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छलावा

छलावा

स्नातक तक पढ़ाई करने के बाद जब कहीं कोई नौकरी नही मिली तब पड़ोसी चाचा ने अपने मालिक से कहकर प्रेम को कश्मीरी गेट की एक स्पेयर पार्ट्स की दुकान पर लगवा दिया....

लंबे-तगड़े, गोरे-चिट्टे जवान प्रेम को देखकर अक्सर लोग धोखा खा जाते और उसको ही मालिक समझ बैठते, अच्छे कपड़े व्यवस्थित ढंग से कपड़े पहनना उसका शौक था।

मंगोलपुरी से कश्मीरी गेट मेट्रो से ही आना जाना होता था, मंगोलपुरी में पच्चीस गज में बनाए हुए घर में अपने पिता व माँ के साथ ही रहता, बड़ी बहन की शादी हो गयी थी अतः वह कभी कभी आती थी।

प्रेम का व्यक्तित्व बरबस ही किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने वाला था। जूली भी मेट्रो से ही आया जाया करती थी एवं कनखियों से प्रेम को देखा करती, लेकिन कुछ बोलती नहीं थी।

उस दिन जूली भी प्रेम के पीछे पीछे ही कश्मीरी गेट से मेट्रो के उसी डब्बे में चढ़ गयी, सामने सीट खाली थी लेकिन वह बैठी नहीं, प्रेम एक खाली सीट पर जाकर बैठ गया, मेट्रो कश्मीरी गेट से रोहिणी की तरफ बढ्ने लगी, सभी सीटें भर गयी थीं अतः जूली ठीक प्रेम के सामने जाकर खड़ी हो गयी, मेट्रो के चलने से जैसे ही झटका लगा जूली जान बूझ कर प्रेम के ऊपर गिर गयी और फिर सौरी कहते हुए उठने की कोशिश करने लगी।

प्रेम ने सहारा देकर जूली को उठाया और अपनी जगह सीट पर बैठाकर स्वयं खड़ा हो गया, जूली ने थैंक यू बोला और जान बूझ कर अपने मोबाइल पर निगाह गड़ा कर बैठ गई। शास्त्री नगर पर जूली के बराबर वाली सीट खाली हुई तो उसने प्रेम से बैठ जाने का आग्रह किया।

“आप तो रोहिणी तक जाते हैं, क्या वही कहीं रहते हैं? मैं तो वहीं पास में सैक्टर 9 की सोसाइटी में रहती हूँ।” जूली ने बात शुरू किया ....

जूली सुंदर, जवान, आकर्षक और फर्राटेदार अँग्रेजी बोलने वाली लड़की थी, उसके सामने प्रेम को यह बताने में शर्म आ रही थी कि वह मंगोलपुरी की जे जे कॉलोनी में रहता है, अतः प्रेम ने बोल दिया “हाँ, यहाँ सैक्टर 7 में 60 मीटर वाले प्लॉट में तीन मंज़िला अपना ही घर है।”

तब तक रोहिणी स्टेशन आ गया दोनों एक साथ उतरे और एक साथ ही बाहर निकले....

“आपने कभी यहाँ पर बनवारी के गोलगप्पे खाये हैं?” जूली ने पूछा....

“नहीं, मैंने नहीं खाये।” प्रेम ने जवाब दिया...

“अच्छा चलो, आज आपको बनवारी के गोलगप्पे खिलाती हूँ।” जूली ने प्रेम को आमंत्रित किया...

“नहीं, किसी और दिन, आज मैं थोड़ा जल्दी में हूँ।” प्रेम बोला.....

प्रेम की बात सुनकर जूली थोड़ा परेशान हो गयी और कहने लगी, “ज्यादा देर नहीं लगेगी, बस पाँच मिनट में आप फ्री हो जाओगे, आओ तो सही।”

चाह तो प्रेम भी रहा था लेकिन थोड़ा हिचक रहा था अतः जूली का आग्रह स्वीकार कर लिया और दोनों ने बनवारी के गोलगप्पे, भल्ला पपड़ी, टिक्की सब ही खाया। पैसे देने के लिए प्रेम ने अपनी जेब में हाथ डाला, शायद उसकी जेब में उतने पैसे न हों अतः वह पैसे निकाल कर देखने लगा एवं बनवारी ने पूछा, “कितना हुआ?” बनवारी ने बताया साठ रुपया....

