wo ladki - ghinn books and stories free download online pdf in Hindi

वो लडक़ी - घिन्न

पिछले भागों में आपने पढ़ा कि "उस रात" के बाद मेरी जिंदगी में छा गया ख़ौफ़ का "पर्दा"..ओर "बेपर्दा" हो गया "खोफ का राज" ओर इतिहास की एक घटना का हुआ "पर्दाफाश" अब आगे।




मुझे अपने सपने के अनुसार उस लड़की का सोमू नाम ही मालूम था दूसरे दिन इसी नाम से यज्ञ किया गया। यज्ञ के बाद मैं  और महंत जी उसे साफ तौर पे देख सकते थे पर अन्य लोगो से वो सम्पर्क मेरे माध्यम से ही कर सकती थी।
वो रंगोली जैसे मण्डप में बैठी थी।

महंत जी ने उस लड़की से कहा,"कुछ बताना चाहती थी तुम अंकित को,,,शायद इंसाफ के लिए भटक रही हो।हम तुम्हारी मदद करेंगे।जो भी बताना चाहो वो हमें बता सकती हो।"
उस लड़की की आंखों में कृतज्ञता के भाव थे।आंसू पौंछकर वो बोली।


समिधा..... समिधा नाम था मेरा...अपने मम्मी पापा की इकलौती बेटी।शायद उनकी किस्मत में एक मैं ही थी..... तभी तो कितने डॉक्टरों के पास जाकर भी मम्मी पापा दूसरी औलाद के लिए नाउम्मीद लोटे थे।पर दादी की जिद के कारण पापा की कमाई का एक हिस्सा डॉक्टरों के लिए रखा जाता।मैं भी उम्मीद में रहती थी ...क्या मालूम मेरी किस्मत में भी छोटे भाई बहन हो।
जब रक्षाबंधन पर पास पड़ोस के लड़के मुझसे राखी बंधवाने आ जाते तब तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहता।पूरे दिन दादी को ये कहती रहती कि दादी वो मेरा भाई है...छोटे बच्चे जब दीदी बोलते तो लगता कि दादी बेवजह परेशान हैं।सब तो है हमारे पास फिर क्यों वो मम्मी पापा को डॉक्टर के यहां भेजकर परेशान करती है।एक अच्छे गांव और पड़ोस में परवरिश होने के कारण दुनिया के खतरों से बिल्कुल अनजान थी मैं।
मेरी 12 वी का result आ गया। 92 % अंक बन रहे थे।पूरे गांव में इतने marks आज तक किसी के नहीं आये थे।बेहद खुश थी मैं गांव की poster girl बनकर ।
घर पे जो भी बधाई देने आता वो पापा से एक बात जरूर बोलता कि बच्ची को डॉक्टर बनाना है।
आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न होने के बाद भी पापा ने मेरे सपनों के लिए शहर की सबसे अच्छी कोचिंग में मेरा दाखिला करवाया।मैं कभी भी अकेली नही रही हुई थी इसलिए मेरे रहने की व्यवस्था मेरी मामीजी के पीहर करवाई गई।मामीजी के मम्मी पापा काफी अच्छे थे। मामीजी की छोटी बहन रेखा मेरे साथ ही कोचिंग में पढ़ती थी।हमारी अच्छी दोस्ती हो भी गई।
मामीजी के भाई बिट्टू ...यानी कि विनीत का व्यवहार काफी अजीब लगता था।पता नहीं क्यों उससे एक अजीब सी चिढ़ होती थी। बातें करते वक्त, खाते वक्त ,,कभी कभी गलती से भी होने वाली उसकी छुअन बहुत ही भद्दी लगती थी। जब वो मेरी तरफ देख कर बात भी करता ...तो .....एक अलग ही अनकंफर्ट सी सिचुएशन हो जाती थी।
मैं उसके आमने सामने आने से भी बचती थी पर फिर भी पता नही क्यों वह किसी न किसी बहाने मेरे कमरे के आसपास चक्कर काटता रहता था।
कोचिंग में 1st रैंक लाने का नशा सवार था मुझ पर।मैं देर रात तक कमरे में चटाई बिछा कर बैठ कर पढा करती थी क्योंकि गांव में इसी तरह से पढ़ाई की थी। रात को 2 से 3  बजे नींद भी बड़ी अजीब आती,,, आवाज तो सुनाई पड़ती थी पर आंखे नहीं खुला करती थी।अपनी इस बीमारी के बारे में रेखा को बताया तो उसने कम सोने के साइड इफेक्ट्स बताये।

