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सजायाफ्ता कौन


'वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है.....'
सुबह से गाने की पंक्तियाँ उसके जेहन में गूँज रहीं थीं। सिंधु परेशान थी क्योंकि दिल से दिल नहीं मिला था... जो हुआ था वह बहुत भयावह था। सब कहते हैं... 'होइहि सोइ जो राम रचि राखा.. को करि तर्क बढ़ावै साखा...' वह इसे स्मरण कर भी संतुष्ट नहीं हो पा रही थी। रामजी ने ये रचा होगा, उसका मन मानने को तैयार ही नहीं था। रामजी तो सबका भला करते हैं, फिर....? एक बहुत बड़ा प्रश्न मुँह बाए खड़ा था।

कितनी मासूम सी लग रही थी वह युवती फोटो में... वह सुबह से बीसियों बार अखबार में छपी फोटो देख चुकी है... बरसती आंखों से कागज़ गीला हो गया, किन्तु उसके अंदर की नमी अभी तक उसे तरबतर किए हुए है। कितना प्यारा नाम... 'तितली'... सच तितली की तरह ही नाज़ुक और सपनों की दुनिया में विचरने वाली होगी... कितने बड़े शहर के नामी कॉलेज में पढ़ रही थी। लोग बता रहे थे कि बहुत अमीर बाप की बेटी थी। बाप सिर्फ धन-दौलत से नहीं, दिल से भी अमीर है। न जाने कितने अनाथों को पढा लिखा कर नौकरी पर लगा दिया... कितने निराश्रितों को आसरा दिलवा दिया... कितनी ही गरीब बेटियों के हाथ पीले करवा दिए... धन के साथ दुआएं भी खूब बटोरीं। लेकिन न धन काम आया और न दुआएं....! क्या बेटी का बाप होना इतना बड़ा अभिशाप है... और उसकी माँ.. क्या हालत हो रही होगी उसकी..? वह तो सोचकर ही सिहर रही है, जब उसने अपनी बेटी की अधजली लाश देखी होगी, क्या गश खाकर गिर न पड़ी होगी..?

नृशंस सामूहिक बलात्कार के बाद जलाकर हत्या करते हुए क्या उन पुरुषों का दिल क्षणभर को भी नहीं काँपा होगा। क्या उनके घर में बहन बेटियां नहीं होंगी। क्या वे उन्हें भी एक पुरुष की नज़र से देखते होंगे या कि भाई और पिता की...? वह जितना सोच रही थी, उतनी ही विचलित हो रही थी। उसे याद आया कुछ दिनों पहले जब उसके बेटे समर के साथ उसके दोस्त हॉलीडेज में घूमते हुए तीन दिन घर पर रुके थे, तब वह कितनी खुश थी। हॉस्टल में बच्चे कितना मन मारते होंगे ये सोचकर उसने खूब आवभगत की थी। क्या क्या नहीं बनाया और खिलाया... वे सब भी ऑन्टी ऑन्टी कहते हुए उसके आगे पीछे घूमते रहते। उनमें से एक था जिसकी नज़र से वह असहज हो जाती थी। अपने बेटे की उम्र के लड़के की नज़र जब उसे देखती, तो उसमें एक पुरूष की कामुक छबि दिखती थी। तब भी उसने सोचा था कि पुरुषों को रिश्तों से परे जाकर नारी सिर्फ देह क्यों दिखती है..? उसने पति से जिक्र भी किया था कि "बेटे के सब दोस्त अच्छे हैं, किन्तु यह एक कुछ ठीक नहीं लग रहा है।" पति ने उसे समझा दिया था कि "ये उम्र का तकाजा है, तुम सहज रहो... तुम उसकी माँ की उम्र की हो... और तुम हो ही इतनी सुंदर कि किसी की भी नज़र टिक जाए... इस उम्र में भी जलवे हैं तुम्हारे...." कहते हुए उन्होंने उसे अपनी बाँहों के दायरे में समेट लिया था। वह चुप रह गयी, किन्तु पति के सोने के बाद भी वह रात भर जागती रही थी। स्त्रियों की छठी इन्द्रिय पर उसे भरोसा था... उसने यह भी सुन रखा था कि एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है। उसे अपने बेटे की चिंता हो रही थी। शादी के बारह साल बाद हुआ था। उसने बेटे से बात करने का मन बना लिया था।

