Faisla - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

फ़ैसला - 11

फ़ैसला

(11)

अगले दिन सवेरे सिद्धेश ऑफिस जाने के लिए तैयार ही हो रहा था कि अचानक किसी ने कॉल बेल बजायी। उसकी आवाज से सिद्धेश भी खिड़की से गेट की ओर झांकने लगा। तब तक भोला गेट पर पहुंच चुका था। उसने गेट खोलकर देखा तो उसे पोस्टमैने दिखाई दिया। उसने पूछा - क्या यह सिद्धेश जी का मकान है। वे यहीं पर रहते हैं? उसके इस प्रकार पूंछने पर भोला मन ही मन बुद-बुदाने लगा। लगता है कोई नया निठल्लू आ गया है जो कि सिद्धेश बाबू के बारे में इस तरह पूंछताछ कर रहा है। भला उनको कौन नहीं जानता, कि वे यहीं पर हते हैं वह फिर चाहे पोस्टमैन हो या कोई साहब।

पोस्टमैन के इतना बोलने पर भोला ने लगभग झल्लाते हुए एक सांस में ही जवाब दे दिया। उसके बोलने का पोस्टमैन पर प्रभाव ऐसा पड़ा कि उसने झट से एक लिफाफा बैग से निकाल कर एक कागज पर दस्तखत करवा कर फौरन एक दो तीन हो गया। भोला ने जल्दी से गेट बंद करके वह लिफाफा सिद्धेश को जाकर थमा दिया। लिफाफे को देखते ही जैसे सिद्धेश का चेहरा पीला पड़ गया। सिद्धेश को जिस चीज का डर था यह उसी का फरफान निकला। उसने जल्दी से लिफाफा खोलकर अन्दर रखे कागज पर नजर डाली। उफ! यह क्या इसने तो कोर्ट के माध्यम से नोटिस भेज दी।

इतना कहते हुए उसने वह लिफाफा अपने बैग में डाला और ऑफिस के लिए कमरे से चल दिया। वह अपनी परेशानी को लाख छिपाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसके निशान मस्तिष्क पर उभरी रेखाओं के रूप में साफ नजर आ रहे थे। उन्हें देखते ही भोला ने उभरी रेखाओं को पढ़ लिया था। वह कुछ पूंछने के लिए अपना मुंह खोलता कि उससे पहले ही कार गेट से बाहर चली गयी। फिर भी भोला ने अंदाजा लगाया कि जरूर यह बीबी जी से सम्बंधित कागज ही होगा। इसीलिए साहब का मूड बहुत ही उखड़ा-उखड़ा लग रहा था। वह शायद इसी कारण चिन्तित भी थे। वह मन ही मन बड़बड़ाने लगा। अरे! बीबी जी ने भी पता नहीं कौन सी जिद पकड़ रखी है। अपने घर में आकर अपनी गृहस्थी को संभालना चाहिए। भला उनके इस घर में किस चीज की कमी है। सब कुछ तो है उनके पास। रही बात सिद्धेश साहब की! तो उनके बराबर तो शरीफ आदमी ढूढ़ने से भी नहीं मिलेगा। हर एक के दुःख दर्द को वे अपने समान ही समझते हैं। वे तो बिल्कुल देवता हैं देवता।

ऑफिस के अन्दर सिद्धेश की कार पहुंच गयी। वह कार को पार्किग में खड़ी करके सीधे अपने कमरे की ओर तेज कदमों से चला गया। उसका मस्तिष्क क्रोध और चिन्ता के बीच फंसा हुआ था। इसलिए उसको आज कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। कमरे के पास पहुंचते ही चपरासी ने आकर परदा खोला। वह अपनी चेयर पर जाकर बैठा ही था कि डा. के.डी. का मोबाइल पर फोन आने लग गया। पहले तो सिद्धेश ने इधर-उधर की बातें की। लेकिन डा. के.डी. ठहरे मनोचिकित्सक शायद इसीलिए उन्होंने सिद्धेश की बातों को पढ़ लिया होगा। डाक्टर साहब के आग्रह पर सिद्धेश ने चिन्ता का कारण बनी सारी बातें फोन पर ही बता दीं। वैसे सिद्धेश तो चाहता था कि मृदुला सारे गिले शिकवे भूलकर अपने घर वापस चली आए। इसलिए वह बार-बार फोन पर उसको मनाने का भरसक प्रयास कर चुका था। अभी तक वह सोचता था कि हो सकता है कि वह मान जाये।

