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डंकी - फिल्म समीक्षा

सीमा असीम सक्सेना के द्वारा लिखी गयी डंकी फिल्म की समीक्षा .....

डंकी फिल्म का नाम है डंकी ।

फिल्म के कलाकार हैं शाहरुख खान, विकी कौशल, तापसी पन्नू, बमन ईरानी,

डंकी फिल्म के निर्देशक हैं राजकुमार हिरानी ।

निर्माता हैं गौरी खान, राजकुमार हिरानी और ज्योति देशपांडे ।

लेखक हैं अभिजात जोशी, कनिका ढिल्लो व राजकुमार हिरानी ।

रिलीज हुई है 21 दिसंबर 2023 को ।

मेरे हिसाब से फिल्म को अंक हैं 3.6 ।

 

शाहरुख खान और अन्य दमदार स्टार कास्ट की फिल्म डंकी का डंका उतनी जोर से नहीं बज सका जितनी उन्होंने उम्मीद की थी या पठान जवान का बजा था । मुझे लगा कि राजकुमार हिरानी की यह अब तक की सबसे कमजोर फिल्म है । शाहरुख खान की फिल्म डंकी सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है और राजकुमार हिरानी के निर्देशन में उन्होंने पहली बार काम किया है । राजकुमार हिरानी अभी तक खास तरह की पिक्चरें बनाने के लिए जाने जाते रहे हैं जो कि अपनी फिल्मों के माध्यम से भावनाओं के उतार चढ़ाव के साथ साथ सामाजिक संदेश भी देते आये हैं । उनके द्वारा बनायीं गई फिल्मों में मुन्ना भाई एमबीबीएस, पी के और 3 इडियट्स जैसी फ़िल्में है और अब वह डंकी फिल्म लेकर आए हैं ।

डंकी का मतलब आम बोलचाल में जिसे डनकी मारना कहा जाता है, इसका अर्थ है किसी अन्य देश में अवैध तरीके से प्रवेश कर लेना और अवैध तरीके से किसी भी देश में प्रवेश पाने के लिए जिस रास्ते का लोग इस्तेमाल करते हैं उसे डंकी रूट कहा जाता है । दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जहां डंकी रूट मशहूर है, डंकी रूट उन लोगों द्वारा बनाया जाता है जिन्हें उस देश का वीजा नहीं मिलता है । भारतीय सिनेमा को मुन्ना भाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्ना भाई, 3 ईडियट्स और पीके जैसी सफल, मनोरंजक और सार्थक संदेश देने वाली फिल्में बनाने वाले राजकुमार हिरानी ने इस बार अधूरी इच्छाओं, संसाधनों और अपने सपनों को एक ऊँची और नई उड़ान देने वाले अलग से विषय पर यह फिल्म डंकी बनाई है । डंकी की कहानी इस तरह से है, फिल्म की शुरुआत में हिरोइन मनु यानि कि तापसी पन्नू के लंदन के एक अस्पताल से भागने से होती है । वह अपने वकील से भारत का वीजा न मिल पाने की स्थिति में शाहरुख खान यानी कि हार्डी का नंबर निकालने को कहती है । वह अपने देश में इसलिए जाना वापस जाना चाहती है क्योंकि उसे ब्रेन ट्यूमर हुआ है और उसके पास जिन्दगी के कुछ ही दिन शेष बचे हैं, जिसे वह अपनों के साथ जीना चाहती है, कहानी पंजाब से है, 25 साल बाद मनु अपने प्रेमी हार्डी को फोन करके दुबई आने को कहती है, मनु अपने दोस्तों बग्गू और बल्ली को लंदन से दुबई साथ चलने को कहती है, जहां से उनके अतीत के पन्ने खुलने आरम्भ होते हैं । फौज में पदस्थ हार्डी पंजाब के लाल्टू में किसी का सामान लौटाने आया होता है, जहाँ पर उसकी मुलाकात मनु से होती है, जो अपने घर की खस्ता हालत सुधारने की वजह से इंग्लैंड जाना चाहती है । बल्ली और बग्गू की भी पारिवारिक दिक्कतें हैं । हार्डी उन्हें एलईडी परीक्षा में शामिल होने को कहता है ताकि छात्र वीजा पर वह इंग्लैंड जा सके पर सबका हाथ अंग्रेजी में तंग होता है । वह अंग्रेजी की क्लास ज्वाइन करते हैं, जहां पर सुखी लंदन जाने के लिए बेचैन है, घटनाक्रम मोड़ लेते हैं और सुखी आत्मदाह कर लेता है, उसकी मौत हार्डी को झकझोर देती है, वह मनु और बाकी दोस्तों को डंकी रूट से लंदन ले जाने की जुगत में लग जाता है हालाँकि हार्डी को मनु से प्रेम हो जाता है लेकिन उनके घर की समस्याओं के कारण किसी भी तरह विदेश भेजने में मदद करने को जी तोड़ कोशिश करता है । अब मनु वापस आ पाती है या अपने प्रेमी से मिल पाती है और वह उसे अपना लेता है या नहीं यह सब जानने के लिए फिल्म को देखना पडेगा ।

