Eka Videhi Ka Rojanamaca books and stories free download online pdf in Hindi

एक विदेही का रोजनामचा

एक विदेही का रोजनामचा

जाड़ों के शुरुवाती दिन हैं।वह बहुत जल्दी में है। जाड़ों के शुरुवाती दिन हैं। रात जल्दी घिर आई है । वह जब अपने ऑफिस से बाहर आई तब उसे पता चला कि अरे ये तो रात हो चली । ऑफिस के भीतर तो कभी यह पता ही नहीं चल पाता कि बाहर दिन का उजाला है या रात का अँधेरा । आसमान साफ़ है या काले बादलों से घिरा है । बिजली कड़क रही है ,तूफानी हवाएं चल रही हैं या वातावरण एकदम शांत है ।

ऑफिस के भीतर सुबह नौ से छ: बजे तक समय स्थिर हो जाता है । वह अमूमन इस समय को अपनी जिंदगी से अपनी रोजी रोटी की खातिर निरंतर डिलिट करती जाती है । घड़ी देख कर ही उसे पता चलता है कि समय लगातार बीत रहा है । वह अपने हैंडबैग में रखे छोटे से आईने में खुद को निहारती है तो ही उसे यकीन हो जाता है कि समय वाकई गुजर रहा है । तब वह हडबड़ा कर अपनी लिपस्टिक के रंग को दुरुस्त करती है और लिप ग्लॉस लगा कर आश्वस्त हो लेती है ।

वह मोबाइल एप्प से ही बाहर के मौसम का कुछ सुराग पाती है । उसके वर्क स्टेशन पर लगा फोन पूरे समय घनघनाता है । हर बार वह फोन उठाती है और मुस्करा कर अपनी कम्पनी का नाम दोहराती है हालाँकि उसे पता होता है कि सुनने वाले तक केवल उसकी आवाज पहुँच रही है मुस्कराहट नहीं । फिर भी वह निरंतर मुस्कराती रहती है क्योंकि वह जान गई है कि नौकरी में बने रहने के लिए अन्य बातों के अलावा बाडी लैंग्वेज की भी भूमिका होती है ।

ऑफिस में सब कुछ बहुत ठंडा ठंडा रहता है । लगभग 18 डिग्री तापक्रम बना रहता है । मिनी स्कर्ट से बाहर उसकी टांग कभी कभी बिलकुल बर्फ जैसी हो जाती हैं । पूरी देह में झुरझुरी से उठती है । लेकिन इन सब बातों पर सोचने विचारने का उसे अवकाश अक्सर मिलता ही नहीं । इस दरम्यान वह अपनी निजता से पृथक हो जाती है । उसे सुदूर कस्बे में रह रही बीजी की भी याद नहीं आती ,न उसके जेहन में अभिषेक का चेहरा ही आता है । वह इन दोनों को बहुत मिस करती है पर ऐसा वह घर पहुँच कर ही कर पाती है ।

बीजी उसे कभी ऑफिस टाइम में फोन नहीं करती । यदि कभी बहुत जरूरी हुआ तो हल्की सी मिस कॉल देकर फोन काट देती है । तब वह मौका देखकर बीजी को फोन करके मामला जानती है । सुनकर क्षणांश के लिए उदास होती है फिर तुरंत ही मुस्कान यथावत चिपका लेती है ,

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वह घर पहुँचने के लिए उतावली हो रही है । उसके भीतर पहले बीजी से जीभर बतियाने की आतुरता है और उसके बाद अभिषेक से देर रात तक फुसफुसाते हुए बात करते रहने की चंचलता । वह घर की ओर जाती मेट्रो में सवार है । मेट्रो तेज रफ़्तार से दौड़ रही है । एक के बाद एक स्टेशन प्लेटफार्म और रौशनी की लकीरें पीछे छूट रही हैं । उसे रह रह कर अभिषेक की याद आ रही है । उसके साथ बिताए गए एक एक पल के पन्ने स्मृति में फडफडा रहे हैं । उसके स्पर्श की याद करते हुए उसने बेखुदी में अपनी टांग सिकोड़ लेनी चाहीं तो उसे याद आया कि वह मिनी स्कर्ट में मेट्रो में बैठी है अपने अपार्टमेंट के बैडरूम में नहीं । वह इस पर मुस्करा देती है तो सामने खड़े अधेड़ सज्जन के मुख पर अजीब सा भाव उतरता है जैसे किसी नदीदे बच्चे को आइसकैंडी दिख गई हो ।