जूली ने अपना पर्स खोल कर पाँच सौ का नोट निकाला और बोली, “नहीं नहीं, आप पैसे क्यों देंगे, यहाँ पर आपको लायी तो मैं हूँ अतः भुगतान भी मैं ही करूंगी,” और पाँच सौ का नोट बनवारी की तरफ बढ़ा दिया लेकिन तब तक प्रेम उसको साठ रुपए दे चुका था, एक पचास का नोट और एक दस का नोट, जूली ने पाँच सौ का नोट पर्स में रख लिया।

जूली बोली, “यह आपने ठीक नहीं किया, अगर मैं खिलाने लायी थी तो भुगतान की जिम्मेंदरी भी मेरी ही थी, आपने पैसे क्यों दिये, मैं आपसे नाराज हूँ,” और बनावटी नाराजगी दिखा कर मुंह फेर कर जाने लगी ....

“नहीं, नहीं ऐसा कुछ नहीं, हम दोनों में कोई फर्क है क्या?” और जूली की नाराजगी दूर करने के लिए प्रेम ने जूली को पकड़कर रोकना चाहा तो वह अचानक ही प्रेम के ऊपर झुक गयी।

प्रेम के पूरे शरीर में करंट सा दौड़ गया और अनायास ही उसने जूली को कस कर बाहों में भर लिया। तभी जूली छिटकते हुए उसके आगोश से अलग हुई और बोली, “यहाँ सब देख रहे होंगे, क्या कहेंगे, हाँ अगर आप चाहे तो हम थोड़ी देर जापानी पार्क में चल कर बैठ सकते हैं।”

अब तक प्रेम के ऊपर प्रेम का रंग पूरा चढ़ चुका था और वह जूली को ना नहीं कर सका, दोनों जाकर जापानी पार्क में बैठ गए।

अंधेरा घिरने लगा, पुर्णिमा की रात में चाँद पूरी तरह चमक रहा था, आसमान साफ था, पूरे पार्क में चाँदनी बिखरी हुई थी, वहाँ एक खाली बेंच पर दोनों जाकर बैठ गए।

“अभी तक हमने एक दूसरे का नाम नहीं पूछा।” जूली बोली...

“हाँ, मेरा नाम प्रेम है और आपका?” प्रेम ने अपना नाम बताकर उसका नाम पूछा...

“मेरा नाम जूली है और ये क्या आप आप लगा रखी है, आप मुझे तुम कहोगे,” जूली ने जवाब दिया...

“अच्छा तो हम दोनों ही एक दूसरे को तुम बोलेंगे,” प्रेम ने सुझाव दिया.....

जूली ने हाँ में हाँ मिलाई, फिर दोनों एक दूसरे को बाहों में भरकर घंटो बैठे रहे.....

“जाने का मन तो नहीं है लेकिन जाना तो पड़ेगा,” जूली बोली... दोनों ही भारी मन से एक दूसरे से जुदा होकर भारी पैरों से अपने अपने घर की तरफ चल दिये...… प्रेम के पास तो वही साठ रुपए थे, दस रुपए रिक्शा के लिए और पचास रुपए दूध के लिए। घर तो पैदल ही चला गया लेकिन दूध कैसे लेगा यह सोचते सोचते वह दुकान पर पहुंचा....

“काका मैं दूध के पैसे कल दे दूंगा,” प्रेम ने दुकानदार से दूध लेकर कहा तो दुकानदार ने हाँ में सिर हिलाकर सहमती दे दी।

प्रेम दूध लेकर घर पहुंचा तो काफी लेट हो चुका था, माँ के पूछने पर उसने बताया कि दुकान देर तक खुली थी और शायद अब देर तक ही खुला करेगी.....

आज प्रेम को नींद नहीं आ रही थी, जरा सा नींद का झोंका आता और जूली आकार उसके सपने में खड़ी हो जाती, फिर नींद खुल जाती और वह सोचने लगता।

प्रेम के मन में प्रेम के बहुत सारे अंकुर प्रस्फुटित हो रहे थे, धीरे धीरे वो सब बेल में परिवर्तित हो गए जिन पर बहुत सारे रंग बिरंगे फूल लगे थे.....

अचानक सारे फूल झड गए और बेल सूखने लगी, प्रेम की आँख खुली तो वह पसीना पसीना हो गया। बिस्तर से उठकर थोड़ा टहला और फिर सो गया।

दोनों में प्रेम की पींगे बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही थी कि एक दिन जूली बोली, “प्रेम, मुझे थोड़ी सी शॉपिंग करनी है, करवाओगे?”

“हाँ, क्यों नहीं, लेकिन कितनी तक होगी?,” प्रेम ने पूछ लिया....

“यही कोई चालीस पचास हजार तक की” जूली बोली....

“अरे! इतने पैसे तो मेरे पास नहीं हैं, दो चार हजार तक कहो तो करवा सकता हूँ।” प्रेम ने समझाया....

“तुम अपनी माँ का कोई गहना निकाल कर बेच दो” जूली ने सुझाया.....

“नहीं, नहीं मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकता,” प्रेम ने जवाब दिया...

“किसी से उधार ले लो, बाद में देते रहना,” जूली ने समझाया....