सुबह उसने बातों ही बातों में बेटे से उसके दोस्तों की पारिवारिक पृष्ठभूमि की जानकारी लेनी शुरू की। उसका अंदेशा सही निकला। उस लड़के के माता पिता का तलाक हो चुका था। उसने अपनी माँ से अक्सर पिता के नाज़ायज़ रिश्तों की कहानियां सुनी थीं। उसकी माँ ने बेटे के सामने खुद को सही साबित करने के लिए पिता के चरित्र का कच्चा चिट्ठा उसके सामने खोलकर उसे अलगाव की वजह बताया था। स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों को लेकर उसके मन में एक कौतुक था। सिंधु वैसे तो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, किन्तु किताबें पढ़ने का शौक होने से हर विषय को पढ़ रखा था। उच्च डिग्रीधारी पति भी उसके अकाट्य तर्कों से पराजित हो जाते थे। वह तुरन्त समझ गयी कि उस लड़के की गलत परवरिश के कारण उसकी सोच कुंठित है, साथ ही वह हीन भावना से ग्रसित है। उसने बेटे को समझाया कि वह लड़का सही नहीं है, उससे दूरी बनाकर रखे। दोस्तों के जाने के बाद बेटे ने बाप के साथ मिलकर उसे खूब लताड़ा था... उन दोनों का सोचना था कि सिंधु गलत है, उस बच्चे को परिवार में प्यार नहीं मिला तो क्या हम भी उसे दुत्कार दें। हो सकता है कि दोस्तों के प्यार से उसकी जिन्दगी बदल जाए। सिंधु न चाहते हुए भी इस बात पर चुप रह गयी थी। उसने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की थी कि वह लड़का सही रहे। आज उसे न जाने क्यों उसका ख्याल आ रहा था बार बार....

उसे एक बेटी का भी बहुत चाव था, किन्तु सास ससुर और पति बेटे के आने से खुश थे.. उसकी उम्र और प्रसूति की जटिलता को देखते हुए एक बेटे के बाद ही परिवार को पूर्ण माना गया। आज वह खुश थी कि उसे बेटी नहीं हुई। उसे हर हंसती-खेलती और खिलखिलाती मासूम बेटी के आस-पास अदृश्य बलात्कारी की काली छाया मंडराती दिख रही थी। उसने कहीं पढा था कि अंधेरे में जब कोई काली छाया दिखती है तब पुरुष उसे चुड़ैल और स्त्री उसे पुरुष समझकर डर जाते हैं। आज लग रहा था कि वाकई स्त्रियों को सबसे ज्यादा डर पुरुषों से ही है, जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तब....? आज सुबह से ही इस विषय पर पढ़ी हुई कहानियां और उनसे जुड़ी सच्ची घटनाएं उसके दिमाग में कौंध रही थीं। वाकई इंसानी वेश में छिपे इन नृशंस भेड़ियों को चौराहे पर सबके सामने कौडों से मारकर फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए। क्या इनके डर से बेटियों को फिर से घर की चारदीवारी में कैद कर दिया जाए...? लेकिन तब भी वे कहाँ सुरक्षित हैं। उसके बचपन की अनेक कड़वी यादें उसके सामने से फिर गुजर गयीं। वो पिताजी के दूर के रिश्ते के मामाजी जब भी आते थे, अपने पैर दबवाते थे... उसे तब समझ कहाँ थी किन्तु वह स्नेह और वासना के अंतर को न समझकर भी असहज हो ही जाती थी। एक अंकल जो कभी कभी उसकी पढ़ाई सम्बन्धी प्रश्नों को हल करवाते थे, वह भी तो मम्मी के किचन में जाते ही उससे सटकर बैठ जाते थे। और वह चाचाजी... वह भी तो उसे साईकल पर घुमाते हुए कहाँ कहाँ नहीं छूते थे। उसकी मम्मी के इतना सचेत रहने के बावजूद ये घटनाएं उसके साथ घट ही चुकी थीं। उस समय संचार साधन सीमित थे, तो पता नहीं चलता था। एक संकोच भी था,किन्तु आजकल तो बच्चे टी वी मोबाइल पर सब देखते समझते हैं। लड़कियां भी जागरूक हो रही हैं... फिर भी...??

