Prem Ratan Dhan Payo - 35 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 35







गिरिराज वापस से सोफे पर बैठते हुए बोला " अरे प्रेम की भाषा ई सब नही समझती हैं । खाली जुता लात की भाषा समझ में आती है । औरत पैरों की जूती होती हैं और जूती पैर में ही शोभा देती हैं । सर पर रखोगे तो दुनिया पागल कहेगी । "

" काहे ऐसी बाते कर रहे हों । " कुंदन कह ही रहा था की तभी गिरिराज उसकी बात बीच में काटते हुए बोला " तुम बच्चे हो नही समझोगे । जब बीवी नाम का फंदा तुम्हरे गले में पडेगा न तब समझ आएगा । एक बात ध्यान रखना ।‌ इन लोगों पर न हमेशा लगाम कसकर रखना, वरना कब हाथ से निकल जाएगी पता भी नही चलेगा ‌‌। " वो कहते है न जैसी जिसकी घटिया सोच , गिरिराज वही तो कर रहा था । खुद के गंदे विचारों को सही बताकर अपने भाई को भी वही ज्ञान दे रहा था ।

इधर गायत्री भागकर अपने रूम में चली आई और बिस्तर पर औंधे मुंह आकर गिर पड़ी । और कितना दर्द बर्दाश्त करती वो । जब सहने की हद पार हो जाती , तो आंसू बनकर दर्द आंखों से छलक जाता है ।

दिशा गायत्री के कमरे में आई , तो उसे रोते हुए देखकर वो भागकर उसके पास चली आई । "" भाभी ..... भाभी क्या हुआ आप रो क्यों रही है ? " गायत्री ने अपना चेहरा उठाया , तो उसके गालों पर उंगलियों के छाप साफ दिखाई पड रहे थे । दिशा उसे देखते हुए बोली " फिर से भैया ने आप पर हाथ उठाया । " गायत्री ने कोई जवाब नहीं दिया बस दिशा के गले लगकर रोने लगी । दिशा समझ नही पा रही थी उसे कैसे संभाले । वो गायत्री का पीठ सहलाते हुए बोली " क्यों की भाभी आपने इस घर में शादी और जब भैया को आप बहुत पहले समझ चुकी थी , तो ये घर छोड़कर क्यों नही चली गयी । क्यों इन रोज रोज के अत्याचारों को आप बर्दाश्त कर रही हैं । "

गायत्री सिसकियां भरते हुए बोली " तो और क्या करू दिशा ? तुम भी बताओ बर्दाश्त करने के सिवा और कोई चारा हैं मेरे पास । दहेज के लालची जब तक समाज में भरे रहेंगे तब तक गरीब मां बाप पर बेटियां बोझ बनी रहेंगी । मेरी शादी के बाद मां बाप भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए । चाहे सुख मिला या दुख उन्होंने कहा अब जिस घर में तेरी डोली जा रही हैं , अर्थी के साथ ही निकलना । अगर यहां से भागकर मैं उनके पास चली भी जाती, तो ताने मारकर ये समाज उन्हें जीने नही देता । वो तो जीते जी मर जाते । इस घर कै अलावा कोई आसरा नही हैं मेरे पास इसलिए हर रोज दर्द बर्दाश्त कर जी रही हूं । अकेली नही हूं मुझ जैसी कितनी औरते हैं इस दुनिया में जो चुपचाप दर्द सहती हैं , लेकिन जाहिर नही करती । " गायत्री दिशा के गले लगे अपनी व्यथा पर आंसू बहा रही थी । वही दिशा भी उसे देख रो पडी थी । " सच कहु भाभी आप हो तो मैं ज़िंदा हूं । वरना इस पिंजरें में कब का मेरा दम घुट जाता ‌‌। "

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सुबह का वक्त , रघुवंशी मेंशन




जानकी पूजा करने के बाद किचन में चली आई । संध्य पहले से ही वहां मौजूद थी । " गुड मॉर्निंग संध्या ।‌‌

" गुड मॉर्निंग जानू " संध्या ने मुस्कुराकर जवाब दिया । सामने कढाही में तेल कुछ ज्यादा गर्म था । संध्या ने जल्दबाजी में सब्जियां उसके अंदर डाली , तो तेल के कुछ छीटे उसके हाथों पर चले आए । आहहहह ..... दर्द है झटपटाते हुए कुछ कदम पीछे हट गयी । वही जानकी ने जब उसे ऐसे देखा , तो भागते हुए उसके पास चली आई । " संध्या तूं ठीक तो हैं ।‌" जानकी ने जल्दी से गैस बंद किया और संध्या को वॉश वेसिन के पास लेकर आई । उसने ठंडे पानी में संध्या का हाथ रखवाया ताकी उसे आराम मिले । " संध्या तूं यही रूक मैं मेडिसिन लेकर आती हूं । " जानकी ये बोल वहां से भागती हुई बाहर चली गई ।‌‌‌‌‌ कुछ ही देर में वो फर्स्ट एक बाक्स लेकर संध्या के का आई । उसने उसे पास रखे स्टूल पर बिठाया और हाथो में मेडिसिन लगाने लगी ।

