Wajood - 6 in Hindi Fiction Stories by prashant sharma ashk books and stories PDF | वजूद - 6

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वजूद - 6

भाग 6

शाम को खाना खाते हुए हरी ने शंकर से कहा-

शंकर अगले रविवार को तुम सुखराम काका के साथ शहर चले जाना। उनका काम है वो करके अगले दिन वापस आ जाना।

शंकर ने हां कहा। फिर हरी ने कहा कि मैं चला जाता पर मैं दूसरे शहर जा रहा हूं बीज और खाद लेने के लिए।

अब शंकर चौंक गया। मतलब भैया आप भी यहां नहीं होंगे और मैं भी, तो फिर भाभी...। ना हम भाभी को अकेले छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। आप सुखराम काका को बोल देना किसी को और को ले जाएं।

नहीं शंकर अब हम मना करेंगे तो काका को बहुत बुरा लगेगा।

पर भैया आप भी यहां नहीं होंगे, हम भी नहीं होंगे तो भाभी अकेली नहीं रह जाएगी। हम भाभी को यूं अकेले छोड़कर कहीं नहीं जाने वाले।

तेरी भाभी अकेली नहीं रहेगी। सुखराम काका का कहना है कि तेरी भाभी उनके घर काकी के पास रह जाएगी।

नहीं भैया हमने कह दिया हम भाभी को छोड़कर नहीं जाएंगे।

शंकर काका को बुरा लग जाएगा समझा कर मैंने उनसे कह दिया है कि तू उनके साथ चला जाएगा।

मैं चला जाउंगा भैया पर भाभी को ऐसे अकेला छोड़कर मैं नहीं जाउंगा।

अच्छा ठीक है तो तू एक काम कर तू काका के साथ चले जाना। जब तू वहां से आ जाएगा तब मैं खाद और बीज लेने चले जाउंगा। तब तक तेरी भाभी के साथ मैं रूक जाउंगा अब तो खुश है तू ?

आप यहां रहोगे तो फिर मुझे कोई चिंता ही नहीं है। काका एक क्या पांच दिन मुझसे काम करा ले।

चल ठीक है अब खाना खा ले।

शंकर अब मुस्कुरा रहा था और चुपचाप खाना खा रहा था। कुसुम और हरी भी शंकर के देखकर मुस्कुरा रहे थे।

वे दिन भी आ गया जब शंकर सुखराम काका के साथ शहर जा रहा था। कुसुम को शंकर की चिंता हो रही थी और वो उसे हिदायत दे रही थी।

शंकर ये कुछ पैसे रख ले। शहर में भूख लगे तो कुछ लेकर खा लेना। और देख बारिश का मौसम है इसलिए यदि बारिश आ जाए तो एक ओर कहीं छिपकर खड़ा हो जाना। बारिश में भीगना मत। पूरे समय काका के साथ ही रहना। अकेले इधर-उधर मत जाना। भूख लगे तो काका से कह देना। रात को काका के साथ ही सोना और उनके साथ ही उठना। काम के दौरान भी काका को देखते रहना। शहर है इसलिए अकेले कहीं मत जाना।

अरे भाभी काहे इतनी चिंता कर रही हो अब छोटे बच्चे नहीं है बड़े हो गए हैं।

तू कितना भी बड़ा हो जा मेरे लिए तो बच्चा ही रहेगा।

तो फिर काहे इस बच्चे की शादी करा रही हो ?

तू बच्चा मेरे लिए हैं तेरी दुल्हनिया के लिए नहीं। तू तो जब अपने बच्चों को बाप हो जाएगा तब भी तू मेरे लिए बच्चा ही रहेगा। मैं जो कह रही हूं उस पर ध्यान दे। बातों को घूमा मत।

ठीक है भाभी तुमने जो कहा है बस वही करूंगा। अब जाउं ?

कुसुम ने शंकर के माथे को चूमते हुए कहा- हां जा। और ध्यान रखना अपना। सुन तेरे भैया खेत पर है उनसे भी मिलते जाना।

हां भाभी। उस और से ही तो निकलेंगे, तो भैया से भी मिल लूंगा।

शंकर घर से निकलता है और सुखराम काका के घर जाता है। वहां से वे दोनों गाड़ी में शहर की ओर रवाना होते हैं। रास्ते में ही हरी का खेत था, शंकर वहां से गाड़ी रूकवाता है और हरी से मिलने पहुंच जाता है।

भैया हम जा रहे हैं। काका कह रहे थे कि कल शाम तक वापस आ जाएंगे।

ठीक है शंकर जा और अपना ध्यान रखना। वैसे तो तेरी भाभी ने तुझे सारी हिदायतें दे ही दी होंगी इसलिए मैं कुछ नहीं कहूंगा।

आप भी जल्दी घर चले जाना भैया। भाभी बिल्कुल ही अकेली है घर पर।

हां, हां जल्दी चला जाउंगा। अब जा देख काका इंतजार कर रहे हैं।

इसे बाद शंकर और सुखराम काका शहर के लिए रवाना हो जाते हैं। करीब तीन घंटे के सफर के बाद वो शहर पहुंच जाते हैं। सुखराम काका अपना काम करते हैं और शंकर उनके बताए काम को करने लग जाता है। शाम हो जाने पर सुखराम काका शंकर से कहते हैं कि अब आधा काम कल दिन में कर लेना। अब चल कहीं खाना खाते हैं। दोनों खाना खाने के लिए एक होटल चले जाते हैं, वहीं एक छोटा कमरा किराए पर लेकर रात को रूकने की व्यवस्था कर लेते हैं।

इधर गांव में कुसुम शंकर की चिंता कर रही है। हरी से कहती है-

पहली बार वो आपके बिना शहर गया है, मुझे उसकी चिंता हो रही है। उसने खाना खाया होगा कि नहीं ?

सुखराम काका है ना उसके साथ। वो भी उसे अपना बेटा ही मानते हैं। वो उसका पूरा ख्याल रखेंगे।

पर चिंता तो होती है ना। वैसे हमारा शंकर है बहुत अच्छा।

हां ये तो हैं ऐसा भाई नसीब वालों को ही मिलता है।

बारिशा भी शुरू होने वाली है, कहीं वो बारिशा में तो नहीं भीग रहा होगा ?

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