“लेकिन मैं दूंगा कहाँ से? वेतन तो मैं पूरा का पूरा माँ को दे देता हूँ और इतना ज्यादा वेतन मेरा है भी नहीं।” प्रेम बोला।

“तो क्या तुम उस दुकान के मालिक नहीं हो, वहाँ नौकरी करते हो?” जूली ने पूछा....

“मैं नौकरी करता हूँ, मुझे मुश्किल से पंद्रह हजार वेतन मिलता है, जिसमे हमारा घर खर्च बड़ी मुश्किल से चल पाता है, मम्मी पापा बूढ़े हैं और मैं अकेला ही कमाने वाला हूँ।”

“प्रेम! जब तुम्हारे पास पैसे नहीं थे तो तुम्हें मेरे जैसी खूबसूरत, फैशनेबल लड़की से मित्रता नहीं करनी चाहिए थी, अब अगर तुम पैसे का प्रबंध करो तो कल हम मिलें नहीं तो हमारी मित्रता यहीं समाप्त हो जाएगी, कभी भी मुझे याद मत करना और न ही मिलने की कोशिश करना,” इतना कहकर जूली चली गयी और प्रेम अपने प्रेम को इस तरह जाते देखता रहा।

वास्तव में प्रेम समझा ही नहीं, जूली का प्रेम एक छलावा मात्र था जो प्रेम को छल कर जा चुका था। इतना ही नहीं अगले दिन जूली प्रेम के सामने से ही एक रईसजादे की चमचमाती बड़ी सी कार में बैठकर चली गयी।

प्रेम जूली की इस बेवफ़ाई से काफी दुखी था और परेशान भी, लेकिन उसने जूली को सबक सिखाने की योजना बनाई और वह उन दोनों का पीछा करने लगा। एक दिन मौका देख कर प्रेम ने उस रईसजादे के बैग से एक लाख रुपए चुरा लिए। रईसजादे ने जब देखा कि उसके बैग में रुपए नहीं हैं तो उसने जूली पर आरोप लगाया। जूली को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था और वह बार बार यही कहती रही कि उसने चोरी नहीं की है तो रईसजादे ने उसका पर्स चेक कर लिया, जूली के पर्स से वही एक लाख रुपए की गड्डी मिल गयी।

गड्डी जूली के पर्स में मिलने पर रईसजादे का क्रोध उच्चस्तर पर था और उसने जूली को बेज्जत करके वहाँ से भगा दिया, प्रेम को जब इस बात का पता चला तो उसे बड़ी मानसिक शांति मिली।

प्रेम ने अपना बदला लेने के लिए चोरी की थी और वह अपनी इस सफलता पर खुश तो था ही उसका आत्मविश्वास भी बहुत बढ़ गया था। अब प्रेम ने छोटी छोटी चोरियाँ करनी शुरू कर दीं और पकड़ा भी नहीं गया और वह आगे बढ़ता गया। अब प्रेम के पास काफी पैसा हो गया था, उसने एक फ्लैट भी खरीद लिया, तभी उसका संपर्क रूबी से हुआ, रूबी उसकी एक अच्छी महिला मित्र बन गयी और उसने रूबी को रहने के लिए अपना फ्लैट दे दिया।

अब प्रेम का आत्मविश्वास इतना बढ़ गया था कि वह बड़ी बड़ी चोरियाँ करने लगा, इस तरह प्रेम के पास बहुत धन हो गया था और उसने और भी कई फ्लैट भी खरीद लिए।

रूबी के साथ प्रेम का रोमांस परवान चढ़ ही रहा था कि उसकी दोस्ती एक और लड़की मुन्नी से हो गयी, प्रेम मुन्नी पर पैसा लुटाने लगा और उसको भी एक और अलग फ्लैट में रख लिया।

प्रेम चोरी करने में इतना माहिर हो चुका था की कभी भी पकड़ा नहीं जाता था, इससे प्रेम का विश्वास बहुत बढ़ गया और वह चुन चुन कर उन अमीर घरों को निशाना बनाने लगा जहां कैमरे नहीं लगे होते थे, इसकी छान बीन वह पहले ही कर लेता था।

एक रात चोरी करके जैसे ही प्रेम बाहर निकला, पुलिस की नजर उस पर पड़ गयी और पुलिस ने संदिग्ध हालात में रात के समय वहाँ घूमने के कारण उसको रोक लिया, तभी शीला अपनी बड़ी सी कार लेकर पहुँच गयी और कहने लगी, “चालो बैठो गाड़ी में मैं कब से घर पर प्रतीक्षा कर रही थी और आप हैं पूरी पूरी रात पार्टी में ही नाचते रहते हैं।”

शीला ने इस ढंग से कहा कि पुलिस ने भी शीला की बात पर यकीन कर लिया और प्रेम को उसके साथ जाने दिया, प्रेम तब तो चुप रहा परंतु जब थोड़ी दूर निकल गया तब पूछने लगा, “आप हैं कौन? और मुझे पुलिस से क्यों बचाया?”

