wo ladki - saza books and stories free download online pdf in Hindi

वो लडक़ी - सज़ा

वो लड़की "उस रात" मेरी जिंदगी में एक रहस्य का  "पर्दा" लेकर आई... फिर "बेपर्दा" कर गई "ख़ौफ़ का राज" । वो मुझे ले गई "आत्मालोक" में जहां "पर्दाफ़ाश" हुआ एक ऐसी "घिन्न" का जहां से "वापसी" तब तक सम्भव नहीं थी जब तक "सोमू" अपना "बदला" लेकर गुनाहगारों को  "सज़ा "न दिला दे...
अब आगे 
                          अध्याय-11 सज़ा
आज वो दिन आ ही गया जब उन दरिंदो को उनके किये की सज़ा मिलेगी। सोमू ने मुझसे दरख्वास्त की है कि उन दरिंदो को मैं उस पहाड़ी तक पहुंचाऊं जहां सोमू को अपनी ताकत मिली थी।वहीं उनके कर्मो का हिसाब होगा, वहीं होगी अंतिम लड़ाई। आज मैं खुद विनीत के घर गया था. मैंने अंकल को बताया कि पास ही की पहाड़ी में एक मंदिर है जहां कोई पहुंचे हुए संत रहते हैं अगर आप इसे वहां तक पहुंचा दो तो उम्मीद की जा सकती है।
उन्होंने मुझसे मंदिर का पूरा पता मांगा और मैंने उन्हें दिया। उन्होंने मुझसे पूछा भी कि क्या मैं उनके साथ चल सकता हूं या नहीं पर मैंने उन्हें मना कर दिया।
विनीत ने यह बात महिपाल को भी बताई और डर के मारे वह भी उसके साथ चलने को तैयार हो गया।
आज सुबह लगभग 10: 00 बजे विनीत और महिपाल दोनों अंकल (विनीत के पापा) के  साथ उस मंदिर के लिए रवाना हो गए।
सोमू ने मुझे कॉलेज से छुट्टी लेने के लिए कहा और मैंने ऐसा किया भी । उसने मुझसे उसी पहाड़ी पर चलने को कहा जहां पर महंत जी ने उसे शक्तियां सौंपी थी।
मैं पहाड़ी तक बस द्वारा गया उसके बाद में एक अजीब सा सूनापन मुझ पर छा गया था। और उसी स्थिति में मैं पहाड़ पर चढ़ने की बजाए खाई की तरफ धीरे धीरे नीचे उतरने लगा। मेरी आंखों में खुद की बजाय उस कार के दृश्य घूम रहे थे जिसमें विनीत , महिपाल और अंकल सफर कर रहे थे।
पहाड़ के ऊपर खाबड़ रास्तों पर गाड़ी हिचकोले खाती हुई चल रही थी। तभी अंकल ने देखा की सामने एक बड़ा सा पत्थर पड़ा हुआ है जिसके कारण गाड़ी आगे नहीं जा सकती है। विनीत और महिपाल को अंकल गाड़ी में छोड़कर उस पत्थर को हटाने के लिए गाड़ी से बाहर सड़क पर आ गए। वह पत्थर को हटाने में जोर आजमाइश कर रहे थे , ऊपर कौओं ने शोर मचा रखा था। उनका ध्यान ही नहीं गया कि गाड़ी धीरे-धीरे पीछे सरक रही है। महिपाल और विनीत दोनों को इस बारे में पता चल चुका था वह दरवाजे पर हाथ मार रहे थे पर दरवाजा लॉक था। फिर कुछ ही सेकंड में धम की आवाज के साथ गाड़ी खाई में लुढ़क गई। अंकल बेहद जोर से चिल्लाए और घुटनों के बल बैठ कर रोने लगे। गाड़ी खाई में फिसलती हुई ....उछलती हुई गिर रही थी,,, पर जैसे कोई अदृश्य शक्ति विनीत और महिपाल को सुरक्षित रखी हुई थी। नीचे आते आते गाड़ी के परखच्चे उड़ गए। जिसके कारण से विनीत और महिपाल के शरीर गाड़ी से बाहर उछल गए। वे दोनों उछलकर एक पेड़ में जा फंसे। शायद तब तक उनकी हड्डियों का कचूमर बन चुका था। दोनों के ही हाथ और पैर टूट चुके थे। पेड़ के ठीक नीचे गाड़ी का बचा हुआ भाग गिरा था। जिसमें आग लगना शुरू हो गई थी। फिर कार में एक धमाका हुआ और पेड़ को भी आग लग गई। कार तो पूरी तरह से जलकर खाक होने को थी।
पेड़ पर धीरे-धीरे आग की लपट बढ़ रही थी और मेरे कानों में एक आवाज गूंजी ,"अंकित भाई .....बचा ले, बचा नहीं सकता तो कम से कम मार ही दें " वह आवाज विनीत की थी। विनीत और महिपाल के चेहरे के पास आग की लपटें थी वह दोनों अपने पूरे होशो हवास में थे उनके शरीर पेड़ में फंसे हुए थे और वह धीरे-धीरे करके आग में जल रहे थे। बड़ी तड़प थी उनके चेहरे पर...... और उनकी आंखों में ख़ौफ़।।         एक बार तो मेरा भी मन हुआ कि उन दोनों को बचा लूं और मैं उनकी तरफ गया लेकिन तभी सोमू बड़े सख्त भाव से राह में खड़ी हो गई और बोली ,"यह इसी के लायक हैं इनको यह भुगतना ही था। "  उनकी चीखों से पूरी घाटी गूंज रही थी,,, मुझे बिल्कुल भी समझ में नहीं आया कि कैसे मैं पहाड़ी के ऊपर न जाकर घाटी में आ गया शायद उस वक्त सोमू मुझ पर हावी थी। उनको इस तरह मरते हुए देखना मेरे लिए आसान नहीं था इसलिए मैंने कानों में ईयर फोन लगाएं और गाने सुनता हुआ पहाड़ के ऊपर चढ़ने लगा। शायद उनको मरने में भी कम से कम आधा घंटा लगेगा। मैं चुपचाप अपने कमरे पर आ गया।

