Horror Marathon - 30 books and stories free download online pdf in Hindi

हॉरर मैराथन - 30

भाग 30

ओए मीनू तू अब सच में डरा रही है यार। इतनी डरावनी कहानी। अशोक ने कहा।

हां, यार अब तक हमने जितनी भी कहानी सुनी है उसमें से ये सबसे डरावनी है। मानसी ने कहा।

साहिल देख आ गया तेरा बदमाश भूत। अब मत कहना कि सारे भूत शरीफ थे। राघव ने कहा।

हां, ला लोराना कुछ अलग है। सुनकर थोड़ा सा डर लग रहा है। साहिल ने कहा।

मानसी ने कहा- मीनू जल्दी से बता आगे क्या हुआ। क्या ला लोराना ने डेविड को मार दिया या उसके माता-पिता ने उसे बचा लिया ?

मानसी की बात सुन मीनू ने फिर से अपनी कहानी शुरू की।

डेविड के पिता हेनरी चर्च से फादर को अपने साथ ले आए। जैसे ही लो लोराना डेविड के पास पहुँची, फादर ने उसे क्रॉस दिखाया। क्रॉस को देखकर लो लोराना पीछे हट गई। पर अब भी वह डेविड को जाने नहीं दे रहीं थी। मरियम रोते हुए उससे दया की भीख मांगने लगी।

फादर ने लो लोराना से कहा- तुम कैसी निर्दयी माँ हों ? लो लोराना हुँकार भरती हुई फादर को गुस्से से देखती है।

फादर : अगर तुम्हें अपने बच्चों की मौत का सच में अफसोस हैं तो छोड़ दे इस बच्चे को। माँ तो ममता की मूरत होतीं है, वह कभी किसी बच्चे का अहित नहीं कर सकतीं। बदले की भावना में जलकर तू सदियों तक यूँ ही भटकेंगी। ईर्ष्या-द्वेष और क्रोध को त्यागकर इस बच्चे की मासूमियत को देख तुझे इसमें ही अपने बच्चें नजर आएंगे।

लो लोराना डेविड को देखती है। उसे डेविड में जॉन का चेहरा दिखाई देता है। ममता से उसका ह््रदय परिवर्तन हो जाता है और उसके मन से क्रोध व बदले की भावना उसके आंसू के साथ बह जाती है। स्विमिंग पूल का गेट खुल जाता है। और लो लोराना गायब हो जाती हैं। उसके बाद कभी लो लोराना दिखाई नहीं दी। स्थानीय निवासियों ने स्विमिंग पूल के पार्क को फिर से ठीक करवा दिया। स्विमिंग पूल में पानी भर दिया गया। पार्क के बीचों-बीच लो लोराना की स्मृति में लो लोराना का एक स्टेच्यू खड़ा कर दिया गया।

बहुत बढ़िया मीनू। क्या कहानी थी यार। राघव ने कहा।

हां, यार सच में बहुत अच्छी कहानी थी। वैसे ला लोराना के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी। इस कहानी से भूतों की एक ओर प्रजाति के बारे में पता चल गया। साहिल ने कहा।

लगता है कि तू भूतों पर किताब लिखकर ही मानेगा। अशोक ने कहा।

अरे नहीं यार मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है वो तो बस आजतक भूत, प्रेत, पिशाच, जिन्न इनके बारे में ही सुना था। फिल्मों में भूतों को सिर्फ डराते हुए देखा था, इसलिए वही बातें दिमाग में चल रही थी। इस कहानी में ला लोराना ने कुछ डराया जरूर पर आखिरी में वो भी एक मां बनकर चली गई। साहिल ने कहा।

यार मीनू की कहानी सुनकर मुझे भी एक कहानी याद आ गई है। अब मैं सुनाता हूं। अशोक ने कहा।

हां पहले तू सुना फिर मैं सुनाउंगी। मानसी ने कहा।

क्या बात है आज तो सभी को कई कहानियां याद आ रही है। साहिल ने कहा।

हां, तेरे लिए तो अच्छा है अगर भूतों पर किताब लिखने का तेरा मन हो तो फिर ये सारी कहानियां तुझे मदद कर देंगी। राघव ने हंसते हुए कहा।