शीला बोली, “ठीक है चलो अभी पुलिस के हवाले कर देती हूँ।” “अच्छा तो मुझे यहीं उतार दो और आपका बहुत बहुत धन्यवाद,” प्रेम ने कहा। शीला बोली, “ओए धन्यवाद के बच्चे, चुपचाप गाड़ी में बैठा रह, नहीं तो पुलिस तुझे फिर धर लेगी। मैं पागल हूँ जो पिछले एक महीने से तेरा पीछा कर रही हूँ, अब चुपचाप मुझे अपने घर ले चल।”

प्रेम चक्कर में पड़ गया लेकिन उसके पास और कोई चारा नहीं था क्योंकि शीला उसकी पिछले एक महीने की सारी चोरियों के बारे में जानती थी जिनका सारा ब्योरा उसने प्रेम को दे दिया अतः वह शीला को नए फ्लैट में ले गया जहां उसके साथ उसने एक हफ्ता गुजारा और फिर निकल पड़ा और चोरी करने, क्योंकि तीन तीन गर्ल फ्रेंड का खर्चा भी तो उठाना था।

इस तरह वह चोरी करता रहा पुलिस से बचता रहा और धन कमाता रहा सारा धन अपनी महिला मित्रों पर लुटाता रहा, और नई गर्ल फ्रेंड भी बनाता रहा, उसकी दोस्ती दो और लड़कियों, मीना और रेखा से भी हो गयी उनको भी उसने अलग अलग फ्लैट में रखा हुआ था और उनके भी सभी तरह से खर्चे उठाने लगा। सबके साथ बारी बारी समय भी बिताता। खर्चे काफी बड़ गये तो चोरियाँ भी ज्यादा करनी पड़ रही थी, अब उसका आत्मविश्वास इतना बाढ़ गया कि उसको डर नहीं लगता था।

चोरी करने से पहले प्रेम पूरी छान बीन कर लेता था कि कहीं कोई कैमरा तो नहीं लगा और वह तभी आगे की कार्यवाही करता जब पूरी तरह संतुष्ट हो जाता कि वहाँ कैमरा नही लगा है तभी वहाँ चोरी करता।

उस दिन भी पूरी छान बीन की थी फिर भी उसका विडियो बन गया और पुलिस को मिल गया, पुलिस ने प्रेम को उसके फुटेज के आधार पर धर दबोचा और सभी चोरियों का राज उगलवा लिया, प्रेम की निशान देही पर उसके अपने फ्लैट की तलाशी ली तो उसके अपने फ्लैट में एक कमरा पूरी तरह नोटों और सोने चाँदी के गहनों से भरा हुआ मिला।

प्रेम ने पुलिस से पूछा, “जब वहाँ कैमरा था ही नहीं तो मेरी विडियो फुटेज कहाँ से आई?”

पुलिस ने बताया, “वहाँ जो बल्ब लगे थे, वे बल्ब नहीं थे कैमरे थे जो तुम्हें पता नहीं चला और धरे गए। तूने कहावतें सुनी होंगी बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी या सौ दिन चोर के एक दिन पुलिस का भी होता है। अब वह दिन आ गया जब तुम उम्र भर जेल में चक्की पीसोगे।”

सभी सबूतों के साथ पुलिस ने प्रेम को न्यायालय में पेश किया जहां उसने अपने ब्यान में बताया, “जज साहब, मैं एक सीधा सादा लड़का था, अगर जूली मेरे जीवन में ना आती तो मैं कभी भी चोर ना बनता, पैसे ना होने के कारण जूली मुझे छोड़ कर चली गयी जब कि मैंने तो उसको सच्चा प्यार किया था, जूली से धोखा खाने के बाद मैं चोरी से पैसे कमाता रहा और नई नई गर्ल फ्रेंड बनाता रहा, आज मेरी पाँच गर्ल फ्रेंड हैं जिन्हे मैंने पैसे के दम पर बनाया है। जूली से धोखा खाने के बाद मैंने तय कर लिया कि मैं इतना धन कमाऊँगा कि लड़कियां खुद मेरे पीछे दौड़ें।”

“जज साहब, ना तो जूली मुझे धोखा देती, ना मैं चोर बनता और ना ही नई नई लड़कियों से मित्रता करता, बस मैं वही सीधा सादा लड़का रहता जिसे उसके माँ बाप बहुत प्रेम करते थे और वही सब सच था, बाकी सब तो छलावा है जिसके पीछे मैं दौड़ता रहा।”

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