Prem Ratan Dhan Payo - 41 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 41





शाम का वक्त , रघुवंशी मेंशन

समर और हरिवंश जी के ऑफिस से घर लौटने का समय बीतता जा रहा था , लेकिन वो लोग घर नहीं लौटे । अर्चना जी के मन में अजीब सी घबराहट ने जगह बना ली थी । राघव आज आफिस नही गया था । इस समय वो अपने रूम में था । अर्चना जी उसके कमरे में चली " राघव तुम्हारे पापा और भैया अभी तक नही आए । "

" आ जाएंगे मां हो सकता हैं किसी जरूरी काम से रूक गए हो । "

' ऐसा कौन सा काम हैं जो उन्हें फोन उठाने की भी फुर्सत नही हैं । दोनों में से कोई मेरा फोन नही उठा रहा ।" अर्चना जी ये कहते हुए परेशान हो दिखाई पड रही थी ।

" मां आप बेकार की टेंशन कर रही है । मैं आफिस में फ़ोन करके देखता हु । " राघव ने आफिस में फोन लगाया । वहां से हरिवंश जी की सेक्रेटरी फ़ोन रिसीव करते हुए कहा "' सर बडे सर और समर सर तो आज आफिस ही नही है । मैंने उनका फ़ोन ट्राय किया लेकिन वो भी नही लगा । "

सेक्रेटरी की बाते सुनकर राघव आश्चर्य चकित रह गया । " जब वो दोनों आफिस के लिए निकले थे , तो फिर आफिस पहुंचे क्यों नही । "' यही सब सोचते हुए राघव ने बिना कुछ कहे फ़ोन काट दिया ।

अर्चना जी राघव के पास आकर बोली " क्या हुआ राघव कहा है वो दोनों ? "

" मां वो ...... वो लोग आफिस में नही हैं । "

" क्या आफिस में नही हैं तो फिर कहा है ? " अर्चना जी को घबराता देख राघव उन्हें संभालने की कोशिश करने लगा । " शांत हो जाओ मां मैं खुद जाकर देखता हूं । " इतना कहकर राघव कमरे से बाहर निकल गया । तभी उसे सुरेश भागता हुआ अपने पास आता नज़र आया । सुरेश का चेहरा डर और आंसू दोनों से भरा था । वो रोते हुए बोला " साहब वो बडे मालिक ..... इतना कहकर सुरेश फिर से रोने लगा ।

राघव उसके दोनों कंधों को पकड़ते हुए बोला " कहो क्या बात है ? " सुरेश कुछ नहीं कह पाया बस नजरें नीची कर रोए जा रहा था । राघव उसे छोड़ नीचे की ओर भागा । अर्चना जी भी कमरे से बाहर निकल चुकी थी । डर उनपर भी हावी हो चुका था , वो भी नीचे चली आई । इस वक्त नीचे सफेद कपड़ों में लिपटी दो लाशें नीचे हॉल में जमीन पर पडी थी ‌‌ । राघव के आदमी चारों तरफ सिर झुकाए खडे थे । कितनों की ही आंखें आंसुओं से लवरेज थी । राघव के हाथ पांव एक दम से सुन्न हो चुके थे । वो धीमे कदमों से उन लाशों की ओर बढ रहा था । अर्चना ने जब दूर से वो नजारा देखा तो उनका कलेजा मूंह को आ गया । वो वही सीढ़ियों के पास खडी रही । राघव ने कांपते हाथों से उस लाश के चेहरे से वो चादर हटाई , तो पाया वो समर की लाश थी । राघव ने तुरंत अपने हाथ पीछे कर लिए । उसकी हिम्मत नही हो रही थी दूसरे लाश के चेहरे से चादर हटाए । आंसुओं से भीगी पलकों से वो समर की लाश को देख रहा था ‌‌। उसने हिम्मत कर दूसरी चादर हटाई । हरिवंश जी की लाश देखकर मानों वो होश खो बैठा हो । अर्चना जी अपने आंसुओं को नही रोक पाई और भागकर अपने पती और बेटे के लाश के पास चली आई । उनकी रोने की आवाजें सुनकर करूणा अपने कमरे से बाहर निकली । वही जब उसने ये नजारा देखा तो स्तंभ हो गयी । आंखें उसकी भी भर आई । कदम डगमगाने लगे फिर भी वो उन लाशों के समीप चली आई । उसने लाश के किनारे बैठकर समर के चेहरे को छुआ और बावलेपन से बोली " ये क्या तरीका हुआ ? ये कोई सोने का वक्त हैं । यहां हम सब आप लोगों का इंतजार कर रहे हैं और आप सब हैं की ...... चलिए बंद कीजिए ये नाटक और उठिए यहां से । " करूणा समर को उठाने की कोशिश कर रही थी , लेकिन लाशें भी भला कही उठती है । कैलाश जी भी वहां पहुंच चुके थे । ये नजारा देखकर उनके कदमों तले जमीन खिसक गयी । राघव चुपचाप बैठा उन लाशों को देख रहा था । अचानक ही अर्चना जी गिर पडी । राघव ने तुरंत उनका सिर अपनी गोद में रखा ' मां ...... मां उठो .... क्या हुआ ..... मां । " कैलाश जी ने तुरन्त डाक्टर को फ़ोन किया ।

करूणा अर्चना जी के पास चली आई " मां उठिए न ..... अभी तो आपको इन्हें डांटना हैं । मां उठिए न ....