 माना मेरे दिल में उन दोनों के लिए बेहद नफरत थी पर किसी को ऐसे मरते हुए देखना एक सदमे से कम नहीं है।
शाम तक जब मैं अपने इन विचारों से बाहर निकला तब एक नए विचार ने मुझे दुखी कर दिया वह यह था कि सोमू का अब बदला पूरा हो चुका है, अब उसे मुक्ति मिल जाएगी और मैं फिर से अकेला हो जाऊंगा।
उसी वक्त मुझे सोमू की आवाज सुनाई दी ,"भैया सॉरी... मुझे आपको इन सब में इन्वॉल्व नहीं करना चाहिए था।"
सोमू तुम ...!!! अभी भी तुम यहीं हो .....मेरे साथ ही ."मैं खुशी से बोला तो उसने कहा ,"पता नहीं कैसे ...मुक्त तो मुझे हो जाना चाहिए था .....वे दोनों मर चुके हैं अब मेरे पास इस दुनिया में रहने का कोई उद्देश्य भी नहीं है।"
मैं:- क्या मुक्त होना जरूरी है ??? तुम ऐसे ही हमेशा नहीं रह सकती...."

सोमू की आंखो में मुझे नमी साफ दिखाई दे रही थी उसने कहा ,"भैया आप भी..."

बात को बदलते हुए वह बोली ,"भैया आप अभी भी उसी का इंतजार कर रहे हो वह आपको नहीं मिलने वाली आखिर 4 साल हो गए,,,"

तुम किसकी बात कर रही हो ....!!!!!!
मैंने चौकते हुए कहा तो उसने मुस्कुराकर अंगूठे  और अंगुली से आंखो पर चश्मा बनाते हुए जवाब दिया ,"अरे भैया उसी की..."???

