Wo Billy - 23 - Last Part books and stories free download online pdf in Hindi

वो बिल्ली - 23 - अंतिम भाग

(भाग 23)

अब तक आपने पढ़ा कि अंशुला को प्रेमलता दिखाई देती है, जिसे वह अपनी आँखों का वहम समझती है।

अब आगें...

आंखे मूंदे हुए डरी-सहमी सी अंशुला के कंधे पर जब किसी ने एक भारी सा हाथ रखा तो वह चीख़ पड़ी। अगलें ही पल उसे प्रेम का ख्याल आया। उसने चेन की सांस लेते हुए कहा - " ओह ! प्रेम तुम हो। मैं तो भूल ही गई थी कि यहाँ मैं अकेली नहीं हुँ।"

इतना कहने के बाद जैसे ही अंशुला ने पलटकर देखा सामने का नज़ारा देख कर उसके चेहरे का रंग बदल गया।

प्रेम का शरीर हवा में लहरा रहा था। अंशुला के ठीक सामने प्रेमलता खड़ी हुई थीं। यह प्रेमलता की आत्मा नहीं वरन उसका मृत शरीर था जो मिट्टी से सना हुआ था। शरीर की त्वचा सफ़ेद झक पड़ चूंकि थीं। सिर पर प्रहार होने से जो खून बहा था वह रिसकर चेहरे तक आ गया था। अंशुला डर से पीछे हटी तो प्रेमलता के मृत शरीर ने भी अपने कदम उसकी तरफ़ बढ़ा दिए। अंशुला पीछे हटती जा रही थीं। वह धड़ाम से उसी गड्ढे में जा गिरी जो उसने अपने पति प्रेम के साथ मिलकर प्रेमलता की लाश ठिकाने लगाने के लिए खोदा था।

अंशुला हैरान थी कि वहाँ पर पहले से ही अंशुला की लाश पड़ी हुई थी। वह उसी लाश के ऊपर गिर गई थीं। उसने फुर्ती दिखाई और जैसे ही गड्ढे के बाहर आने लगीं उसके सिर पर पीछे से किसी ने ठीक उसी प्रकार भारी वस्तु से प्रहार किया जैसा अंशुला ने प्रेमलता के सिर पर किया था। अंशुला लड़खड़ाकर फ़िर से गड्ढे में गिर गई। गढ्ढे के आसपास लगें मिट्टी के ढेर से अपने आप ही मिट्टी अंशुला के जीवित शरीर पर डलने लगीं थीं। देखते ही देखते अंशुला का जीवित शरीर मिट्टी में दफ़न हो गया था। उस पर फिर से फर्श लग गया।

कमरे में शमशान जैसी शांति पसर गई। हवा में लहराते हुए प्रेम ने यह सब घटनाक्रम अपनी आंखों से देखा। वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा।

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मेंटल असायलम

कमरे में अपने बिस्तर पर दायी करवट लेकर प्रेम सोया हुआ था। जब उसने करवट बदली तो उसके सामने प्रेमलता बैठी हुई मुस्कुरा रहीं थीं। वह बोली - " तुमने अस्पताल से लेकर मेरे घर आने तक मेरी बहुत सेवा की थी अब मैं भी तुम्हारी सेवा में कोई कसर नहीं छोडूंगी।"

हा!हा!हा!....

तेज़ भयानक हँसी प्रेम के कानों के परदों को चीर रही थीं। उसने अपने कानों पर हथेलियों को रख लिया और उन्हें कसता चला गया लेक़िन हँसी की गूंज सुनाई देना बंद नहीं हुई। वह पागलखाने में रोज़ तिलतिल करके मर रहा था। वह दुआ में भी मौत मांगा करता था।

अतीत की यादों से बाहर निकलकर प्रेमलता ने शोभना से कहा - " बस यहीं थी मेरी कहानी। मैंने इस घर में आने वाले किसी भी अन्य व्यक्ति को मौत के घाट नहीं उतारा। मैं उनके सामने आती इतने पर ही कई लोग यह घर छोड़कर चलें गए। इस घर को किराए पर देने वाला भी मेरे मामा का लड़का ही है। वह भी यहाँ कभी नहीं ठहरा। तुम लोग पहले ऐसे लोग थे जो मुझसे डरे लेक़िन फिर भी यहाँ डटे रहे। इतना ही नहीं मेरे क्रोध का भी सामना तुम दोनों ने मिलकर किया। तुम्हें देखकर मुझें मेरे माता-पिता की याद आ गई। वह दोनों भी एकदूसरे से इसी तरह प्रेम किया करते थे।"

मैं यह घर तुम्हारे नाम करती हूँ। यहाँ रुख़ी अलमारी में इस घर के कागज रखें है। तुम वह कागज ले लो। आज ही मेरे मामा के बेटे और वकील साहब को बुलवा लो। इसके बाद मेरे शरीर का अंतिम संस्कार करवाकर यहाँ मेरे निमित्त शांति पाठ व कथा भागवत करवा लेना। मेरी मुक्ति हो जाएगी।

शोभना ने हाथ जोड़कर कहा - " आपकी मुक्ति के लिए जो कुछ आपने बताया हम वह अवश्य करेंगे लेक़िन यह घर हम अपने नाम नहीं करवाना चाहते हैं।"

प्रेमलता ने मुस्कुराकर कहा - "मेरी मुक्ति के बदले में इसे उपहार स्वरूप रख लेना।"

इसके बाद सबकुछ वैसा ही हुआ जैसा प्रेमलता चाहती थीं। भागवत कथा के अंतिम दिन पूर्णाहुति के धुँए के साथ ही एक साया भी आकाश की ओर चला गया। प्रेमलता को मुक्ति मिल गई थी।

 

------------समाप्त-----------