Prem Ratan Dhan Payo - 36 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 36






मोनीश ने अपने चेहरे से हाथ हटाया , तो उसके हाथों पर खून लग चुका था । मूंह और नाक दोनों से ही खून निकल रहा था । वही दूर खडी जानकी और संध्या दोनों ने आश्चर्य से अपने मूंह पर हाथ रख लिया । मोनिश गुस्से से उठते हुए बोला " एक नौकरानी से इतनी हमदर्दी । सिर्फ कुछ रातो के लिए ही तो रखेल बनाने की बात की थी । जिंदगी भर के लिए तो नही मांगा था । " अबकी बार राघव ने एक नही दो नही बल्कि अनगिनत घूंसे उसके चेहरे पर बरसाए ‌‌। मोनीश को बचाने के लिए उसका सेक्रेटरी बीच में आया , तो राघव उसे दूर धकेलते हुए बोला " खबरदार जो बीच में आए वो , दूर रहो वरना जान से जाओगे । "

सेक्रेटरी ने डर के मारे अपने कदम पीछे ले लिए । राघव मोनीश का कॉलर पकड़ गुस्से से बोला " जुबान नही संभाली तो इससे भी बुरा हाल करूगा । नौकरानी नही है वो और अगर होती भी तब भी तेरे इन घटिया शब्दों के लिए तुझे ऐसी सजा देता । सामने चाहे कोई भी औरत क्यों न हों । हर किसी को सम्मान की दृष्टि से देखो । आइंदा से मेरी हवेली या मेरे आफिस के बाहर नज़र आए , तो तुम्हें दुनिया से गायब करवा दूगा ‌‌। " इतना बोल राघव ने उसे दूर ज़मीन पर धकेल दिया । उसने मोनिश के सेक्रेटरी की ओर देखकर कहा " उठाओ अपने मालिक को और ले जाओ हॉस्पिटल वरना ये जिंदा नही बचेगा । "

मोनीश का सेक्रेटरी उसे संभालते हुए फौरन वहां से ले गया ‌‌। राघव की नज़र जानकी पर गयी जो हैरान सी किचन के बाहर खडी थी । राघव का गुस्सा उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था । वो तेज कदमों के साथ जानकी की ओर बढ गया । जानकी का डर अब धीरे धीरे कर उसपर हावी होने लगा था । राघव उसके सामने रूककर चिल्लाते हुए बोला " किसने कहा था तुम्हें बाहर आने के लिए । क्या मैंने कहा था ? नही न ..... तो फिर क्यों बाहर आई तुम । क्यों तुम चाय लेकर बाहर आई । मैंने सुरेश से कहा था न लाने को तो फिर तुम क्यों आई ? "

डर के मारे जानकी अंदर तक कांप गयी थी । वही संध्या ने जब राघव को जानकी पर चिल्लाते देखा , तो वो भी नीचे आने लगी । जानकी ने डरते हुए कहा " वो ... वो .... सुरेश भाभी मां के साथ मंदिर गए हैं । इस वक्त यहां कोई नही था इसलिए मैं कॉफी लेकर चली आई । "

" वो नही था तो क्या बाकी नौकर मर गये थे । तुम्हें किसने ये काम करने के लिए कहा । अपनी औकात भूल गयी हो या ये भूल गयी हो की तुम्हे यहां किस काम के लिए रखा गया हैं । बहुत शोख हैं तुम्हें दूसरो के काम करने का । सैलरी वो लेंगे और काम तुम करोगी । फिर मुझे उन लोगों को रखने की जरूरत ही क्या है , आज ही सबको नौकरी से निकाल देता हूं । " जानकी ये सब सुनकर अंदर तक कांप गयी थी ‌‌। आंखें बंद कर रखी थी उसने , नजरें उठाने की हिम्मत नहीं हो रही थी । अब तो आंसू भी बहने लगे थे । संध्या भी वहां भागकर चली आई । राघव की नज़र संध्या पर पडी , तो वो आगे बोला " संध्या इस घर में जिसे जो जिम्मेदारी मिली हैं वो इंसान अपना काम करेगा । अगर कोई किसी और का काम करेगा , तो मैं उसे निकालने में वक्त नहीं लगाऊगा । " इतना बोल राघव जानकी को घूरते हुए अपने कमरे की ओर बढ गया । वही मेन डोर पर खडी परी ने ये सब देखा था । उसके एक हाथ में बॉल था और दूसरा हाथ एक नौकरानी ने पकडा हुआ था । बाहर खेलते खेलते वो थक गयी थी इसलिए अंदर चली आई । राघव को जानकी पर चीखते देख वो नौकरानी वही रूक गयी ‌‌। परी को ज्यादा कुछ समझ नही आया । हां मगर मामले की गंभीरता बच्चे समझते हैं । कहां हंसना हंसाना है और कहा दुखी होना हैं , परिवार के साथ रहते रहते वो सीख ही जाते हैं ।

