Prem Ratan Dhan Payo - 49 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 49





पुरे रास्ते राघव और जानकी के बीच खामोशी छाई रही । राघव ने गाडी हवेली के आगे रोकी । जानकी ने सीट बेल्ट खोला और जैसे ही गाडी से उतरने लगी राघव ने रोक दिया । ' एक मिनट ठहरो । '

जानकी उसकी आवाज सुनकर रूक गयी । राघव गाडी से बाहर आया और उसकी साइड का दरवाजा खोल उसे गोद में उठाने के लिए नीचे झुका । जानकी तुरंत पीछे की ओर झुक गयी । " ये आप क्या कर रहे हैं ? मैं खुद चल सकती हूं । प्लीज हम इस तरह सबके सामने अनकंफर्टेबल फील करेंगे । " राघव कहा उसकी मानने वाला था । वो तो सिर्फ अपनी करता था ।‌‌ उसने थोडा सख्त लहजे में कहा " देखो जानकी मुझे आफिस भी जाना हैं । मैं तुम्हें साथ लेकर गया इसलिए तुम मेरा रिस्पोंसिबिलिटी हो । अब इस हालत में तुम्हें बीच रास्ते में नही छोड सकता । " ये कहते हुए राघव ने उसे जबरदस्ती गोद में उठा लिया । उसके इस कदम से जानकी बुरी तरह चिढ गयी । वो धीरे से बड़बड़ाते हुए बोली " दुष्ट और दानव से कम दर्जा नही हैं इनका हमेशा अपनी मर्जी चलाते हैं । " हालांकि जानकी ने धीरे कहा था लेकिन जिसकी बुराई कर रही थी वो इंसान तो इतने करीब था । ऐसे में भला वो कैसे न सुनता ।

" मैंने सब सुन लिया " । राघव चलतें हुए बोला । जानकी ने कोई जवाब नहीं दिया बस उसे गुस्से से घूरती रही । दरवाजे से जैसें ही दोनों अंदर आए जानकी ने अपना दुपट्टा थाम लिया और अपना चेहरा छुपाने की कोशिश करने लगी । पहले तो राघव को ये बात समझ नही आई , लेकिन जब उसने सबको हॉल में बैठे देखा , तो उसे थोडी थोडी बात समझ में आ गयी । वही करूणा और बाकी सबकी नज़र भी उन पर पडी । करूणा उठते हुए बोली " ये कौन हैं देवरजी ? "

राज तुरंत बोला " जानू ....

उसने पहचान लिया मतलब पूरे घरवालों ने पहचान लिया । ऐसे में जानकी चेहरा छुपाती भी कैसे ? "

करूणा उन दोनों के पास चली आई । " क्या हुआ जानू को सब ठीक हैं न ? "

" वो भाभी मां इसके पैरों में चोट लगी हैं । अब ज्यादा देर हमसे रूका नही जाएगा हम कमरे में छोड़कर आते हैं । " राघव ने आधी अधूरी बात कही और जानकी को लेकर सीढ़ियां चढ़ने लगा । इस तरह राघव का जानकी को बाहों में उठाना दो लोगों की नजरों में खटक रहा था । एक तो कीर्ति और दूसरा ऋषभ । ऋषभ की आंखें साफ बता रही थी की उसे राघव का जानकी के इतना करीब होना पसंद नहीं आया ।

कीर्ति मन ही मन कुढते हुए बोली " इसे जिस तरीके से घरवाले ट्रीट कर रहे हैं लग तो नही रहा नौकरानी हैं । समायरा से बात करनी ही पड़ेगी । ऐसे तो राघव और ये घर दोनों उसके हाथों से निकल जाएगा ‌‌। उसे जल्दी यहां बुलाना पडेगा । "

राघव जानकी को उसके कमरे में लेकर आ चुका था । उसने जानकी को बेड पर बिठाया तो वो पीछे की ओर सरकते हुए बोली " आपसे कभी किसी ने कहा हैं की आप अपनी मनमर्जी करने वाले इंसान है । '

उसके ये कहने पर राघव ने अपनी आंखें छोटी कर ली । जानकी आगे बोली " मदद करना अच्छी बात होती हैं लेकिन सामने वाला आपकी हेल्प न लेना चाहे , तो आपको उसे अकेला छोड देना चाहिए । " राघव ने कुछ नही कहा और जाने के लिए पलट गया । संध्या दरवाजे के पास ही खडी थी । राघव उसे इंट्रकशन्स देते हुए बोला " इनके पैरों में बैंडेज लगा देना और हल्दी वाला दूध तैयार कर दें देना । " संध्या ने हां में अपना सिर हिलाया तो राघव वहां से चला गया ।

संध्या जानकी के पास चली आई । " तुझे ज्यादा तो नही लगी न । "