परन्तु डाक्टर से बातचीत करके उसका मन तो कुछ हल्का हुआ लेकिन आज कोर्ट द्वारा भेजे गये तलाक के कागजात ने उसको झंझोड़कर रख दिया। उसमें पत्र के माध्यम से सूचित किय गया था कि आप इन कागजों सहित दो दिन बाद कोर्ट में उपस्थित हों। अब सिद्धेश यह समझ चुका था कि मृदुला मुझसे संबंध रखना ही नहीं चाहती। पिता के घर में मिली स्वच्छंदता शायद उसे गृहस्थ जीवन जीने में बाधक बन रही थी। यही कारण था कि विवाह से लेकर आज तक सिद्धेश और मृदुला के विचार कभी नहीं मिल सके। उन दोनों में परोक्ष और अपरोक्ष रूप से कोई न कोई तू-तू मैं- मैं होती ही रहती थी। जिसका नतीजा आज यह निकला कि घर के अन्दर होने वाली बात न्यायालय तक पहुंच गयी और वो भी पति-पत्नी के संबंध के टुकड़े-टुकड़े करने के लिए।

सिद्धेश की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। थोड़ी देर बाद उसने एडवोकेट खन्ना को फोन पर अपनी सारी समस्या से अवगत कराया। सिद्धेश की सारी बातें सुनने के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सिद्धेश को कागजों सहित बतायी गयी तारीख पर कोर्ट में उपस्थित होना चाहिए। अगर वह नहीं उस तारीख पर जाएगा, तो कोर्ट उसे अवमानना के तहत दण्ड की भी घोषणा कर सकता है और फिर उस दिन तो मृदुला भी कोर्ट में उपस्थित ही रहेगी फिर जज के सामने ही जो बात आपको करनी है वह हो जाएगी। मुझे नहीं लगता कि पति-पत्नी के संबंधों का निर्वाह अब आपके और मृदुला के बीच में हो पायेगा। क्योंकि जब वह तलाक ही चाहती है तो सिद्धेश आप कुछ नहीं कर सकते। इस लिए जैसे मैंने बताया है वही करो। इसी में आपकी भलाई है। ऐसा एडवोकेट खन्ना ने कहा। इधर सिद्धेश ने भी उनकी बात को स्वीकार कर लिया।

खन्नाजी से बातें करने के बाद सिद्धेश के चिन्ता का विषय कुछ धूमिल तो हुआ। परन्तु मानसिक तनाव अभी भी पूर्वत बना हुआ था। इसलिए वह अपनी चेयर से उठकर कमरे में इधर-उधर चहल कदमी करने लगा। थोड़ी देर बाद उसे चाय पीने की इच्छा हुई तभी उसका हाथ कॉल बेल पर गया। आवाज सुनते ही चपरासी ने आकर कहा - साहब! क्या चाहिए?

अरे! जरा जल्दी से एक कप चाय ले आओ। सिद्धेश ने चपरासी से कहा। कुछ ही देर बाद चाय आ गयी। सिद्धेश ने चाय पिया तो उसे कुछ रिलैक्स महसूस हुआ। अब वह अपने मस्तिष्क को बेकार में उलझाना नहीं चाहता था। इसलिए पास में रखी कादंम्बिनी मैगजीन उठाकर पढ़ने लग गया। वह मैगजीन पढ़ ही रहा था कि चपरासी एक फाइल लेकर कमरे में दाखिल हुआ। सिद्धेश ने उस पर साइन करने के बाद टेबल पर रख दी। यह फाइल भी महिलाओं के हित में चलाए जा रहे कार्यक्रम से ही संबंधित थी। अब उसका मन ऑफिस में लग नहीं रहा था। उसने बैग में आवश्यक सामान रखने के बाद चपरासी से उसे ले चलने को कहा और स्वयं भी कमरे से बाहर निकल कर पार्किंग की ओर चल दिया।

