The Author Sandhya Tiwari Follow Current Read कौआ हडौनी By Sandhya Tiwari Hindi Short Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books पाठकीय प्रतिक्रिया पाठकीय प्रतिक्रिया पर्दा न उठाओ –सफल व्यंग्य रचनायें यशवंत क... ख्वाहिश,,,,कत्ल उम्मीदों का - भाग 1 पहली महिला :- दूसरी महिला से,,,,,सुना है बहन जी इनकी बेटी कल... गुलकंद - पार्ट 10 (अंतिम भाग) गुलकंद पार्ट - 10 अंतिम भाग अनरसे वाकई बहुत अच्छे बने थे। भौ... बंदर से इंसान - पुनर्जन्म बंदर से इंसान - पुनर्जन्म मुझे पिछले जन्मों की बहुत याद आती... लव एंड ट्रेजडी - 13 इसी तरह दिन गुज़रते गए हिमानी सेलनियों को घुमाती, हरि किशन ज... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share कौआ हडौनी (6) 992 5.6k कौआ हड़उनी ************** एक राजा था ।उसकी एक बहुत सुन्दर रानी थी। हूँऽ। फिर । मुन्ना ने पूछा अरे सुनाती हूं भई , विनीता ने कहा। तो एक बार राजा बहुत बीमार होकर बेहोश हो गया ।उसकी बेहोशी किसी दवा से टूटती ही न थी ।रानी बेहद परेशान। पूरे समय वह बडे मनोयोग से राजा की सेवा करतीरही।लगभग बारह साल तक रानी उस बेहोश राजा की सेवा करती रही । एक दिन वह थोडी देर के लिये राजा की सेवा का भार दासी पर सौंप कर आवश्यक कार्य के लिये चली गई।इतने में राजा को होश आ गया।राजा ने दासी से रानी के बारे मे पूंछा , "तो दासी ने बताया कि रानी तो पूरे समय रासरंग में डूबी रही ।मै ही बारह साल से आपकी सेवा कर रही हूँ।" राजा को जोर का गुस्सा आ गया, " उसने दासी को रानी और रानी को कौआ हड़उनी बना दिया।" ये कौआ हड़उनी क्या होता है ? पांच साल के मुन्ना ने पूछा? कौआ हड़उनी मतलब जो कौआ आदि को महल की दीवारों पर बैठने न दे। मै और विशलेष्ण कर रही थी , कि मुन्ना के खर्राटे सुनाई देने लगे। मैने धीरे से अपनी बाँह उसके सिर के नीचे से निकाली और आकर जमीन पर पड़ी अपनी कथरी पर लेट गई।लेटे लेटे आने वाला कल बीता हुआ कल सब मस्तिष्क में गड़मड़ हो कर आँखो के आगे नाच उठे। आज से पाँच साल पहले,मेरे दस साल के वैवाहिक जीवन में हलचल मच गई थी जब मेरे बाँझ होने के कारण मेरे पति एक और पत्नी खरीद लाये ।दहेज मे एक चार साल का बेटा भी था। मैं बहुत रोई चिल्लाई ।लगा कि दम निकल जायेगा ।लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ। मायके मे कोई था नही । पढ़ी लिखी थी नहीं।सो कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता था।मन मार के उसी घर को अपना कहना मजबूरी हो गया।मुन्ना सौत का बेटा था ।पहले वो मुझे फूटी आँख नहीं सुहाता था ।लेकिन धीरे धीरे उसके निश्छल प्यार में कब मैं उसकी बड़ी माँ बन गई पता ही नही चला। कल मेरे पति के बेटे का नामकरण है। मुझे बड़ा काम है सोचते सोचते जाने कब निद्रा देवी की गोद में चली गई। सुबह काम ही काम था।सौंर का काम। पंडित जी आते होंगे पूजा का काम ।