मेरा चेहरा सफेद पड़ चुका था , जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो ...मैंने उससे पूछा ,"तुम्हें कैसे मालूम.... तुम तो पढ़ नहीं सकती ना .....यह सब तो मेरी डायरी में है तुमने कैसे पढ़ा,,,??!!!"

सोमू:- ,"भाई ...! डायरी नहीं ...आपका दिमाग पढ़ा ..जब भी आप में जाती हूं तो बस उसी को पाती हूं, तभी मैं सोचूं आप नेट में फेल होने का रिकॉर्ड कैसे बना रहे हो।??"

मैं:-मेरी बात सुन..... यार यह सब गलत है ...किसी के दिमाग के साथ ऐसे छेड़छाड़ नहीं करते ....कल को पागल हो गया तो ....लोग वैसे ही पागल बोलते हैं,,,,

पर वह तो जैसे पूरा छेड़ने के मूड में थी भाई आप किसी दूसरी पर ट्राई करो ना मैं आपको सजेस्ट करती हूं एक-दो तो आपसे पक्की पट जाएगी।
उसके बाद तो वह शुरू हो गई,, जितनी भी लड़कियों को जानता था उन सब के बारे में बोलने लगी उसके हिसाब से सारी पट जाएगी,,,, शायद मरे हुए लोगों को शक्ल कम समझ में आती है  ??, मुझे इस तरह से आज से पहले कभी किसी ने नहीं छेड़ा मेरे दोस्तों ने भी नहीं,,, क्योंकि इस बारे में मैंने उन्हें कभी कुछ बताया ही नहीं है,,, पर सोमू से कुछ भी छुपाना नामुमकिन है। ऐसे ही बातों में कब रात हो गई पता ही नहीं चला।
रात को सोमू मेरे पास बैठी है बातें कर रही थी कि तभी कमरे में बेहद घिनौनी बदबू फैल गई और बल्ब झरझर करने लगा। सोमू बोली ,"पता नहीं भैया... पर मुझे बहुत डर लग रहा है ...'"
मैंने कहा ,"तू क्यों डर रही है मैं हूं ना यहां.."