इसके दो दिन बाद जब मै लगभग रात के 02:30 बजे पढ़कर सोई थी तो थोड़ी ही देर बाद मुझे लगा कोई है जो मुझे यहां वहां छू रहा है।

मैं बुरी तरह से घबरा गई पसीने में तरबतर थर थर कांप रही थी। जितनी कोशिश मैं उठने की कर सकती थी... उतनी मैंने की...... लेकिन फिर भी मेरी आंखें नहीं खुली।सुबह जब उठी तो बदनदर्द ओर अपने बेतरतीब कपड़े देखकर बहुत घबरा गई।समझ मे नहीं आ रहा था इस बारे में किससे ओर क्या बात करूं।मैं बस रोने लगी थी।रेखा ने जब कुछ कॉन्फिडेंस में लिया तब मैने उसे बताया कि मुझे ऐसा लग रहा है कि रात को मेरे साथ कुछ गलत हुआ है... गन्दा हुआ है।रेखा ने अपनी मम्मी से ये बात शेयर की उसकी मम्मी ने भी काफी कुछ पूछा ओर बताया जिससे इतना तय हो गया कि मेरे साथ वो सब नहीं हुआ है जिससे मैं डर रही थी।फिर कमरा ओर खिड़की भी तो मैंने ही बंद की थी ओर कोई बन्द कमरे के अंदर कैसे जा सकता है..?? ये सब सोचकर मुझे भी लगा कि हो सकता है कि ये मेरा वहम है। पर मेरा दिल यही कह रहा था कि मेरे साथ कोई खिलवाड जरूर हुआ है।अगर ये मेरी बीमारी होती या कोई डिसऑर्डर होता तो 2 महीनों में पहली बार मुझे ऐसा क्यों लगा।
ऐसे ही सोचती हुई मैं कमरे में रोशनी के लिए खिड़कियां खोल रही थी तभी मेरा ध्यान window latch (खिड़की की कुंडी) पर गया। मैंने देखा कि उसपे पतला सा भूरा धागा बंधा हुआ है जिससे खिड़की को बाहर से भी खोला जा सकता है ।अब मेरा शक यकीन में बदल गया था।मैं पहले से भी ज्यादा सावधानी रखने लगी।तब धीरे धीरे मुझे पता चला कि इस घर मे मैं तो क्या ...मेरे कपड़े भी सुरक्षित नहीं है।विनीत सचमुच मानसिक रूप से विकृत इंसान था।
फिर भी ये सब अपने घरवालों को बताने की हिम्मत मैं नहीं कर पाई। मैंने घर पे बताया कि मेरी पूरी कोचिंग में 1st रैंक है और में मेडिकल एंट्रेन्स एग्जाम में टॉप करना चाहती हूं। इसलिए एक घर की बजाय होस्टल में रहना मेरे लिए ठीक रहेगा। मेरी मम्मी , मामी, रेखा ,दादी ...सब मेरे फैसले के खिलाफ थे और मुझे समझा रहे थे।पर पापा हर बार की तरह मेरे साथ थे इसलिए मैं घर की  दीवार सटा कर ही एक गर्ल्स हॉस्टल था जिसमें मैं शिफ्ट हो गई।
मेरे 3 महीने बहुत ही अच्छे से उस होस्टल में गुजरे। मैं इस दौरान कभी भी मामीजी के घर नहीं गई।गर्ल्स हॉस्टल चार मंजिला था और उनका घर 3 मंजिला ...जब कभी रेखा दिखाई देती तो मैं उससे बात कर लिया करती थी पर कोचिंग तक साथ ही जाती थी क्योंकि वो मेरे होस्टल के गेट पर मुझे आवाज लगा के बुला लेती थी।
उस दिन मेरी क्वेश्चन शीट  बातो बातों में रेखा के बेग में ही रह गई।जब मुझे याद आया तो छत से आवाज लगाई पर वो ऊपर नहीं थी। टाइम बर्बाद नहीं करते हुए मैं उसके घर गई। वहां विनीत घर मे बैलून सजा रहा था । उसकी मदद महिपाल  कर रहा था जो अक्सर विनीत के पास आया करता था।
".रेखा कहाँ है??" जाते ही मैंने विनीत से पूछा।

"बस 5 मिनट में ही आ रही है... वो ओर मम्मी मेरे लिए गिफ्ट लाने गए हैं। its my birthday today.." पहली बार बड़ी ही तमीज से बिना घूरे वो बोला।

"Happy birthday भैया..!"

