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वो लडक़ी - उस रात

मैं नई नौकरी के चक्कर में इस शहर में नया-नया ही शिफ्ट हुआ हूं। स्वाद के चक्कर में आज रात कुछ ज्यादा ही खा लिया,,, कल सुबह कहीं पेट खराब ना हो जाए इसलिए दवा लेने के लिए मेडिकल स्टोर चल पड़ा क्योंकि एडवांस में ही काम कर लेने की आदत है मुझे।
अजीब गली में मकान है मेरा, दिन में यहां जितनी चहल पहल और चकाचोंध रहती है तो रात को उतना ही घना सन्नाटा..... बस रह जाती है झपक झपक कर बंद हो जाने वाली ट्यूब लाइटें।
" भाई यहां कोई मेडिकल स्टोर आसपास है...??" मैंने जल्दी में दुकान बंद कर रहे दर्जी से पूछा।
"गली के खत्म होते ही बाईं तरफ है" ताला लगाते हुए उसने बिना देखे ही जवाब दिया।
और इतने में रोड लाइट फिर से आंख मिचोली कर गई।
" इस गली में तो यह रोज का काम है अब तो शिकायत करने पर भी लाइनमेंन नहीं आते हैं।" वह दर्जी धीरे-धीरे अपने आप बड़बड़ाने लगा।
गली के अंत में कोई जच्चा-बच्चा टाइप अस्पताल था। उसी में मेडिकल स्टोर मिला।
"ओ भाई ...!!ज्यादा खा लिया है ... कल कहीं पेट खराब ना हो जाए तो तू एडवांस में कोई दवाई दे दे।" मैंने मेडिकल वाले से जम्हाई लेते हुए कहा।
वह घुमा और एक सिरप लेके पलटकर बोला "सत्तर रुपये"

"हैप्पी बेबी !!!अरे भाई, यह बच्चों के पेट साफ करने की सिरप है ,मुझे क्यों दे रहा है ??" मैं उसकी दवा देखकर झल्ला उठा।
" बच्चे एक चम्मच लेते हैं तो आप दो-तीन ढक्कन ले लेना" बड़ी ही लापरवाही से उसने जवाब दिया।
" भाई दिमाग खराब है तेरा !!!कुछ 'लैक्टो बेसिलाई टाइप' की दवाई नहीं है??" मैंने मेडिकल के अंदर झांकते हुए पूछा।
उसने ऊपर के डिब्बे में से दो टैबलेट निकालकर काउंटर पर रख दी और बोला "5 रुपये"
मैंने चुपचाप ₹5 निकाल कर उसके हाथ पर रख दिए क्योंकि ज्ञान देने का कोई फायदा नहीं था और अपनी गली की तरफ चल पड़ा।
बमुश्किल 5--7 कदम चला होऊंगा कि मुझे अपने पीछे किसी की चलने की आवाज सुनाई दी मैंने ध्यान नहीं दिया क्योंकि अनजान शहर में कोई परिचित तो मिलने से रहा। कुछ कदम बाद आवाज और भी तेज हो गई और साथ ही एक मीठी सी आवाज भी सुनाई दी
"भैया"
मैं पीछे मुड़ा तो पास के घर की खिड़की के पर्दे में से छनकर आ रही रोशनी में से एक लड़की को आता पाया।

वह मेरे पास आकर खड़ी हो गई और बोली,," भैया !!क्या मैं कुछ दूर तक आपके साथ चल सकती हूं मुझे अंधेरे में अनकंफर्ट फील होता है" वह थोड़ी कांपती सी बोली।

"हां बेटा sure " आदतन मैंने बोल दिया ।कोई धर्मात्मा या वृद्ध नहीं हूं मैं,, मैं भी मौके पर चौका लगाने वाले लड़कों में से हूं , पर गर्ल्स कॉलेज में पिछले 2 साल से पढ़ा रहा हूं तो लड़कियों को 'बेटा' बोलने की आदत सी लग गई है।
मैं चल पड़ा और वह मेरी दाईं तरफ चलने लगी। ट्यूबलाइट अभी भी झपक रही थी पर वह 'भैया' बोल चुकी थी और मैं 'बेटा' तो झपकती रोशनी में उसकी शक्ल देखने की इच्छा भी नहीं हो रही थी।


"अंधेरे से अनकंफर्ट फील होता है या भूतों से??" मैंने पूछा
"कुत्तों से" वह थोड़ा जोर से बोली
" गली में कुत्ते कहां है ..." मैंने हाथ फेलाते हुए कहा।