कुछ देर बाद डाक्टर भी वहां पहुंच चुके थे । उन्होंने आकर अर्चना जी को देखा । उनकी नब्ज चेक करते हुए डाक्टर ने कहा ' सॉरी शी इज नो मोर ..... शायद इस सदमे की वजह से इनकी जान चली गई । "

" दो लाशों का बोझ क्या कम था , जो अब राघव के कंधों पर तीसरे लाश का बोझ भी चला आया । ये सब सुनकर करूणा की हालत और ज्यादा खराब हो गयी थी । चक्कर खाकर वो भी गिरने लगी । डाक्टर ने तुरंत उसे संभाल लिया । कैलाश जी ने कुछ लोगों की मदद से करूणा को उसके कमरे में ले गए । डाक्टर अंदर उसका चैक अप कर रहे थे । राघव बाहर तीन तीन लाशों के बीच बैठा था । कैलाश जी ने अमित को फ़ोन कर सारी खबर दे दी थी , इसलिए वो आधी रात को उठकर रघुवंशी मेंशन चला आया । यहां का नजारा देखकर उसके भी होश उड गये । आखिर ये भी तो उसका परिवार था । अमित ने उन सबको देखकर अपना सिर पकड लिया । वो खुद को रोने से रोक नही पाया । वही राघव के आंखों से आसु बह रहे थे और वो एक टक उन तीनों लाशों को देख रहा था । पल में ही उसकी दुनिया उजड गयी । अमित ने उसके कंधे पर हाथ रखा , तो राघव उसके सीने से लगकर विफर पडा । " मां पापा भैया सब ..... सब चले गए अमित मुझे अकेला छोड़कर । कर दिया अनाथ इन सबने मुझे । " राघव अब फूट फूटकर रोने लगा था । वही अमित भी उसे गले लगाए रो रहा था । समर को देखकर उन्हें बीते रात के पल याद आ गये । कितने खुश थे वो सब । हंसी खुशी का माहौल तो अभी बीता ही नहीं था और गम के काले बादल न जाने कहा से घिर गए ।

हरिवंश जी और अर्चना जी की यादे उनके जहन से उतर ही नही रही थी । मां का दुलार और पिता का डांट वाला प्यार सब कुछ छूट गया । डाक्टर बाहर आकर कैलाश जी से बोले " इस वक्त उनकी स्थिति बहुत नाजुक हैं । एक तो प्रेग्नेंसी का वक्त हैं डिलीवरी कभी भी हो सकती है । ऐसी हालत में इनका स्ट्रेस इनके और बच्चे दोनों के लिए जान लेवा साबित हो सकता है । जानता हूं ये बहुत तकलीफ़ की घडी हैं , लेकिन उन्हें संभालना आप लोगों की जिम्मेदारी है । " इतना कहकर डाक्टर वहां से चले गए ।

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अगला दिन , सुबह का वक्त




पूरे रघुवंशी मेंशन में मातम का माहौल पसरा हुआ था । सामने तीन तीन लाशें पडी थी । क्या नौकर क्या मालिक सबकी आंखें आंसुओं से लवरेज थी । वही कुछ औरते करूणा के सुहागन रूप को हटाने का काम कर रही थी । हाथों में लाल और हरे रंग की भरी हुई चूड़ियां थी जिनके टुकड़े हो चुके थे । गले से मंगलशूत्र छीना , माथे से सिंदूर मिटाया । जिसने सात जन्म निभाने का वादा किया , वो बीच राह में ही उसका साथ छोड़कर चला गया । राघव के लिए ये सब नजारा असहनीय था । अपनी भाभी मां को उसने कभी इस भेष में नही देखा था । अब वो उसके सामने सफेद लिवाज धारण किय बैठी । दिल के हजार टुकड़े तो पहले ही हो चुके थे । अब मानो कोई उन्हें बुरे तरीके से कुचल रहा हो । कैलाश जी और अमित ने राघव को संभाला , क्योंकि अब अंतिम संस्कार की विधि उसे ही पूरी करनी थी । लाशों को पूर्ण विधी से श्मशान घाट ले जाया गया । राघव ने समर और हरिवंश जी के शरीर पर कयी जगह ज़ख्म के निशान देखे , जो ये बता रहे थे की उन्हें मारने से पहले टार्चर किया गया होगा । राघव ने अपनी आंखें कसकर बंद कर ली । उसे समर के हाथ से एक लॉकेट मिला । बडा ही अजीब डिजाइन था । वी शेप का पेंडेंट था , जिसे देखकर लग रहा था किसी राक्षस के सींग का रूप दिया गया हो । राघव ने उस लाॅकेट को अपने पास रख लिया । पंडित जी ने आगे आकर उसकी ओर जलती चिता की लकडी बढाई । राघव ने एक एक कर तीनों की चिता को अग्नि थी । सामने जल रही ज्वाला उसके हृदय में प्रज्वलित हो चुकी थी । उसने मन ही मन कसम खाई । जिसने भी मुझसे मेरे परिवार को छीना हैं मैं उसकी सांसें ऐसे छीनूंगा जिससे मौत भी कांप उठेगी । तड़पा तड़पाकर मारूंगा उसे ‌‌। "

