Wo Maya he - 35 books and stories free download online pdf in Hindi

वो माया है.... - 35



(35)

खबर रोज़ाना में छपी पुष्कर मर्डर केस की स्टोरी एकबार फिर लोगों को बहुत पसंद आई थी। इस स्टोरी ने लोगों की दिलचस्पी इस केस में बढ़ा दी थी। अदीबा ने अब तक इस केस के संबंध में दो रिपोर्ट तैयार की थीं। दोनों के ज़रिए उसने केस के बारे में जानकारी देने के साथ साथ कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी उठाए थे। इनमें सबसे प्रमुख सवाल यही था कि दिशा और पुष्कर कहीं जाते हुए ढाबे पर चाय नाश्ते के लिए रुके थे। तो फिर पुष्कर की हत्या क्यों और किसने की ? क्या यह किसी पुरानी रंजिश का मामला है ? दिशा ढाबे में थी तो पुष्कर बाहर क्यों गया ? इस स्टोरी को पढ़ने वाले भी इन सवालों के जवाब चाहते थे। लोग अपने अपने तरीके से इन सवालों पर चर्चा करके उनके जवाब तलाश रहे थे। कई तरीके की बातें हो रही थीं। लोग अब पुलिस से इन सारे सवालों के जवाब चाहते थे।
इसके अलावा एक और बात थी जो लोगों में चर्चा का विषय बनी हुई थी। शिवचरन से मिली जानकारी के अनुसार अदीबा ने अपनी रिपोर्ट में मोटरसाइकिल का प्रयोग होने का ज़िक्र किया था। उसने लिखा था कि टायर के निशान से पुलिस इस तरह का दावा कर रही है। लोगों का कहना था कि क्या पुलिस के पास उस मोटरसाइकिल के बारे में कोई और जानकारी भी है ? क्या पुलिस के पास कातिल को पकड़ने का कोई सबूत है ?
इन सारी चर्चाओं ने उस इलाक़े में खबर रोज़ाना का सर्कुलेशन बहुत बढ़ा दिया था। अखलाक चाहता था कि इस मौके को पूरी तरह से भुनाया जाए। उसने अदीबा को अपने केबिन में बुलाया था। साथ में निहाल भी था। अखलाक ने कहा,
"अदीबा..... पुष्कर मर्डर केस में लोगों की दिलचस्पी बहुत अधिक है। क्योंकी हमारे अखबार ने इस मर्डर केस को सबसे पहले कवर किया था इसलिए हमें इसका फायदा पहुँचा है। हमें इस अवसर को पूरी तरह भुनाना है।"
निहाल ने कहा,
"सर अब तो बाकी लोगों ने इस पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। हम अकेले नहीं रह गए हैं।"
अखलाक ने कहा,
"लेकिन उन लोगों ने शुरुआत की है जबकी हम इस केस को लेकर लोगों में अपना विश्वास बना चुके हैं। इसलिए हम आगे हैं। हमें इस केस के बारे में लोगों के सामने कुछ ना कुछ रखते रहना होगा जिससे लोग हमसे जुड़ें रहें।"
अदीबा अब तक चुप बैठी थी। उसने कहा,
"सर..... हम तब ही लोगों के सामने कुछ ला पाएंगे जब पुलिस की इन्वेस्टीगेशन आगे बढ़ेगी। पुलिस ने अब तक जो पता किया है वह तो पहले ही हमने कवर कर लिया है। अब उनके सामने नया क्या लाया जा सकता है ‌?"
अखलाक ने अदीबा की तरफ देखा। उसके चेहरे पर कुछ नाराज़गी थी। उसने कहा,
"अदीबा.... तुम इस अखबार की स्टार रिपोर्टर हो। तुम ऐसी बातें कर रही हो।"
अदीबा ने सफाई देते हुए कहा,
"सर अब जब तक पुलिस आगे कुछ नहीं करती है तब तक हम अपनी तरफ से क्या लिख सकते हैं।"
"बहुत कुछ लिख सकते हैं अदीबा। लोगों को पुष्कर से संबंधित कुछ चाहिए। वह उन्हें दो। बाकी चीज़ों को पाठकों के लिए रोचक कैसे बनाना है उसमें तो तुम माहिर हो।"
अदीबा सोच रही थी कि पुष्कर से संबंधित ऐसा क्या लोगों के सामने लाया जा सकता है। अखलाक ने उसकी मदद करने के लिए कहा,
"अदीबा तुमने टैक्सी ड्राइवर इस्माइल से बात की थी। तब उसने बताया था कि दिशा ने पुष्कर से कहा था कि वह उसके घरवालों के बारे में सोच रही थी। लेकिन ड्राइवर के साथ होने के कारण खुलकर बात नहीं कर पाई। इसके अलावा उसने किसी ताबीज़ के बारे में भी बताया था जिसे दोनों पति पत्नी टैक्सी में ढूंड़ रहे थे।‌ मुझे लगता है कि दिशा और पुष्कर की कहानी में कोई बात है। उसे पता करो और उसके बारे में लिखो। इस तरह से कि लोगों की दिलचस्पी उसमें पैदा हो।"
अदीबा ने कुछ सोचकर कहा,
"लोग पुष्कर के मर्डर केस में दिलचस्पी ले रहे हैं। उसके व्यक्तिगत जीवन में क्यों दिलचस्पी लेंगे ?"
"यह दिलचस्पी जगाना तुम्हारा काम है। एक छोटी सी बात को भी ऐसे अंदाज़ में रखा जा सकता है कि लोगों को दिलचस्प लगे। मुझे पता है कि तुम यह काम कर सकती हो।"
"इसके लिए मुझे दिशा और पुष्कर के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानना पड़ेगा। दिशा से मिलना होगा। मुझे तो यह भी नहीं पता कि दिशा का मायका और ससुराल कहाँ है ?"
"तुम इंस्पेक्टर हरीश यादव से मिलो। वह तुम्हें दिशा के बारे में कुछ बता सकते हैं। उस अस्पताल में भी जाओ जहाँ वह भर्ती हुई थी। कोशिश करो तो कुछ ना कुछ हाथ लगेगा।"
अदीबा ने कहा कि वह कोशिश करती है कि दिशा के बारे में कुछ पता चल सके।

