Bichhuda pyar in Hindi Short Stories by Ved Prakash Tyagi books and stories PDF | बिछुड़ा प्यार

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बिछुड़ा प्यार

बिछुड़ा प्यार

आज प्रीति राहुल को अपने घरवालों से मिलवाने लायी थी, प्रीति और राहुल एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे और शादी करना चाहते थे। घर पहुँच कर प्रीति ने राहुल का परिचय अपने पिता व भाई से करवाया तो प्रीति के भाई ने कहा, “प्रीति तुम जाओ, हम राहुल से अकेले में बात करेंगे।” प्रीति के कमरे से निकलते ही उसके भाई ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और राहुल के मुंह पर एक जोरदार थप्पड़ मारा। पापा ने उसका कॉलर पकड़ कर सोफ़े से घसीट कर नीचे गिरा दिया एवं ताबड़तोड़ लाठी बरसाने लगे। भाई ने राहुल का मुँह बंद करके उसको चिल्लाने भी नहीं दिया और चेतावनी देते हुए कहा, “अगर प्रीति से मिलने की कोशिश भी की तो तेरे पूरे खानदान को मिटा देंगे इसलिए तेरी और तेरे परिवार की भलाई इसी में है कि तू प्रीति से दूर रहना।”

हरियाणा के हिसार में रहने वाली प्रीति ने अपने घर वालों की इजाजत के बिना राहुल से प्यार किया था जो उसके घर वालों की बर्दाश्त से बाहर था, उनके लिए तो समाज मे इज्जत ही सबसे बड़ी बात थी। यह बात प्रीति को उसके बाप और भाई ने समझा भी दी थी, “इज्जत के लिए अगर तुझे मारना भी पड़ा तो प्रीति हम तुझे मारने में एक मिनट भी नहीं लगाएंगे और हाँ उस राहुल को तो परिवार सहित इस दुनिया से ही विदा कर देंगे।” प्रीति का घर से निकलना बंद कर दिया गया और जल्दी में ही उसकी शादी सुमेर से कर दी गयी। सुमेर वैसे तो बड़े घर का सरकारी नौकरी में लगा हुआ लड़का था लेकिन ऐसी कोई बुरी आदत नहीं थी जो उसमे न हो। कल ही शादी हुई थी और आज सुमेर शराब के नशे में आधी रात के बाद घर आया था, प्रीति ने बस इतना ही पूछा था, “खाना लगा दूँ जी?” इतनी सी बात पर सुमेर ने बेल्ट निकाल कर प्रीति को पीट पीट कर अधमरा कर दिया एवं घर से बाहर निकाल दिया। कड़ाके की सर्दी की वह रात उसने घर के दरवाजे पर बैठ कर ही काटी थी। ऐसा प्रीति के साथ हर दिन हो रहा था लेकिन इसका जिक्र उसने किसी से नहीं किया क्योंकि कोई भी उसकी व्यथा सुनने वाला नहीं था और प्रीति चुपचाप सब सहती रही।

राहुल हिसार विश्वविद्यालय में विभाग अधिकारी के पद पर कार्यरत उच्च कुल का सुंदर एवं सुलझा हुआ लड़का था लेकिन उसकी गलती यही थी कि उसने प्रीति से बहुत प्यार किया था और अभी भी करता था। जब भी वह प्रीति की ऐसी हालत के बारे में सुनता था अंदर ही अंदर बहुत दुखी हो जाया करता था। माँ जब भी राहुल से शादी के लिए कहती तो वह बात टाल दिया करता था।

सुमेर हरियाणा सरकार में नौकरी करता था, अच्छी तंख्वाह थी और अलग से भी आमदनी थी जिसका परिणाम उसकी बुरी आदतें हो गयी। शराब पी पी कर सुमेर ने अपना लिवर खराब कर लिया था और हालत इतने बिगड़ गए थे कि डॉ ने लिवर बदलवाने ले लिए कह दिया। प्रीति की ऐसी हालत मे उसके घर वालों ने भी किनारा कर लिया था। सुमेर के घर वालों ने तो पहले ही उसकी आदतों के कारण उसको अलग किया हुआ था, यहाँ तक कि कोई पूछने भी नहीं आता था। राहुल को जब पता चला तो वह प्रीति के पति सुमेर को लेकर दिल्ली आ गया जहां पर एक बड़े प्राइवेट अस्पताल मे उसको भर्ती करवा दिया। डॉ ने तीस लाख रुपए इलाज का खर्चा बताया एवं लिवर देने के लिए किसी दानदाता की भी जरूरत थी। प्रीति ने अपना लिवर देने के लिए डॉ से कहा लेकिन उसका ब्लड ग्रुप ही नहीं मिला, राहुल ने भी चेक करवाया तो उसका ब्लड ग्रुप मिल गया। राहुल ने पहले ही तीस लाख रुपए का प्रबंध करके प्रीति को दे दिये एवं स्वयं सुमेर के साथ ऑपरेशन थिएटर में चला गया। दोनों का ऑपरेशन साथ-साथ ही हुआ, राहुल के लिवर का एक हिस्सा निकाल कर सुमेर को लगा दिया गया। दोनों ही स्वस्थ होकर हिसार वापस आ गए। अब सुमेर खुद को बिल्कुल ठीक महसूस करता था, प्रीति ने एक सुंदर लड़के को भी जन्म दिया तो सुमेर की खुशी का ठिकाना न रहा बस फिर क्या था, वह दोबारा दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पीने लगा। इस बार उसको राहुल और प्रीति भी नहीं बचा सके और एक दिन सुमेर प्रीति को एक छोटे बच्चे के साथ अकेले छोड़ कर इस संसार से चला गया।