" क्या पता कहीं हो"..वह थोड़ा थोड़ा खुल रही थी।

ऐसा अनकम्फर्ट तो भूत-------प्रेत------- दरिंदों -----शैतानों से होता है ...."मैंने थोड़ी आवाज बदलकर हॉरर एक्टिंग करने की कोशिश करते हुए कहा.।
वह दो कदम जल्दी चल कर मेरे सामने खड़ी हो गई और मुड़कर बोली "आप मुझे डरा रहे हो"
अचानक ट्यूबलाइट फिर झपकी और मुझे उसकी शक्ल दिखाई दी। वह सही में 'बेटा' कहने लायक थी। शायद वह 12 वीं या कोई मेडिकल अथवा इंजीनियरिंग कोचिंग की छात्रा थी। काफी मासूम थी।
" मैं हर रोज रात इस गली से आती जाती हूं और किसी से डरती नहीं हूं" अपने अंगूठों को कंधे पर टंगे बैग के डौरे में ऊपर नीचे करते हुए उसने आत्मविश्वास पूर्वक कहा।
"सॉरी बेटा !!मैं तो बस चेक कर रहा था कि तुम डरपोक हो या नहीं ,, मेरा तुम्हें डराने का कोई इरादा नहीं था... " इतना बोलने के साथ ही ट्यूबलाइट फिर से बुझ गई। खैर अच्छा हुआ , क्योंकि मैं जब भी लड़कियों को सॉरी बोलता हूं तो मेरी शक्ल और भी भाई साहब छाप हो जाती है।
"......... और मैंने सोचा कि अंधेरे में चुपचाप चलने से अच्छा है कि क्यों न बातें कर ली जाए।" मैंने थोड़ा रुक कर कहा।
" यह सही रहेगा" जब उसने यह गर्दन हिला कर कहा तो उसकी दोनों चोटिया हिली,, अब तो मुझे वो बिल्कुल बच्ची जैसी ही लगने लगी।
"इतनी रात गए कहां से आ रही हो" मैंने पूछा
तो वो बोली "कोचिंग से"।
" किस चीज की कोचिंग..?" मैं पूछता जा रहा था
"Neet की"... और वह बताती जा रही थी।
"तो डॉक्टर बनना 'सपना' है "..मैने चुटकी बजाते कहा
"हां" उसने फिर से उसी मासूमियत से बताया।

" कुछ 'सपने' सोने नहीं देते.." मैने कहा
उसने जवाब दिया
" क्योंकि उन्हें पूरा जो करना है .."
मैं निरुत्तर हो गया और चुपचाप चलने लगा। गली में अंधेरा और भी बढ़ गया था मैं एक दो कदम आगे आगे मोबाइल की रोशनी में चलने लग गया ताकि वह मेरे पीछे-पीछे आराम से चल सके ।
अचानक कुछ घसीटने और गूंगूँ करने की आवाज आई मैं तुरंत पीछे मुड़ा और बोला "तुम ठीक तो हो ना"
मैं बुरी तरह चोंक गया क्योंकि मेरे पीछे कोई नहीं था ...!!! मैं बोल पड़ा --""हेलो!!! कहां गई ......!! क्या नाम बताया था ...!! ...कहीं गिर गई हो क्या......!!.. कहां हो ....!!!! "" पर कोई जवाब नहीं।

कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए तो मैं गली में इधर उधर भाग कर चिल्ला उठा। "" हेलो...!! कहां गई...!! कहां हो..!!""
मैं बदहवास सा गली में इधर से उधर भाग रहा था । तभी गली में एक घर का दरवाजा खुला और एक आंटी बाहर आई और गुस्से में बोली "क्या हुआ ...! क्यों चिल्ला रहे हो??!! किसे ढूंढ रहे हो??!!"

आं....आं... आंटी!! व..वो एक लड़की जो अभी अभी मेरे साथ आ रही थी" मैं घबराहट के मारे हकला रहा था।

" कौन लड़की ....??कौन है वो तुम्हारी..! और कहां से आ रही थी ??..!" आंटी पूछ बैठी।
"वह किसी NEET की कोचिंग से आ रही थी,, मैं आज ही उससे पहली बार मिला था" मैंने बताया ।

"इतनी रात गए इस शहर में कोई कोचिंग नहीं लगती है,, पिछले साल ही ये रूल बन गया था......नशा करते हो क्या??!" वह घूरते हुए बोली।
"न... न ...नहीं आंटी" मैं लगभग कांपते हुए बोल रहा था।


" चुपचाप अपने घर चले जाओ.. इस गली में और भी लोग रहते हैं ....फिर शोर मचाया तो पुलिस को बुला लूंगी ..पता नहीं इतनी रात को क्या-क्या पी कर आ जाते हैं " वह दरवाजा बंद करते हुए बोली।

मैं निढाल सा पसीनो में लथपथ अपने कमरे की तरफ चल पड़ा , पर अचानक याद आया कि गली की दूसरी तरफ पुलिस चौकी है क्या पता कहीं उस बच्ची के साथ कुछ बुरा ना हो जाए और मैं यह सोचकर तेजी से पुलिस चौकी की तरफ भागा।
तभी एक लड़की की दर्दभरी चीज और धम्म की आवाज सुनाई दी। मैं जल्दी ही उस आवाज की तरफ भागा ।तभी मेरे पांव के नीचे कुछ टकराया "कुछ नरम सा" और मैं घुटनों के बल उस पर गिर पड़ा था।
अचानक अंधेरे में फिर से ट्यूबलाइट चमकी और मैं ठंडे पसीने में नहा उठा....

