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फ़ैसला - 4

फ़ैसला

(4)

आज अभय ने मेरी बात को घुमाया नहीं बल्कि सच बताने की कोशिश कर रहा था। क्योंकि इस समय वह शराब के नशे में था और जहां तक मैंने सुना कि आदमी शराब के नशे में सच बोलता है। उसने बताया कि कुछ महीने पहले एक आदमी से मेरी मुलाकात हुई, यह छोटी सी मुलाकात धीरे-धीरे मित्रता में दबल गयी। वह बहुत बड़ा आदमी है उसके दो-दो गैराज चजते हैं। उसका नाम मयंक सिंह है। उसका एक गैराज तो सीतापुर रोड पर ही है। धीरे-धीरे मेरी दुकान से आटो पार्ट मंगाना शुरू किया और आज उसी के कारण रोज अच्छी खासी बिक्री हो जाती है, उसी के द्वारा और कई गैराजों में आटो पार्ट की सप्लाई मैंने शुरू कर दी है तभी तो मैं अपनी दूसरी दुकान भी खोलने जा रहा हूँ। वह अक्सर शाम को मेरी दुकान पर आ जाता है। वहीं दुकान के बाहर बैठक भी जम जाती है, फिर पीने -पिलाने का दौर शुरू होता है।

अरे! तुम्हें.... नहीं मालूम वो तो पांच छः पैग पानी की तरह पी जाता है। मैं सिर्फ दो ही पैग में टल्ली हो जाता हूं।

यह सुनकर मेरे माथे पर पसीना उन जाड़े के दिनों में भी आ गया। मैंने अपने साड़ी के पल्लू से पसीना पोछते हुए। अभय को जाकर किचन में खाना परोसा और लाकर उसके सामने मज पर रख दिया। लेकिन मुझे मन ही मन बहुत चिन्ता हो रही थी। मुझे उसके इस तरह शराब पीकर घर आने के कारण अच्छा नहीं लग रहा था और ऊपर से भविष्य अनिष्ट की आशंकाओं से घिरा दिखाई पड़ता था। लेकिन मैं इस समय उससे क्या कहती, वह मेरी बात इस हालत में समझ भी कैसे पाता। मैंने भी अपना खाना निकाल कर खाने बैठी। लेकिन मेरे गले के नीचे खाना उतर ही नहीं रहा था। मुझे बहुत चिंता हो रही थी और अभय अपने नशे में होने के कारण खाना नहीं खा पा रहा था। वह अपने नशे में कुछ देर बाद मस्त बेड पर बेसुध पड़ा था और मैं चिंताओं के भंवर जाल से निकलने का मार्ग ढूंढ़ रही थी, लेकिन सामने अंधेरे के अलावा कुछ भी नहीं दिखायी देता था। इसी तरह लेटे रहने के बाद पता नहीं कब आंख लग गयी।

अगले दिन सबेरे प्रतिदिन की तरह मैं अपने काम में लग गयी। उधर अभय देरी से जागकर, दुकान जाने के लिए तैयार होने लगा। वह मुझसे बात करने का प्रयास कर रहा था और मैं उसने कल रात जो शराब पी थी उसी से बहुत नाराज थी। आखिर उसकी एक झप्पी ने मेरी नाराज़गी की टांय-टांय फिस कर दी। मुझसे रहा न गया मैंने भी उसे किस कर ली। इसके बाद तो इसी तरह सुबह से शाम और शाम से सुबह होती रहीं। इसी बीच अभय और मुझमें कभी प्यार कम हुआ और कभी ज्यादा, लेकिन वह उसकी शराब पीने की आदत को छुड़ा न पाया। शायद यहां पर मैं अपने प्यार को असफल पाती थी। जो शराब के नशे की जगह न ले सका। इसी तरह प्यार और नाराजगी के बीच कब मैं मां बन गयी, पता ही न चला। असली पता तो तब चला जब नौ महीने बाद मेरी गोद में एक नन्ही परी आ गयी।

उसने तो शायद मेरी जिन्दगी बदल के रख दी। अब मैं पत्नी ही नहीं एक मां भी थी। मेरे ऊपर इस समय पति और बेटी दोनों की जिम्मेदारी थी। पिता यानी अभय तो सबेरे घर से निकल जाता और देर रात घर वापस आता था। वह अब मुझसे अधिक बेटी पर प्यार लुटाता था। लेकिन उसकी वह शराब पीने की आदत छूटने की जगह और उससे चिपकती चली गयी। या यों कहिए कि उसको अब मेरी जगह शराब से इश्क हो गया था। हंसते खेलते मेरे छोटे से परिवार में कलह के बीच अंकुरित होते दिखायी देने लगे। मैंने एक दिन उन बीजों को नष्ट करने का प्रयास किया, जिससे यह अंकुरित बीज पौधा न बन सके। अभय को बहुत समझाया कि दोस्तों के साथ इस तरह पीना पिलाना और नशे में घर आना अच्छी बात नहीं है। इस पर वह समझने के बजाय मेरे साथ गाली गलौज पर उतर आया। आखिर में मैंने ही अपनी जीभी पर लगाम कस ली और ईश्वर के सहारे छोड़ दिया। कि अब ईश्वर ही इनकी बुद्धि को बदल सकता है किसी आदमी के बस की बात नहीं।