पर डर के कारण मैं खुद कांप उठा जब मैंने झपकती हुई रोशनी में से खिड़की पर लगे हुए पर्दे के पीछे कुछ हलचल देखी। ऐसा लग रहा था जैसे खिड़की के उस तरफ कोई खड़ा है । फिर खिड़की के पर्दे पर दोनों तरफ से एक एक हाथ आया जिसने पर्दे को कसकर पकड़ लिया ....उसके बाद झटके से पर्दा हटाकर बड़े ही शैतानी रूप में विनीत और महिपाल खिड़की से कमरे के अंदर कूदे। और सोमू की तो डर से चीख ही निकल गई। विनीत और महिपाल का पूरा शरीर जला हुआ था और हाथ पैर मरोड़े हुए जैसे थे वह बेहद ही भयानक लग रहे थे। जैसे ही वह दोनों सोमू की तरफ बढ़े मैं उनकी राह में खड़ा हो गया। मेरे होते हुए तुम सोमू को छू भी नहीं सकते।
मेरी बात सुनकर वह दोनों जोर-जोर से हंसने लगे और हंसते हुए उन्होंने कहा ,"मास्टर ..तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है तुम्हें अभी भी मालूम नहीं है कि जिंदा कौन है और मुर्दा कौन है" यह कहते हुए वह दोनों मेरे आर पार हो गए और सोमू  के दोनों हाथों को कस के पकड़ कर खींचने लगे। महिपाल ने अपने शर्ट में एक रस्सी फंसा रखी थी । उस रस्सी से सोमू के दोनों हाथों को फिर से वैसे ही बांध दिया और सोमू  की दर्दनाक चीखें कमरे में गूंजने लगी। "रुक जाओ सालों ...मैं किसी को नहीं छोडूंगा ...तुम मेरे होते हुए यहां इससे नहीं ले जा सकते मैं चिल्लाते हुए उनके पीछे दौड़ रहा था और वह दोनों उसी तरह हंसते हुए वापस खिड़की की तरफ बढ़ रहे थे। "रुक जाओ.. रुक जाओ... मैं तुम्हें यहां से जाने नहीं दूंगा ...सुना तुमने... मैं नहीं जाने दूंगा।"
मैं चीखता रह गया और वह दोनों रोती हुई सोमू को रस्सी पर लटका कर उसी खिड़की के पार ले गए और पर्दा हवा में लहराता रह गया।
मैं पर्दे को मुट्ठी में बंद करके खिड़की पर मारता हुआ रो रहा था कि अचानक से पर्दे के अंदर से एक लात आकर मेरी छाती पर लगी। पर्दा ऊपर के पाइप समेत नीचे गिर गया और साथ ही मैं भी।
              एक घिनौनी हंसी कमरे में गूंज उठी अहहहहहह,, कहा था ना तुम भी भुगतोगे , , नहीं तुम सबसे ज्यादा भुगतोगे,,,,, बची हुई जिंदगी में हर एक सांस , तुम पर एक बोझ रहेगी,,,, तुम इस लड़की के लिए कुछ नहीं कर पाए,,, इस लड़की की चीखें तुम्हें ना जीने देगी ना तुम्हें सोने देगी,,, तुम शायद मर कर इतना नहीं भुगतोगे जितना तुम जीकर भुगत लोगे अहहहहह"
              हां यह जालिम ही था !! अब पहले से भी ज्यादा खतरनाक लग रहा था , जैसे नई ताकत लेकर आया हो। उसकी लात कितनी जोर से लगी थी कि मैं खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। अपनी बात सुनाने के बाद वह फिर से खिड़की में गायब हो गया। मैं जैसे तैसे खुद को संभाल कर अपनी जगह पर बैठ गया। आंखों से आंसू बहते ही जा रहे थे। मेरी आंखो के सामने सोमू को वह दरिंदे फिर से अंधेरों में ले गए। मेरी जिंदगी में फिर से गहरे अंधेरे भर गए। क्या फायदा ऐसी जिंदगी का, मैं जिंदगी भर इस दर्द के साथ जिंदा रहूं कि मैं सोमू को बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाया,,, नहीं चाहिए ऐसी जिल्लत भरी जिंदगी , जिसकी हर रातों में सोमू की चीखें सुनाई दे .....नहीं चाहिए ऐसी जिंदगी, जिसमें हर पल खुद को हारा हुआ महसूस करूं... इससे अच्छी तो मौत है ......हां मौत है,,, जालिम जो पर्दा मेरे सामने फेंक गया था उसी पर्दे को समेट कर एक रस्सी बना दी। उसी रस्सी से  खुद की आज जान लेना चाहता था । मैंने खड़े होने की बहुत कोशिश की पर पांव तो गिरने के कारण से शायद फैक्चर हो चुके थे । जालिम की लात ही इतनी ताकतवर थी कि मेरा पांव फैक्चर हो गया था। छाती पर लगी चोट के कारण मैं पूरी तरह से सांस भी नहीं ले पा रहा था। मुझे कुछ और नहीं सूझा मैंने पर्दे को अपने गले पर बुरी तरह लपेट लिया और अपने दोनों हाथों से खींचने लगा। पर्दों ने मुझे पहले भी सोमू तक पहुंचाया था,,, चाहे भले ही मेरी जान चली जाए पर मैं फिर से उस तक पहुंचना चाहता था। मुझे अपना गला अंदर की तरफ धंसते हुए महसूस हो रहा था। फेंफडे मानो पूरा दम लगा कर खुद में हवा भरने की कोशिश कर रहे थे , पर मैं दोनों हाथों से कसकर पर्दे की रस्सी को खींच रखा था। रक्त का प्रवाह  मेरी चेहरे की तरफ बहुत ज्यादा बढ़ गया था , जिसके कारण मुझे तपिश महसूस हो रही थी। खिड़की से आने वाली स्ट्रीट लाइट मेरी आंखों में चुभ रही थी , फिर भी मैं आंख नहीं बंद कर पा रहा था। मेरी आंखें फैलती ही जा रही थी जैसे बाहर निकल जाएगी। कान के पास की धमनी  इतनी जोर से उछल रही थी जैसे मेरे कान फटने वाले हो । कुछ ही पल में मेरी फटी आंखों के आगे अंधेरा छा गया। हाथों में ऐठन आने की वजह से पर्दा मेरे हाथ से छूट गया था। अभी पूरा शरीर कंपन कर रहा था । पांव में भले ही फैक्चर था , पर पांव भी  कम्पन कर रहे थे। फिर इतना तेज दर्द हुआ कि मेरा रोम रोम कांपने लग गया । उस वक्त मेरे हाथ अपने आप मेरे गले की तरफ बढ़ने लगे । मैं खुद को बचाने की आखिरी कोशिश करना चाहता था ,  पर उस पर गांठ कुछ ऐसी लगी कि मेरी यह कोशिश बेकार गई । धीरे धीरे मेरा शरीर शांत पड़ रहा था और अब मेरी आंखो के सामने वह दृश्य घूम रहे थे ,,,,,,,,जब सोमू मेरे साथ थी .....जब मैं उसको आइसक्रीम खिलाने ले गया था,.... जब वह मुझे चिढ़ाने के लिए माइनस फिगर वाले भैया बोलती थी ....उसकी एक एक  बातें किसी वीडियो की तरह मेरी आंखो के सामने चल रही थी । तभी वह दृश्य आया जब महिपाल और विनीत उसे,,,,,,, .....यह देख कर एक बार फिर मैं गुस्से से भर उठा  । पता नहीं मेरे हाथों में कहां से ताकत आई और मैंने रस्सी एक बार फिर पूरी ताकत से खींच दी और गहरे अंधेरे में गोता लगा गया। मुझे बेहद ही हल्का सा महसूस हो रहा था । मेरी आंखें भी कसकर बंद हो गई थी और जब आंख खुली तो उसी हवेली के पीछे वाले दरवाजे पर था जहां से मैं सोमू को छुड़ा कर लाया था।
              हवेली की पिछली दीवार पर लगे पर्दों और उनके पीछे छिपी काली दीवारों के दरवाजों को मैं अच्छी तरह से पहचानता था इस दृश्य को देखकर मन ही मन मैंने भगवान को धन्यवाद दिया कि उन्होंने मुझे सही जगह पर पहुंचाया है।



