Prem Ratan Dhan Payo - 38 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 38







" मुझसे बाद में निपटिएगा पहले जाकर भाभी से निपटिए । अगर देर की तो कमरे में घुसने नही देगी । " ये कहकर राघव ने आई ब्लिंक की और वापस से आंखें बंद कर सो गया । समर उसे गुस्से से घूरते हुए बाहर निकल गया ।

समर अपने कमरे में आया , तो देखा करूणा बिस्तर ठीक कर रही थी । समर ने जाकर उसे पीछे से बांहों में भर लिए । समर की छुअन महसूस कर करूणा मुस्कुरा दी । समर उसके कंधे पर अपना चेहरा टिकाकर बोला " तो सजा के लिए तैयार हो । "

" कैसी सजा हमने तो कोई गलती नही की ? "

"' अच्छा जी अब वो भी मुझे बताना पडेगा । "' समर ने शरारती लहज़े में कहा । करूणा अपनी कमर से उसका हाथ हटाते हुए बोली " अब हटाइए अपना हाथ वरना हमारे पेट में दर्द होना शुरू हो जाएगा । " समर तुरंत करूणा से दूर हो गया । वो उसे अपनी ओर घुमाते हुए बोला " सब ठीक है न तुमने वक्त पर दवा ली थी अपनी । "

" हां ली थी आप परेशान मत होइए । '

" करूणा ख्याल रखा करो अपना । अकेली नही हो एक नयी जिंदगी तुम्हारे अंदर पल रही हैं । ' समर ने कहा तो करूणा उसके सीने से लग गई । " जानते हैं इसलिए अपना ख्याल भी रख रहे हैं । "

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अगला दिन , सुबह का वक्त




हरिवंश जी हॉल में बैठे अखबार पढ रहे थे । करूणा और अर्चना जी आपस में बाते करते हुए नाश्ते की टेबल पर खाना लगवा रही थी । समर भी आफिस जाने के लिए रेडी होकर नीचे चला आया । राघव की नींद भला कहा पूरी हुई थीं । फिर भी उसे जगाने के लिए अर्चना जी ने सुरेश को कमरे में भेज दिया । सुरेश जानता था राघव को जगाना मतलब शेर की गुफा में जाना । बेचारा डरते हुए कमरे के अंदर चला आया । " भैया ..... भैया उठिए मालकिन नीचे बुला रही हैं । " राघव के कानो में खलल पडी , तो उसने तकिये से अपना सिर ढक लिया । " सुरेश अभी जाओ यहां से मैं थोड़ी देर में आ जाऊगा । " सुरेश हां में सिर हिलाकर वहां से चला गया । नीचे सभी लोग नाश्ते की टेबल पर पहुंच चुके थे । हरिवंश जी ने राघव को गायब देखा तो फिर से बोले " आपका लाडला रात को घर लौटा या नही । "

" जी वो जरूरी काम से गया था । देर रात को लौटा हैं इसलिए सोने दीजिए कुछ देर । " अर्चना जी ने कहा ।

" हां क्यों नही जनाब तो पहाड तोड़कर आए होंगे , इसलिए सोने दिया जाए । " हरिवंश जी ने तंज कसते हुए कहा ।

समर ने करूणा कि ओर झुककर धीरे से कहा " जाकर जगाओ अपने लाडले को वरना पापा जगाने के लिए गए न , तो पक्का महाभारत शुरू हो जाएगी । " करूणा ने हां में सिर हिलाया और राघव के कमरे में चली आई । उसके सोने का तरीका बिल्कुल बच्चों की तरह था । पूरे बैड पर फैलकर सो रहा था । उसे देख करूणा को हंसी आ गयी । उसने अपनी हसी रोकी और राघव को जगाने के लिए उसके पास चली आई । " उठिए देवरजी नही तो पापा आ गए फिर बडीइऐ प्रोब्लम हो जाएगी । "

राघव करवट बदलते हुए बोला " भाभी मां थोडी देर और । "

" बिल्कुल नही , अब आप उठेंगे या फिर मैं एक बाल्टी पानी आपके ऊपर यही डाल दू । " करूणा के ये कहते ही राघव उठकर बैठ गया । वो अपने दोनों हाथ जोडते हुए बोला " धन्य हो माते आप जीती मैं हारा । कृप्या करके दस मिनट का समय दे दीजिए , मैं अभी तैयार होकर आता हूं । "

करूणा मुस्कुराते हुए रूम से बाहर चली गयी । राघव भी रेडी होने के लिए वॉशरूम में चला गया । जाने से पहले उसने म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया ।

घर से निकलते ही , कुछ दूर चलते ही रस्ते में हैं उसका घर ...... गाना बजने लगा । ये तो जनाब की पुरानी आदत थी । ये दर्शाने के लिए की अब वो जाग चुके हैं । क्योंकि शांती से ज्यादा शोर शराबे से उन्हें प्यार था । इसके साथ एक खासियत थी जनाब को पुराने हिंदी गाने बेहद पसंद थे ।