थोड़ा मुँह बनाकर वो बोला,"काहे का bday.... कल एग्जाम भी है मेरी...ये पार्टी तो केवल 15-20 मिनट की है"


मैंने उसे ज्यादा भाव न देते हुए कहा
 "रेखा आये तो उसे बता देना कि मेरी question sheet उसके पास है ...वो मुझे होस्टल ही देदे।" मैंने जल्दी से बता कर पीछा छुड़ाना चाहा।

"बस 5 मिनट की बात है,, पास ही कि दुकान पर गई है...केक काटने तक तो रुक जाओ।" फिर से उसने रिक्वेस्ट की।

"भैया मेरे लिए सबसे जरूरी पढ़ाई है ..सॉरी ..?पर मुझे जाना होगा।" मैं भी निश्चय पर अटल थी।

"अच्छा चलो मेरे bday की चॉकलेट ही ले जाओ.."

विनीत मुझे  रोकने की सारी कोशिशें कर रहा था।मैंने हॉस्टल में लड़कियों से सुना था कि जब कोई लड़का किसी लड़की को चॉकलेट देता है तो ब्रांड के हिसाब से उसके अलग अलग मीनिंग होते हैं।तो मैंने साफ मना कर दिया।
"मैं चॉकलेट कभी खाती ही नहीं हूं "

"हद है लड़की होकर चॉकलेट नहीं खाती हो...अजीब बात है.."महिपाल बीच मे बोला,,, तो विनीत ने जवाब दिया,,,"तू अपने काम से काम रख" 
मेरी तरफ कोल्डड्रिंक का ग्लास बढ़ाते हुए बोला,,,"अच्छा बाबा कोल्डड्रिंक ही पी जाओ ...ये तो पसन्द है तुम्हे...मुझे मालूम है,.....
,नहीं तो मुझे सच मे बुरा लगेगा कि bday पे  आकर भी बिना खाये पिये चली गई।"

उससे पीछा छुड़ाने के चक्कर मे एक सांस में ही पूरी कोल्डड्रिंक पी गई । फिर ग्लास dustbin में डालकर जैसे ही बाहर निकलने के लिए दरवाजे तक आई तो तेज़ सिरदर्द ओर चक्कर आने लगे।ओर मैं दरवाजे पे ही बैठ गई।मुझे अपने कंधों पर फिर गन्दी छुअन का अहसास हुआ।ये विनीत ही था।

"सोमू ..!लगता है तुम्हारी तबीयत खराब है,, क्या हुआ तुम्हें..??" वो मुझे उठाते हुए बोला।मेरी आँखें धुंधला रही थी।
मैंने कहा
"मुझे बहुत तेज़ सरदर्द है" और सिर को कस के पकड़ कर बैठ गई।
"पैरासिटामोल खा लो ठीक हो जाएगा,," ये कहते हुए महिपाल एक टेबलेट के साथ आया।तेज़ दर्द के कारण मुझे कुछ भी समझ नहीं आया।मैंने पानी के साथ वो टेबलेट लेली।