मेट्रो लगातार उसके गंतव्य की ओर पूरी रफ़्तार से दौड़ रही है और उसे लग रहा है कि वह किसी पैसेंजर ट्रेन की तरह रेंग रही है । उसके लिए ऑफिस से घर तक यह चालीस मिनट का सफर बड़ा बोरिंग होता है । इस यात्रा के बीच वह अपनी आँखें सिर्फ इसलिए मूँद लेती है ताकि यह टाइम आननफानन में बीत जाये ।

उसने अपने मोबाइल को यूँही निहारा तो देखा कि उस पर बीजी की दो मिस्ड कॉल पड़ी हैं । वह यह देख बडबडाती है –ये बीजी भी.....उसे पता है कि यदि उनका बस चलता तो वह उसे घर से इतनी दूर अकेले नौकरी करने कभी न आने देती । अभिषेक तो कहता ही है कि तेरी बीजी तुझे डिब्बी में बंद करके रखना चाहती है ।

और तुम ? एक बार उसने पूछा ।

और मैं ......कुछ देर खामोश रहने के बाद उसने कहा ,अपने ख्यालों में रखना चाहता हूँ ।

सिर्फ ख्यालों में ? उसने करने को सवाल तो किया पर इसमें जिज्ञासा कतई नहीं है ।

इस बात पर अभिषेक खिलखिला कर हंस दिया और वह उससे ऐसे लिपट गई जैसे उसने उसके साथ रहने की सही वजह जान ली हो ।

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मेट्रो स्टेशन से उसके अपार्टमेंट की दूरी मात्र एक किलोमीटर है । वह इस दूरी को इतने तेज कदमों से नापती है कि हांफने लगती । अपार्टमेंट का दरवाजा खोलने से पहले ही वह अपनी होठों से चिपकी प्रोफेशनल स्माइल को टिशु पेपर से खुरच खुरच कर उतार देती है ।

घर के भीतर जाते ही उसने लाईट ऑन की और चाय का पानी इंडेकशन स्टोव पर खौलने के लिए रख दिया । इतने में उसने अपने पैर सुबह से उलझे जूते मोज़े उतारे । पैर की उँगलियों को तेजी से हिलाया । नम पैरों को ठंडे फर्श का स्पर्श मिला तो शरीर में सिहरन सी हुई । उसने बालों को व्यवस्थित रखने के लिए लगाये गए क्लिप को निकाल कर बालों को झकझोर कर बिखरा दिया । इतने में पानी खौलने लगा तो उसने चाय कप में छान ली ।

अब बता बीजी ,कैसी है तू ? उसने चाय का सिप लेते हुए पूछा ।

अच्छी हूँ । इतनी देर से कहाँ थी ,मैंने तुझे फोन किया था ? बीजी की आवाज़ में उलाहना अधिक गुस्सा कम है ।

मेट्रो में । और कहाँ होती उस समय ? उसने कहा ।

बड़ी देर से घर आती है पुत्तर । इतनी रात होने तक तेरा आफिस चलता है ? बीजी ने कहा ।

अरे बीजी ,छोड़ न यह सब और बता तेरा क्या हाल है । उसने बात आगे बढ़ानी चाही ।

जवान जहान बेटी शहर में अकेली है ,जी घबराता है । बीजी की आवाज नम थी ।

तो तू यहीं आ जाना मेरे पास । वहां अकेली बैठी क्यूँ परेशान होती है । उसने रास्ता सुझाया

पुत्तर कैसे आ जाऊं घर को छोड़ कर । यहाँ अपने पिंड के इतने हैं उनके साथ दिल बहल जाता है । घर के आंगन में अमरुद का पेड़ है चली आउंगी तो उसकी रखवाल कौन करेगा -----और फिर ----- बीजी बोलते बोलते रुक गई ।

और क्या ? उसने पूछा ।

उस घर में तेरे पिता की यादें रहती हैं । उन्हें किसके सहारे अकेले छोड़ आऊं । तुझे तो पता है तेरे पिता कितने भोले थे । उनकी याद वीरान घर में कैसे रह पाएगी । यह कह कर बीजी चुप हुई तो उसने उस चुप्पी से आती सिसकियों को साफ़ सुना ।

तू शादी क्यों नहीं कर लेती ? अब बीजी उससे पूछ रही थी ।

बीजी के इस सवाल ने उसे बेचैन कर दिया । उसे शरीर में गर्माहट महसूस हुई तो उसने कमरे का पंखा खोल दिया । वह एक एक कर कपड़े उतारने लगी । उसने बीजी से कहा :अरे छोड़ ना यह सब । तू मुझे यह बता तेरे घुटने का दर्द कैसा है ? तू दवा तो समय पर लेती है ना ? एकाध अमरुद तुझे भी मिलता है या पड़ोसी खा जाते हैं ?

