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शिक्षा में गुणात्मक सुधार हेतु नवचिन्तन

शिक्षा में गुणात्मक सुधार हेतु नवचिन्तन


अधिक उपयोगी शिक्षा का गुणात्मक ह्रास आज चिंता का विषय है । शिक्षा व्यक्ति , समाज एवं राष्ट्र के विकास में नही सिद्ध हो पा रही है ।
शिक्षा मनुष्य के वर्तमान और भविष्य का निर्माण करती है अत : इसके स्तर में दिनोदिन होने वाली गिरावट चिंता का विषय है ।

शिक्षा अपने मूल उद्देश्य से भटक कर ज्ञानपरक होने की बजाय अर्थपरक होती जा रही है शिक्षा जगत में व्यवसायी करण बढ़ रहा है शिक्षा वर्तमान से अनुकूलन करने में असफल सिद्ध हो रही है वही भविष्य की भी संभावनाएं शिक्षा से स्पष्ट नहीं हो पा रही है शिक्षक वर्ग भी अनेकों समस्याओं से ग्रस्त है ।

शिक्षक व छात्र के मध्य की दूरी बढ़ रही है। छात्र वर्ग के शिक्षा के प्रति अरूचि व भविष्य के प्रति अनिश्चितता का भाव बढ़ रहा है जिसके कारण अनुशासन हीनता की समस्या विकराल होती जा रही है।

नवीन शैक्षिक पद्धतियों से अनभिज्ञ अध्यापकगण परम्परा गत ढंग से ही शिक्षण कार्य करते है । शिक्षा में एक रूपता का अभाव , समान पाठ्यक्रम का अभाव , व्यवसायिक शिक्षा हेतु जन जागृति का अभाव , अध्यापक, छात्र एवं अभिभावक के मध्य उचित सामंजस्य का अभाव आदि कुछ ऐसे दोष है जिनके कारण शैक्षिक स्तर गिर रहा है ।

शिक्षा की समस्याएं एक चुनौती के रूप में हमारे सामने है।
हालांकि शिक्षा वर्तमान और भविष्य दोनों के संवारने और सजाने का अनुपम संसाधन है शिक्षा अपने आप गुणात्मक विकास का मूल स्रोत है और इस स्रोत को सतत प्रवाहित करना ही शिक्षा का सबसे बड़ा लक्ष्य है आज जनसामान्य की प्रतिक्रिया शिक्षा के प्रसार के सापेक्ष शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हेतु भी सकारात्मक है।

अतः शिक्षा के गुणात्मक उन्नयन हेतु निम्न बिंदुओ को सुझाव रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है -

1- आज शिक्षक छात्र सम्बन्ध में पर्याप्त दूरी आती जा रही है , इस दूरी को मिटाकर गुरू शिष्य की स्नेहिल परम्परा करके शिखा में गुणात्मक सुधार किया जा सकता है । विद्यार्थी जब अध्यापक के घनिष्ठ सम्पर्क में आयेगा तो वह गुरू के सुदृढ़ ज्ञान एवं व्यक्तित्व से प्रभावित होगा तथा उनके द्वारा प्रदत्त ज्ञान को रूचि और श्रद्धा से ग्रहण करेगा ।

2- छात्रों में अनुशासन हीनता की समस्या का निवारण भी शिक्षक और छात्रों के सम्बन्धों को मधुर बनाकर किया जा सकता है । आज्ञापालान का गुण भी छात्रों में इसी प्रकार विकसित किया जा सकता है ।
कक्षा-8/9 में शिक्षक की भूमिका एक मास्टर नहीं अपितु ज्ञान का मार्ग दिखाने वाले पथप्रदर्शक की होनी चाहिए ।
एक शिक्षक छात्रों को भय से नहीं अपितु स्नेह से शिक्षा देता है एवं उनकी शैक्षिक त्रुटियों एवं समस्याओं का समुचित निवारण करता है वह अपने छात्रों को विषय के नवीनतम ज्ञान से परिचित कराता है इस सन्दर्भ में कबीर का कथन दृष्टव्य है-