कॉलबेल की आवाज़ से उसकी तन्द्रा टूटी। बेटे को अचानक आया देख वह चौंक गयी।
"बिना सूचना के अचानक... सब ठीक तो है..?"
"हाँ माँ! सब ठीक है... कॉलेज में स्ट्राइक हो गयी है, कैंडल मार्च और दिखावे होंगे कुछ दिनों तक... तो मैं घर आ गया... घर पर पढ़ाई हो जाएगी।"

पति भी ऑफिस से आ चुके थे। दोनों बाप बेटे गर्मागर्म पकौड़े और चाय के साथ टी वी देख रहे थे। हालिया हृदय विदारक घटना पर बहस छिड़ी हुई थी.....

"बलात्कारियों के पौरुषत्व को खत्म कर दिया जाना चाहिए... " एक आवाज़ उभरी।
"स्त्रियों की अस्मिता को उनके कौमार्य से नहीं आँकना चाहिए... विक्षिप्त पुरूष उनकी इज्जत लूटकर अपने दम्भी पौरुष को सहलाते हैं।" दूसरी आवाज़ आयी।
"वह अलग मैटर है, यहाँ तो पुरुष की कामुकता ने एक असहाय स्त्री को रौंदकर देश की अस्मिता पर हमला किया है, कठोर कानून बनना चाहिए।"
"लड़कियां अपनी हद में क्यों नहीं रहतीं, रात बिरात अकेली निकलेंगी, छोटे कपड़े पहनेंगी, ये फैशनबालाएं ही पुरुषों को उकसाती हैं कि आओ हम उपलब्ध हैं...." किसी ने ऊँगली पीड़ित स्त्री पर उठाई.... सिंधु भी आक्रोशित हो गैस बन्दकर बाहर आ गयी।
"ये कौन महाशय हैं, जो पीड़िता को ही अपराधी बता रहे हैं...?" वह गुस्से से उबल पड़ी... पति कुछ कहने को हुए तभी स्क्रीन पर फिर एक सज्जन बोले... "और नहीं तो क्या....? गलती महिलाओं की ही है... और उस बलात्कारी की माँ की भी, जिसने अपने बेटे को सही संस्कार नहीं दिए... और बेटी को भी मर्यादा नहीं सिखाई।"
अब एक लड़की ने क्रोधित होकर माइक हाथ में लिया और बोलना शुरू किया....
"आप देश के कर्णधार हो.. कानून के रखवाले हो.. लेकिन उन सबसे पहले आप सिर्फ पुरुष हो... एक भावनाशून्य पुरुष... आप एक स्त्री की मनोदशा नहीं समझ सकते, यदि तितली की जगह आपकी बेटी होती तब...? तब भी आप यही कहते..? कितने साल हो गए हैं निर्भया कांड को..? आजतक उन बलात्कारियों को सज़ा नहीं हुई... और तो और किसी ने कहा कि बच्चों से गलती हो जाती है... इन दरिंदों के लिए कोई वकील अपना जमीर गिरवी रख पैरवी करेगा और वे कानून से बच जाएंगे, किन्तु आप एक बार निर्भया या तितली की जगह अपनी बेटी को रखकर देखिए, तब उसके मां बाप की स्थिति की कल्पना कर दहल जाएंगे। एक तरफ आप कहते हैं कि बेटी है तो कल है, बेटियों को खुला आसमान देने की बात करते हैं और उनके पंख कतर देते हैं... बलात्कारी को इतनी कठोर सजा दी जाए कि अगली बार अपराध करते हुए पुरुष डर जाए....."
तालियाँ बज उठीं। एक नवयुवक ने माइक ले लिया... " बात स्त्री और पुरुष की नहीं है। बात सही और गलत की है। हम क्या करेंगे अब..? जुलूस निकालेंगे, नारें लगाएंगे, कैंडल्स जलाएंगे, थोड़े दिन बाद सब भूल जाएंगे... बस यहीं हमें मजबूत होना है... भूलना नहीं है... अपराधी को सज़ा दिलानी है... लेकिन मेरा एक सवाल और है.... हम किस समाज में रह रहे हैं... सरकार कहती है, शराब बुरी चीज है,मत पियो, किन्तु शराब बनाने पर रोक नहीं लगाती। किसी ने कहा कि बेटे को संस्कार नहीं दिए, माँ की गलती है... मैं पूछता हूँ कि कौन माँ होगी जो ऐसा बेटा चाहेगी..? हमें समस्या की जड़ में जाना है... आज चारों तरफ पोर्न साहित्य बिखरा पड़ा है... क्यों नहीं आप ब्लू फिल्मों पर रोक लगाते हैं..? बेटी और बेटे की सीमारेखा मिटा दीजिए... दोनों को एक जैसी परवरिश दीजिए... और सुरक्षा के साथ स्वरक्षा पर जोर दीजिए..."

