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पात कथा

1 . पात कथा

भोर का समय था । रघू ने पशुओं को दाना पानी देकर राहत की सांस ली । अब उसने एक चिलम भरी और हुक्का गड़ गड़ाने लगा । रघू को अपने पशुओं और कुत्ते से बड़ा लगाव था । उसे हमेशा अपने खाने पीने से पहले उनके खाने पीने की चिंता रहती थी । रघू को इस प्यार के बदले जो प्यार मिलता था वो रघू तो क्या और देखने वालों का भी दिल खुश कर देता । रघू इसी पशु प्रेम के चलते आस पास भी पहचान पाता था । रघू सुबह नाश्ते में चार रोटी और एक बड़ा लौटा मट्ठा मंगाता था जिसमें से वो दो रोटीयाँ अपने बैलों की जोड़ी को देता और एक रोटी और आधा मट्ठा अपने कुत्ते पात को देता था । बाकी बचा आधा मट्ठा और एक रोटी स्वयं खाता था । आज भी उसने ऐसा ही किया । और खेतों की गुड़ाई के लिए हऴ तैय्यार कर दिया । लेकिन आज पात कुछ अजीब सा व्यवहार कर रहा था । जो पात रोज हऴ तैय्यार होते ही आगे आगे कूद फांद करने लगता था । वो आज बैठा बैठा चाऊं चाऊं कर रहा था । रघू के दो बार पुकारने पर उसने सुना । रघू को भी अजीब लगा । जो पात उसके एक आवाज देते ही दौड़ कर आता था आज सुन भी नही रहा । रघू ने प्यार से पात के ऊपर हाथ फेरा । पात ने भी स्नेह का प्रदर्शन किया । रघू को जब यकीन हो गया कि पात ठीक है तो उसने हल जोड़ा। लेकिन आज बैल भी उस उत्साह से नही चल रहे थे। लेकिन रघू उन्हें हांकता हुआ जंगल पहुंच गया वंहा जाकर उसने खेत जोतना शुरू कर दिया । पात वंही आस पास टहल रहा था। जैसे कुछ खोज रहा हो। रघू हल जोतने मे व्यस्त था। कुछ समय जोतने के पश्चात रघू ने बैलों को आराम कराने के उद्देश्य से हल को रोक दिया । बैलों को पेड़ की छांव में रोक कर रघू भी छांव में आराम करने लगा । पात भी आकर रघू के पास बैठ गया। रघू कुछ सोचते सोचते न जाने कहां खो गया । कुछ देर बाद पात के भौंकने की आवाज सुन कर उसकी तंद्रा टूटी तो उसने देखा कि एक काला नाग फन फैलाए खड़ा था और पात उसका रास्ता रोके खड़ा था । रघू को ऐसा लगा जैसे पात , नाग और उसके बीच नही बल्की उसके और मौत के बीच खड़ा है । रघू ने जल्दी से एक ड़ंड़ा उठा कर नाग पर ताबड़तोड़ वार शूरू कर दिए । रघू मन ही मन पात का शुक्रगुजार था । फिर रघू से खेत पर ना रुका गया । वो हल लेकर घर आ गया । बैलों के कांधे से जूआ उतार कर उन्हें चारा दिया । अपने हाथ पैर धोकर अपने लिए एक चिलम भर कर हुक्का गड़ गड़ाने लगा । उसके मन में बार बार खेत का मंजर घूम रहा था । अब उसका ध्यान पात के शुबह से अब तक के व्यवहार पर गया और रघू को एक पल में सब कुछ समझ में आ गया । उसने उठ कर पात को गोद में भर लिया ।

2 .... एक था तोता

प्राईमरी कक्षा का वाक्या है । रोज की ही तरह में नहा धोकर, तैयार हो कर स्कूल पहुंचा । शुबह की प्रार्थना करने के बाद अपने घर से लाए कट्टों (बोरों) को बिछा कर हम बैठ गये । हमारी कक्षा में लगभग 30 बच्चे थे । अनुपस्थित बच्चों की संख्या कम ही रहती थी। उस शुबह भी 27 – 28 बच्चों की कक्षा लगी थी। हमारे कक्षा अध्यापक जी कक्षा में आए । उपस्थिती दर्ज करके कक्षा शुरु की। शुरुआत हिन्दी से होती थी तो हम सब ने हिन्दी की किताब निकाल कर पाठ दोहराया। हमने वो पाठ किसी तोते की तरह रट लिया था। इसलिए जब गुरु जी ने पूछा कि क्या सुन लिया जाए,,, तो पूरी कक्षा ने एक स्वर में कहा – जी गुरु जी ।

क्योंकि पूरी कक्षा को वो पाठ रटा पड़ा था। लेकिन जब गुरु जी ने सुनना शुरु किया तो सारा का सारा सीन ही बदल गया । मेरे हिसाब से सब सही सुना रहे थे लेकिन गुरु जी एक - एक करके सबको खड़ा कर रहे थे । किसी की कुछ समझ में नही आ रहा था कि माजरा क्या है। धीरे धीरे गुरु जी मेरे पास पहुंचे । मैंने भी तेज तेज पढ़ना शुरु किया –

एक तोता था ।

वो एक पेड़ की ऊंची साख पर रहता था ।

बस खड़े हो जाओ - गुरु जी ने टोका ।

गुरु जी अगले बच्चे से सुनने लगे ।

मैं फिर से धोहराने लगा ।

कोई गलती नजर नही आई ।

गुरु जी ने एक एक कर सब पर ड़ंडा फेरना चालू कर दिया । हमारा भी नंबर आ गया हमने एक और प्रयत्न किया ।

गुरु जी एक बार और सुनना चाहता हूं ।

गुरु जी ने हां कर दी –

मैंने फिर तेज तेज पढ़ना शुरु किया –

एक तोता था ।

गुरु जी ने इस बार बिना टोके हाथ पकड़ कर 2 – 3 डंड़े जमाए ।

मुझे कुछ समझ नही आया ।

पूरी कक्षा की धुनाई हुई । सब एक दूसरे का मुह ताक रहे थे ।

समझ किसी को कुछ नही आ रहा था कि गलती हो कहां रही है ।

कुछ समय बाद गुरु जी ने एक बार फिर पूछा कि क्या सुन लिया जाए ?

लेकिन इस बार किसी की हिम्मत हां कहने की ना हुई । सब मौन साधे खड़े थे ।

गुरु जी ने एक बार फिर पूछा कि क्या सुन लिया जाए ?

इस बार हिम्मत करके हमने कहा - गुरु जी एक बार फिर से पढ़ा दो ।

गुरु जी ने कहा ठीक है मैं पढ़ाता हूं ध्यान से सुनों – एक था तोता ।

वो एक पेड़ की ऊंची साख पर रहता था ।

. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . इस तरह मीठू ने अपने प्राणों की रक्षा की ।

गुरु जी ने पूछा – समझ आया ?

हमने कहा जी गुरु जी ।

क्या ?

एक था तोता ।

कुछ अब भी नही समझे ???