Bread Pakoda in Hindi Short Stories by Ved Prakash Tyagi books and stories PDF | ब्रैड पकोड़ा

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ब्रैड पकोड़ा

ब्रैड पकोड़ा

रविवार के अवकाश मे गुप्तजी घर पर ही थे, घर पर दो मेहमान भी आए हुए थे। गुप्तजी विजयनगर गाज़ियाबाद मे रह रहे थे। गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण द्वारा बसाई गयी इस कॉलोनी मे गुप्तजी का एक छोटा सा ही लेकिन अपना घर था। किराए पर रहने से होने वाली तकलीफ़ों से गुप्तजी को छुटकारा मिल गया था। विजयनगर गाज़ियाबाद स्टेशन के साथ ही है अतः यहाँ पर ज़्यादातर सरकारी नौकरी वाले लोग ही अपने परिवारों के साथ रहते है। रेल द्वारा प्रतिदिन कार्यालय जाने आने मे सुविधा रहती है और खर्चे भी कम होते है। ज़्यादातर लोग दिल्ली के मंत्रालयों मे कार्यरत होते है एवं सभी अपना रेलवे का मासिक पास बनवा कर रखते है जो काफी सस्ता पड़ता है। गुप्तजी ने भी अपना मासिक पास बनवा रखा था क्योंकि वह भी संचार मंत्रालय मे कार्यरत थे।गुप्ता जी थोड़े कंजूस थे एवं हर जगह से पैसे बचाने के बारे मे सोचते रहते थे। वह अकेले ही कमाने वाले थे जिससे घर खर्च चलता था, बच्चे पढ़ते थे, माँ बाप बूड़े थे एवं पत्नी घर संभालती थी।

आज घर पर मेहमान भी आए हुए थे तो गुप्ताजी की पत्नी ने सोचा की नाश्ते मे ब्रैड पकोड़ा बना लिया जाए अतः आलू उबाल लिए थे धनिया वगैरह काट कर तैयार कर लिया था। अब बस एक ब्रैड लेकर आ जाए गुप्तजी और वह ब्रैड पकोड़ा बनाकर चाय के साथ गरम गरम परोस दे मेहमानों को। गुप्तजी ब्रैड लेने स्टेशन गए थे लेकिन अभी आए नहीं थे, काफी देर हो चुकी थी। न जाने क्यो इतनी देर लग रही थी।

वास्तव मे गुप्ता जी जैसे ही ब्रैड लेने स्टेशन पहुंचे तो सामने दिल्ली जाने वाली शटल खड़ी थी। गुप्ता जी ने सोचा की क्यो न मैं ब्रैड शाहदरा से लेकर आ जाऊ सस्ती पड़ेगी और ज्यादा देर भी नहीं लगेगी, पास तो है ही, किराया भी नहीं लगेगा और वहाँ से तुरंत वापसी की शटल भी मिल जाएगी। गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ने लगी, अभी गुप्तजी हिसाब लगाने मे ही लगे थे, मगर अचानक उनके दिमाग ने पैसे बचाने का फैसला लिया और वह शटल मे चढ़ गए, शाहदरा से ब्रैड लाने के लिए।

गुप्तजी ने शाहदरा से ब्रैड ली और दौड़ कर पहुंचे वापसी की शटल पकड़ने के लिए मगर शटल गुप्तजी के देखते देखते ही स्टेशन से निकल गयी। अगली शटल एक घंटे बाद की थी, अब गुप्तजी बस पकड़ने के लिए जी टी रोड पहुँचे, जो शाहदरा स्टेशन के नजदीक ही है और उन दिनों गाज़ियाबाद की बसे जी टी रोड से होकर ही जाती थी। थोड़ी देर प्रतीक्षा करने पर बस आ गयी पूरी तरह से भरी हुई लेकिन फिर भी गुप्तजी किसी तरह उस बस की खिड़की पर लटक लिए। एक हाथ मे ब्रैड का थैला और दूसरे हाथ से बस के दरवाजे का डंडा पकड़ कर एक पैर पर खड़े गुप्तजी, दूसरे पैर को रखने की जगह ढूंढ रहे थे, तभी कंडक्टर ने टिकट के पैसे मांग लिए। उस समय शाहदरा से गाज़ियाबाद का डेढ रुपया लगता था। लेकिन पैसे कैसे निकाले, हाथ तो खाली था ही नहीं। कंडक्टर ने लोगों को धकेल कर आगे किया और गुप्तजी के ऊपर बस मे चढ्ने की जगह बनाई। गुप्तजी ने दो रुपये का नोट निकाल कर कंडक्टर के हाथ मे रखा और टिकट ले लिया लेकिन कंडक्टर 50 पैसे बाद मे देने को कहकर आगे बढ़ गया। अब तक बस गाज़ियाबाद स्टैंड पहुँच चुकी थी सब लोग उतरने लगे लेकिन गुप्तजी कंडक्टर की प्रतोक्षा करने लगे 50 पैसे लेने के लिए। कंडक्टर गुप्तजी को लेकर पास खड़ी पानी की रेहड़ी वाले के पास गया एवं उससे खुले पैसे लेकर 50 पैसे गुप्तजी को वापस किए।

बस स्टैंड गाज़ियाबाद के बीच मे था, जहां से विजयनगर काफी दूर पड़ता था। अतः गुप्तजी ने स्टेशन के लिए रिक्शा पकड़ ली और सोचा की स्टेशन से पैदल ही चला जाऊंगा। रिक्शा घंटाघर से गुजर रही थी तो गुप्तजी की नजर घड़ी पर पड़ी और देखा की 12 बजने वाले थे। गुप्तजी तो बुरी तरह घबरा गए की घर पर क्या हाल होगा।

उधर गुप्तजी की पत्नी ने 9 बजे तक प्रतीक्षा की फिर बच्चे को भेज कर ब्रैड मंगा ली और सभी को नाश्ता करा दिया था। गुप्तजी साढे बारह बजे तक पहुंचे सस्ती ब्रैड दिल्ली के रेट पर खरीद कर और ज्यादा किराया खर्च करके।

वेद प्रकाश त्यागी

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