Prem Ratan Dhan Payo - 37 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 37







" इसमें कौन सी बडी बात है भाभी मां । हमने उसे कांट्रेक्ट पर नही रखा हैं । वो जब चाहे, जहां चाहे जा सकती है । रही बात परी की तो उसके न होने पर भी हम उसे संभालते थे । उसके चले जाने पर भी हमे कोई फर्क नहीं पडेगा । हम परी के लिए उससे भी अच्छी केअर टेकर ढूंढ लेंगे । " राघव ने कहा तो करूणा बोली " हां आप उससे अच्छी केअर टेकर ढूंढ सकते हैं लेकिन जानकी जैसी नहीं । परी को जानकी की जरूरत है । देवर जी मुझे सब पता चल चुका है । आपको उस आदमी की बातों पर गुस्सा आना लाजमी था , लेकिन जानकी पर अपना गुस्सा उतारना ये गलत था । सुबह खाना बनाते समय संध्या का हाथ जल गया था , इसलिए वो उसकी मदद के लिए किचन में गयी । उसे क्या मालूम था बाहर बैठे लोग उसे किस नज़र से देखेंगे । ....... करूणा थोडा रूककर बोली " हो सके तो उससे माफ़ी मांग लीजिएगा देवर जी , क्योंकि अंजाने में ही सही आपने उसे चोट पहुंचाई है । " इतना कहकर करूणा वहां से बाहर चली गई । राघव खामोश बैठा बस करूणा की कही बातों को सोच रहा था । राघव को वो पल याद आने लगा जब वो जानका पर चीखा था । राघव कसकर अपना हाथ टेबल पर मारते हुए बोला " आखिर क्यों वो मेरी सोच पर इस कदर हावी हो रही है । उसके लिए मैं इतना परेशान हो गया । उसके सामने होने पर मैं क्यों इतना गुस्सा करता हूं । आखिर किस हक से मैं उसपर चिल्लाया था । कुछ समझ नहीं आ रहा मुझे । " राघव ने अपनी आंखें कसकर बंद कर ली और अपने दोनों हाथ सिर के पीछे रख बालो को कसकर पकड़ लिया ‌‌।

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रात का वक्त , रघुवंशी मेंशन




राज शाम को हवेली आया , तो उसे भी यहां हुई बातों के बारे में पता चला । उसे बहुत दुख हुआ ये बात जानकर की राघव ने उसके साथ मिस बिहेव किया । वो जानकी से मिलने जा रहा था लेकिन करूणा ने उसे रोक दिया । वो लोग सो रहे हैं राज । उन्हें नीचे आने दीजिए फिर मिल लीजिएगा । "

" ठीक हैं भाभी " राज ने कहा ।

रात को खाने का समय हुआ तो सभी डायनिंग टेबल के पास जमा हुए । सबका खाना शुरू हो चुका था । जानकी काफी देर बाद परी को लेकर नीचे आई । राघव को छोड़कर बाकी सबकी नजरें उस ओर गयी । जानकी के चेहरे पर उदासी साफ़ नज़र आ रही थी । जानकी अपने काम अनुसार परी को उसकी चेयर पर बिठाकर खुद उसके पास वाली चेयर पर बैठ गई । संध्या ने आकर परी के लिए खाना सर्व किया । संध्या जानकी के लिए प्लेट लगाने लगी , तो जानकी ने उसका हाथ पकड रोक दिया । संध्या ने उसकी ओर देखा तो जानकी ने न में गर्दन हिला दी । संध्या समझ गयी की वो खाना नही चाहती । वो चुपचाप पीछे हट गई ।

जानकी परी को खाना खिलाने लगी । करूणा जानकी की ओर देखकर बोली " ये क्या जानू आप खाना नही खाएगी ? "

" नही भाभी मां हमारा बिल्कुल भी मन नही हैं खाने का । अगर जबरदस्ती खा भी लेंगे तो हो सकता है कुछ देर बाद वोमिटिंग हो जाए । " जानकी ने सिर झुकाए कहा । वहां मौजूद सभी लोग समझ गए जानकी क्यों नही खा रही । किसी ने कुछ नही कहा और अपने खाने पर ध्यान देने लगे । राघव के गले से खाना नीचे उतर ही नही रहा था । तीन से चार चम्मच उसने और खाया और फिर वहां से उठकर चला गया । सब लोग उसे जाता हुआ देख रहे थे । जानकी ने एक बार भी निगाहें उठाकर उसे नही देखा । वो चुपचाप परी को खिला रही थी । परी को खिलाने के बाद जानकी उसे उसके कमरे में लेकर चली आई ।‌‌ परी को सुलाकर जानकी उसके कमरे से बाहर निकली तो सामने राघव को देखकर जानकी के कदम ठहर गए । वो इस वक्त दरवाजे के बाहर कुछ ही कदम की दूरी पर खडा था । जानकी नजरें फेर अपने कमरे की ओर बढने लगी , तो राघव ने उसकी कलाई पकड रोक लिया । जानकी घबराकर पीछे की ओर पलटी तो राघव ने उसकी कलाइ छोड दी ।