सब रब दी मेहर है .......बीजी अब शबद गाने लगी ….नामु जपत प्रभु सिउ मन माने । उसने तुरंत हडबडा कर अपने शरीर को चादर से ढांप लिया और सिर को अभी उतारे गए टॉप से ढक लिया ।

बीजी गाती रही और वह मोबाइल को हैंडफ्री मोड पर करके चुपचाप बैड पर पसर कर उसे सुनती रही ।

तू सुन रही है ना पुत्तर ? बीजी ने कहा ।

हाँ बीजी सुन रही हूँ । उसने उतान लेटे- लेटे कहा । वह देर तक उसे दुआएं देती रही और फिर फोन डिस्कनेक्ट हो गया ।

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उसने लेटे लेटे लम्बी लम्बी सांस ली । इससे उसका सीना ऊपर नीचे हुआ । उसने झटके से चादर देह पर से सरका दी और ड्रेसिंग टेबिल के आईने में अपनी देह को निहारने लगी । उसने म्यूजिक प्लेयर ऑन किया तो बेगम अख्तर गा रही थीं –अभी तो मैं जवान हूँ -----अभी तो मैं जवान हूँ । उसने घूर कर म्यूजिक प्लेयर को देखा जैसे उसे उसकी इस शरारत पर टोक देना चाहती हो । फिर वह किसी मिथकीय आत्ममुग्धा नायिका की तरह मुस्करा दी ।

वह देर तक अपने जिस्म को निहारती रही और फिर फ्रिज में रखे खाने को माइक्रो में गर्म करने के लिए चल दी । उसने दीवार पर लगी घड़ी को देखा तो रात के साढ़े सात बजे थे । उसे पता था कि अभिषेक का फोन आठ बजे के आसपास आएगा ।

उधर घड़ी की सुईं आठ के अंक पर सरकी तो मोबाइल पर इक़बाल बानो की आवाज़ में फैज़ की नज़्म की पंक्तियाँ गूंजी –हम देखेंगे......लाजिम है कि हम भी देखेंगे । वह समझ गई कि अभिषेक का फोन है । उसी के कहने पर उसके नाम के साथ यह रिंगटोन लगाई थी ।

यार तू मुझसे शादी क्यों नहीं कर लेता ? उसने बिना भूमिका के सीधा सवाल किया ।

अब क्या हुआ ? वह पूछ रहा था ।

हुआ यह कि बीजी पूछ रही थी कि मैं शादी कब करूंगी ? क्या जवाब दूँ उनको ? उसने कहा ।

उनसे कहो अभिषेक का पहली बीवी से डिवोर्स होते ही हम शादी कर लेंगे ?

यार डिवोर्स जब होगा तब होगा । क्या हम साथ –साथ नहीं रह सकते ? बीजी को भी तसल्ली हो जायेगी । उसकी आवाज़ में उतावलापन था ।

क्या लिवइन में रह पाओगी ? वह पूछ रहा है ।

शायद हाँ ----वह कहना चाहती थी । लेकिन उसने कहा :शायद नहीं ।

इसके बाद उसने कमरे के सारे बल्ब जला दिया । कमरा खूब रौशन हो गया । वह अभिषेक से बात करती हुई एक स्वप्निल संसार में उतर गई । जहाँ सिर्फ कमनीयता थी । दो शरीरों के बीच बहने वाली उच्चश्रृंखल नदी का आवेग था । भावनाओं के जलतरंग पर बजता कर्णप्रिय संगीत था । निशब्दता में विदेही नाच रही थी । आँखों के तट से नींद कोसों दूर ठिठकी खड़ी थी ।

अगला दिन वर्किंग -डे है उसे ठीक तरीके से याद है । वह तमाम किन्तु परन्तु के मध्य जिंदगी को पूरी शिद्दत से जीने में लगी है । वह रात भर अभिषेक की आवाज़ को अपनी देह के ऊपर से गुजरता हुआ महसूस करती रही और उसके देह की भाषा को ब्रेल लिपि में पढ़ती रही ।

अगला दिन आया तो वह सही समय पर आफ़िस में अपनी सीट पर बैठी मुस्कराती हुई कह रही थी : गुड मार्निंग । व्हाट कैन आई डू फॉर यू सर!