गुरु कुम्हार , सिख कुम्भ है , गढ़ि गढ़ि कादै खोट।
अंदर हथि सराहि दें , बाहर मारै चोर।।


3- छात्रों का शिक्षा से वैसा ही सम्बन्ध है जैसा अध्यापक वर्ग का। अतः विद्यालय के छात्रों को शैक्षिक समस्याओं से परिचित कराना तथा उनमें शिक्षा के गुणात्मक सुधार के प्रति अभिरूचि जाग्रत कराना आवश्यक है ।
छात्रों में शैक्षिक दायित्व का बोध जाग्रत करने से विद्यालय की अनेक समस्याओं का निवारण हो सकता है एवं शैक्षिक स्तर ऊंचा किया जा सकता है ।

4- विद्यालय के शैक्षिक विकास एवं अनुशासन में छात्रों की साझेदारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है । विद्यालय के अनुशासन , शिक्षण एवं सांस्कृतिक कार्य कलापों के लिए अध्यापकों की जो समितिया बनायी जाती है उनमें यदि छात्रों की भी साझेदारी हो तो निश्चय ही छात्र वर्ग सक्रिय योगदान दे सकता है ।

5- शिक्षा के गुणात्मक उन्नयन के लिए लिखित कार्य पर बल दिया जाना चाहिये , कम से कम प्राथमिक एवं जूनियर स्तर पर तो यह अति आवश्यक है । हमारे यहाँ लिखित परीक्षा पद्धति की प्रमुखता है , इस दृष्टि से भी लिखित कार्य पर बल दिया जाना चाहिये ।

6- भाषा शिक्षण हेतु प्राथमिकता एवं जूनियर स्तर के छात्रों पर ध्यान देना अति महत्वपूर्ण है । भाषा का स्वरूप , ध्वनिबोध अक्षर एवं शब्द विन्यास , ध्वनि विज्ञान का बोध वर्तनी भाषा आदि का सम्यक ज्ञान देते हुए छात्रों को शुद्ध भाषा लिखने एवं उच्चारित करने की दिशा में प्रेरित करना चाहिए ।

7- विज्ञान एवं गणित अध्यापकों को अपने विषयों का सम्यक ज्ञान छात्रों देना चाहिए ।

8- नवीनतम शैक्षिक सामग्री एवं कम्प्यूटर आदि नवीनतम मीडिया का प्रयोग करना चाहिए । शैक्षिक पर्यटन , सेमिनार , विचारगोष्ठी आदि भी शिक्षा के उन्नयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है ।

9- शिक्षकों के शिक्षण कार्य का अवलोकन करने के लिए एक निरीक्षक मण्डल का गठन किया जाना चाहिए जिसमें विद्यालय के प्रधानाचार्य एवं वरिष्ठ अध्यापक सम्मिलित है । सुविधानुसार अन्य विद्यालयों के प्रधानाचार्यो एवं वरिष्ठ अध्यापको को भी इस निरीक्षण मण्डल में सम्मिलित किया जा सकता है ।

10- शिक्षा विभाग एवं प्रधानाचार्यगण का यह दायित्व है कि शिक्षक परिवार के संरक्षक होने के नाते वे शिक्षको की सुख - सुविधाओं पर ध्यान दें एवं उनको ऐसा मानसिक वातावरण दें ,जिसमें साँस लेकर वे स्वस्थ मन से रूचि पूर्वक अपना शिक्षण कार्य सम्पन्न कर सके ।

उपरोक्त सुझावों का सम्मत पूर्वक ढंग से अनुप्रयोग कर शिक्षा का गुणात्मक विकास सम्भव है यद्यपि गुणात्मक विकास की कोई सीमारेखा निर्धारित करना कठिन कार्य है , तो भी हमारी अभिलाषा है कि शिक्षा द्वारा हमें राष्ट्र की आकांक्षाओं के अनुसार समुन्नत जीवन मूल्य और वैज्ञानिक दृष्टि कोण से कुशल नागरिक प्राप्त हो सकें ।

✍🏻संदीप सिंह "ईशू"