बेटे ने उठकर टी वी बन्द कर दिया... "फालतू की बहस चल रही है, कुछ नहीं बिगड़ना उन लड़कों का... जब जला ही दिया है तो सबूत भी नहीं मिलेंगे..."
सिंधु चौंक गयी... "क्या...? सबूत मिटाने के लिए जलाया....?"
"तुम अब लोड मत लो, सुबह से परेशान दिख रही हो... थोड़ा रिलैक्स हो जाओ... मैं मार्किट से आता हूँ।" उसके पति बोलकर चले गए।

"बेटा! तेरा वो दोस्त क्या नाम था उसका... वह भी तो तितली के शहर का ही है न...? उसे कितना बुरा लग रहा होगा... वह तो जानता होगा उसे..? उसने बेटे से पूछा।
"माँ तुम क्यों लोड ले रही हो, वह उसके साथ स्कूल में पढ़ा है, जानता था उसे, अब इस बात को भूल जाओ।"
सिंधु ने और कुछ नहीं पूछा... अपने काम में लग गयी। एक दुश्चिंता ने उसे घेर लिया था।

रात में उसकी नींद खुली तो बेटे के कमरे से आती आवाज़ से उस ओर बढ़ी। बेटा बिस्तर पर लेटा हुआ मोबाइल पर बात कर रहा था। वह माँ को देख नहीं पाया.... "हाँ यार! अब कुछ दिन फोन मत करना, मेरी मम्मी को शक हो गया है, उन्होंने पहले ही कह दिया था कि उससे दूर रहना... उसकी दोस्ती के कारण ही आज हम मुश्किल में पड़ गए। किसी तरह मामला ठंडा हो जाए फिर सोचते हैं कि क्या करना है..?"
उसने कमरे की लाइट चालू कर दी... बेटा चौंककर उठ बैठा।
"क्या है ये सब..?" सिंधु निर्विकार थी।
"मम्मा... वो.. वो.. मैंने कुछ नहीं किया... मम्मा वो तितली उसकी गर्लफ्रैंड थी स्कूल में... फिर उसने ब्रेक अप कर लिया था तो उसने बदला लेने के लिए..... मम्मा... मेरी गलती नहीं है.... " समर फूट फूट कर रो पड़ा। आवाज़ सुनकर उसके पति भी आ गए थे।
"क्या हो रहा है ये...?" उनकी रोबीली आवाज़ से वह और जोर से रोने लगा।
"मैंने कहा था उससे दूर रहने के लिए... तब तो सहानुभूति उमड़ रही थी... पहली बार मैंने आपकी बात मानी और आज ऊँगली मुझपर उठ रही है... मेरी परवरिश गलत हो गयी..." वह पत्थर सी कठोर थी।

"पापा! वो उसने तितली को कन्विंस कर लिया था कि वह सुधर गया है, पुरानी दोस्ती का वास्ता देकर उसे मिलने बुलाया। उसने हम सबको शराब पिलाई, फिर लैपटॉप पर वीडियो दिखाए... हमें किसी को होश नहीं था... उसने तितली से पैचअप करने को कहा, नहीं मानने पर उसके साथ जबरदस्ती की... और फिर हम सबने... बाद में डर के मारे उसे जलाने की कोशिश की... पापा मुझसे गलती हो गयी, प्लीज मुझे माफ़ कर दो... मुझे बचा लो...."

