में चली गई । जानकी ने परी को बेड पर लिटाया और ब्लैंकेट से कवर किया । जितने भी डॉल थे उन्हें उसके चारों ओर रख दिया । जानकी रूम से बाहर निकली तब भी राघव बाहर ही खडा था । वो इस वक्त फ़ोन पर बात नही कर रहा था । बस अपने हाथों को फोल्ड कर पिलर से टिककर खडा था । शायद किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था । जानकी भी वही दरवाज़े पर खडी रही । न जाने कैसा अपनापन था ‌‌। नजरें राघव से हटी ही नही । दर्द दोनों के दिलों में था । बाते बहुत सी जहन में छुपी थी । न जताना जानतें थे और न ही बताना । शायद यही कारण था की दोनों ही एक दूसरे की ओर खिंचाव महसूस करते । राघव वहां से जाने के लिए पलटा , तो उसकी नज़र जानकी पर गयी । जानकी भी झेंप गयी और अपने कमरे में चली गई । उसके जाने के बाद राघव अपने कमरे में चला गया ।

धीरे धीरे समय भी यूं ही बीतता रहा । जानकी इस घर में काफी खुल चुकी थी । उसे यहां काम करते करते महीना भर बीत चुका था । परी और उसका रिलेशन और भी ज्यादा गहराता जा रहा था ‌‌। मानों जानकी सांसों से जुड चुकी हो । करूणा भी अब पहले से ज्यादा खुश रहने लगी थी । अमित और राज भी जानकी से बहुत घुल मिल मिल चुके थे । सब कुछ ठीक था । बस राघव और जानकी के बीच खामोशी क़ायम थी । जब भी टकराते तो न सॉरी और न थैंक्यू । कोई फारमेलिटी नही निभाते बस खामोशी से निकल जाते । जानकी के जहन में राघव की एक ही छवी बसी थी । गुस्सेल और दानव , शायद यही वजह थी की वो हमेशा राघव से दूरी बनाकर रखती और उससे बात नही करती ।

आज राज जानकी और परी को साथ लेकर राघव के ऑफिस आया हुआ था । करूणा ने आज टिफिन में घर से बना खाना ले जाने के लिए कहा था । तीनो गाडी से बाहर आए । ये बाइस मंज़िला एक ऊंची इमारत थी । जिस पर बडा सा बोर्ड लगा था और कुछ शब्द अंकित थे ' रघुवंशी इंडस्ट्रीज ' । सूरज की किरणें सीधे उसपर पड रही थी , जिससे वो काफी चमक रहा था । सूर्यवंशी का तेज ही कुछ ऐसा होता हैं ।

" जानू अंदर चले । " राज की आवाज जानकी के कानों में पडी , तो उसने मुड़कर उसकी ओर देखा । जानकी ने परी को गोद में उठाया और राज के पीछे चल दी । राज रिसेप्शनन पर पहुंचकर बोला ' हल्लो मिस निशा '

रिसेप्शन पर बैठी लडकी जिसका ध्यान सिस्टम पर था । राज की आवाज सुनकर उसने अपना चेहरा उठाया । वो हल्की मुस्कुराहट और आश्चर्य से बोली ' गुड़ मार्निंग राज सर लेकिन आप इस वक्त यहां । "

राज फलर्टी अंदाज में बोला " वो क्या हैं न मिस निशा हमे आपकी याद बेहद सता रही थी , तो चले आए आपके दीदार के लिए । "

निशा अपना हाथ आगे बढ़ाकर बोली " आपने बहुत देर कर दी सर अब मैं रिजर्व हो चुकी हूं । बहुत जल्द मैं मिस से मिसिज बनने वाली हूं । "

" ओफ ओ ..... आपने तो मेरा दिल ही तोड दिया । " राज नाटक करते हुए बोला । निशा को उसकी हरकतों पर हंसी आ गई । निशा की नजरें जानकी पर गयी तो वो रूक गयी । परी को वो जानती थी लेकिन जानकी को उसने पहली बार देखा था । " हू इस शी ब्यूटीफुल ? " निशा ने उसकी ओर इशारा कर पूछा तो राज बोला " शी इज माय फ्रेंड जानू ...... ओह सॉरी जानकी झा । वैसे तुम ये बताओ राघव भैया किसी मीटिंग में तो बिजी नही हैं न । "

" अब ये मैं कैसे बता सकती हूं । ये तो आपको दीपक सर ही बता सकते हैं । वैसे मैं ये बता सकती हूं वो इस वक्त अपने कैबिन में हैं , क्योंकि अभी अभी मेरी उनसे बात हुई है । " निशा ने कहा ।