पंजीरी बनानी है उसका सामान धूप में डालना है ,मुन्ना को नहलाना है ,पता नहीं कितना कुछ। चलो पहले पंजीरी का सामान धूप में ड़ाल आती हूँ ,सोच कर छत पर सामान फैला आई।नीचे आकर विभिन्न कामों में उलझ गई। छत पर से धम्म धम्म कूदने की आवाज आई। मै ड़ण्ड़ा लेकर छत की तरफ भागी , देखा तो बन्दरों की सेना धमा चौकड़ी मचाये थी ।मैं उन्हे ड़ण्ड़े से धमका कर भगा रही थी।नीचे से मुन्ना पुकार रहा था बड़ी माँ कहाँ हो तुम माँऽऽऽऽ अरे बाबा आ रही हूँ तुम हो कहाँ , उसने फिर पूछा, छत पर , मैनें कहा क्या कर रही हो बन्दर भगा रही हूँ बन्दर भगा रही हो । हा हा हा हा , बडी माँ कौआ हड़उनी , बड़ी माँ ,कौआ हड़उनी वह ताली बजा कर हँस रहा था और मेरा गला रुँध गया था , आँसू आँखो में ही सूख गये थे । डाॅ सन्ध्या तिवारी सदाबहार *********** जाने किस तानेबाने मे उलझी, मैं अपनी खिड़की पे खड़ी थी। इतने में मैंने देखा - एक सदाबहार का पौधा जो कि खिड़की की चौखट और दीवार की संद से निकल कर लहलहा रहा था । उसके हरे चिकने पत्ते प्याजी रंग के मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे, लेकिन दीवार में बरसात का पानी मरेगा , ये सोच कर मैंने उखाड़ने के लिये हाथ बढ़ाया ही था, कि नीचे गली से आवाज आई- "पौधे ले लो पौधे" मैंने देखा-तो ठेले पर देसी गुलाब, इंगलिश गुलाब ,बोगन बेलिया ,एरोकेरिया पाम की विभिन्न किस्में रखी थी। ये इंगलिश गुलाब कैसे दिया? "सौ रुपये का।" "हूँऽऽ !और ये देसी बाला मैंने पूछा?" "सत्तर का ।" "बडा मंहगा बता रहे हो। इसमें करना ही क्या होता है, केवल कलम ही तो लगानी होती है।"मैने धौंस जमाते हुये कहा- " हाँ लेकिन इतने दिन इसकी परबरिश खाद-पानी, देख-रेख ,सुबह-शाम सींचना इसका कुछ नही।" मैने हंसते हुये कहा ; "अच्छा तो तू बेटे का बाप है ।" "और मैं अनचाही बेटी जिसे बोने से 7 सीचने तक तुमने कुछ नहीं किया हां आज उखाड़ कर फेंक जरूर रही हो।" फुसफुसाहट सदाबहार की थी । मेरा चेहरा पीला पड़ गया। डाॅ संध्या तिवारी मूछें 27/9/14 ***** आय हाय नज़र न लग जाय ।खानदान की बड़ी बहू ने लड़को की तो झड़ी लगा दी ।देखो आठवाँ बेटा पैदा किया है।अब तो शुकुला जी हम किन्नरो को मुँह माँगा इनाम दो ।"तुम्हारे बच्चे जुग जुग जीवे , तभी कोई शरारती बच्चा पीछे से बोल पड़ा "और तुम्हारा खून पीवे।"ताऊ जोर से खंखारे।ताऊ की खंखार सुन बह बच्चा सहम कर अपनी माँ की गोदी में दुबक गया।घर में खूब चहल पहल है ।ताऊ की बड़ी बड़ी मूछें और ताव खा रही थीं ।बो जिस देहरी पर चढ़ जाते उस yb बहू बेटियाँ कुछ सकुच सिमट जातीं और पुरुष वर्ग की कमर और गर्दन उनके सम्मान में कुछ झुक जाती ।ताऊ का रौब पूरे खानदान पर गाफिल था। कुछ वर्ष बाद , बडे बेटे को मुम्बई की हवा लग गई वह जब लौटा तो प्राण लेवा बीमारी के साथ।दूसरा कसरती बदन लठैत बना, जिसने अपने ही भाइयों की बीबियों से अपना हरम बढ़ाया । तीसरा शराबी , चौथा स्मैक की ओवरडोज से मर गया ।