" नही यार बस हल्की सी चोट थी। " जानकी अपने पैरों को देखते हुए बोली । संध्या ने अपने दोनों हाथ बांधते हुए कहा " मुझे पागल बना रही हैं । अगर छोटी सी चोट होती न तो राघव भैया अपना काम छोड तुझे ऐसे उठाकर नही लाते । रूक मैं मैडिसन बाक्स लेकर आती हूं । " संध्या ये बोल ड्रोल से बॉक्स निकालने लगी । जानकी मन में बोली " अब केसे कहु तुम्हें मैंने कोई मदद नही मांगी थी उनसे । कोई राजकुमारी तो हु नही जो वो मुझे ऐसे उठाकर लाए हैं । न जाने भाभी मां और बाकी सब क्या सोच रहे होंगे । "

जानकी अपनी उधेड़बुन में थी की तभी उसके मूंह से हल्की सी चीख निकल गई । संध्या ने तुरंत अपने हाथ पीछे कर लिए । उसके एक हाथ में रूई और दूसरे हाथ में डिटोल था । संध्या जानकी को देखते हुए बोली " वाह डाक्टर साहिबा आप तो बच्चों की तरह चिल्ला पड़ी । कसम से इतना डर तो बच्चों को भी नही लगता । "

" तू मेरा मज़ाक उडा रही हैं । " जानकी ने कहा तो संध्या ने हां में अपना सिर हिला दिया । उसकी इस हरकत पर जानकी को भी हंसी आ गई ।

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शाम का वक्त , जनकपुर




महेश अपनी बाइक लेकर जानकी के घर से थोडी ही दूरी पर खडा था । हाथो में फोन पकडे वो बस जानकी की तस्वीर निहार रहा था । महेश खुद से बोला " पता नही जानकी कैसा अजीब डर हैं जो बार बार तुमसे बात करने से रोक देता हैं । जब भी तुम्हारा नंबर डायल करने के लिए फोन खोलते हैं । हाथ कांपने लगता हैं और हम नंबर डायल नही कर पाते । बहुत मन कर रहा हैं तुमसे बात करने का । तुम्हारी यादे अब बहुत तडपाने लगी हैं । देखो न मंदिर जाना बिल्कुल पसंद नही था लेकिन अब आदत सी बन गयी हैं । रोज सुबह मां के साथ मंदिर जाता हूं । राम जी से यही बिनती करता हु की वो जल्दी से तुम्हें मेरे पास भेज दे । "

मैथिली अपने घर से बाहर निकली । सब्जियों के छिलके को बाहर पडे डस्टबिन में डाल रही थी । सहसा ही उसकी नज़र महेश पर पडी । मैथिली खुद से बोली " इस ईडियट को देखो । दो दिन घर के सामने से गुजर गया । आवाज दिया पर रूका नही । अब पता नही वहां अकेला क्या कर रहा हैं । ये नही की घर के अंदर आ जाए । आज तो खींचकर ले जाऊगी और अच्छी खातिरदारी करवाऊंगी मां से । "

मैथिली ये सब खुद से बोल महेश के पास चली आई । " क्यों हीरे हमारे घर का तो रास्ता ही भूल गये तुम । लगता हैं जानू से कंम्पलेंट करनी पडेगी । तुम्हारे जाने के बाद ये लडका पूरी तरह से बिगड़ चुका है । चलो आओ मां तुमसे काफी दिनों से मिलना चाहती थी । जानकी मैं चाची से फिर कभी मिल लूंगा । अभी चलता हु एक बेहद जरूरी काम याद आ गया । "

" वाह बेटा हमे देखकर काम याद आ गया । हमारे सामने नही चलने वाला तुम्हारा झूठ । चुपचाप से चलो हमारे साथ । " ये बोल मैथिली जबरदस्ती उसका ही पकड अपने साथ ले जाने लगी ।

" अरे मैथिली सुनो तो सही ... मैं झूठ नही बोल रहा मुझू सचमुच जरूरी काम हैं । " महेश कहता रह गयि लेकिन मैथिली ने उसकी एक नही मानी और जबरदस्ती उसे घर के अंदर ले आई ।

पूनम जी की नज़र महेश पर पडी तो वो मुस्कुराते हुए बोली " महेश आऊ बेइसु बेटा , कतेक दिन भो गेल अहा स भेंट केल ‌‌। कून काज में बिजि रोहइ छी आई काइल । "

महेश उनके पांव छूते हुए बोला " ऐहन बात नहीं छये चाची । काज त एखन ढुढय छी , बस एक टक नीक नौकरी भेंट जे । "

पूनम जी आशिर्वाद से भरा हाथ उसके सिर पर रखकर बोली " चिंता नहीं करू , नीक नोकरी भेंटत । मैथिली जाऊ कनी नीक स चाय बना कर लो आऊ । " मैथिली उनकी बात पर हामी भरकर किचन में चली गई । पूनम जी और महेश बैठकर बाते करने लगे ।

