Prem Ratan Dhan Payo - 50 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 50






सुबह का वक्त , रघुवंशी मेंशन

जानकी सुबह अपने वक्त पर उठी । वो तैयार होकर जैसे ही कमरे से बाहर निकली उसे अपने सामने ऋषभ खडा दिखाई दिया । जानकी को बेहद अजीब लगा । " आप यहां इतनी सुबह क्या कर रहे हैं ? "

" मुझे सुबह जल्दी उठने की आदत हैं । मैं बस टहल रहा था की तभी मुझे आपके कमरे से गाने की आवाजे आई । मैं खुद को रोक नही पाया और यहां आकर खडा हो गया । वैसे आप बहुत मीठा गाती हैं । " जानकी को समझ नही आया ऋषभ की बातों का वो क्या जवाब दें । वो जैसे ही कुछ कहने को हुई उसे परी के कमरे से चिल्लाने की आवाजें आई । जानकी तुरंत उसके कमरे की ओर भागी । ऋषभ भी उसके पीछे भागा । इन्हीं सब में राघव की भी आंखें खुल गयी और वो भी परी के कमरे में आया । जानकी और ऋषभ दोनों हैरानी से उसे देख रहें थे । इस वक्त परी चिल्लाते हुए बस बेड पर कूदे जा रही थी । जानकी उसके पास पहुंचकर बोली " क्या हुआ परी आप चिललाई क्यों ? "

" परी .... परी क्या हुआ ? " राघव भी परी को पुकारता हुआ अंदर चला आया ।

" जानू .... जानू आप भी बेड पर आ जाओ वहां चूहा हैं । " परी के ये कहते ही राघव और ऋषभ नोर्मल हुए लेकिन जानकी नही । तभी उसने महसूस किया उसके पैरों पर कोई चढा । वो चिल्लाते हुए पीछे की ओर हो गयी । इसी के साथ ही सीधे राघव से जा टकराई । छोटा सा चूहा यहां से वहां घूम रहा था और उसे देख परी चिल्लाते हुए बेड पर उछल रही थी । वही जानकी चिल्लाते हुए राघव के गले जा लगी थी । इनका शोर सुन बाकी घर के लोग भी परी के कमरे में चले आए । ऋषभ को जानकी का इस तरीके से राघव के करीब जाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा । उसने गुस्से से अपने हाथों की मुट्ठियां कस ली । राघव तो जानकी को देख शॉक्ड था , क्योंकि वो परी से ज्यादा डर रही थी बिल्कुल किसी छोटे बच्चे की तरह । बात तो बाकी घरवालों को समझ आ चुकी थी । कीर्ति की नींद खराब हुई इस वज़ह से उसे गुस्सा आ रहा था । संध्या ने तो अपना सिर पीट लिया । " बाप रे चूहे को देख इसकी जान निकल जाती हैं । कब बडी होगी ये लडकी । "

ज्योति ने बीच में कहा " अरे यार कोई समझाओं इन्हें चूहा तो इनसे डरकर पहले ही भाग चुका हैं । "

राघव जानकी को खुद से दूर करते हुए बोला " जानकी वो जा चुका हैं । "

" नही वो फिर से आ जाएगा । " ये बोल जानकी फिर से उसके गले लग गयी । आंखों से आसू बह रहे थे और आंखें बन्द कर रखी थी उसने । राघव इस बार उसे अलग कर थोडा सख्ती से बोला " डोंट बिहेव लाइक अ चाइल्ड । अब कोई चूहा नही हैं यहां पे । "

जानकी ने अपनी आंखें खोली तो सभी लोग को वहां देखकर वो चौक गयी । कीर्ति और कार्तिक वहां से निकल गए । राघव भी अपने कमरे में चला गया । सबसे लेट अगर कोई आया तो वो था राज । वो आंखें मींचते हुए कमरे में एंटर हुआ । " क्या हुआ कौन चिल्ला रहा हैं वो भी स्वीट स्वीट आवाज में । "

" आपकी जानू और शैतान परी । " करूणा ये कहते हुए जानकी के पास चली आई । सब लोग इस वक्त हंसे जा रहे थे । करूणा ने जानकी के कंधे पर हाथ रखा , तो वो पीछे की ओर पलट गयी और अपने आंसू छुपाने लगी । " सब ठीक हैं जानू घबराए मत । "

' सॉरी भाभी मां " जानकी ने पलटते हुए कहा ।

" हम सब नीचे इंतजार कर रहे हैं जल्दी आ जाइएगा । " करूणा ये बोल वहां से चली गई । राज और संध्या को छोड़कर बाकी सब जा चुके थे । राज और संध्या ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर दोनों एकसाथ हंसने लगे । जानकी उन्हें देख चिढ गयी और परी के पास चली गई । परी भी उसके पास आकर उसके गले में अपनी बाहें डालते हुए बोली " जानू ये दोनों हम पर हंस रहे हैं न । हम इनसे बात नहीं करेंगे । "