जब अभय ने देखा कि मैं उसके मैं उसके क्रिया कलापों में हस्तक्षेप नहीं कर रही हूं तो वह सुधरने के बजाय और शराब को गले लगाता चला गया। पहले तो वह रात में घर बाहर से ही पीकर आता था लेकिन अब शराब की बोतल घर में लेकर आने लगा और पीने का भी कोई समय नहीं कहो तो दुकान जाने से पहले ही एक पैग चढ़ा ले। मैं यह सब देखकर अन्दर ही अन्दर घुटती जा रही थी। अपने इस दर्द को सुनायें तो किसे? कष्टों को सुनने वाला ही कष्टों का कारण बना हुआ है। फिर भी मैंने अपने आप को संभालते हुए समस्याओं के आगे घुटने टेके। जैसे कि मुझे आभास होता था कि अब अभय जो कभी मेरे ऊपर हर समय अपना प्यार लुटाता रहता था, बेटी के पैदा होने के बाद उसमें कमी दिखायी देने लगी थी। लेकिन वह बेटी को बहुत प्यार करता था। मैंने भी सोचा चलो वह बेटी से प्यार करता है मेरे से कम करता है कोई बात नहीं। हो सकता है कभी तो पुराने दिनों की याद आयेगी, जब मैं उसके साथ सात फेरे लेकर, उसके घर दुल्हन बनकर आयी थी और वह किसी की परवाह किये बिना मेरे ऊपर अथाह प्यार लुटाता था।

मेरा यह सोचना शायद ब्यर्थ ही था। मैं एक ऐसा सपना खुली आंखों से देख रही थी, जो कभी पूरा होने वाला ही न था। जो लड़के दुकान में काम करते थे उनके द्वारा पता लगा कि अभय प्रतिदिन दुकान जाता तो जरूर है, लेकिन अपनी दुकान पर समय देने के बजाय मयंक की गैराज में ज्यादा समय बिताता है।

दुकान पर काम करने वाले लड़के जब कोई सामान लेने घर आते थे, तभी मैं उनसे पूंछ पाती थी। वे भी डरते-डरते आधा-अधूरा ही बताते थे। क्योंकिकि वे सभी अभय से डरते थे। हमें उसकी बातें बताने के यह जरूर कहते थे कि भाभी जी भाई साहब से यह मत कहना कि मैंने आपको बताया है। उनका डरना भी स्वाभाविक था क्योंकि उन्हें नौकरी जो करनी थी। आखिर वे बेचारे थे तो नौकर ही। अपने मालिक की बातों को किसी से बताना ठीक तो नहीं था। इसीलिए वे अभय से डरते थे कि कहीं नौकरी से ही हाथ न धोना पड़ जाय।

इधर सिद्धेश सोफे पर बैठा सुगन्धा के अतीत की दुःख भरी कहानी बहुत ध्यान से सुन रहा था। वह बीच-बीच में हां या हूं शब्दों का प्रयोग कर रहा था। क्योंकि कहीं सुगन्धा को यह न लगे कि वह उसकी बातों को सुन नहीं रहा है, या फिर उनको सुनने में उसे कोई रूचि नहीं है। वैसे रात तो काफी हो चुकी थी परन्तु सिद्धेश ने यह ठान लिया था कि आज जब तक सुगन्धा अपने अतीत से परिचय कराती रहेगी, मैं उसको बीच में रोकूंगा नहीं। वह अपने इस वचन पर अटल सोफे पर बैठे हुए कभी बायें पैर व कभी दायें पैर की स्थिति को बदल रहा था।

उधर सुगन्धा को भी देर रात का कोई आभास ही नहीं था वह तो बस अपने अतीत के दल- दल में फंसी हुई प्रतीत हो रही थी। आज शायद उसे पहली बार अपने अतीत के बारे में बताने का मौका मिला था। उसे वह हाथ से जाने देना नहीं चाहती थी।