इंस्पेक्टर हरीश ने फुटेज से निकाली गई तस्वीर की कापीज़ निकलवा कर अपने खबरियों को भिजवा दी थीं। उसे इंतज़ार था कि उस आदमी के बारे में कोई अच्छी खबर मिले। इसके अलावा वह इंतज़ार कर रहा था कि चेतन का फोन आए और वह अपने मन की बात बताए। वह थाने में बैठे शिवचरन से केस के बारे में बात कर रहा था। उसने कहा,
"खबर रोज़ाना ने पुष्कर की हत्या के केस में लोगों की दिलचस्पी बढ़ा दी है। इसके चलते दूसरे अखबारों के रिपोर्टर केस के सिलसिले में पूछताछ करने लगे हैं। अब ऊपर से पुष्कर की हत्या के केस की प्रगति के बारे में सवाल किए जा रहे हैं।"
"सर हम तो कह रहे हैं कि एकबार फिर ढाबे पर चलते हैं। चेतन को सूरज से अलग कर कड़ाई से पूछताछ करते हैं। उसके पास ज़रूर कोई बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है।"
"कल ही तो हम वहाँ गए थे। थोड़ा और रुकते हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि चेतन सब बताएगा।"
"बताएगा तो वह तब भी जब उससे कड़ाई से पूछेंगे। फिर समय बर्बाद क्यों करना।"
"शिवचरन मैं चाह रहा था कि चेतन अपने मन से सबकुछ बताने को तैयार हो जाए। आज और रुक जाते हैं। कल चलते हैं और वही करेंगे जो तुम कह रहे थे। उसे थाने लाकर अच्छी तरह से पूछताछ करेंगे।"
शिवचरन को अभी भी लग रहा था कि देर करना ठीक नहीं है। लेकिन वह कुछ नहीं बोला।