राघव तैयार होकर नीचे चला आया । सबका नाशता लगभग हो चुका था । राघव अपनी सीट पर आकर बैठ गया । करूणा उसे खाना सर्व करने लगी । हरिवंश जी राघव को देखते हुए बोले " कहां थे कल रात तुम ? "

" अपने कमरे में सो रहा था । "

" वो तो रात के एक बजे के बाद की बात हैं उससे पहले कहा थे ‌‌। " हरिऊ जी का सवाल सुन अर्चना जी बोली " क्या लेकर बैठ गए आप । उसे ठीक से नाश्ता तो करने दीजिए । "

" हां मैं कुछ बोलू तो सबको गलत ही लगता है । सब लोग इसकी गलतियों को छुपाते फिरते हो । इसलिए इतना बिगड गया हैं ये । अब मैं इसकी एक नही चलने दूगा । आज और अभी ये हमारे साथ आफिस चलेगा । " हरिवंश जी की बात सुनकर राघव की खासी शुरू हो गयी । समर ने तुरंत उसकी ओर पानी का गिलास बढाया । राघव ने पानी पिया और खुद को नोर्मल करते हुए बोला ' इन सबकी क्या जरूरत है पापा अभी तो मेरे खेलने कूदने की उम्र हैं । कम से कम स्टडी तो पूरी करने दीजिए । "

" हां क्यूं नही ये तुम्हारे खेलने कूदने की उम्र हैं । इस उम्र मे मेरे दो बच्चे हो चुके थे । " हरिवंश जी की बातें सुनकर समर को हंसी आ गयी , लेकिन उसने अपनी हंसी रोक ली । राघव मन में बोला ' पापा अब फिर शुरू हो गये अपनी उपलब्धिया गिनवाने ।‌‌"

हरिवंश यही नही रूके उन्होंने और भी कयी उपलब्धियां गिनवाई । बडी मुश्किल से राघव का खाना उसके गले से नीचे उतरा । डांट डपट के सहारे ही सही राघव को आफिस ले जाया गया । मस्त मौला इंसान हर बार जिम्मेदारियो से बचना चाहता था , लेकिन आज हरिवंश जी की जिद पर राघव को आफिस जाना पडा ।

हरिवंश की मीटिंग थी इसलिए वो अटेंड करने चले गए । राघव समर के कैबिन में आते हुए बोला " भैया मैं बोर हो गया हूं । आप लोग कैसे यहां पूरा दिन बिताते हो । "

" पहला दिन हैं न इसलिए तुझे ऐसा लग रहा हैं । जब तू रोज आफिस आने लगेगा तो अपने आप आदत हो जाएगी । " समर लैपटाप पर काम करते हुए बोला । राघव चुपचाप वहां चेयर पर बैठा रहा । अचानक ही उन्हें बाहर से कुछ आवाजें सुनाई दी । राघव और समर ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर उठकर कैबिन से बाहर चले आए । सारे आफिस स्टाफ भी दरवाज़े की ओर देख रहे थे । राघव समर से बोला " ये शोर कैसा भैया ? "

" पता नही चलो चलकर देखते हैं । " समर ये बोल दरवाजे की ओर बढ गया ‌‌। राघव और समर के साथ आफिस के बाकी स्टाफ भी बाहर निकल आए थे । बाहर सौ दो सौ लोगों का जमावड़ा था । पूरी भीड रघुवंशी परीवार को लेकर हाय हाय के नारे लगा रही थी । हरिवंश जी भी शोर शराबा सुनकर मीटिंग छोड़कर बाहर चले आए । राघव ने आफिस का जिम्मा कभी संभाला ही नही तो ऐसे में भला उसे इन प्रोब्लम्स के बारे में कैसे पता होता । हरिवंश जी ने कैलाश जी को कुछ इशारा किया तो वो समझ गये उन्हें क्या करना हैं । वो आगे बढ़कर भीड को शांत कराते हुए बोले " चुप हो जाइए आप लोग .... मैं कहता हूं शांत हो जाइए । " दो से चार बार कहने पर वो भीड धीरे धीरे कर अपने आप शांत हो गयी । कैलाश जी आगे बोले " ये क्या लगा रखा हैं आप सबने ? आखिर आप सब हैं कौन ? यहां किसलिए आए हैं ? "

" उनसे का पूछते हो हमसे पूछो । " भीड के बीच में से आधा आई । भीड दो भागों में बटती चली गई । एक पैंतीस वर्षीय आदमी बाहर आया । आंखों पर काला चश्मा चढा रखा था उसने और हाथों में तंबाकू रगड़ते हुए आगे बढ रहा था । वो आदमी कैलाश जी के सामने आकर रूका । उसने अपने हाथ में रखे तंबाकू को होंठों के निचले हिस्से में दबाया और हाथो को साइड कर झाडा । वहां पास खडे दो से तीन लोग खांसने लगे । वो आदमी हरिवंश जी की ओर देखकर बोला " कमलेश नाम हैं हमारा ठाकुर वीरेन्द्र प्रताप के आदमी हैं । नाम तो सुना ही होगा , हमारा नही तो भैयाजी का ही सही । भैयाजी पैगाम भिजवाए हैं । खाली एक महीने का समय हैं तुम लोगों के पास ई जमीन उनके हवाले कर दो , नही तो ......