प्रीति को अपने पति सुमेर की जगह वहीं हिसार में कचहरी में क्लर्क की नौकरी मिल गयी। धीरे-धीरे समय गुजरता गया और प्रीति का बेटा भी बड़ा हो गया। राहुल और प्रीति भी पचास पार कर चुके थे लेकिन इस बीच में उनकी आपस में मुलाकात कभी नहीं हुई। राहुल ने सुमेर के इलाज के लिए अपना घर गिरवी रख कर पैसा उधार लिया था, कर्ज़ चुका देने के बाद वह अपनी रजिस्ट्री वापस लेने कचहरी आया था, सामने प्रीति को सफ़ेद साड़ी में देखा तो उसे बड़ा दुख हुआ। प्रीति ने भरी आँखों और रुँधे गले से राहुल को सब बताया। शाम को राहुल अपनी माँ को लेकर प्रीति के घर गया, वहीं पर पहली बार प्रीति के बेटे से भी मिलना था। राहुल की माँ ने प्रीति से बात की एवं बताया कि राहुल ने अभी तक शादी नहीं की, अब मैं चाहती हूँ कि तुम दोनों शादी कर लो। तभी प्रीति का बेटा यशवर्धन भी आ गया, यशवर्धन ने जब राहुल को अपने घर में देखा तो उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। यशवर्धन ने आगे बढ़कर राहुल और उसकी माँ के पैर छूये और पूछा, “सर, आप हमारे घर कैसे?” तब तो राहुल इतना ही बता पाया कि हम तुम्हारी माँ से मिलने आए हैं। प्रीति यह सब देखकर हैरान थी, प्रीति ने अपनी हैरानी दूर करने के लिए यशवर्धन से पूछा कि क्या तुम एक दूसरे को जानते हो। यशवर्धन ने बताया कि हाँ माँ, ये मेरे सबसे अच्छे सबसे प्यारे सर हैं इनके मार्गदर्शन से ही मैं पी.एच.डी. कर सका हूँ और इनके ही अनुमोदन पर मुझे विश्वविध्यालय में प्रवक्ता बनाया गया है, माँ ये तो मेरे पिता समान हैं। राहुल ने कहा कि यह सब तो यशवर्धन के स्वयं के गुणों और कड़े परिश्रम से ही संभव हुआ है। राहुल के जाने के बाद प्रीति ने यशवर्धन को राहुल के बारे में सब बताया, “”हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे, शादी करना चाहते थे, लेकिन मेरे पिता व भाई ने राहुल को मारा और मेरी शादी सुमेर से कर दी। जब सुमेर का लिवर बदला जाना था तब राहुल ने ही अपना लिवर दान दिया था एवं अपना घर गिरवी रख कर 30 लाख रुपए का भी इंतजाम किया था जो तेरे पिता के इलाज़ मे लगे थे। आज राहुल कचहरी अपना मकान छुड़ाने आया था तो मुझसे मुलाक़ात हो गयी, मेरे बारे मे जानकर ही अपनी माँ को लेकर हमारे घर आया था। और हाँ बेटा, राहुल ने आज तक शादी भी नहीं की। यशवर्धन बोला, “हाँ माँ, यह तो मैं भी जानता हूँ कि राहुल सर किसी से प्यार करते थे, उसकी कहीं और शादी हो गयी तो सर ने आज तक शादी नहीं की, लेकिन इस बात का तो मुझे आज ही पता चला कि राहुल सर जिससे प्यार करते थे वह आप ही हैं।”

यशवर्धन कह रहा था और प्रीति सुन रही थी, उसको इस तरह सुनना अच्छा लग रहा था। यशवर्धन बोला, “माँ एक बात कहूँ, अब आप दोनों शादी कर लो, आप दोनों ने अपना प्यार पाने को कितने कष्ट सहे हैं, अब अगर आप दोनों एक दूसरे को वह सब दे सको जो पीछे छूट गया है तो मुझे बड़ी खुशी होगी।” बेटे के मुँह से यह बात सुनकर प्रीति की यह चिंता तो दूर हो गयी कि उनकी शादी के लिए बेटा राजी होगा या नहीं। प्रीति ने यशवर्धन से कहा, “हाँ बेटा, आज राहुल और उसकी माँ मेरे पास यही प्रस्ताव लेकर आए थे, लेकिन मैंने तुम्हारी वजह से कभी नहीं सोचा कि मैं दूसरी शादी करूँ।” यशवर्धन ने तब एक ही बात काही, “माँ यह आपकी दूसरी नहीं पहली ही शादी है यह शादी जो दो आत्माओं का मिलन होगा, पहले तो वह एक समझौता था जो आपको एक कीमत के रूप में चुकाना पड़ा, कीमत एक झूठी परंपरा की, कीमत अपने बाप भाई के झूठे अभिमान की।’’ यशवर्धन ने राहुल के घर जाकर राहुल की माँ के पैर छूकर कहा, “दादी मैं स्वयं को धन्य समझूँगा अगर राहुल सर मेरे पिता बनना स्वीकार करेंगे।” राहुल ने यशवर्धन को दोनों बाहों मे लेकर उसको पुत्र रूप में स्वीकार करते हुए उसका माथा चूमा और कहा, “बेटा, तेरे जैसा बेटा पाकर मैं भी धन्य हो जाऊंगा, जो हमे हमारे बिछुड़े प्यार से मिलाने आया है।”