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रात का वक्त , रघुवंशी मेंशन




सब लोग नाश्ते की टेबल पर चले आए । संध्या नाशते का सारा सामान टेबल पर रख रही थी । राज आज यही रूका था । वो सबसे पहले वहां पहुंचा । बाकी सब धीरे धीरे कर नाश्ते की टेबल पर आकर बैठ गए ।

करूणा संध्या से बोली " संध्या परी और जानकी का खाना उनके कमरे में भिजवा दो । जानू को चोट लगी हैं वो नीचे नही आ पाएगी । परी उसके सिवा किसी ओर किसी के हाथों से नही खाएगी । "

" फिर तो वो दोनों अकेले हो जाएंगे । संध्या आप ऐसा कीजिए आप उनके साथ साथ मेरा खाना भी उनके रूम में पहुंचा दीजिए । अब कोई तो होना चाहिए न उन्हें कंपनी देने वाला । " ये बोल राज वहां से उठकर चला गया ।

कीर्ति खाते हुए मन में बोली " हां क्यों नही अकेले तो रानी साहिबा के गले से निवाला नीचे नही उतरेगा न । जब तक समायरा नही आ जाती तब तक मुझे ही कुछ करना पडेगा । "

राज परी के रूम में आया तो देखा वो जानकी के गोद में बैठकर कहानी सुन रही थी । राज अंदर आते हुए बोला " मेरे बिना ही आप दोनों शुरू हो गये । मुझे भी कहानी सुननी हैं । " राज की आवाज सुनकर जानकी और परी दोनों ने उसकी ओर देखा । परी चिढाने के अंदाज में बाली " चाचू आप तो लेट हो गये । जानू ने तो कहानी कंप्लीट भी कर दी । अब वो दोबारा से कहानी थोडी न सुनाएगी । "'

राज बेड पर बैठकर तकिया गोद में रखते हुए बोला " हां क्यों नही छोटी चुहिया खुद ने तो कहानी सुन ली और जब मेरी बारी आई तो तुम्हें बहाना याद आ रहा है । " राज की बातों पर परी ने इस्माइल पास की । राज जानकी से बोली " जानू अब पैर की चोट कैसी है । "

" हम ठीक हैं राज बस ठेस लगी थी तो उस वक्त ज्यादा दर्द हुआ । अब नोर्मल है एक दो दिन में ज़ख्म भी भर जाएगा । "

" थैंक गॉड वरना जैसे राघव भैया आपको उठाकर लाए थे । मैं तो डर ही गया था कही गहरी चोट न लगी हो । " राज ने चैन की सांस लेते हुए कहा । जानकी चुप रही । संध्या उनका खाना लेकर कमरे में पहुंच चुकी थी । जानकी ने उसे थैंक्स कहा तो संध्या बोली " तुम लोग पहले खाना फिनिश करो तब तक मैं दूध लेकर आती हु । "

जानकी ने उसकी बातों पर हामी भर दी । संध्या कमरे से बाहर चली गई । जानकी ने पहले परी को खिलाया और फिर खुद खाया । कुछ देर रूककर राज ने बातें की और फिर अपने कमरे में चला गया । जानकी परी को सुलाकर कमरे से बाहर जाने लगी । चोट गहरी नही थी लेकिन दर्द अभी भी था । जानकी लड़खड़ाते हुए चल रही थी । वो कमरे सै बाहर निकली । कदम लड़खड़ाने की वजह से वो गिरने लगी । इससे पहले वो गिरती किसी ने आकर उसे संभाल लिया । जानकी ने नजरें उठाकर देखा । ऋषभ उसे संभाले खडा था । ऋषभ का एक हाथ उसके कंधे को पकडे हुए था और दूसरा हाथ उसकी कमर पर था । जानकी को उसकी छुअन बिल्कुल अच्छी नही लगी । वो तुरंत उससे दूर हो गई ।

" आप ठीक तो हैं , अगर आप कहे तो आपके रूम तक छोड दूं । "

" जी नही शुक्रिया ..... बगल वाला कमरा मेरा ही हैं ओर मैं अकेली चली जाऊगी । " इतना कहकर जानकी खुद को संभालती हुई अपने कमरे में चली गई ।

ऋषभ मुस्कुराते हुए मन में बोला " कसम से किसी तीखी मिर्च से कम नही हैं जो कुछ भी कहो । ज़ुबान पर चढ गया तो जायका साल भर रहेगा । अब तो इसे पाने के बाद ही सुकून आएगा । "

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परवाह तो राघव करता हैं । जानकी के लिए उसके दिल में एक सोफट कोर्नर बन चुका है ।

ऋषभ का मकसद भी सामने आ चुका हैं । जानकी को लेकर उसके दिल में गलत विचार हैं । क्या उसके विचारों को जानकी वक्त रहते समझ पाएगी ? ये जानने के लिए कहानी का अगला भाग जरूर पढ़ें और बने रहिए हमारे और इस कहानी के साथ

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )

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