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कहा है इंसान ?

कहा है इंशान ?
संवेदनाओ की क्या बात करे आत्मा तक मार बैठा है इंशान, आँखों से ओझल नही हो पाती वो निर्भया कांड की न्यूज की हेडलाईने अब भी कभी बैठे बैठे एकाएक वो हादसा याद आता रूह काप उठती ।
कोई इंशान इतना भी हेवान कैसे हो सकता है की 8,9साल की बच्ची से रेप करता हो, जिसकी संवेदना मर चुकी हो जिंदगी जीते जीते, अब बस हड्डियों का ढाँचा रहा हो अपनी दादी सी दिखाने वाली के साथ रेप , कैसे मे कहु अब इंशान जिंदा है वो तो कब का मर गया अब तो इंशानो के रूप मे सिर्फ और सिर्फ हेवान जिंदा है।
देश मे कही बार गूंजी मांग फांसी की हर लेखक ने अपनी कलम से किये राजनीति पर वार बारम्बार फिर भी देश की संसद नही दे सकी फांसी सा कानून।
कसूर क्या है ? मेरी बेटियों का जो बाप जन्मते ही गला घोटना चाहता है, माँ की ममता उजड़ना चाहता, ताने मार मार कर माँ की ममता को करते घायल सास ससुर।
जैसे तेसे हो गई बड़ी तो माँ बाप का भाई से ज्यादा लगाव अंदर ही अंदर उसको छलता वो जल उठती अंदर ही।
जैसे युवाअवस्था पा लेती भेड़िये मंडराने लगते चारो और जहाँ से गुजरती फबकिया कशने से बाज वो नही आते। स्कूल जाने से घर लोटने तक माँ बाप की साँसे अटकी रहती। वो किसी अपने दोस्त को खुलकर मिल भी नही पाती क्युकी देखा अगर जमाने ने तो बदचलन वो कहलाती।
जब पढ़ लिखकर काबिल बन जाती फिर भी जमाना कहा जीने उसे है देता, ऑफिस मे साथी कर्मचारी की, रास्ते मे बस, ऑटो वालो की, पड़ोसियों की फबकिया कानों मे हमेशा उसके गुजती।
सोचती होगी ससुराल जाके कुछ सुकून पा लुंगी पर वहा तो उससे भी भयानक स्थिति है होती, सास ससुर के ताने, ननंद भौजाई की कहासुनी, देवर अलग से नकरे करे, पति अच्छा मिला तो ठीक नही तो उससे भी मार हर रोज है खाती।
फिर कही जाकर आवाज है उठाती, सब से लड़ने की हिम्मत है झुटाती, देवीरूप फिर कही जाकर है दिखाती ,कई तो कलम थाम लेती कई लड़ लेती लेकिन कई खामोसी को गले लगती और कुछ हमेशा के लिए खामोस हो जाती।
फिर भी इंशानो को शर्म कहा है आती इसीलिए तो कहता मे इंशान हैं कहाँ? सिर्फ हैवान बचे।
कुछ अच्छे इंशान ही बचे हैं जहा में नहीं तो कब की दुनिया विरान बना देते लोग ।आज भी औरतों बेटियो के साथ हेवानो जैसा बर्ताव करते है । उनके कोमल मन को छीन भिन कर देते है उनकी संवेदना का हर बार गला घोटते है।उनके जज्बातों के साथ खिलवाड़ करते है।
आखिर कब तक ऐसा ही चलता रहेगा। यह जो हम सब का धर्म है उसे हम सभी को मिलकर ही निभाना पढ़ेगा।वरना तो यूं ही बेटी या मरती रहेगी और किसी को कोई फर्क नहीं पढ़ेगा।


है वचन मेरा बेटियों जहाँ भी आयेगी मसीबत आप पर कभी भाई बनकर कभी पिता बनकर तो कभी दोस्त बनकर साथ रहूँगा। अब जीवन का धैय मात्र बेटी बचाओ बेटी पढाओ तक नही बेटी मेरी अब मुस्करानी चाहिए।
भरत (राज)