बडी हिम्मत जुटाकर राघव ने कहा " सॉरी ..... आज सुबह जो किया उसके लिए । शायद मैं अपने गुस्से पर कंट्रोल नहीं कर पाया । मुझे कोई हक नही था तुम पर ऐसे चिललाने का ।‌‌ हो सके तो मुझे माफ़ कर देना । ' इतना कहकर राघव अपने कमरे में चला गया । कमरे में आकर राघव ने एक गहरी सांस ली । उसने महसूस किया जैसे दिल पर से कितना बडा बोझ हट गया हो ।

वही जानकी हैरान परेशान सी वही खडी थी । पल में अग्नि की ज्वाला और पल भर में सागर जैसी ठंडक...... कितने रूप छुपा रखे हैं राघव ने अपने अंदर । उसे समझना आसान नहीं । जानकी इन्हीं ख्यालों में खोई हुई पीछे गार्डन में चली गई । दिन भर तो सोई थी भला नींद कैसे आती । अपनी कशमकश में वो झूले पर जाकर बैठ गई । इसी बीच किसी ने उसके कन्धे पर हाथ रखा । जानकी ने नजरें उठाई तो देखा करूणा खडी थी । करूणा उसके पास बैठते हुए बोली " देवर जी को समझने की कोशिश कर रही हो । "

जानकी बिना उसकी ओर देखे बोली " हम भला उनके बारे में क्यों सोचेंगे ? हम उन्हें नही समझना चाहते , क्योंकि वो काम बहुत मुश्किल है । "

" कुछ मुश्किल नही हैं जानू । देवर जी को समझना बहुत आसान काम हैं । हां बस आज के समय में ये काम बहुत मुश्किल हो चुका हैं । देवर जी जैसे दिखाई देते हैं वैसे वो पहले नही थे । माना गुस्सा बहुत पहले से था उनमें , लेकिन वो कभी दिखाई नहीं पडता था । लंबा वक्त गुजर गया । उनके चेहरे पर मुस्कराहट देखे , पहले कभी उनके चेहरे से मुस्कुराहट गायब ही नही होती थी । " जानकी ने नजरें उठाकर करूणा की ओर देखा । करूणा गहरी सोच में डूबी हुई कहती गयी । " जानती हो जानकी जब मैं इस घर में पहली बार शादी करके आई थी , तब इस घर का माहौल बेहद अलग था । मां बाप जैसे सास ससुर । बहुत प्यार करने वाला पती और बच्चे की तरह जिद करने वाला देवर मिला । देवर जी सख्त मिजाज के पहले नही थे । हंसमुख थे , दिन भर शैतानियां करते हैं । आय दिन मां पापा के पास उनकी शिकायतें आती थी । वो जहां रहे वहा शांती नही रहती , उन्हें शोर शराबा पसंद था । देर रात तक पार्टी करना और फिर चोरी छुपे घर लौटना ......... ये सब कहते हुए करूणा पुरानी यादों में खो गयी ।

फ़्लैश बैक .......




‌ रघुवंशी परीवार के सभी सदस्य खाने की टेबल पर मौजूद थे ‌‌। राघव की मां अर्चना सिंह रघुवंशी , पिता हरिवंश सिंह रघुवंशी और बडे भाई समर सिंह रघुवंशी । करूणा नयी नयी शादी करके आई थी । करीब छः महीने ही शादी शुदा जिंदगी को बीते थे । वो सबको खाना परोस रही थी । सब मौजूद थे सिवाय राघव को छोड़कर । हरिवंश जी ने देखा तो पूछते हुए बोले " राघव कही नज़र नहीं आ रहा । "

उनका सवाल सुन समर , अर्चना जी और करूणा तीनो एक दूसरे की ओर देखने लगे । अर्चना जी बात संभालते हुए बोली " कॉलेज से आने के बाद उसने हैवी नाश्त कर लिया था , इसलिए वो रात का खाना नही खाएगा । "

समर और करूणा तो बहाना सोच ही रहे थे , लेकिन अर्चना जी ने सोचकर कह भी दिया । हरिवंश जी समर से बोले " बेटा जरा अपनी मां को बताओ संडे के दिन कालेज बंद रहता हैं । "

अर्चना जी की आंखें हैरानी से बडी हो गयी । वही समर और काव्या ने अपना सिर पीट लिया । हरिवंश जी अपनी पत्नी से बोले " अर्चना जी अपने बेटे की गलतियों को इतना मत छुपाइए की बाद में आपको पछताना पडे । इस तरह दिन भर दोस्तों के साथ घूमना , देर रात तक पार्टी करना सभ्य बच्चों की निशानी नही हैं ।‌‌ उसका कोर्स खत्म होने में साल भर रह गया हैं । अभी से आफिस ज्वाइन कर लेगा तो चीजे संभालने में आसानी होगी । ..... ' समर '

" जी पापा " .....