" नही तो क्या ? " राघव उसकी बात काटते हुए बीच में बोला । वो आगे कुछ कहता उससे पहले ही समर ने उसके कंधे पर हाथ रख उसे रोक दिया । हरिवंश जी शांती से खडे थे । उन्होंने अपने दोनों हाथ पैंट की पॉकेट से बाहर निकाला और कहा " जाकर के कह दो ठाकुर वीरेन्द्र प्राताप से जिस जमीन केवल लिए वो पागल कुत्ते की तरह हमारे पीछे पडा हैं वो उसे नही मिलेगी । उस जमीन पर गरीबों के लिए हॉस्पिटल बनेगा जहां गरीबों का मुफ्त इलाज होगा । कोशिश करूगा की उसमे एक डिपार्टमेंट ऐसा बनवाऊ जहां पागलों का भी इलाज हो । थोडा इंतजार करने के लिए कहो अपने भैयाजी को । आगे से इस तरह मेरे आफिस के बाहर शोर शराबा किया , तो तुम सबको उठाकर जेल में डलवा दूंगा । "

" तुम हमक़ो जेल में डलवाओगे । साले हम तुमहरी ...... कमलेश ने इतना ही कहा था , की तभी उसके मूंह पर एक जोरदार घूंसा पडा । इस वार को वो समझ पाता उससे पसले ही राघव ने उसे पीटना शुरू कर दिया था । कमलेश के आदमी आगे बढने लगे , तो राघव गुस्से से आंखें दिखाते हुए बोला " खबरदार जो कोई आगे बढा तो पहले उसकी जान निकालूगा उसके बाद इसकी । " ये बोल राघव कमलेश को पीटने लगा । हरिवंश जी समर की ओर देखकर बोले " देख क्या रहे हो समर ? जाओ जाकर रोको इस लडके को । "

समर और कैलाश जी ने जबरदस्ती पकड़कर राघव को कमलेश से दूर किया । कमलेश की राघव अच्छी खासी धुलाई कर चुका था । समर और कैलाश जी मिलकर राघव को आफिस के अंदर ले गये । हरिवंश जी ने अपने गार्डस से कहकर बाहर खडी भीड को हटाने के लिए कहा । वक्त पर पुलिस भी पहुंच गयी थी । उन्होंने भी उस भीड को हटाने में मदद की । हरिवंश के साथ बाकी सभी स्टाफ भी अंदर चले आए । हरिवंश सीधा समर के कैबिन की ओर बढ गये । राघव का गुस्सा अभी भी शांत नही हुआ था । समर उसे समझाते हुए बोला " पागल मत बन राघव ये क्या हरक़त है ? "

" आपका मतलब क्या हैं भैया ? वो लोग मेरे पापा को कुछ भी गाली देते रहे और मैं सुनता रहता । बिल्कुल नही .... उसने मेरे पापा को गाली दी हैं मैं उसकी जान निकाल लूगा । "

सब लोगों को पता था की राघव हरिवंश जी के लिए कितना पसेसिव हैं । घर में एक वही थे जिनसे राघव दिल खोलकर बाते नही करता था , फिर भी उनके प्रती उसका प्यार सबसे ज्यादा था । हरिवंश जी दरवाजे पर खडे ये सब देख रहे थे । राघव की नज़र जब उनपर पडी , तो उसने अपनी नजरें नीची कर ली । हरिवंश जी अंदर चले आए राघव के सामने आकर वो एक पल के लिए रूके फिर उन्होंने उसे कसकर गले लगा लिया । " शांत हो जाओ राघव इतना गुस्सा सेहत के लिए अच्छा नहीं होता बेटा । इससे तुम खुद को भी नुकसान पहुंचा रहे हो । " राघव का गुस्सा धीरे धीरे कर शांत होने लगा था । उसने भी अपना हाथ बढ़ाकर हरिवंश जी को कसकर थाम लिया । कुछ पल बाद राघव बोला " वो लोग कौन थे पापा ? आखिर वो लोग क्या चाहते हैं ? "

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कौन हैं ठाकुर वीरेन्द्र प्रताप ? क्यों उसके आदमियों ने हरिवंश जी की कंपनी के आगे आकर तमाशा खडा किया ? क्या ये ज़मीन इतनी इंम्पोरटेंट हैं ?

राघव अपने पिता से बहुत प्यार करता हैं और ये जाहिर भी था । आगे राघव क्या करेगा ? जानेंगे अगले अध्याय में ।

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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