बेटे के आने से हमेशा घर एक उत्साह से भर जाता था, किन्तु इस बार... एक अपराधबोध के साथ दुश्चिंता ने घेर लिया था। काफी मन्नतों के बाद बेटे का मुँह देखा था... इकलौते बेटे से मुँह भी नहीं मोड़ा जा सकता... एक लंबी खामोशी के बाद पिता की ठंडी सी आवाज़ आयी.. "माँ बाप साथ नहीं देंगे तो कौन देगा... बेटा हम तुम्हारे साथ हैं, सोचते हैं कि अब क्या करना है..?"

सिंधु एक शब्द भी बोले बिना उठकर आ गयी। एक बोझिल चुप्पी पसर गयी थी उनके बीच। अगले ही दिन पति ने दुबई ट्रिप के लिए टिकट बुक करवा लिए.. "एक हफ्ते घूमकर आएंगे, तब तक मामला ठंडा हो जाएगा, दो दिन हैं तैयारी के लिए.... किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है, अच्छा हुआ ये बिज़नेस ट्रिप पहले ही प्लान कर रखी थी, अब फैमिली ट्रिप भी हो जाएगी।"

"अभी तक किसी अपराधी का कोई सुराग नहीं मिला है... क्या हम इस घटना को भी भूल जाएंगे..? क्या तितली के बलात्कारी कातिल पकड़ में आएंगे..? यदि पकड़े भी गए तो क्या वे सज़ा पाएंगे...? क्या हम किसी और बेटी को शिकार होने से रोक पाएंगे...? अनेक प्रश्न हैं... क्या हम इनका जवाब ढूंढ पाएंगे...?" टी वी पर आती आवाज़ें सिंधु की बेचैनी बढ़ा रहीं थीं। पति और बेटे पैकिंग में बिजी थे। कॉलबेल बजी... दोनों के चेहरे पर उभरते प्रश्नचिन्हों को नज़रंदाज़ करते हुए सिंधु ने दरवाजा खोल दिया...
"पु..लि...स... क.. क.. क्यों...?" पति की आवाज़ लड़खड़ा गयी, उसने हारे हुए जुआरी की तरह पत्नी की ओर देखा...
"मैंने बुलाया है..... आइए इंस्पेक्टर साहब ये रहा आपका अपराधी... तितली के कातिलों में से एक....." उसकी आवाज़ सपाट थी।
"मम्मी.... आप ऐसा कैसे कर सकती हो... ये गलत है इंसेक्टर साहब.. मम्मी झूठ बोल रही हैं.." अब तक आस पड़ोस भी इकट्ठा हो चुका था...
"मैं समाज की उठती उँगलियों को नज़रंदाज़ भी कर दूँ, किन्तु तितली के चेहरे पर उपजे मासूम सवाल मुझे चैन से जीने नहीं देंगे... मुझे दुःख है कि मेरा बेटा कपूत निकला... मेरी ही परवरिश में खोट होगा... मैं अपने अंतर्मन में उठते प्रश्नों का क्या जवाब दूँगी... मैं खुद ही कटघरे में खड़ी कर दी गयी हूँ.... मैं चाहूँगी कि मेरे बेटे और तितली के कातिल इसके दोस्तों को सरेआम दण्डित किया जाए ताकि भविष्य में कोई पुरुष बलात्कार करने से पहले दस बार सोचे... इसकी मौत की चीखें इतनी गूँजनी चाहिए कि दसों दिशाओं में उसकी प्रतिध्वनि बरसों तक सुनाई दे... बेटियों के चेहरों पर खौफ नहीं सुकून दिखायी दे.... इसे ले जाओ मेरी आँखों के सामने से......" कहते हुए सिंधु बेतहाशा रोते हुए गश खाकर गिर पड़ी। दो दिन से पत्थर बनी सिंधु टूट कर बिखर रही थी...

टी वी पर आवाज़ें अब भी गूँज रहीं थी... समाज की बेटियों की तरफ से एक बहादुर माँ के सम्मान में.... लेकिन प्रश्न अभी भी तैर रहे थे...!

©डॉ वन्दना गुप्ता
मौलिक
(30/11/2019)