" बेटा मार से या फिर प्यार से जैसे भी हो उसे कल से आफिस लेकर जाओ । " हरिवंश जी ने कहा । समर ने हां में अपना सिर हिला दिया ।

हरिवंश जी खाना खाने खाने के बाद अपने कमरे की ओर बढ गये । करूणा अर्चना जी की ओर देखकर बोली " मां हम लोग सोच रहे थे और आपने कह भी दिया । "

" अब मैं क्या करती ये मेरा फेवरेट डायलाग हैं और तुम्हारे पापा हर बार फंस जाते हैं । ' अर्चना जी कह ही रही थी की तभी समर बोला " लेकिन इस बार तो आप फंस गयी न । "

" सही कहा , कान पकड़कर नही खींचे न उसके तो मैं तुम लोगों की मां नहीं । ' अर्चना जी ने कहा । सब लोग खाना खाकर अपने अपने कमरे में चले गए । रात करीब एक बजे एक लडका जिसने हुड्ढी पहना हुआ था , वो पाइप के सहारे कमरे में दाखिल हुआ । " फाइनली आई रीच माय फ़ाइनल पाथ । " ये लडका और कोई नही बल्कि राघव ही था । उसने हुड्ढी निकालकर दूर फेंका और पीठ के बल बेड पर लेट गया । अचानक ही कमरे की सारी लाइट्स ऑन हो गयी । राघव चौंककर बेड पर उठ बैठा । सामने खडे त्री मूर्ति को देखकर उसके होश उडने तय थे । अर्चना जी , समर और करूणा तीनो इस वक्त राघव के सामने खडे थे ।

" हां तो महाशय कहां निकली थी आज की सवारी आपकी ? " समर ने पूछा तो राघव झेंपते हुए बोला " वो .... वो भैया आज मेरे दोस्त की बैचलर पार्टी थी । दो दिन बाद वो शहीद होने वाला हैं , तो आज हम उसे दिलासा देने गये थे । "

" अच्छा जी दोस्त को दिलासा देने गये थे । सुना मां आपने क्या कहां आपके लाडले ने । रात के एक बजे बेचलर पार्टी इंजोय करके आ रहा हैं । हफ्ते के सात दिन में से पांच दिन तो पार्टी में चले जाते हैं और पापा से झूठ बोल बोलकर हमारी शामत आ जाती हैं । " समर ने कहा ।

अर्चना जी आगे बढ़कर बोली " राघव सुधारों अपनी गलत आदते ‌‌। यही हाल रहा तो कोई लडकी तुमसे शादी नही करेगी । "

राघव तकिया उठाकर अपनी गोद में रखते हुए बोला " डोट वरी मां जब भैया को इतनी अच्छी बीवी मिल सकती हैं , तो मैं तो राघव हूं किसी न किसी सीता को राम जी ने मेरे लिए बनाया ही होगा । "

" देखा मां आपने ये लडका खडे खडे मेरी बेइजती कर रहा हैं । काम रावण वाले और ख्वाब देख रहा हैं सीता के । "

" अफकोर्स भैया ..... अब मुझे नींद आ रही हैं आप लोग प्लीज जाइए और मुझे सोने दीजिए । गुड नाइट एवरीवन और जाने से पहले प्लीज कमरे का लाइट बंद कर दीजिएगा । " राघव ये बोल बेड पर लेट गया ।

" इसपर तो किसी बात का असर ही नही होता । " ये कहते हुए अर्चना जी कमरे से बाहर चली गई ।

करूणा राघव को देख मुस्कुराए जा रही थी । समर उसका हाथ पकड़ अपने करीब लाकर बोला " बहुत हंसी आ रही हैं । लाडले देवर की प्यारी भाभी बताऊ तुम्हें मैं । "

राघव बिना आंखें खोले अपने दोनों हाथ जोड़कर ऊपर करते हुए बोला " थोडा इस कुंवारे पर रहम कीजिए और रोमेंस जाकर कमरे मे कंटिन्यू कीजिए । " राघव की आवाज सुनकर करूणा शर्माते हुए वहां से भाग गयी । समर ने सोफे पर पडा तकिया राघव पर फेंकते हुए कहा " बहुत बदतमीज हो गया है तूं । कल सुबह तुझसे निपटता हूं । "

" मुझसे बाद में निपटिएगा पहले जाकर भाभी मां से निपटिए । अगर देर की तो कमरे में घुसने नही देंगी । " ये कहकर राघव ने आई ब्लिंक की और वापस से आंखें बंद कर सो गया । समर उसे गुस्से से घूरते हुए बाहर निकल गया ।

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फ्रेंड्स अभी फ्लेश बैक लंबा चलेगा क्योंकि असली कहानी छुपी हुई हैं । कोशिश की हैं मेरी लाइने आपको बोर न करे फिर भी कुछ कमी लगे तो कमेंट बाक्स में बता दीजिएगा ।

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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