" थैंक्स फॉर दिस इन्फोर्मेशन ...... जानू चले ' राज ने उसकी ओर देखकर पूछा , तो जानकी ने हां में अपना सिर हिला दिया । तीनों अंदर चले आए । काम कर रहे लोग उन तीनों को यहां देखकर आपस में बातें करने लगे । जानकी ने इस वक्त सिंपल सा व्हाइट कलर का फ्राकसूट पहना हुआ था और साथ ही रेड दुपट्टा सलीके से लिया था । बालों को गूंथकर चोटी बनाई हुई थी । वो साधारण लिवाज में भी बेहद खूबसूरत लग रही थी । ऐसे में देखने वालों की नजरें उसपर न ठहरे ऐसा हो सकता हैं भला । सबको अपने ओर देखता पाकर जानकी थोडा असहज हो गयी । राज जानकी को साथ लेकर लिफ्ट की ओर बढ गया ‌‌। राघव का कैबिन सबसे ऊपर बाईसवें फ्लोर पर था , इसलिए सब लोग वही चले आए । राघव के अलावा सिर्फ दीपक का कैबिन था बाकी सभी रूम्स खाली थे । लिफ्ट ऑपन होते ही उन्हें सामने दीपक खडा दिखाई दिया । दीपक उन सबको वहां देखकर हैरान हुआ । राज बाहर आते हुए बोला " हम शो पीस नही है इसलिए मूंह बंद करो वरना मच्छर घुस जाएगा । राघव भैया अपने कैबिन में हैं न । "

दीपक नोर्मल होते हुए बोला " हां वो इस वक्त अपने कैबिन में हैं । कोई जरूरी मीटिंग नही हैं बस दो ऑफिस स्टाफ अंदर हैं । आप लोग उनसे मिल सकते हैं । "

" ओके फाइन ...... चले जानू । " राज ने कहा तो जानकी ने हां में अपना सिर हिला दिया । वो तीनों राघव के केबिन की ओर बढ गए । दीपक लिफ्ट की ओर बढ गया ।

" राघव इस वक्त अपने में चेयर पर बैठा हुआ था । उसके ठीक सामने दो ऑफिस स्टाफ बैठे थे । राघव थोडा रूककर बोला " मुझे आप लोगों का आइडिया पसंद आया । मैं चाहता हूं की आप लोग आज से ही इस पर काम शुरू कर दे । " राघव ये कह ही रहा था की तभी कैबिन का डोर खुला और एक प्यारी सी आवाज आई " चाचू .......

राघव इस आवाज को कैसे भूल सकता था । आवाज सुनकर राघव के चेहरे हल्की मुस्कुराहट तैर गई । उसने दरवाजे की ओर देखा , तो पाया परी भागते हुए उसके पास आ रही थी । राघव ने उठकर उसे अपनी गोद में उठा लिया ।

" आप यहां इस वक्त , कौन लेकर आया आपको यहां ? "

" हम जानू के साथ आए हैं । " ये बोलते हुए परी ने जानकी की ओर इशारा किया । राघव ने सामने की ओर देखा तो पाया जानकी और राज भी आए हुए थे ।

राघव की नज़र अपने स्टाफ पर गयी , जो बस टकटकी लगाए जानकी को देख रहे थे । ये देखकर राघव को बहुत गुस्सा आया । उसने थोडा सख्ती से ऊंची आवाज में कहा " हम इस बारे में बाद में बात करेंगे । आप दोनों यहां से जा सकते हैं । "

दोनों आदमी अपनी ही हरकतो पर झेंप गये और सिर झुकाकर कैबिन से बाहर चले गए । राज चेयर पर बैठते हुए बोला " बाप रे मैं तो यहां पहुंचते पहुंचते बहुत थक गया । "

" क्यों सीढ़ियां चढ़कर आए हो क्या ? " राघव ने पूछा तो राज बोला " माना सीढियो से नही आया , लेकिन लिफ्ट से तो इतना ऊपर चढ़कर आया हूं । ऊपर से आपकी लाडली को भी गोद में लेकर आया हूं । "

" झूठ .... हमे तो जानू ने गोद मे उठाया था । " परी तपाक से बोली । राज ने मूंह बना लिया । ऑफिस अंदर से काफी शानदार था और जानकी उसी को देखने में व्यस्त थी । राज जानकी से बोला " जानू कैसा लगा तुम्हें ऑफिस ? " राज ने पूछा लेकिन जानकी ने कोई जवाब नही दिया । वो अभी भी ऑफिस को देखने में व्यस्त थी । राघव ने परी को टेबल पर बिठाया और बोला " बोलो क्या खाओगी ? "

" कुछ भी नही हम तो आपके लिए लंच लेकर आए हैं । " परी ने कहा । जानकी अपने साथ लाया टिफिन टेबल के पास लेकर चली आई । उसने राघव की ओर देखकर कहा " आप हाथ धो लीजिए हम खाना लगा देते हैं । "

