greedy king in Hindi Children Stories by Rakesh Rakesh books and stories PDF | लालची राजा

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लालची राजा

छोटे से राज्य का बड़ा लालची राजा था। एक बार बुद्धिमान महामंत्री के कहने से बासमती चावल पड़ोसी राज्यों को ऊंचे दामों पर बेचता है, तो बासमती चावल बेचने से राज्य को बहुत अधिक मुनाफा होता है, इसलिए ज्यादा मुनाफे के लालच में राजा राज्य के किसानों को आदेश देता है कि "ज्यादा से ज्यादा बासमती चावल की फसल उगाई जाए।"

लेकिन राज्य के जिस क्षेत्र में बासमती चावल की फसल सबसे ज्यादा होती थी, वहां सिंचाई की सुविधा नहीं थी।

उस क्षेत्र के सारे किसान राजा के पास सिंचाई की समस्या के समाधान के लिए आते हैं, लालची राजा इस समस्या के समाधान की सलाह अपने बुद्धिमान चतुर महामंत्री से लेता है।

बुद्धिमान चतुर महामंत्री परामर्श देता है कि "अगर पहाड़ को काटकर नदी का रुख उस क्षेत्र की तरफ कर दिया जाए तो उस क्षेत्र की सिंचाई की समस्या हल हो सकती है, परंतु इस कार्य में खजाने का बहुत सा धन खर्च हो जाएगा।"

राजा लालची था, इसलिए महामंत्री से कम खर्चे का रास्ता ढूंढने के लिए कहता है।

बुद्धिमान चतुर महामंत्री दूसरा रास्ता बताता है कि "पहाड़ काटे बिना नदी का सीधा और छोटा रास्ता राज्य के उस क्षेत्र की तरफ से जाता है, जहां हमारा खजाना सुरक्षित तरीके से रखा जाता है, किंतु अगर बाढ़ आई तो खजाने की इमारत की दीवारों और नींव को खतरा हो सकता है।"

लालची राजा कम खर्च की बात सुनकर बुद्धिमान चतुर महामंत्री की बात बीच में काट कर कहता है कि "काम शुरू करो प्रजा पर दुगना कर लगा दो, यह मेरा आदेश है।"

उस उपजाऊ क्षेत्र में सिंचाई की समस्या तो हल हो जाती है, परंतु दुगने कर के बोझ से राज्य की प्रजा भूख से मरने लगती है।

किसानों की मेहनत और सिंचाई की सुविधा की वजह से बासमती चावल की फसल बहुत अच्छी होती है।

लालची राजा किसानों से कौड़ियों के भाव बासमती चावल खरीद कर ऊंचे दामों पर पड़ोसी राज्यों को बेचकर लालची राजा अपने खजाने में बहुत सा धन इकट्ठा कर लेता है। लेकिन धन

लेकिन जितना धन वह इकट्ठा करता है, उससे ज्यादा धन इकट्ठा करने का उसका लालच बढ़ता ही जाता है।

लालच में बुद्धिमान चतुर महामंत्री की सलाह ना मान कर प्रजा का दुगना कर भी काम नहीं करता है।

कुछ ही वर्षों में लालची राजा धनी हो जाता है और प्रजा भिखारी बन जाती है।

वर्षा ऋतु का मौसम था, पूरे राज्य में रात दिन वर्षा होती है। राज्य में बारिश रुकने का नाम ही नहीं लेती है।

उन्हीं दिनों में राजा के सिपाही पड़ोसी राज्यों को बासमती चावल बेचकर राज्य के खजाने में धन जमा कराने खजांची के पास आते हैं, किंतु खजांची जैसे ही खजाने का ताला खोलता है, तो वैसे ही महल के साथ जा रही नदी में बादल फटने से भयंकर बाढ़ आ जाती है और लालची राजा का आधा खजाना बाढ़ में बहकर पूरे राज्य कि प्रजा के घर घर तक पहुंच जाता है।

ईश्वर की इच्छा से जिसके नसीब में जितना धन होता है, उसे उतना धन मिल जाता है।

लालची राजा सर पकड़ कर रोता है और लालच में महामंत्री की सलाह ना मानने का अफसोस करता है।

फिर बुद्धिमान चतुर महामंत्री से खजाना प्रजा से वापस लेने की तरकीब पूछता है?

बुद्धिमान चतुर महामंत्री लालची राजा से कहता है कि "आप प्रजा को लूटने में डाल डाल और ईश्वर प्रजा को बचाने में पात पात।"

लालची राजा की बुद्धिमान महामंत्री की बातों से आंखें खुल जाती हैं और उसे अपने लालची और अन्याय पूर्ण निर्णय का एहसास हो जाता है।

उस दिन से वह दयालु ने न्यायाप्रिया आदर्शवादी राजा बन जाता है।

और महामंत्री से कहता है कि "यह सच है कि अन्याय करने वाला डाल-डाल और न्याय करने वाला ईश्वर पात पात है।"