सिद्धेश कार प्रतिदिन की भांति समिति कार्यालय की ओर जाने वाली सड़क पर चल पड़ी। वह कुछ ही दूर गयी होगी कि मोबाइल की घंटी अचानक बजना शुरू हो गयी। उसने नया नम्बर देखते ही तुरन्त फोन उठा लिया। यह फोन थाने से इन्सपेक्टर का था उसने बताया कि सुगन्धा के केस में शामिल तीनों आदमी जिनमें उसका पति भी है पुलिस की गिरफ्त में आ गये हैं। इसलिए अगर वह आत्म-संतुष्टि के लिए उन्हें देखना चाहे तो थाने आ सकता है। क्योंकि कल सबेरे ही उनको जिला जेल भेज दिया जायेगा। ऐसा सुनते ही सिद्धेश मन ही मन बहुत खुश हुआ और उसने इन्स्पेक्टर को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।

फिर क्या था सिद्धेश की कार थाने की ओर चल दी। क्योंकि वह मन आतताइयों को देखना चाहता था। जिनके कुकृत्य के द्वारा सुगन्धा आज मजबूरों की जिन्दगी जी रही है। पहले वह सुगन्धा को फोन पर ही बताने वाला था। लेकिन फोन पर बताना उचित न समझते हुए घर जाकर ही बताने का निर्णय लिया। पुलिस ने इतनी जल्दी इस मामले को हल कर दिया। वह मन ही मन सोचते हुए कार ड्राइव कर रहा था। यह सब खन्ना जी के कारण ही संभव हो पाया। वरना ये पुलिस वाले इतनी तीव्रता दिखाने वाले तो हैं नहीं।

पुलिस थाने के गेट पर सिद्धेश की कार रूक गयी। उसने पार्किंग की जगह देखकर कारण पार्क की। उसने कार से उतरते ही इन्स्पेक्टर को फोन किया। वह कुछ दूर पर खड़े अपने सहकर्मियों से बातें कर रहे थे। उन्होंने सिद्धेश को देखते ही हाथ हिलाया और इन्स्पेक्टर शर्मा शीघ्र उसके पास आ गये।

और सिद्धेश बाबू! कैसे हैं हाल-चाल ठीक हैं शर्मा इंस्पेक्टर ने कहते हुए हाथ मिलाया

हां-हां सब ठीक है सर! सिद्धेश बोला।

अरे मैंने सोचा कि सुगन्धा के गुनाहगारों को उनकी ससुराल भेजने से पहले आपसे मिलवा दूं। आप भी उनके दीदार कर लें। कहते हुए शर्मा जी ठहाके मार कर हंसने लगे।

इसीलिए तो सर! मैं भी आपके फोन करते ही हाजिर हो गया। शर्माजी हंसते हुए बोले - वैसे उन हरामजादों की मैंने अच्छी खातिरदारी की है। उन्होंने सब उगल दिया जो भी उनके पेट में था। रात में अभी एक बार और उनकी धुलाई करेंगे। फिर सबेरे इनको रवाना कर देंगे।

मतलब! रवाना कर देंगे। सिद्धेश अचम्भित होते हुए बोला।

अरे! रवाना मतलब जेल भेज देंगे। शर्माजी बोले।

नहीं। सर! मैं समझा कि आप उन्हें छोड़ देंगे। सिद्धेश ने कहा अरे- इनके छूटने का तो प्रश्न ही नहीं होता। इनके ऊपर इतनी धारा लगाऊंगा कि इन्हें नानी याद आ जाएगी। ये चिल्लाकर कहेंगे कि भइया कोई ऐसे काम मत करना। इनका जीवन तो नर्क से बद्तर होगा। आप देखते जाइये। कल ही इनके ऊपर मुकदमा कायम हो जायेगा। इस तरह शर्मा जी बोलते जा रहे थे। और सिद्धेश चुपचाप खड़ा सुन रहा था।