क्रियाकर्म की विधी पूर्ण करने के बाद राघव अपनी हवेली नही बल्कि अपने फार्म हाउस के लिए निकला । वहां उसके हथियार लिए आदमी पहले से मौजूद थे । राघव ने उन सबकी ओर देखकर कहा । " इन सबके पीछे जिसका भी हाथ हो उसे दो दिन के अंदर ढूंढकर निकालो । मैं उसे और ज्यादा जीने की इजाजत नही दे सकता । अगर इस काम में देरी हुई तो मेरे हाथों बहुतों की जिंदगियां जाएगी । " राघव के आदमियों ने हां में सिर हिला दिया । राघव वहां से रघुवंशी मेंशन के लिए निकल गया ।

राघव जब अंदर आया तो उसकी नज़र करूणा पर गयी , जो डायनिंग टेबल के पास हाथों में चाकू लिए खडी थी । अनहोनी होने की आशंका राघव को पहले से ही हो चुकी थी । इससे पहले करूणा कोई गलत कदम उठाती । राघव ने उसके हाथ से चाकू छीनकर दूर फेंक दिया ।‌" भाभी मां क्या कर रही है आप पागल हो गयी हैं । "

" हां हां पागल हो गई हूं । " करूणा ने चीखते हुए कहा और रो पडी । " हां पागल हो गयी हूं । जी कर भी क्या करूगी । सब .... सब खत्म हो गया । पती का साथ छूट गया । मां पापा चले गए । ऐसे में मैं अभागिन जीकर क्या करूगी ? मुझे भी मर जाने दीजिए ।‌ .... मर जाने दीजिए । "

" कैसी बातें कर रही हैं भाभी मां आप । सबने तो मेरा साथ छोड दिया । अब आप भी छोड़कर चली जाएगी । सबने अनाथ कर दिया । अब तो आप ही मेरी मां और मेरे पिता हैं । आप भी चली जाएगी तो मैं कैसे जियूगा । आप खुद को खत्म करना चाहती हैं न , लेकिन अपने साथ साथ आप एक नयी जिंदगी को भी मिटाने वाली थी जो की अभी इस दुनिया में आया ही नही । भैया का अंश हैं वो आप उसे खत्म कैसे कर सकती हैं । " करूणा ये सब सुनकर फिर से रो पडी । राघव के सीने पर सर रख बस अपनी फूटी किस्मत पर आसू बहाती रही ।

इधर बाहर पुलिस आई हुई थी , जिसे अमित और कैलाश जी संभाल रहे थे । राघव ने पुलिस कंप्लेंट करने से साफ इंकार कर दिया था । वो अपने पिता और भाई के कातिलों को अपने हाथों से सजा देना चाहता था ।

कमिश्नर इस वक्त इंस्पेक्टर के साथ अमित के सामने खडे थे । कमिश्नर साहब ने कहा " न तो आप लोगों ने कंप्लेंट की और न ही पोस्टमार्टम के लिए डेथ बाड़ी दी । आपकी भावनाएं अपनी जगह उचित हैं , लेकिन मैं आपको कानून को अपने हाथ में लेने नही दे सकता । माहौल सिर्फ इस घर का नही पूरे शहर का खराब हुआ हैं । हरिवंश जी और समर सिंह रघुवंशी की मौत के बाद शहर में कयी जगह दंगे हुए हैं , इसलिए हमे ऊपर से ऑडर्स मिले हैं की हम पर्सनली इस केस को देखे । "

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किसने कत्ल किया हैं राघव के पिता और भाई का ? अब वो कैसे संभालेगा खुद को ? क्या पुलिस इस केस में इनफोलव होगी जानने के लिए अगला भाग जरूर पढ़ें

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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