सारा काम निपटाने के बाद चेतन ढाबे का बचा हुआ खाना खा रहा था। वह जल्दी जल्दी खा रहा था। उसे खाना खाकर सूरज के कमरे में जाना था। उसके हाथ पैर दबाने थे। यह रोज़ का नियम था। चेतन सूरज के हाथ पैर दबाता था। उसके सो जाने के बाद ही वह ढाबे की रसोई के एक कोने में बिस्तर डालकर सो जाता था।
जबसे इंस्पेक्टर हरीश ने फुटेज वाली तस्वीर दिखाकर उससे पूछताछ की थी‌ वह परेशान था। खाना खाते हुए उसके मन में हत्या वाले दिन उसने जो कुछ सुना था चल रहा था। वह पुलिस को सब बताना चाहता था। पर उससे पहले उसने वह बात सूरज को बता दी थी। सूरज ने सख्त लहज़े में हिदायत दी थी कि जो उसने सुना है वह किसी से ना कहे। वह सूरज के दबाव में था। उसका ना कोई परिवार था और ना ही रहने का ठिकाना। सूरज ने उसे अपने पास पनाह दी थी। उसे सर पर छत और तीन वक्त बासी और बचा हुआ खाना मिल जाता था। बदले में दिनभर ढाबे में काम और रात में सूरज की सेवा करनी पड़ती थी।

जब अदीबा ने उससे पूछा था कि क्या कत्ल वाले दिन उसने दिशा और पुष्कर के आसपास कुछ अजीब महसूस किया था तब भी वह सोच में पड़ गया था। तब फिर सूरज‌ ने अप्रत्यक्ष रूप से कुछ बताने से रोक दिया था।‌ लेकिन जो बात उसने सुनी थी वह केस के लिए महत्वपूर्ण हो सकती थी। इसलिए वह अंदर ही अंदर इस बात को लेकर घुट सा रहा था।
खाना खत्म करके वह सूरज के पास गया। सूरज ने डांटते हुए कहा,
"कितनी देर लगा दी। हम देख रहे हैं कि इधर तुम कामचोरी करने लगे हो। मन लगाकर कुछ नहीं करते हो। यह मत भूलो कि अगर हमने निकाल दिया तो कहीं जाने के लिए ठिकाना नहीं है।"
चेतन उसके पास आया। सूरज पेट के बल लेट गया। उसने अपनी पीठ दबाने को कहा। चेतन चुपचाप उसकी पीठ दबाने लगा। उसका मन स्थिर नहीं था। वह परेशान था। वह पीठ तो दबा रहा था लेकिन सूरज को मज़ा नहीं आ रहा था। उसने गुस्से में चिल्ला कर कहा,
"क्या कर रहे हो ? ठीक से पीठ भी नहीं दबा पा रहे हो।"
चेतन अपने खयालों में खोया पीठ दबा रहा था। सूरज के चिल्लाने से सजग हुआ और तेज़ी से हाथ चलाने लगा। इस चक्कर में उसने ज़ोर से पीठ दबा दी। सूरज गुस्से से तिलमिला उठा। उसने गाली दी और चेतन के गाल पर तमाचा जड़ दिया। उसके बाद सूरज उसे लात मारकर बोला,
"लगता है हराम का खाकर बहुत चर्बी चढ़ गई है तुम्हें। तुम्हारी सारी चर्बी उतर जाएगी अगर हम इस ढाबे से निकाल दें तो। ना सर पर छत होगी और ना पेट में रोटी।"
लात खाकर चेतन बिलबिला उठा। वह रोता हुआ सूरज के कमरे से निकल गया। वह रसोई के उस कोने में गया जहाँ बिस्तर डालकर सोता था। वहाँ बैठकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। वह दिनभर कड़ी मेहनत करता था। सूरज की सेवा करता था। फिर भी सूरज यही कहता था कि वह हराम की खा रहा है। यह बात उसे बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती थी। वह चुपचाप सुन लेता था। कुछ कर नहीं पाता था।