उसके बाद होश खो चुकी थी मैं।कोल्डड्रिंक ओर टेबलेट दोनो शायद इसीलिए दी गई थी।जब होश में आई तो ...खुद को चीखने से रोक नहीं पाई।वो दरिंदे मेरा पूरा अस्तित्व नोच खा रहे थे। मेरे मुंह को हाथ से बंद कर विनीत महिपाल से बोला
"अबे ओए मेडिकल....तू सही माल तो लाया है ना..इसको होश कैसे आ गया...साले खुद की दुकान पर भी नकली माल ही रखते हो"
"इसके मुँह से हाथ हटा अभी बताता हूँ" और मेरे मुंह मे एक दवाई की शीशी उंडेल दी गई। इससे मेरा पूरा शरीर सुन्न हो गया था।मैं अपनी पलको को छोड़कर कुछ भी महसूस नहीं कर पा रही थी लेकिन धुंधला सा दिखाई दे रहा था और साफ साफ सुन पा रही थी।
फिर मेरा मुँह जबरन खोलकर महिपाल उसमे तौलिया ठूसने लगा।
"इस रूम में कोई आएगा तो नहीं ना.." महिपाल ने पूछा।
"पापा बाहर गए हुए हैं,,,तो रेखा और मम्मी साथ ही सोएगी,,,और मम्मी ऊपर आने से पहले मेन गेट बन्द जरूर करेगी,,, तब उसकी आवाज से हमें कम से कम 5 मिनट मिल जायेंगे।"
"एक रस्सी मिले तो पूरा उपाय कर दूंगा।"

"कोई कमी नहीं है अपने यहां, अभी ले"
इसके बाद मैं उस रस्सी से खिड़की में पर्दे के पीछे बांध दी गई । उसके बाद क्या हुआ वो आप देख चुके हो।

जब उनकी हैवानियत की हद पूरी हो गई। तो वो मुझे लैडर से खुद पे लाद कर मेरी ही होस्टल की छत पर ले आये।उनकी किस्मत और मेरी बदकिस्मती थी कि शहर में पावर कट हुआ था। वो होस्टल की छत पर चुपचाप बैठकर बिजली आने का इंतज़ार करने लगे। बिजली आते ही उन्होंने मुझे होस्टल के उस हिस्से से नीचे फेंका जहां से बिजली के तार जाते थे।मेरी बदकिस्मती फिर साथ रही कि में तारो में उलझ गई,,,, ओर तार भी मेरे बोझ से टूटे नही,,, शरीर के नाम पर झुलसा हुआ मांस का लोथड़ा बचा था।
मुझे अब भी उम्मीद थी कि पोस्टमार्टम में शायद सब पता चल जाएगा।लेकिन उसी रात महिपाल ने अपने चाचा को फोन किया जो सरकारी मेडिकल कॉलेज में किसी ऊंचे ओहदे पर थे। उसने फ़ोन पर बताया कि मैं उसकी गर्लफ्रैंड थी, मर्ज़ी से सब होने के बाद हमारी लड़ाई हुई। फिर मैं गुस्से में चली गई।वो अपने चाचा के सामने रोया गिड़गिड़ाया जिसका नतीजा ये हुआ कि पोस्टमार्टम के नाम पर मेरी लाश के साथ खानापूर्ति हुई।केस को इस तरह का एंगल ही नहीं मिला।ऊपर से पिछले टेस्ट में रैंक पहली से पांचवी आने पर पुलिस और मीडिया ने इसे पढ़ाई के प्रेशर के कारण सुसाइड बताया। """




मैं तो सन्न रह गया था यह सब सुनकर।महंत जी ने पूछा
"तुम उस शैतान के चंगुल में कैसे फंस गई"

" मरने के बाद मेरा अस्तित्व कुछ क्षणिक रहने लगा, जब भी थोड़ा होश में आती तो खुद को होस्टल और कोचिंग की गलियों में भटकती हुई पाती थी।फिर जब याद आता कि मैं मर चुकी हूं तो रोया करती थी।फिर वापस जैसे अस्तित्व ही समाप्त हो जाता।एक बार जब रो रही थी तब किसी ने मुझे पूछा कि क्या तकलीफ है... वो ज़ालिम ही था।उसने मुझे झांसा दिया कि वो मुझे इंसाफ दिलाएगा।लेकिन वो मुझमे नफरत भरने लगा।और जब मेरी नफरत मेरी अच्छाइयों से ज्यादा हो गई,,तब उसने मुझे अपना गुलाम बना लिया।
उसी ने मेरा विश्वास जीतने के लिए महिपाल के अंकल को मारा था।इस तरह मैं उसके जाल में फंसती गई।

मैं बीच मे ही बोल पड़ा,,"एक मिनट,,, मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा है,, तुम शायद डॉ. चौधरी की बात कर रही हो। उनका तो दिल का दौरा पड़ने से कार एक्सीडेंट हुआ था..!"
तो वो मेरी तरफ देखती हुई बोली , "जितना ख़ौफ़ आपने झेला है,, उसके एक छोटे से हिस्से को भी वो नहीं झेल पाया,,,डर से ही मर गया।"