प्रिय पाठकों??
                   सोमू , अंकित , प्रोफेसर या महंत जी तो जरिया मात्र है, ये कहानी असल में कुलधरा के रहस्य के बारे में है , वहां कैद सैंकड़ो आत्माओ की रिहाई के बारे में, आत्माओ के अस्तित्व के बारे में है। 
                   इसलिए अंत के विषय में जल्दीबाजी न करें। यदि आप जानना चाहते हैं कि सोमू किस चश्मे वाली की बात कर रही थी तो मेरी एक अन्य कहानी "दो लम्हे" पढ़ें।
                   कहानी पढ़ने के बाद रेटिंग ओर समीक्षा जरूर दें ओर पसन्द आने पर इस सीरीज को दोस्तों में शेयर करें। इस कहानी को निर्मित करने के लिए विभिन्न प्रकार के भारतीय ओर पाश्चात्य दर्शन के साथ साथ आधुनिक पेरानॉर्मल विज्ञान का भी समावेश किया गया है। हालांकि तन्त्र विज्ञान से इसे दूर रखा है।
                   तन्त्र विज्ञान आधारित मेरी एक अन्य कहानी "मेरा हिस्सा" है जो शायद आपको जरूर पसन्द आएगी। इसी प्रकार भूतों के साथ साथ भगवान में भी मेरी आस्था है तो आस्था उम्मीद ओर सकारत्मकता से भरपूर मेरी एक अन्य कहानी "मन्ज़िल प्यार की" भी जरूर पढ़े जो मातृभारती पर उपलब्ध है।
                   जल्द ही अगले भाग के साथ मिलता हु तब तक पढ़ते रहे मातृभारती।