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आत्मकथा ...

मै जो लिख रहा हु, वो कोई काल्पनिक कहानी नहीं है। मेरे जीवन का कड़वा सच है ।जिसे मैंने और मेरी माँ ने जिया है। यह उस जमाने की बात है, जब मोबाईल फोन नहीं हुआ करते थे। मेरी माँ जो की अब 50 पार हो गई है। और उनकी दो बहने राजस्थान की बाल विवाह की शिकार हो गई। क्यूकी नानी को लगता था, की लोग क्या कहेंगे बच्ची बड़ी हो गई अभी तक शादी नहीं कारवाई। तो मेरी माँ की शादी कम उम्र मे हो गई,नानी जानती थी की लोगों का काम है कहना फिर भी।

नानी बेचारी हालत की मारी, क्यूकी नानाजी पहले ही घर-बार छोड़कर सन्यासी का सोला पहन चुके थे, अब तीनों बेटीयो की जिम्मेदारियों का बोझ नानी पर था । नानी ने जेसे तेसे सब्जी बेचकर तीनों बेटीयों की शादी कारवाई ।

मेरी माँ की शादी होने के बाद पता चला की उनके पति पागल और गूंगे है । अभी माँ के हाथों की महंदी का रंग फीका भी नहीं पड़ा था। दुल्हन के जोड़े को समेटकर कही लोहे ही पेटी मे रखा दिया होगा , आँसुओ ने माँ का हाथ उस समय थामा था जो अब कही जाकर अलविदा कह पाए है। उस समय एसे मे नानी ने माँ को अपने पास बुलाया । और समझाने की भरपूर कोशिश की ,की पूरा जीवन एक पागल और गूंगे के साथ कैसे जियेगी।

उसी बीच मेरी आहट मेरी माँ की कोक मे होने लगी । नानी ने माँ को बहुत समझाया की तेरी दूसरी शादी करवा देते है पर माँ ने एक नहीं सुनी । कहती रही लोग क्या कहेंगे, नानी बार बार समझती रही की लोगों का काम है कहना पर माँ नहीं मानी ।

माँ ने मन ही मन पागल और गूंगे के साथ जीवन जीने का फेसला कर लिया, इस होसले के साथ की उसकी कोक मे पलने वाले बच्चे के सहारे अपना पूरा जीवन खुशी-खुशी जी लेगी,



वक्त गुजरता गया, जब मे करीब दस वर्ष का हुआ तब मैंने अपनी नानी और माँ ने अपनी माँ को खो दिया ।

वो भी कोई साधारण मोत नहीं ,उनका मेरे ही काका ने खून कर दिया । उस समय किसी का खून होना बड़ी बात होती थी। लोगों का तो काम है कहना ।

उस समय लोगों ने बहुत सारी बाते हमारे बारे मे कही, उल्टा हमे ही समाज से बाहर कर दिया, हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया, समाज ने हमे किसी से बात तक करने का अधिकार छिन लिया , हमारे अपने भी पराए जैसा व्यवहार करने लगे , जमाने के वो ताने जब माँ आज भी सुनती है आँखों से एका-एक आँसू टपक ही जाते है । माँ को अब दो बहनों के अलावा किसी का सहारा नहीं था , बाप पहले ही सन्यासी बन गए थे और` भाई था नहीं पति पागल और गूंगा बच्चा अभी 6 कक्षा मे पढ़ रहा था ,जीवन मे चारों और मानो अंधेरा सा गया था ।

“सब कुछ खोकर फिर से पाने की,
छोड़ दे अब नफरत की राहे,
निश्चय कर खुद को बदलने का,
तु जिद कर फिर से जीने की।“

मुझे मेरे कक्षा के लड़के/लड़कियों की वो हसी आज भी याद है । जब मेरे पागल और गूंगे बाप ने मेरे छोटे छोटे कपड़े पहनकर स्कूल मे मेरी ही कक्षा मे आकार मेरे ही गुरुजी को कहा मे पड़ाऊँगा। जबकि मेरे पापा अनपढ़ थे । वो जब मेरी कलास मे आए मेरे कपड़े पहने हुए , गले मे माँ की सुनरी लटकाए हुए, ऐनक पहना हुआ जिसका एक काश था और दूसरा नहीं ,माथे पर बड़ा सा टिक्का ,हाथ मे एक डंडा ,इस तरह के पागल इंशान को देख कर भला कोन नहीं हसता मुझे मेरे दोस्तों से कोई शिकायत नहीं पर वो कक्षा 10 की हसी मे अब भी नहीं भूल पाता, उससे मुझे नरफत नहीं जिंदगी मे आगे बड़ने का होसला पाता हु । गर्मी के समय मे उनका मानसिक संतुलन जायद बिगड़ जाता था । तब हम उनको जंजीरों से बांध कर रखते थे। एक बार एसा वाक्या भी हुया की कही महीनों तक एक जगह बांधकर रखने के बाद भी ठीक नहीं हो रहे थे। वो कही दिनों तक चलते चलते दूसरे शहर चले जाते थे । एक बार वो खो गए तो 3 साल बाद घर आए, पता नहीं किस हाल मे रहे होंगे ,जब घर आए तो एक भिखारी की माफिक कपडो से बदबू आ रही थी। बाल और दाड़ी बड़ी हुई थी हा वो माँ को मारते भी बहुत थे। और मे उस उम्र मे यह सब देखता था पर कुछ कर नहीं पाता था । मेरा कोमल मन यह सब देखकर विचलित हो उठता था । उस समय मुझे भी लोग छिडाते थे की देखो पागल का बेटा जा रहा है । पर मेने आज तक किसी को जवाब नहीं दिया क्यूकी बाप अगर पागल है तो कुछ तो लोग कहंगे लोगों का कम है कहना ।

जब मे 11 कक्षा मे था तब उनका देहांत हो गया ।

उस समय मेरी बड़ी मम्मी ने हमारे परिवार को संभाला। वही माँ के हाथों की मेहंदी का रंग फीका तक नहीं पड़ा था। उनके उपर पूरे परिवार को संभालें की जिम्मेदारी का पहाड़ टूट पड़ा , तब उसने सब्जी बेचने का काम सुरू किया पहले सर पर टोकरी रखकर और बाद मे लॉरी से वो कारवा तब सुरू हुआ था जो आज उसका बेटा बैंक मैनेजर बन गया है फिर भी वो लॉरी के पहियों की आवाज आज तक बंद नहीं हुई, वो माँ की गली गली मे गुजती आवाज सब्जी ले लो सब्जी ले लो मुझे आज भी अक्सर रुला देती है मुझे अंदर से झकजोर देती है । इन सब बात का मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा की – लोगों का काम है कहना वो तो कहंगे, पर हमे लोगों की चिंता ना करते हुए जीवन को खुशी-खुशी और आनदपूर्वक जीना चाहिए और संघर्ष का मार्ग यह कहकर कभी नहीं छोड़ना चाहिए की लोग क्या कहेंगे क्यू की लोगों का काम है कहना। माँ ने जो कठोर रहा अपने लिए सुनी थी ,मे भी उनकी सिख से प्रभावित हु और जिंदगी मे लोगों का काम है कहना वो जो चाहे कहे कभी शॉर्ट-कट नहीं लूँगा ,संघर्ष ही जीवन का मकसद है मेरा ।



भरत माली (राज)