मेरे घुटनों के तले वही लड़की थी जिसके लिए मैं भाग रहा था पर उसके नाक ,मुंह ओर आंख से खून बह रहा था उसके होंठ कट चुके थे और होटों के अंदर से उसके दांत बाहर निकल रहे थे।
ट्यूबलाइट फिर बुझ गई। मैं अंधेरे में उसका खून से सना चेहरा अपनी गोद पर रखकर "हेल्प ....!!हेल्प....! बचाओ ....! ..बचाओ ....!!कोई मदद करो...!" चिल्लाया तभी ट्यूबलाइट फिर जल उठी और तब तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए ...मेरा खून जम सा गया ,,जब मैंने खून से सनी उसकी आंखें खुलते हुए देखी ...! और वह इतनी ख़ौफ़नाक ढंग से मुस्कुराई कि मेरा कलेजा हलक को आ गया।
"ओह नो.....!!!" बोलते हुए मैं उसका सिर जमीन पर जोर से पटक के जल्दी से पीछे हटा और फिर कुछ 'नरम सा' था जिससे मैं टकरा गया।

बाद में क्या हुआ, कैसे हुआ मैं कुछ नहीं जानता,, बस इतना जानता हूं कि मुझे उस आंटी के घर में होश आया जो मुझे डांट रही थी। वहां उस आंटी के अलावा एक अंकल , एक मेरे ही हमउम्र का लड़का और एक लड़की बैठी हुई थी।
"कहां रहते हो "...अंकल ने पूछा
" वह सरपंच जी के मकान में " मैंने धीरे से बताया 
"वह तीसरे नंबर वाला मकान..??" लड़के ने इशारा करते हुए कहा और मैंने गर्दन हिला दी..



"वह 2 साल पहले पास वाले मकान की छत से गिरकर मर गई "आंटी बड़े गंभीर भाव से बोली..
पर मैं तो शायद किसी और ही दुनिया में था और मैं हकलाते यह पूछने लग गया"म....म...मैं यहां कैसे आया..!"

" जब तुम हेल्प हेल्प चिल्ला रहे थे, तब मैं और मम्मी बाहर आए और तुम उल्टे दौड़ते हुए मम्मी से टकराकर बेहोश हो गए बाद में मैं और पापा तुम्हें यहां लेकर आए" वह लड़का बड़ी हैरानी से आंखें बड़ी बड़ी करते हुए बोला।

" वह लड़की क... क... कौन है उसे क्या हुआ?? क्या वह ठीक है ??"मैंने होश संभालते हुए पूछा।

" है नहीं थी ....!!2 साल पहले मेरे साथ NEET की कोचिंग के लिए जाती थी और फिर पिछले साल एक दिन उसने अपने हॉस्टल से कूदकर जान दे दी" वह लड़की रुआंसी होते हुए बोली।
"अब भी बहुत बार लोगो को सड़क पर बैग लेके घूमते हुए वो दिख जाती है।" अंकल ने कहा।

यह सुन कर मेरा चेहरा सफेद पड़ चुका था और मैंने धड़कनों को थाम कर पूछा--"क्यों!!"
" क्या मालूम..!" उस लड़की ने अपने दोनों होंठ आपस मे दबाते हुए कहा।
" ए जी ...!आप और बिट्टू इसे इसके मकान तक छोड़ आओ,, रात बहुत हो गई है ।"आंटी ने कहा और मैं रूम पर छुड़वा दिया गया। 
अब रूम पर बैठकर मैं इस रात की कहानी लिख रहा हूं और आने वाले कल की रात का इंतजार कर रहा हूं क्या मालूम वह मिल जाए और कम से कम इतना बता दे कि उसने मेरे साथ यह सब क्यों किया।

क्रमशः,,
            




प्रिय पाठकों??
                        ये तो शुरुआत है , ये कहानी ख़ौफ़ ओर दर्द की ऐसी दास्तान है जो भुलाए नही भूली जाएगी। अगर आप चाहते हैं कि मैं इस कहानी का अगला भाग लेकर आऊं तो जल्दी से इसे शेयर कर 500 पाठको तक पहुचाने में योगदान दे। 500 पाठक संख्या होने पर भाग 2 "पर्दा "   प्रकाशित किया जाएगा।
इस कहानी के कुल 14 भाग प्रकाशित होंगे। 

       आपका 

✍अंकित महर्षि