राघव ने कुछ नही कहा । वो अपने शर्ट की बाजुएं फोल्ड करता हुआ वाशरूम में चला गया । उसने कोट पहले ही रिमूव कर दिया था , जो की इस वक्त उसके चेयर पर रखा था । राज और परी फ़ोन में गेम खेल रहे थे । जानकी सोफे पर बैठी राघव के लिए खाना परोस रही थी । कुछ ही देर में राघव भी हाथ मूंह धोकर वहां चला आया । उसके बैठते ही जानकी ने खाने की प्लेट राघव के आगे कर दी । राघव राघव ने एक हाथ से प्लेट थामा और दूसरे हाथ से खाने की कोशिश करने लगा । जानकी का ध्यान उसके राइट हैंड पर गया , जिसकी उंगलियों में बैंडज लगा हुआ था । रोटियां तोडने में उसे प्रोब्लम हो रही थी । जानकी ने उसे टोकते हुए कहा " आप रहने दीजिए , हम खिला देते हैं । " बडी मुश्किल से हकलाते हुए स्वर में उसने ये लाइने कहीं । उसने नजरें झुका ली थी । उसे लगा राघव न करेगा और एक अच्छा खासा डायलॉग सुना देगा ।

ऐसा कुछ नहीं हुआ राघव ने अपनी प्लेट उसके आगे कर दी । जानकी ने देखा तो उसे थोडा आश्चर्य हुआ , लेकिन ज्यादा न सोचते हुए उसने प्लेट थाम लिया । वो राघव को अपने हाथों से खिलाने लगी । राज की नज़र उन दोनों पर गयी तो वो मुस्कुरा उठा । उसने मन में कहा " ये दोनों साथ में कितने अच्छे लगते हैं । सच कहुं तो राम और सिया की जोडी । " राज ने फ़ोन में कैमरा ऑन किया और उन दोनों की साथ में कुछ तस्वीरें ले ली । जानकी की बालों की लट बार बार आंखों के सामने आकर उसे परेशान कर रही थी । दोनों हाथ बिजी थे इसलिए वो कंधों के सहारे उन्हें पीछे करने का असफल प्रयास कर रही थी । राघव ने उसे परेशान देखा , तो अपना हाथ आगे बढा दिया । उसकी उंगली जब जानकी के गालों को छूकर गुजरी ‌‌, तो वो अंदर तक सिहर उठी । उसकी सिरहन राघव ने भी महसूस की । उसने तुरंत अपने हाथ नीचे कर लिये । जानकी ने एक ओर निवाला उसकी ओर बढाया तो राघव ने इन्कार कर दिया ‌‌। " नही मेरा हो गया । "

जानकी ने परी को आवाज देते हुए कहा " परी बेटा आप कुछ खाओगे । "

" नही जानू हमे भूख नही हैं । " परी ने फ़ोन में नजरें गढाए जवाव दिया ।

जानकी फिर से बोली " आपने सुबह भी अच्छे से नाशता नही किया था । देखिए हम आपके लिए भी कुछ लाए हैं जल्दी से आ जाइए । " परी ने इस बार कोई जवाब नहीं दिया । राज उसके हाथों से फ़ोन छीनकर बोला " जानू कुछ कह रही हैं , सुनाई नही दिया तुम्हें । जाओ जाकर पहले खाना खाकर आओ । " ये बोलते हुए राज ने उसे टेबल से नीचे उतार दिया । परी गुस्से से उसके हाथों में चूटी काटकर जानकी के पास भाग गयी ।

" आह हहह छोटी चुहिया , देख लूगा बाद में तुम्हें । " राज अपना हाथ सहलाते हुए बोला । परी ने भी उसे जीभ चिढा दी । जानकी ने परी को अपनी गोद में बिठाया और उसे भी खाना खिलाने लगी । राघव अपने काम पर लग गया । हालांकि उंगलियां की बोर्ड पर चल रही थी , लेकिन नजरें बार बार जानकी की तरफ चली जाया करती । इस वक्त परी जानकी की गोद में बैठी शैतान और जिद्दी गुड़िया लग रही थी । वही जानकी बिल्कुल उसकी मां लग रही थी , जो नए नए बहाने कर बच्चे को खाना खिलाती हैं । राघव को हमेशा उन्हें साथ देखकर पासिटिव वाइव्स आती थी हालांकि पहले परी का उसके करीब जाना उसे जेलेस फील कराता था , लेकिन अब वो फीलिग धीरे धीरे खत्म हो रही थी ।

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ख़ामोशी ही सही कुछ तो हैं दरमियान । थोडी देर ही सही लफ़्ज़ों से भी बात हो जाएगी .....

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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