सिद्धेश के आगे बताने के आग्रह को सुगन्धा ना तो नहीं कर सकती थी लेकिन उसकी आंखें व्यथा के आंसू बहाने को आतुर हो रही थीं। उन्हें रोकती हुई वह आगे कहने लगी कि अब मेरे सुखी और समृ द्ध परिवार के सपने चूर-चूर होते दिखायी देने लगे थे। मेरे परिवार पर दुःखों के बादल मंडराने लगे थे। एक ओर जो मेरा पति कभी मुझसे अपार प्रेम करता था वह आज मुझे सिर्फ अपने घर का सामान मानने लगा था वह भी ऐसा जो उसके इशारे पर बिना किसी विरोध किये मशीन की तरह काम करते हुए हमेशा पत्नी धर्म को याद रखे।

दूसरी ओर मैं जो एक हाड़-मांस से बनी जीवित मूर्ति की भांति पति के आदेशों को मानते हुए सदैव उसकी इच्छा पूर्ति कर सके। उसके आदेशों को पूरा करने में कोई कमी नहीं होनी चाहिए और न तो बिलम्ब ही। यह दोनों बातें उसको बिल्कुल मंजूर नहीं थीं। अगर कहीं ऐसा हुआ तो फिर मेरी खैर नहीं। अब तो वह नशे की हालत में गाली-गलौज भी करने लगा था। उस समय यदि मेरे मुंह से कुछ निकल गया तो बाप रे बाप इतनी तेज-तेज चिल्लाना कि आस-पास के घरों तक आवाज़ पहुँच जाय।

एक बार तो समझिए कि हद ही हो गयी। वह दुकान से नशे की हालत में रात 11 बजे घर में दाखिल हुआ। उसने इतनी शराब पी रखी थी कि उसका खड़े रहना मुश्किल थ। वह चलते-चलते लड़खड़ाकर जीमन पर गिर पड़ा। अब मैं क्या करती, न चाहते हुए फिर भी मुझे उसके पास जाना पड़ा। उफ! पास जाते ही मुझे ऐसा लगा कि अभी उल्टी हो जायेगी। किसी तरह अपनी साड़ी के पल्लू को नाक पर रख कर उसे अपनी बाहों का सहारा देकर कमरे तक ले गयी। मैं कमरे से बाहर अपनी के जाने लगी, तब तक उसने बिस्तर पर ही उल्टी करना शुरू कर दी। यह देख मेरी हालत खराब होने लगी। फिर मैंने अपने आपको संभालते हुए उसे पानी देने के बाद बिस्तर और कमरे को साफ ही किया था कि वह चिल्लाने लगा। तू इधन-उधर क्या कर रही है। मेरे पास आकर मेरे सिर में तेल मालिश कर।

मैंने जल्दी-जल्दी सफाई करने के बाद अभय के सिर में तेल लगाना शुरू ही किया था कि वह अचानक फिर चिल्लाने लगा। जल्दी जाकर मेरे लिए शराब लेकर आ। मुझे और पीना है नशा कुछ असर नहीं कर रहा है जब कि वह रोज से अधिक आज नशे में था। अब मैं कर क्या सकती थी। मैं उसके सिर में तेल लगाती हुई अपने भाग्य को अन्दर ही अन्दर कोस रही थी। तभी एकाएक उसने मुझे गाली देते हुए धक्का दे दिया। बोला - तू सुन क्यों नहीं रही है। इतनी बात कहते हुए बेड के पास रखी हॉकी उठाकर तेजी से मेरे सिर पर मार दी। उसके इस तरह मारते ही मेरे मुंह से एक चीख निकली और मैं बेहोश हो गयी।

जब करीब दो घंटे बाद मैं होश में आयी तो मेरे सिर में भयानक दर्द हो रहा था और मैं कमरे की फर्श पर ही पड़ी थी। मैंने सिर में जो हाथ लगाया तो एकदम घबड़ा गयी। मेरे बाल खून से भीगे हुए थे। फर्श पर भी खून फैला हुआ था यहां तक कि मेरे ब्लाउज और साड़ी का कुछ हिस्सा भी खून से भीग चुका था। फिर मैंने सिर उठाकर देखा तो बेटी एक ओर बेड पर सो रही थी और दूसरी ओर पैंट पहने ही अभय भी पड़ा था। जैसे-तैसे मैंने उठकर कपड़े बदले और एक कपड़े की पट्टी मरहम लगाकर बांध ली। कुछ छोटी-मोटी दवाइयां अभय घर पर लाकर रख देता था फिर कमरे की सफाई करके बेटी के पास जाकर लेट गयी। उस रात मैं इतना रोयी कि मुझे याद नहीं कि रोते-रोते कब मेरी आंख लग गयी और मैं सो गयी।

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