पाँचबां ट्यूशन से पेट पालने लगा । छठा गैर जाति में शादी करके ससुराल में सेट हो गया। सातबे ने अपनी से दूनी उम्र की औरत से शादी की फिर तलाक भी हुआ ।आठवाँ भिखारियों के कम्बल छीन लेता और तब तक वापस नहीं करता जब तक भिखारी उसे पैसे नहीं देते है। स्मैक पीने के लिये । बह ऐसे धन उगाही करता है । ताऊ के कानों में बह पंक्ति आज भी गूंजती है तुम्हारा खून पीवें ।आज उनकी खंखार गले मे ही दम तोड़ देती है ।और हाँ अब वह क्लीन शेव रहने लगे हैं। डाॅ सन्ध्या तिवारी कबाड ****** "अरे वाह !आज बडे हैंडसम लग रहे हो। बडा सा तिलक मोटा सा कलावा पजामा कुर्ता ।क्या बात है , आज किस पर बिजली गिराने का इरादा है?" "तुम पर ।"अजय ने नीलम की आंखो में झांककर मुस्कुराते हुये कहा नीलम सकुचा कर खुद में सिमट गई "अरी बुद्धू , आज दशहरा है न, घर में पूजा थी।" दोनो पिछले छःह महीने से शहर के बाहर बनी नसीम कबाडिया की दुकान में बने एक कमरे में मिला करते थे अजय ने उसे बताया था की उस दुकान का मालिक नसीम उसका दोस्त है और उसका छोटा भाई नसीर दुकान पर बैठता है ।एक बार नीलम ने बातों ही बातों में अजय से पूछा था कि उसकी दोस्ती मुस्लमानो से ज्यादा क्यों है? तो अजय ने हँस कर बात आई गयी कर दी। आज भी वहीं बैठे ठंडा पीते पीते दोनो बातें कर रहे थे लेकिन नीलम का सर अचानक घूमने लगा और वह बेहोश होती चली गयी । जब बेहोशी टूटी तो उसके कपडे और अजय के हाथ का कलावा जमीन पर धूल फांक रहा था ।अजय के माथे पर तिलक की जगह जालीदार टोपी थी , और दोस्त नसीर उसे नसीम बुला रहा था।दोनो के मिले-जुले अट्टहास ने उसका खून जमा दिया । वह समझ चुकी थी ,कि नसीम ने विजयदशमी मना ली , नीलम को कबाड बनाकर। डाॅ सन्ध्या तिवारी हूक **** बहू शालू ने पानी का ग्लास हाथ में पकडाते हुये पूछा "मांजी इतनी सर्दी में बर्फ का पानी ??" "हूं ऽऽऽऽ ! बस ऐसे ही ।" "मां पिछले कई सालों से प्रायः बर्फ का पानी पीती है। " इति के छोटे बेटे प्रियम ने अपनी नवोढा पत्नी शालू को बताया "मां पेट मे बहुत जलन पड रही है ।मुझे बचा लो। मै आपसे बहुत प्यार करता हूं। आपने कहा अगर मैं सोनिया से शादी करूंगा तो आप जान दे देंगी। लीजिये मैं ही जान दे रहा हूं । आप और आपकी इज्जत सदा बनी रहे ।बर्फ का ठंडा पानी पिला दो ।बहुत जलन पड़ रही है। आपको मेरी कसम माँ।" इति हड़बड़ा कर उठ बैठी।जैसे उसे चाबुक पड़ा हो, और किसी ने उसका मुंह भींच दिया हो ।गूं गूं की घुटी हुई आवाज के साथ रात के अन्धेरे में आँखे फाड़े कुछ खोजती हुई सी बर्फ का पानी पीकर जैसे अपने बड़े लाड़ले की अतृप्त आत्मा को जलदान कर रही हो। डाॅ सन्ध्या तिवारी सेरोगेसी ********* "क्या लिख रही हो मां। " " एक कहानी ।" आंखो की ऐनक ठीक करते हुये बिना नजरे उठाये वत्सला ने जबाब दिया। " कहां से लाती हो इतनी कहानियां।" " सेरोगेसी करती हूं।" " मतलब" वत्सला हौले से मुस्काई फिर बोली ; " एक रचनाकार कई मायनों में सेरोगेट मदर ही तो है। बेटा।" डाॅ सन्ध्या तिवारी Download Our App