संध्या जानकी को संभालने के लिए आगे बढी , लेकिन जानकी रोते हुए सीढ़ियों की तरफ भाग गई । वो अपने कमरे में चली आई और दरवाजा बंद कर बिस्तर पर औंधे मूंह आकर गिर पडी । कमरे में सिर्फ और सिर्फ उसकी रोने की आवाजें थी । संध्या भी भागकर उसके कमरे के पास चली आई । कमरा अंदर से लॉक था । संध्या दरवाजा खटखटाते हुए बोली " जानू ..... जानू प्लीज दरवाजा खोल । प्लीज जानू एक बार मेरी बात सुन ले । प्लीज जानू दरवाजा खोल । "

जानकी अपना चेहरा बिस्तर में छुपाए रोए जा रही थी । वही संध्या दरवाजा पीट पीटकर परेशान हो चुकी थी । जानकी ने दरवाजा नही खोला । कुछ मिनट बाद जानकी उठकर बैठ गई । उसने अपने आंसू पोछे और कबर्ड की तरफ बढ गयी । सारे कपड़े निकालकर बेड पर फेंकें और फिर अपने बैग में उन्हें पैक करने लगी । जानकी रोते रोते अपना सामान पैक कर रही थी ।

संध्या बाहर खडी उसके लिए परेशान हो रही थी । उसने फिर से कोशिश की । " जानू .....;जानू प्लीज दरवाजा खोल ..... प्लीज जानू ..... अबकी बार भी कोई जवाब नहीं आया , लेकिन जानकी ने इस बार दरवाजा खोल दिया । आंखें देखकर कोई भी बता सकता था की वो कितना रोई होगी । संध्या की नज़र बेड पर पडे बैग पर गयी । कुछ कपडे बैग के अंदर थे तो कुछ बाहर । संध्या आश्चर्य भरी नजरों से कभी जानकी को तो कभी बैग की ओर देखती । इससे पहले वो कुछ पूछती जानकी रोते हुए उसके गले लग गयी । " मुझे मत रोकना संध्या । मैं नही रह पाऊंगी यहां । देखा न तूने आखिर क्या गलती थी मेरी , जो उन्होंने मुझे इतना सुनाया । वो हमेशा मेरे साथ ऐसा ही करते हैं । आखिर ऐसा क्या बिगाड दिया मैंने उनका , जो मेरे साथ ऐसा सलूक करते हैं । सिर्फ बाहर कॉफी ही तो लेकर गयी थी । क्या ये गलती थी मेरी ? मैं किसी का काम नही छीन रही और न हूं दूसरों के काम करने का शोख पाल रही हूं । तेरे हाथों में चोट लगी थी और कोई भी नही था वहां इसलिए मैं कॉफी लेकर बाहर गयी । मुझे देखकर उस आदमी ने गलत कहा तो उन्होंने इसका गुस्सा मुझपर उतारा । नजरों में खराबी तो उसके थी फिर मैं दोषी कैसे हो गयी । यहां काम करने के पैसे लेती हूं इनकी डांट खाने के नही । ऐसी जिल्लत भरी नौकरी मैंने आज तक नही की और न ही मैं आगे कर पाऊंगी । प्लीज मुझे जाने दे । " संध्या उससे अलग हुई और उसके आंसू पोंछते हुए बोली " ठीक हैं ये तेरा आखिरी फैसला हैं , तो मैं कुछ नही बोलूंगी और तुझे रोकूगी भी नही । " ये बोल संध्या उसका सामान पैक करने लगी । आज के लिए रूक जा कल सुबह की ट्रेन से चली जाना । ' संध्या ने भर आए गले से कहा और उसका सामान पैक करती रही । दरवाज़े के बाहर परी खडी थी । इस वक्त उसी नौकरानी ने उसका हाथ थामा हुआ था जिसने नीचे थामा था । परी ने उससे जिद की तो वो उसे जानकी के कमरे तक ले आई । परी उससे अपना हाथ छुड़ाकर भागती हुई जानकी के पास चली आई और उसके पैरों से लिपट गयी । जानकी ने जब अपने पास परी को देखा , तो वो घुटनों के बल नीचे बैठ गयी । परी अपने नन्हे नन्हे हाथों को बढ़ाकर उसके आंसू पोंछकर बोली " जानू आई डोंट लाइक टियर्स । मम्मा कहती हैं ये हमे वीक बनाते हैं । आज आपको चाचू ने डांटा इसलिए आप रो रही हो न । हम चाचू से कहेंगे वो आपको सॉरी बोल दे । " परी कह ही रही थी की तभी संध्या बोली " जानू सामान पैक हो गया है और भी कुछ पैक करना हैं । "