"पर मैं इस कहानी में कैसे आया,,मैंने तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था??" शायद ये मेरा पहला सवाल होना चाहिये था और आख़िर पुछ ही लिया।
उसने दूसरी तरफ मुँह फेरते हुए कहा "इस सवाल का जवाब इतना जरूरी नहीं है।"

मैंने बेसब्री से कहा,"तुम कुछ छिपा रही हो"

वो नजरें झुका कर बोली, "कुछ आपकी गलती थी और थोड़ी मुझसे समझने में भूल हुई।"

मैंने थोड़ा ज़ोर देकर कहा,"जो भी कहना है,, साफ साफ कहो ना,,यूँ पहेलियां क्यों बुझा रही हो"

उसने कुछ कहा नहीं,,, एक रोशनी के बिंदु में बदल कर फिर से प्रकट हुई,,,पर इस बार नए कपड़ों में थी।उसे इन कपड़ो में देख दहल सा गया था।उसने शहर की प्रसिद्ध कोचिंग BCCI (Buddhi Cripa  Coaching Institute) की पुरानी ड्रेस पहन रखी थी।उसे देखते ही सब समझ आ गया कि मेरे साथ ये सब क्यों हो रहा था।

दो साल पुराना वो दृश्य मेरी आँखों के सामने से फिर से गुजरा,,,मैंने अपना गुनाह अपनी आँखो से देखा।

O०००•• यह बात तब की है जब मैं MSC फाइनल ईयर की परीक्षा देने के बाद जगह जगह पर नौकरी के लिए स्ट्रगल कर रहा था उस दिन में अपनी पहली सीएसआईआर नेट की परीक्षा देकर घर जा रहा था पर रास्ते में ही इस शहर के दो पुराने दोस्त जो कॉलेज के जमाने के थे वह मिल गए।एक नेवी में था तो दूसरा एयरफोर्स में जॉइन करने वाला था। दोनो बेहद खुश थे। मुझे फ्रेशर होने के कारण मामूली प्राइवेट नोकरी के लिए भी मशक्कत करनी पड़ रही थी।मुझे परेशान देखकर बोले,"भाई इस हसीन शाम में भी तू परेशान है,, ले तेरा अभी मूड ठीक करते हैं।"
मुझे अच्छे से मालूम था कि इनके साथ ज्यादा ही पागलपंथी कर बैठूंगा, जो अब ठीक नहीं है,, पर 2 साल बाद जो मिले थे । तो ज्यादा रेसिस्ट नहीं कर पाया।बाइक पर हम तीनों बकवास पेलते इधर उधर घूम रहे थे।सच मे इससे अच्छा कोई उपाय नहीं है जो मेरा मूड ठीक कर सके। "सुन भाई बाइक को कोचिंग एरिया में लेले,,अभी छुट्टी का टाइम हो गया ,,अभी बहार वहीं देखने को मिलेगी।"
उसकी बात सुनकर मैंने पूछा "कैसी बहार।"
"अरे भाई लड़कियों की भीड़ रहती है रोड पर" मुझे उसकी बात थोड़ी अजीब लगी क्योंकि उस एरिया में मेडिकल ओर इंजीनियरिंग एंट्रेस एग्जाम की कोचिंग होती थी।तो मैंने कहा "वो सब तो बहोत छोटी है,,, उनको थोड़ी देखेंगे।"
मेरे पैर पर जोर से हाथ मारता हुआ वो बोला, "भाई तेरा बाल विवाह करवाने नहीं ले जा रहे। इज़्ज़त से ताड़,,,, दर्शन लाभ ले,,,ओर चुपचाप निकल ले,,,साले try तो कर,,वरना मास्टर जी बनकर ही किसी स्कूल में सड़ जाएगा।"

मैं थोड़ा सा शंकित था तो मैंने कहा,"यार क्या मालूम आज इनको ताड लूं कल यही क्लास में मिल गई तो..."