थोड़ी देर में शर्मा जी सिद्धेश के साथ हवालात के पास पहुंच गये और इशारों में ही बताया। किय यही हैं वह हरामखोर जिन्होंने सुगन्धा और उसकी बेटी के साथ कुकृत्य किया था। सिद्धेश ने उन लोगों की ओर देखा, तो दुष्टता उनके चेहरे पर साफ दिखायी दे रही थी। उन्हें देखकर उसे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन उसने उसे प्रकट नहीं होने दिया। कुछ मिनट के बाद ही वह हवालात के पास से इन्स्पेक्टर शर्मा के साथ ऑफिस की ओर चल दिया। ऑफिस में थोड़ी देर बातचीत के बाद शर्मा से हाथ मिला वह घर चलने को अपनी कार के पास पहुंच गया।

सिद्धेश इस समय एक ओर तो बहुत खुश परन्तु दूसरी ओर अपनी जिन्दगी से बहुत नाराज था। खुशी तो सुगन्धा को न्याय मिलने की उम्मीद दिखाई दी इसलिए। वह इसी द्वन्द के बीच अपने घर पहुंच गया। कार को पोर्च में खड़ा करके सीधे अपने कमरे में चला गया। पीछे से भोला ने बैग लाकर कमने में रखा ही था कि उसने सुगन्धा केा भेजने के लिए कह दिया। वह चुपचाप कमरे से निकलकर चला गया। सुगन्धा से जाकर सिद्धेश की बात बतायी कि साहब तुम्हें बुला रहे हैं। इसके बाद भोला नीचे किसी काम से चला गया।

सुगन्धा ने सिद्धेश के कमरे का दरवाजा धीरे से खोला। वह सोफे पर कपड़े बदलकर बैठा हुआ था। आओ-आओ इधर बैठो। सोफे से थोड़ा उठते हुए सिद्धेश बोल पड़ा।

हां! आपने क्यों मुझे बुलाया है। सुगन्धा सोफे पर बैठते ही बोल पड़ी।

अरे! मैं अभी थाने से ही आ रहा हूं। पुलिस ने तुम्हारे पति सहित उन सभी गुनाहगारों को पकड़ लिया है।

तो... तो क्या तुमने उनकेा देखा है।

हां-हां! बिल्कुल देखा। मुझे तो रास्ते में ही इन्स्पेक्टर शर्मा का फोन आ गया था। कि थाने आकर संतुष्ट हो जाओ। इसलिए मैं बिना देर किये थाने पहंुच गया। वहां जाकर देखा तो, वो सभी कुकर्मी हवालात में बन्द थे। जैसा शर्मा जी ने बताया कि कल उन्हें जेल भेज दिया जायेग। इसके बाद उन पर मुकदमा चलेगा। सिद्धेश जी! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। कहते हुए सुगन्धा की आंखों में आंसू छलक आये। उसका गला भर आया। वह आगे कहना चाहती थी। मगर वह कह न सकी और शायद अतीत के वो पल याद कर फफक-फफक कर रोने लगी।

अरे! यह क्या? तुम रो रही हो। अरे! अब तो तुम्हें खुश होना चाहिए कि तुम्हारे और तुम्हारी बेटी के साथ दुराचार करने वालों को उनके किये कि सजा मिलने की तैयारी हो गयी है। ऐसा कहते हुए सिद्धेश ने अपने हाथों से उसके आंसू पोंछते हुए चुप कराया।

सुगन्धा कुछ देर बाद अपने कमरे में चली गयी। इधर सिद्धेश अब अपनी निजी जिन्दगी के उलझे तानों-बानों को मन में सुलझाने का निरर्थक प्रयास करने लगा। टी.वी. पर न्यूज देखने के लिए उसने ऑन ही किया कि तब भोला खाना खाने के लिए कहने आ गया। नीचे डायनिंग टेबल पर जाकर बैठा लेकिन खाने में मन लग नहीं रहा था। इसलिए उसने थोड़ा खाकर प्लेट किनारे कर दी। इसको सुगन्धा बड़े ध्यान से देख रही थी। उस समय उसने भी पूंछना उचित नहीं समझा। सिद्धेश खाने की टेबल से उठा और बिना कुछ कहे अपने कमरे की ओर चला गया। सुगन्धा ने देखा कि उसके कमरे की लाइट भी कुछ देर बाद बंद हो गयी। वह भी अपने कमरे में गयी और लाइट बंद कर लेट गयी।

***