परी ने जब ये सुना तो जानकी से पूछते हुए बोली " संध्या दीदी ने ये सामान क्यों पैक किया हैं ? "

" क्योंकी आपकी जानू दी हम सबको छोड़कर जा रही हैं । " संध्या ने पीछे से कहा । ये सुन परी उदास होकर बोली " नही जानू कही नही जाएगी । " परी ने अपनी बाहें जानकी के गले में लपेट ली और उसे कसकर हग करते हुए बोली " नही हम जानू को कही नही जाने देंगे । जानू हमेशा हमारे पास रहेगी । ..... जानू बोलों न संध्या दीदी को आप कही नही जाओगी । " परी भी अब रोने लगी थी । परी को रोता देख जानकी ने उसे गले से लगा लिया । " नही मेरे बच्चे रोते नही । मैं कही नही जाऊगी आपको छोड़कर । हमेशा आपके पास रहूंगी आप रोइए मत । " ये सुन परी उससे अलग हुई और उसके चेहरे को देखते हुए बोली " सच्ची में आप कही नही जाओगी । " जानकी ने न में अपना सिर हिला दिया । परी के होंठों पर बडी सी स्माइल तैर गयी । वही जानकी ने उसे फिर से गले लगा लिया । रोते हुए संध्या भी बेड के किनारे बैठ गई । खुशी उसे भी थी की जानकी को परी ने रोक लिया । परी के अलावा ये काम और कोई नही कर सकता था ।

करीब दोपहर के वक्त करूणा और सुरेश मंदिर से लौटे । घर का माहौल काफी शांतिपूर्ण था । परी के घर में रहते हुए ऐसा माहौल कभी नही रहता था । संध्या सीढ़ियों से नीचे ही उतर रही थी । करूणा ने पूजा की थाल सुरेश को देते हुए कहा " इसे मंदिर में रख दो । " सूरेश पूजा की थाल लेकर चला गया ।

करूणा संध्या को देखते हुए बोली " परी और जानकी कही नज़र नही आ रहे । "

" वो दोनों सो रहे हैं भाभी । " संध्या ने कहा ।

" सो रहे हैं वो भी इस वक्त । क्या हुआ सब ठीक तो हैं न । " करूणा ने पूछा तो संध्या ने न में अपना सिर हिला दिया । उसने करूणा सुबह हुई बातों के बारे में सब कुछ बता दिया । ये भी बताया की जानकी ने जॉब छोडने का फैसला ले लिया था , लेकिन परी की वजह से वो रूक गयी । करूणा को ये सब सुनकर एक धक्का सा लगा । करूणा बिना कुछ बोले जानकी के कमरे की ओर बढ गयी । दरवाजा हल्का खुला हुआ था । जानकी और परी इस वक्त सो रहे थे । करूणा दूर खडी कुछ देर उन्हें यू ही निहारती रही । अंदर से वो बहुत बुरा महसूस कर रही थी । करूणा वहां से सीधा राघव के रूम में चली आई । राघव इस वक्त सोफे पर बैठा फाइले पढ रहा था । उसने कमरे में किसी की आहट महसूस की तो देखा सामने करूणा खडी थी ।

" भाभी मां आप कुछ काम था क्या ? " राघव ने फाइल बंद करते ही पूछा ।

करूणा दो कदम आगे बढ़कर बोली " ये आपने ठीक नही किया देवर जी । आपको जानकी के साथ ऐसे नही पेश आना चाहिए था । आप औरों पर इतना गुस्सा नही करते जितना की उसपर करते हैं । वजह मैं नही जानती । आज आपकी बातों से जानकी इतनी दुखी हो गयी की उसने जॉब छोडने तक का फैसला ले लिया था लेकिन परी ने उसे रोक लिया । "

" इसमें कौन सी बडी बात है भाभी मां । हमने उसे कांट्रेक्ट पर नही रखा हैं । वो जब चाहे, जहां चाहे जा सकती है । रही बात परी की तो उसके न होने पर भी हम उसे संभालते थे । उसके चले जाने पर भी हमे कोई फर्क नहीं पडेगा । हम परी के लिए उससे भी अच्छी केअर टेकर ढूंढ लेंगे । "

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राघव का गुस्सा सचमुच खतरनाक है लेकिन वो औरों पर इतना गुस्सा नही करता जितना की जानकी पर करता हैं आखिर क्या वजह हैं इसकी ?

क्या जानकी के जाने से राघव को कोई फर्क नहीं पड़ता ? जानकी की एहमियत उसके दिल में बिल्कुल भी नही हैं ? क्या होगा आगे ? जानकी इतनी ज़िल्लत सहकर वहां रह पाएगी ?

क्या करूंणा उसे उसकी गलती का एहसास दिला पाएगी ? क्या राघव अब भी अपनी गलतियों को समझ पाएगा या नहीं ?

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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