"रहने दे साले...वहम में मत जी,,,फ्रेशर को कोई कोचिंग में नही घुसाता।अभी लास्ट टाइम है,,, मजे कर,,,बाद में बनते रहियो मास्टर जी"

उसकी बात सही लगी मुझे,,बाइक कोचिंग एरिया में धीरे धीरे चल रही थी।रोबोट के माफिक लड़के लड़कियां गर्दन झुकाये ,,बैग लटकाए,,भीड़ में चल रहे थे।ओर वो दोनों दोस्त बातें कर रहे थे।
"भाई वो लड़की मेरी तरफ आंखे निकाल रही है"
"अबे तुझे किसने कहा उसकी शक्ल देखनी है,,, शक्ल देखने में लफड़ा है... कल को नैन मटक्का करने लगा तो उसके पीछे कुत्ते की तरह जीभ लपलपाता फिरेगा,,,,शक्ल को छोड़कर पूरी स्कैन कर" 
मेरे यार बिल्कुल न बदले,जैसे थे आज भी वैसे ही हैं।थोड़ी देर में मेरा स्कैन मोड ऑन हो गया।अब मुझे सड़क पर केवल लड़कियां दिख रही थी,,,,वो भी बिना शक्ल के।लेकिन तभी BCCI की पुरानी ड्रेस में एक लड़की दिखी।भीड़ में अलग कपड़ो में होने के कारण मेरी नजर उस पर टिक सी गई।मैंने उन दोनों से कहा,"इस लड़की की ड्रेस अलग कैसे है?"
जवाब मिला,"भाई सब अपनी अपनी स्कैन करो,,डिस्टर्ब मत करो" और में बस उसे ही घूरता रहा,,,,,बड़ी बेशर्मी से,,,बेहद भद्दे तरीके से।


आंसुओ की कुछ बूंदे अतीत से वापस उसी वक्त में ले आई।मुझे देखकर वो बोली


"उस वक़्त आप मुझे विनीत जैसे....महिपाल जैसे ही एक शैतान नज़र आये...जो जिस्म था ही नहीं उसकी चाहत आपकी आंखों में थी। मैं तो इस उम्मीद में थी कि पहली बार किसी इंसान ने मुझे देखा है ....मैं उसे अपने दुःख बता पाऊंगी...अपने आंसू दिखाउंगी....पर आपने एक बार भी मेरी आँखों मे नहीं देखा....आपकी आंखें कुछ और ही तलाश रही थी।....ज़ालिम उस वक्त मुझे अपना मददगार मालूम पड़ता था।...मैंने आपके बारे में उसको बताया।
एक जिंदा इंसान जो आत्माओं को देख सके,,,वो शैतान  के लिए सबसे बड़ा खतरा होता हैं।इसलिये उसने आपको पहले रास्ते से हटाना तय किया।लेकिन आप फिर कभी इस तरफ नहीं आये।
दो साल बाद उस रात फिर से मैं जब भटक रही थी तब मैंने आपको देखा,,मेरा मन आपके लिए घृणा से भर गया। मैं फिर से आपके सामने आई। आपका व्यवहार कुछ अलग था उस दिन।बदकिस्मती से ज़ालिम भी उस वक्त वहीं था।आपसे मेरा बातें करना उसे खतरा मालूम पड़ा,,ओर उसी रात पहली बार मैं पर्दों की दुनिया मे कैद की गई थी। फिर शैतान मेरा रूप लेकर आपके सामने आया था,,जिससे आप डर कर बेहोश होने पर संयोग से विनीत के घर पहुंच गए।जिस ज़ालिम को देखकर ही इंसान को दिल का दौरा पड़ जाए,,,उस ज़ालिम के जुल्मो के बाद भी आप एक साधारण जिंदगी जी रहे थे। ये बात उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी।और वो आपको खत्म करने पर अड़ गया।
आपके घर पर पवित्र शक्तियों का वास होने के कारण ज़ालिम अंदर नहीं आ पाया तो आपको सताने के लिए उसने मुझे भेजा...ओर उसके बाद मैं आपको अपने दर्द से जोड़ने के लिए अपनी यादों में ले गई।
मैं तब भी आपको पहचान नहीं पाई थी...आपको अच्छे से तब जाना जब मैंने आपके शरीर में प्रवेश किया।इतना सुकून ....इतनी शांति मैंने जीते जी कभी नहीं पाई थी।तब जाकर अहसास हुआ कि मैंने नासमझी में एक निर्दोष को इस भयानक नर्क में घसीट लिया है।लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।"