जानकी भी उसकी हां में हां मिलाते हुए बोलि " बिल्कुल ठीक कहा आपने हम दोनों इनसे बात नही करेंगे । " उनकी बातें सुनकर राज और संध्या चुप हो गये । दोनों ने तुरंत अपने कान पकड लिया । " सॉरी जानू हम दोनों तो बस ऐसे ही हंस रहे थे । " जानकी ने कुछ नही कहा बल्कि मूंह बनाकर परी को लेकर वाशरूम में चली गई । संध्या राज से बोली " सब आपकी वजह से हुआ हैं राज । आपको ऐसे नही हंसना चाहिए था । परी का गुस्सा जानते हैं न जानू का गुस्सा भी कम नहीं । "

" आप सारा इलज़ाम मुझपर क्यों डाल रही हैं संध्या जी । अकेले मेरी गलती थोड़ी न है । आप भी तो हंस रही थी । " राज ने कहा ।

" अब बस कीजिए , आपके झांसे में नही आऊगी । मैं चली जानू की फेवरेट डिश बनाने और उससे सॉरी भी बोल दूंगी । " संध्या ये बोल वहां से चली गई । राज बेचारा सा मूंह बनाकर खुद से बोला " अब मैं मनाने के लिए क्या करू ? किससे मदद लू । " राज अपने सिर खुजलाते हुए वहां से चला गया ।

जानकी परी को तैयार कर नीचे ले आई । कीर्ति अपने सभी दोस्तों के साथ हॉल में बैठकर हंसी मज़ाक कर रही थी । काव्या सुरेश के साथ मंदिर गयी हुई थी । जानकी ने देखा संध्या टेबल पर खाना लगाने में व्यस्त थी । राघव भी अपनी जगह पर बैठा था । संध्या की नज़र जानकी पर पडी तो उसने अपने दोनों कान पकड लिया । जानकी और परी दोनों ने उसे इग्नोर कर दिया और नाश्ते की टेबल पर चले आए । उनके बैठते ही राज सामने की चेयर पर आकर बैठ गया । उसने एक सुदर सा बाउल उन दोनों के आगे कर दिया जिसमें चाकलेट और कैंडी भरा हुआ था । परी ने तुरंत अपनी जीभ होंठों पर फेर ली । चाकलेट पिघले न पिघले लेकिन हमारी परी जरूर पिघल रही थी । राज ने दूसरा हाथ आगे किया जिसमें व्हाइट सनफ्लावर का बुके था । जानकी आश्चर्य से राज को देखने लगी । उसे ये फूल पसंद है ये बात राज को कैसे पता चली । राज ने तुरंत संध्या की ओर इशारा कर दिया ।

संध्या ने भी दो प्लेट आगे कर दी जिसमें रेड सॉस से सॉरी लिखा हुआ था और एक तरफ सेड फेश तो दूसरी तरफ स्माइली बनी हुई थी । जानकी और परी दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा । राघव ये सब तमाशा देख रहा था , लेकिन बिना कुछ कहे बस अपने नाश्ते पर ध्यान देने लगा ।

जानकी और परी दोनों ने एक साथ कहा " ओके माफ़ किया । " इसके बाद चारों हंसने लगे । संध्या उसकी प्लेट में नाश्ता सर्व करते हुए बोली " पैरों की चोट अब कैसी हैं जानू । "

" अब ठीक हैं चलने में भी कोई दिक्कत नहीं हो रही । " जानकी ने कहा ।

राज नाश्ता कर चुका था । वो तो बस बाकी सबको कंपनी दे रहा था । परी का नाश्ता होते ही राज बोला " जानू आज आप आराम करो । मैं परी को स्कूल छोड दूगा । "

" ओके .... जानू आप सारी चाकलेट रख देना वरना कोई चोरी कर लेगा । " परी की बातों पर जानकी ने मुस्कुराते हुए सहमती जता दी ।

राघव भी आफिस के लिए निकल चुका था । इसी बीच संध्या और जानकी दोनों की नज़र दरवाजे की ओर गयी जहां से दीपक अंदर आ रहा था । उसके हाथों में एक बाक्स था । उसने संध्या की ओर बढ़ाकर कहा " सर ने कहा हैं इसे स्टडी रूम में रख देना । "