" जानू तू बेकार में परेशान हो रही हैं । मैं ठीक हूं । " संध्या ने कहा तो जानकी बिगड़ते हुए बोली " एक रखकर दूगी , बेवकूफ लड़की । डाक्टर से कोई झूठ नही बोलता । मुझे अच्छे से दिख रहा हैं तेरा हाथ कितना जला हैं । जलन के मारे जान निकल रही होगी , इसलिए मेरे सामने ठीक होने का नाम मत कर ।‌‌ अब तू कोई काम नही करेगी , चुपचाप से जाकर मेरे कमरे में आराम कर । "

" मैं आराम करूंगी तो खाना कौन बनाएगा ? "

" मैं बना लूगी , तूं जाकर आराम कर । " जानकी ने कहा तो संध्या बोली " कैसी बाते कर रही है ? ये काम मेरा हैं भला तू क्यों करेगी ? मैं कर ....... इससे आगे संध्या कुछ बोलती जानकी उसके मूंह पर उंगली रखकर बोली " बस अब एक और शब्द नही । एक दिन खाना बना लूगी तो मेरे हाथ नही घिस जाएंगे । अब कोई नौटंकी नही चुपचाप से जाकर आराम कर । " जानकी ने उसे किचन से बाहर करते हुए कहा " सीधे मेरे कमरे मे जा मुड़कर पीछे मत देखना । " संध्या मुस्कुराते हुए वहां से चली गई । जानकी किचन में आई और दुपट्टे को कंधे से लेकर कमर पर एक गांठ लगा दी । इतने दिनों में घरवालों की पसंद और नापसंद वो जान चुकी थी । जानकी सबके लिए नाश्ता बनाने में जुट गई ।

इधर एक नौकर दो लोगों को हवेली के अंदर लेकर आया । उसने उन दोनों को वही हॉल में बिठाया और राघव को बुलाने के लिए उसके कमरे की ओर बढ गया ‌‌। नौकर ने दरवाजा नोंक किया तो राघव ने आकर दरवाज़ा खोला ।

राघव के सवाल करने से पहले नौकर सिर झुकाकर बोला " सरकार दो लोग आपसे मिलने आए हैं । उन्हे नीचे हॉल में बिठाया हैं ।‌"

" ठीक हैं उनसे कहो मैं थोडी देर में आता हू ।‌" राघव ने कहा तो नौकर हां में सिर हिलाकर वहां से चला गया । कुछ देर बाद राघव नीचे चला आया । राघव को आते देख वो दोनों लोग उठकर खडे हो गए । राघव को उन्हें देख कोई खास खुशी नही हुई । उसके चेहरे पर अभी भी कोई रिएक्शन नही था । सामने से उस आदमी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया " हल्लो मिस्टर सूर्यवंशी । "

राघव ने हाथ मिलाते हुए कहा " मिस्टर बंसल आप खडे क्यों हो गये , बैठिए । "

मिस्टर मोनीश बंसल और उनका सेक्रेटरी इस वक्त राघव के सामने खडे थे । तीनों ही एक साथ सोफे पर बैठे ।

मोनीश चारों ओर नजरें दौड़ाकर बोला " आपकी हवेली वाकई खूबसूरत हैं मिस्टर रघुवंशी । "

राघव उसकी बातों को इग्नोर सीधे मुद्दे पर आते हुए बोला " आप यहां किस काम से आए हैं पहले वो बताएगे । "

" आई लाइक योर एंटिटयूड मिस्टर रघुवंशी ।‌‌‌‌‌‌‌ आप सीधा मुद्दे पर आ गये । मैंने हफ्ते भर पहले आपके पास एक प्रोजेक्ट भेजा था , जिसमें मैंने ये कहा था की हम दोनों साथ मिलकर काम करते हैं ।‌" मोनीश ने कहा तो राघव बोला " मुझे आपका प्रोजेक्ट पसंद नही आया इसलिए मैंने अगले दिन ही वापस भिजवा दिया था । "

" जानता हूं " मोनिश ने कहा ।

" तो फिर यहां आने का कष्ट क्यों उठाया ? "' राघव ने कहा ।

" एक बार फिर सोच लीजिए मिस्टर रघुवंशी लाखों का नही करोड़ों का प्रोजेक्ट हैं । न करके आप बहुत पछताएंगे । मैं आपको एक और मौका देने आया हूं ‌‌। " मोनीश ने कहा ।

राघव सुरेश को आवाज लगाते हुए बोला " सुरेश दो कप कॉफी लेकर आओ । " ये आवाज किचन में खाना बना रही जानकी ने सुना । " सुरेश तों यहा हैं नही । वो तो भाभी मां के साथ मंदिर गए हैं । " जानकी खुद है बोल कॉफी बनाने में जुट गयी । वैसे भी नाशता वो तैयार कर चुकी थी ।