मैं :-  "नहीं दोषी था मैं.... क्या इससे बढ़कर भी कोई गुनाह बचा है.... मुझसे गया गुजरा कोई क्या होगा..." महंत जी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा,,,ओर मेने खुद के चेहरे को उनके कंधे के पीछे छिपा लिया...अपनी नजरों से गिरना क्या होता है ...मैं आज जानता था....भीड़ भरे चौराहे पर किसी को नंगा कर दे तो कैसा महसूस होता है... मैं आज जानता था।लग रहा था कि ईमानदारी का झूठा चोगा पहनने वाले कि सारी चोरी पकड़ी गई हो।ज़ालिम से बड़ा शैतान मैं खुद में देख रहा था।आज दिल का हर कोना आंसू बहा रहा था जिसे किसी को दिखा भी नहीं सकता और बता भी नहीं सकता।


कैसे दिला पाऊंगा इंसाफ़ तुझको,
तेरा गुनहगार हूं मैं।
जो गिरा चुका है नज़रों में खुदको,
वो किरदार हूं मैं।
ख़ौफ़ज़दा किया आइनों से खुदको,
अब उनका शिकार हूं मैं।
हक़-ए-मख़लूक़ात ना दू खुदको,
हुआ ऐसा तारतार हूं मैं।
न निगले अब ये ज़मीं मुझको,
अब ऐसा बेकार हूं मैं।
कैसे दिला पाऊंगा इंसाफ तुझको,
तेरा गुनहगार हूं मैं।


महंत जी ने मेरे कंधे को पकड़ कर कहा,"अंकित सम्भालो खुद को....तुम ये क्यों भूल रहे हो कि एक आत्मा को तुम देख कैसे पाये... तुम इससे बात क्यों कर पा रहे थे... शायद भगवान ने चुना है तुमको....इस मासूम को मुक्त करवाने के लिए....ये जिम्मेदारी है तुम्हारी..."
पर मैं जैसे गहरी निराशा में पहुंच गया था। कैसे सम्भालु खुद को,,,,जो लड़की मुझे अपनी ही बच्ची,,, बहन ...जैसी लग रही है... उसी को....छी...!!! घिन्न आती है खुद से....

 राकेश को बुलाकर मुझे कमरे में छुड़वा दिया गया था।जिन अंधेरो से भाग रहा था,,,आज उसी की पनाह में अपना चेहरा छुपा रहा था।पर अपनी डायरी से कुछ नहीं छिपाऊँगा,,, खुद को धोखा दे चुका ....पर इसको अपने गुनाह छिपाकर धोखा नहीं दूंगा...सब लिखूंगा मैं... दरवाजे के नीचे से आ रहे रोशनी के हल्के से कतरे में अपने गुनाह लिख रहा हूँ,,खुद का पर्दाफाश कर रहा हूँ।मुझे इसके लिए रहम नहीं... सिर्फ सज़ा चाहिये...सिर्फ सज़ा...।

प्रिय पाठकों??
                          अब कहानी एक ऐसे मोड़ पर आ गई है जहां से आपके जेहन में रहने वाले सारे सवालों का जवाब मिल गया है।अब कहानी का स्पष्ट उद्देश्य है गुनहगारों को सज़ा दिलाना।पर क्या ये कहानी आगे भी इतनी सुलझी हुई है जो ये लग रही है।क्या विनीत ओर महिपाल को सज़ा मिल पाएगी।ये जानने के लिए अगले भाग "वापसी" की प्रतीक्षा करें।
ओर हां मेरी अन्य कहानियों को भी पढ़े जैसे
1. मेरा हिस्सा :- जो कच्चा कलवा नामक प्रेत की ख़ौफ़नाक गाथा है।
2. मन्ज़िल प्यार की :- आस्था और प्यार में बंधी एक प्रेम कहानी है, जो आपको यकीन दिलाएगी कि आपको भी मिलेगी मन्ज़िल प्यार की।
3. दो लम्हे :- एक साधारण सी प्रेम कहानी के बेमिसाल दो लम्हे जो आँखे नम कर देगी।

तो पढ़ते रहिये मातृभारती।