ओए तू फिर शुरू हो गया। साहिल ने कहा।

अब मैं कहानी सुनाउं अगर तुम लोगों का हो गया हो तो ? अशोक ने कहा।

हां तू कहानी शुरू कर, ये तो ऐसे ही लड़ते रहेंगे। मीनू ने कहा। मीनू की बात सुनने के बाद अशोक ने अपनी कहानी शुरू की।

आर.जी. मुखर्जी अस्पताल देवनगर शहर का एक नामी चिकित्सालय है। यहां मरीजो का तांता लगा रहता है। इस अस्पताल में हर तरह की बीमारियों का इलाज होता हैं और हर बीमारी के विशेषज्ञों की टीम चौबीसों घण्टे मौजूद रहती है। अस्पताल शहर से दूर एकांत में बना हुआ हैं। जिसके चारों और खूबसूरत फूलों के पेड़ लगे हुए हैं।

डॉक्टर जया अपने केबिन में बैठी फोन पर बात कर रही थी। तभी एक नर्स दौड़कर आई। वह हाँफती हुई डॉक्टर जया से बोली- मेडम कीर्ति ने मरीज को गलत इंजेक्शन लगा दिया। मरीज की हालत बहुत गम्भीर हो गई हैं आप जल्दी से ऑपरेशन थिएटर में चलिए। जया ने फोन को डिस्कनेक्ट किया और तेजी से नर्स के पीछे हो ली। वह नर्स पर भड़कते हुए बोली- तुम लोगों से कितनी बार कहा हैं इंजेक्शन लगाने के पहले एक बार नाम ठीक से पढ़ लिया करो।

डॉ जया फुर्ती से ओटी में प्रवेश करती है। मरीज लगभग 30 वर्षीय महिला हैं जिसकी डिलीवरी होना है। महिला इंजेक्शन के दुष्प्रभाव के कारण तेज साँसे भरती हुई झटके ले रहीं थी। डॉ जया ने नर्सो से कहा पेशेन्ट के हाथ व पैर पकड़कर रखो।

नर्सो ने मरीज के हाथ-पैर कसकर पकड़ लिए। डॉ जया ने एक इंजेक्शन मरीज को लगा दिया। जिससे मरीज बेहोश सी हो गईं। डॉ जया नर्सो को फटकार लगाने लगीं। उन्होंने कहा इस बात का पता किसी को नहीं चलना चाहिए। यह कहती हुई वह ओटी से बाहर निकल गई। बाहर मरीज महिला के परिजन खड़े थे। उनको देखकर डॉ जया बोली- घबराओं नहीं केस थोड़ा कॉम्प्लिकेटेड हैं हम पूरी कोशिश कर रहें हैं ।

अस्पताल में हुआ यह वाकया तो बहुत ही आम है। ऐसे सैकड़ों मामले इस अस्पताल में रोज घटित होते हैं। डॉक्टर व नर्सों की लापरवाही के कारण कई मरीज अपनी जान गंवा चुके हैं। डॉक्टर ही एकमात्र पेशा हैं जिसकी तुलना भगवान से की जाती है। लोग डॉक्टर को भगवान मानते हैं। और माने भी क्यों न कई चिकित्सकों ने अपनी जान पर खेलकर भी मरीजों की जान बचाई है।

देवनगर के आर.जी. मुखर्जी अस्पताल को लोग शैतान की दुनिया कहते है। यहां से जिंदा गरीब इंसान लाश बनकर ही बाहर निकलता है। अस्पताल के कर्मचारियों से लेकर विशेषज्ञ डॉक्टर सब धनलोभी होकर मानवता को भूल बैठे हैं, जो इनका विरोध करता उसे अस्पताल से निकाल दिया जाता या पर्दाफाश न हो जाए इस भय से मौत के घाट उतार दिया जाता।

आर.जी. मुखर्जी अस्पताल अंग तस्करी का एक प्रमुख केंद्र बन गया। कई बार अखबारों में अस्पताल के गोरखधंधों पर लेख लिखे गए। पर रसूखदारों से तालुक्कात के कारण कोई भी अस्पताल का बाल भीं बांका न कर सका। एक समय ऐसा आया जब पूरा विश्व एक भयानक महामारी की चपेट में आ गया। विकसित देश भी महामारी से निपटने में असफल रहे। महामारी संक्रामक थी जिससे कई लोग महामारी का शिकार हो गए।

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