इधर राघव मोनीश से बोला " राघव सिंह रघुवंशी बहुत सोच समझकर फैसला लेता हैं ।‌ जिससे उसे दूसरी बार सोचने की जरूरत ही न पड़े । आप चाहें दस बार भी मुझसे ये सवाल क्यों न करे मेरा फैसला नहीं बदलेगा । इस प्रोजेक्ट से फायदा आपकों होगा । लेकिन उस जमीन पर रहने वाले कितने ही लोग बेघर होंगे , शायद आपको इस बात का अंदाजा भी नही । "

मोनीश कुछ कहने को हुआ की तभी उसके कानों में किसी के पायलो की आवाज पहुंची । मोनीश की नजरें आस पास उस शोर करने वाले शख्स को तलाशने लगी । राघव ने सामने देखा जहां से जानकी कॉफी का ट्रे पकडे उनकी तरफ आ रही थी । राघव ने सुरेश से कॉफी लाने को कहा था लेकिन जानकी का आना आश्चर्य में डालने वाला था ।

मोनीश का ध्यान भी जानकी पर चला गया । वो तो उसकी सादगी और मासूम से चेहरे में खो चुका था । होंठों पर अपने आप ही मुस्कुराहट चली आई । जानकी ने कॉफी की ट्रे नीचे रखी । उसने कॉफी का कप उन दोनों की ओर बढा दिया । कॉफी का कप पकड़ते वक्त मोनीश ने हाथ कुछ ज्यादा आगे बढाया । उसके हाथों ने जब जानकी के हाथों को स्पर्श किया , तो उसकी मुस्कुराहट और बढ गयी । वही जानकी को ये स्पर्श असहज महसूस करवा रहा था । राघव को ये सब बिल्कुल अच्छा नही लगा । राघव ने देखा मोनीश कैसी नजरों से जानकी को देख रहा हैं । राघव सख्त लहजे में जानकी से बोला " तुम्हें किसने कहा था लाने के लिए । मैंने सुरेश को कहा था । "

" जी वो .....

" जाओ यहां से " राघव ने जानकी की बात पूरी तरह से काटते हुए कहा । जानकी को उसका लहजा बिल्कुल अच्छा नही लगा और वो उदास चेहरे के साथ किचन में चली गई ।

मोनीश अभी भी जाती हुई जानकी को पीछे से घूर रहा था । वही राघव का क्रोध बढता जा रहा था । उसने सख्त लहजे में कहा " मिस्टर बंसल आप कुछ कह रहे थे । "

" हां .... हां मैं ये कह रहा था की चलिए छोड़िए उससे भी जरूरी बात जहन में आ गयी । क्या ये परमानेंट चौबीस घंटे की नौकरी करती हैं । काफी खूबसूरत नौकरानी हैं । कहां से मिली । एक हमे भी दिलवा दीजिए । हमारी हवेली में भी बहुत जरूरत हैं ऐसी लडकी की । रूपया पैसा , खाना सब बराबर मिलेगा । अगर तकलीफ न हो तो यही हमे दे दीजिए । "

राघव गुस्से से खडे होते हुए बोला " इनफ हां .... बहुत हो गया । मैं आगे और एक शब्द नही सुनना चाहते ।‌‌‌‌ उठो और अभी के अभी मेरे घर से निकलो । " राघव की तेज आवाज हवेली में एक प्रकार से गूंज उठी थी । जानकी किचन के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गयी । वही संध्या भी कमरे से निकलकर कॉरीडोर में रेलिंग के पास आकर खडी हो गयी ।

मोनीश और उसका सेक्रेटरी दोनों उठ खडे हुए । मोनीश चेहरे पर अजीब सी हंसी लिए बोली " मिस्टर रघुवंशी इतना गुस्सा क्यों हो रहे हैं आप ? कही ऐसा तो नही वो नौकरानी आपकी कुछ ज्यादा ही खास हैं । पैसे पर ही तो सब मरते हैं । ज़िंदगी भर नही रखेंगे । बस कुछ दिनो के लिए भेज दीजिए , थोडी मेहमान नवाजी हम भी करवा लेंगे फिर तो हर रात वो आपके साथ ही रहेगी । " मोनीश ने इतना कहा ही था की तभी राघव ने उसके चेहरे पर एक जोरदार घूंसा जड़ दिया । मोनीश अपने चेहरे पर हाथ रख वही पीछे सोफे पर जा गिरा ‌‌। उसका सेक्रेटरी उसे संभालने के लिए उसके पास पहुंचा । मोनीश ने अपने चेहरे से हाथ हटाया , तो उसके हाथों पर खून लग चुका था । मूंह और नाक दोनों से ही खून निकल रहा था । वही दूर खडी जानकी और संध्या दोनों ने आश्चर्य से अपने मूंह पर हाथ रख लिया ।

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अब मोनीश की बातों का राघव आगे कैसे जवाब देगा ? क्या मोनिश बिना समय गंवाए वहां से लौट जाएगा या बात और आगे बढेगी ? कैसे रोकेगी जानकी इन सबको ? क्या कुछ गलत होगा ? मुश्किलें किसकी बढेगी और किसकी कम होगी ये जानने के लिए अगला भाग जरूर पढ़ें

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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