संध्या ने मुस्कुराते हुए वो बाक्स पकड लिया । उसने दीपक के दोनों हाथ को पकडा हुआ था । यू कहिए दोनों ही एक दूसरे के हाथों को थामकर खडे थे । होंठों पर मुस्कुराहट थघ और नजरें दोनों की एक दुसरे में खोई हुई थी । जानकी चुपचाप बैठी ये नजारा देख रही थी । उसने अपनी दोनों कोहनी टेबल पर रखी और उसपर अपना चेहरा टिका लिया । जानकी मन ही मन मुस्कुराए जा रही थी । उसने मन में कहा " कितनी अच्छी मूवी चल रही हैं । हाय .... हम दिल दे चुके सनम । अब मैं क्या करूं थोडा सा डिस्टर्ब तो कर ही सकती हूं । " ये सब बोल जानकी ने गला साफ करने की एक्टिंग की ...... इस तरह खरासने की आवाज सुनकर संध्या के हाथों से डिब्बा छूटने लगा । वो तो अच्छा हुआ दीपक ने उसे संभाल लिया । दीपक नजरें चुराते हुए बोला " मुझे आफिस जाना हैं इसे संभालकर रख देना । संध्या ने बाक्श संभालते ही हां में अपना सिर हिला दिया । वो जाने के लिए पलटा तो जानकी टोकते हुए बोली " दीपक जी चाय तो पीते जाइए हमारी संध्या चाय बहुत अच्छा बनाती हैं । " दीपक बिना पलटे बोला " फिर कभी , अभी मुझे देर हो रही है । " ये बोल दीपक तेज कदमों के साथ वहां से निकल गया । संध्या भी रूकी नही और स्टडी रूम की तरफ बढ गयी । जानकी को हंसी आ रह थी । मन में कुछ सवाल उठ चुके थे । जवाब जानने के लिए वो भी स्टडी रूम की ओर बढ गयी । जानकी अंदर आते हुए बोली ......

दिल को सुकून मिलता है जब उनसे हमारी बात होती है,

हमारी एक मुलाकात मानो चांदनी की रात होती है,

जब वो अपनी निगाहे उठाकर हमारी तरफ देखते है,

तब वो पल मानो हमारे लिए पूरी कायनात होती है।

उसकी शायरी सुन संध्या नासमझी से उसकी ओर पलटी " तेरा कहने का क्या मतलब है ? "

" यही चिराग तले अंधेरा । " जानकी ने फिर से पहेली बुझाई । संध्या ने नासमझ सा चेहरा बनाया तो जानई उसकी कंधे पर अपनी कोहनी टिकाते हुए बोली " कही ये वो दीपक जी तो नही हैं जिन्होंने हमारी संध्या के हृदय में प्रेम का दीप जलाया हैं । यही वो वजह है न जिनके लिए बार-बार चाची को शादी के लिए न कहा जाता हैं । "

संध्या तुरंत पलट गयी और हकलाते हुए बोली " ये ... ये तु .... के .... कैसी बाते कर रही है । " जानकी उसकी बांह पकड अपनी ओर घुमाकर बोली " इन नजरों से सच नही छुप सकता । साफ-साफ लफ़्ज़ों में पूछती हूं । तुम दीपक जी से प्यार करती हो न । ये कैलाश जी के बेटे दीपक उपाध्याय हैं न । " जानकी के इन सभी सवालों का जवाब संध्या ने हां में सिर हिलाकर दिया , क्योंकी जानकी से सच छुपाना नामुमकिन था ।

। जानकी ने उसे गले से लगा लिया । " क्या दीपक जी भी तुझे .... जानकी ने अपनी बात अधूरी छोड दी । संध्या उसे थामते हुए बोली " हां दो साल से । हम दो साल से एक दूसरे को जानते भी हैं और चाहते भी हैं । " जानकी उससे अलग हुई और थोडा नाराज होते हुए बोली " धोखेबाज कही की दो साल से तूने हमसे ये बात छुपाई । देखना मैथिली और! दोनों को ये बात बताऊगी । फिर जब वो तेरे कान खींचेंगे न तब मुझे कुछ मत कहना । "

संध्या अपने दोनों कान पकड़कर बोली " सॉरी "

जानकी उसके हाथ नीचे करते हुए बोली " फिर देर क्यों कर रहे हो तुम दोनों । दीपक जी से कहो अपने घरवालों से बात करके तुम्हारे घर रिश्ता लेकर पहूंच जाए । हमे भी तो मौका मिले अपनी सहेली की शादी में नाचने का । "

" दीपक जी तो कब से मुझे इस बात के लिए कह रहे हैं लेकिन मैं ही टाल रही थी । तुझे तो मालूम हैं न पापा के दवा का खर्च मेरे दिए पैसो से चल रहा हैं । शादी के बाद बेटी के हाथ से कोई पैसा नही लेंगे वो लोग ‌‌। तुम ही बताओ फिर घर कैसे चलेगा इसलिए मैं शादी को टाल रही हूं । " संध्या की बाते सुनकर जानकी सोच में पड गयी ।

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कैसे समझाएगी जानकी संध्या को ? उसकी मुसीबत का हल क्या वो निकाल पाएगी ? जानेंगे अगले अध्याय में

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )

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