फिल्म में यह दिखाया गया है कि हर साल 10 लाख लोग डोंकी मारते हैं हालांकि राजकुमार हिरानी, कणिका ढिल्लों और अभिजीत जोशी द्वारा लिखी गई यह कहानी उस मुद्दे की गहराई में उतर नहीं पाती है, शुरुआत में किरदारों को स्थापित करने में ही काफी समय ले लिया, मध्यांतर के बाद सब डंकी मारते हैं तो फिर उसके बीमारियों का सामना करना पड़ता है । यह कहानी अच्छे से उभर कर नहीं आती है, फिल्म में कुछ भावनात्मक दृश्य भी हैं लेकिन वह भावुक नहीं करते हैं । फिल्म में मनु का किरदार एक जगह पर कहता है, यह जमीन अंग्रेजों ने अपनी फैक्ट्री में नहीं बनाई है, यह रब की जमीन है इसलिए यह हमारी भी उतनी ही जमीन है जितनी कि यह उन लोगों की है । यह बात उसकी अशिक्षा को दिखाता है । अब आप सोचिये कि अगर वीजा प्रणाली ना हो तो दुनिया में किस प्रकार हाहाकार हो सकता है ।

जहाँ तक फिल्म में कलाकारों के अभिनय की बात करें तो मनु और हार्डी की प्रेम कहानी भी उभर कर सामने नहीं आ पाई है, इस प्रेम कहानी को लेकर शाहरुख और तापसी की केमिस्ट्री में कोई रंग नहीं जमा है । मेकअप से झुर्रियां करने के बाद भी तापसी पन्नू कहीं से उम्रदराज नहीं लगती हैं, न उनकी चाल ढाल, न हाव-भाव कोई भी उनको उमरदराज नहीं दर्शाता है। युवा अवस्था में शाहरुख खान काफी जवान लगते हैं, सुखी के रूप में विकी कौशल का अभिनय उम्दा और शानदार है, वह याद रह जाते हैं, सहयोगी भूमिका में नजर आए विक्रम कोचर और अनिल ग्रोवर ने अपनी अदाकारी से किरदार को खास बना दिया है, कुल मिलाकर फिल्म में बीच में कुछ हल्के फुल्के कामेडी के द्रश्य भी हैं जो चेहरे पर कभी-कभी मुस्कान ले आते हैं ।

फिल्म को बनाने के पीछे राजकुमार हिरानी की अच्छी मंशा है, वे एक ऐसे विषय को दिखाना चाहते थे, जिसके बारे में अधिकतर लोगों को पता नहीं था और फिर अपने देश को छोडकर विदेश में किन किन परेशानियाँ का सामना करना पड़ता है । एक द्रश्य में हार्डी (शाहरुख़ खान )कहते भी हैं कि अपना देश अपना ही होता है । फिल्म का संगीत बढ़िया है, इसके कुछ गाने पहले ही लोगों की जुबाँ पर चढ़ गए थे । मुझे लगता है कि क्रिसमस की छुट्टी को इंजॉय करने के लिए यह फिल्म डंकी देखी जा सकती है ।

सीमा असीम सक्सेना